आदिवासियों ने मूलनिवासी अधिकार दिवस को आक्रोश रैली में बदल दिया

सूरजपुर में युवाओं ने निकाली आक्रोश रैली

दक्षिण कोसल टीम


सामाजिक कार्यकर्ता बीपीएस पोया ने बताया कि सूरजपुर में आक्रोश रैली आदिवासियों के खिलाफ अन्याय अत्याचार जुल्म शोषण, बलात्कार, अपने जल जंगल जमीन से विस्थापन सहित कई मसलों पर किया गया।

आदिवासी अपने सांस्कृतिक धार्मिक घुसपैठ, संवैधानिक अधिकार पांचवी अनुसूची, छत्तीसगढ़ पेसा कानून 2022, वन अधिकार संशोधन अधिनियम 2023, छत्तीसगढ़ में आदिम जाति कल्याण विभाग को आत्मानंद उत्कृष्ट हिंदी अंग्रेजी विद्यालय में परिवर्तित करने के खिलाफ, आदिवासी स्पेशल बजट की पारदर्शिता तथा कई महीनों से जलते मणिपुर और वहां के आदिवासी बहन बेटियों को निवस्त्र कर घुमाने के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया गया।

स्थिति यह है कि आज जनजाति मंत्री, सांसद और विधायक जो इस मामले  में एक शब्द नहीं बोलते नहीं उनका भी विरोध किया गया। सूरजपुर जिले में भी बीते वर्ष सामूहिक बलात्कार दुष्कर्म हुआ उस पर भी सरकार मौन हैं। 

आदिवासियों पर कोई पेशाब कर रहा है, बस्तर में सैकड़ों लोगों को मारा जा रहा, हसदेव वन को काटा गया इन मुद्दों पर ये हमारे नेता कुछ नहीं बोलते इस कारण इनका इन समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करने के लिए पुतला दहन किया गया है। 

बताया गया कि अनुसूचित जनजाति मंत्रालय के राज्य मंत्री सरगुजा सांसद रेणुका सिंह,  छत्तीसगढ़ के जनजाति विधायक मंत्री खेलसाय सिंह, बृहस्पति सिंह, अमरजीत भगत, मोहन मरकाम, डॉ. प्रेमसाय टेकाम, दीपक बैज, कवासी लखमा एवं अन्य आदिवासी विधायक मंत्रियों का चौक चौराहे में पुतला दहन किया गया। 

पोया ने बताया कि इस दौरान पुलिस के साथ झूमा झटकी भी हुई। रैली में ट्रायबल यूथ पॉवर सरगुजा संभाग के कार्यकर्ता राम कुमार बंछोर, अशोक पैकरा,  कृष्ण प्रताप नारायन चेरवा, विनय पावले, अनिमेष सिंह, लक्ष्मण पोर्ते, नरेद्र मरकाम, रामदेव आयाम, अंकित पैकरा, आशीष पैकरा, रविकांत पैकरा, ज्ञानेश्वर सिंह,योगेश सिंह, सचिन पैकरा, शेखर सिंह, अमूल सिंह, आनंद सिंह, अभिषेक सिंह, आदिवासी युवा सहित छात्र समाज के हजारों लोग इस आक्रोश रैली में शामिल थे। 

 

 

गरियाबंद में  युद्ध का विरोध

गरियाबंद में अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद एक विशाल कार्यक्रम का आयोजन कर मौजूदा परिस्थिति में मणिपुर से लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में कॉरपोरेट घरानों के दलाल संघी मनुवादी फासिस्ट ताकतों के द्वारा आदिवासियों पर युद्ध का विरोध किया। 

महासचिव युवराज नेताम ने बताया कि इस विशाल आमसभा में कॉरपोरेट घरानों द्वारा जल, जंगल, जमीन की भयावह लूट और मूलनिवासियों के विस्थापन के खिलाफ मणिपुर में नफऱत और विभाजन के राजनीति की शिकार कुकी आदिवासी समुदाय को न्याय देने आवाज लगाई गई। वहां तुरंत हिंसा और आदिवासी महिलाओं का दमन बंद करना, हिंसा और निर्मम यौन अत्याचार के घृणित अपराधियों, दोषी पुलिस प्रशासन व नफऱत पर विरोध जताया। 

इस भव्य कार्यक्रम में गोंड, हलबा, भुंजिया, कमार, कंवर सहित नौ आदिवासी समुदाय ने शिरकत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला पंचायत सदस्य लोकेश्वरी नेताम ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच के महासचिव तुहिन, भाकपा (माले) रेड स्टार के राज्य सचिव सौरा, जनपद पंचायत अध्यक्ष ललिता ठाकुर, जन संघर्ष मोर्चा छत्तीसगढ़ के संयोजक प्रसाद राव, आदिवासी भारत महासभा के अखिल भारतीय संयोजक  युवराज नेताम, त्रलोक कोमराजी, कर्मचारी संघ के संयोजक फागू नागेश्वर जी, कंवर समाज के संयोजक फिरतू राम कंवर, क्रांतिकारी किसान सभा के संयोजक हेमंत, अखिल भारतीय क्रांतिकारी महिला संगठन की राज्य संयोजक उषा  तथा विभिन्न आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों ने सक्रिय भागीदारी की।

 

 

बौद्ध समाज ने किया वृहद वृक्षारोपण

राजनांदगांव में विश्व मूलनिवासी अधिकार दिवस के अवसर पर नगर बौद्ध कल्याण समिति राजनांदगांव द्वारा एक संगोष्ठी का आयोजन किया तथा बौद्ध कल्याण समिति के संस्थापक सदस्यों की स्मृति में वृहद वृक्षारोपण, एयर कंडीशन मीटिंग हॉल व ई-लाईब्रेरी का उद्घाटन तथा महिलाओं व पुरूष टीम ने श्रमदान किया।

इस दिन दिवंगत बंशीलाल गड़पायले, मनीराम सुखदेवे, सुभाष गड़पायले, सुकालू घरडे, पुनाराम ऋषि, चंद्रशेखर घोड़ेश्वार, कचरी बाई चौहान, मंगलू नोंहारे, अमृतलाल मेश्राम एवं देवजी रामटेके के स्मृति में वृक्षारोपण किया गया। 

समाज के युवाओं के भविष्य को नजर में रखते हुए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु एयर कंडीशन  ई-लाईब्रेरी व हॉल का उद्घाटन किया गया। समाज के सक्रिय सदस्य विनोद श्रीरंगे ने बताया कि विश्व मूलनिवासी अधिकार दिवस के अवसर पर बौद्ध समाज के सक्रिय सदस्यों की उपस्थिति में विभिन्न सामाजिक धार्मिक व रचनात्मक कार्यों का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर बड़ी संख्या में सामाजिक सदस्यों की उपस्थिति देखने को मिली। जिसमें वरिष्ठ सदस्यों के सम्मान में कार्यकारिणी, महिला विंग कार्यकारिणी, आजीवन सदस्य, सामान्य सदस्य, शाखा समिति सदस्य, वार्ड अध्यक्षों व महिला सशक्तिकरण संघ की उपस्थिति में कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया

 

 

चलते चलते....

डॉ. लक्ष्मीधर मिश्रा की कविता - 'क्या कहीं उजाले की कोई किरण हैं'

कौन हैं वे
जिनके लिए बापू ने कहा था-
उनके जीवन का इकलौता और सबसे अहम् अभियान होगा।
‘आंसू की अंतिम बूंद पोंछ डालना उस चेहरे की,
जो बिना मुस्कान होगा।’

मानवता की सर्वोत्तम पहचान हैं, 
वे आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक के जीठाम, 
गुजरात के हाली और भील,
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के गोंड़, 
कामिया बिहार के संथाल, 
खेडिय़ा और साबर झारखंड, पश्चिम बंगाल के।

उड़ीसा के गोथी और बरमसिया, 
राजस्थान के भील, रूदाली, सागरी और सहारिया,
तमिलनाडु के पडियल जन,
केरल के अडिया, पनिया और कटटूनायकन, 
मेढिय़ा महाराष्ट्र के
कोलटा जौनसार बाबर उतर प्रदेश के
और भी,
हमारी तरह वे भी इंसान हैं इसी परिवेश के।

जितने हमारे पास अधिकार हैं उनके वे भी हकदार हैं ।
ठीक हमारे समान,
समानता, स्वतंत्रता और सम्मान;
वे नाचते हैं, गाते हैं,
खुशियां और मातम मनाते हैं,
उनके गीत मानव ह्दय के सबसे सुन्दर उद्गार हैं।

मैं जाता हूं तो अंधेरे में,
मैं आता हूं तो अंधेरे में,
मेरी पूरी जिंदगी पर अंधेरों का आवरण है।
क्या कहीं उजाले की कोई किरण हैं?


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