पारंपरिक धोती और कंबल ओड़े ‘गदर’ गर्जना हो गई शांत

कोई दूसरा गदर कभी नहीं हो सकता

दक्षिण कोसल टीम

 

बीबीसी ने लिखा है कि तेलुगू भाषा के जानेमाने लोक गायक विट्ठल राव 'ग़दर' का रविवार को हैदराबाद में निधन हो गया। उनकी उम्र 74 साल थी। हैदराबाद के अपोलो अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली जहां फेफड़ों और मूत्राशय में संक्रमण की वजह से उनका इलाज चल रहा था।उनके निधन पर कांग्रेस, केसीआर समेत कई राजनीतिक पार्टियों के नेताओं, फि़ल्म कलाकारों और आम लोगों ने शोक जताया है।

विट्ठल राव ‘ग़दर’ का असल नाम गुम्मडी विट्ठल राव था। उनके परिवार में उनकी पत्नी विमला, उनका एक बेटा सुर्यूडू और बेटी वेनेल्ला हैं। उनका जन्म साल 1949 में अविभाजित आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) के मेदक जिले के तूप्रान के एक दलित परिवार में हुआ था।

गदर की शैक्षणिक योग्यता 

बीबीसी ने लिखा है कि उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और इसके बाद 1970 के दशक में उन्होंने कुछ समय के लिए केनरा बैंक में काम किया। इसके बाद वो आर्ट लवर्स एसोसिएशन में शामिल हो गए, जिसकी स्थापना फिल्म निर्देशक बी. नरसंहराव ने की थी. वो नुक्कड़ नाटकों के ज़रिए जागरूकता फैलाने का काम करने लगे। उन्हें अपने उग्र विचारों के कारण भूमिगत भी होना पड़ा था। 

एनडीटीवी के पत्रकार प्रिय दर्शन अपने श्रद्धांजलि में लिखते हैं कि अस्सी के दशक में जब पहली बार हमारी पीढ़ी क्रांति के स्वप्न या रोमान के बीच अपने क्रांतिकारी लेखकों-कवियों को पहचानने का जतन कर रही थी तो तेलुगू के दो कवि और गायक हमें नायकों की तरह मिले थे- वरवर राव और गदर। 

वह लिखते हैं कि उनकी मौत की ख़बर आते ही इतिहास के कुछ मुर्दा पत्थर हिले होंगे- तेलंगाना और दूसरे जनांदोलनों से जुड़ी स्मृतियां किन्हीं दूर-दराज़ के अंधेरे कोनों में कौंधी होंगी। दलितों और वंचितों के पक्ष में उनकी गूंजती आवाज़ किन्हीं सन्नाटों में प्रतिध्वनित हुई होगी। 

गदर बेचैन आत्मा थे और इसलिए तरह-तरह के विकल्प तलाश रहे थे 

प्रिय दर्शन कहते हैं कि यह सच है कि गदर जिस क्रांति धारा से जुड़े हुए थे, वह संगठन और विचार दोनों स्तरों पर लगातार सूखती जा रही थी। गदर बेचैन आत्मा थे और इसलिए तरह-तरह के विकल्प तलाश रहे थे। कभी वे अलग तेलंगाना राज्य के आंदोलन से जुड़े, कभी वे कांग्रेस के कऱीब जाते दिखे, कभी वे अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बनाने की बात सोचते-करते रहे, लेकिन लगभग हमेशा यथास्थिति को नकारते रहे, जो हो रहा है, उससे असहमत रहे। 

लेकिन गदर एक व्यक्ति या कवि के रूप में जो भी और जैसे भी रहे हों, वे एक बड़ा प्रतीक रहे- बदलाव की उम्मीद के प्रतीक, क्रांति और संघर्ष के प्रतीक, संघर्ष में जनभागीदारी के प्रतीक। तपती धूप और उड़ती धूल के बीच न थकने वाले क़दमों की जिद के प्रतीक। उन सारे गाये-अनगाये गीतों के प्रतीक, जो हमारे कंठ से फूटते रहे या हमारी आत्माओं में उतरते रहे।

उनके न रहने से अचानक वे सारे आंदोलन नए सिरे से याद आ रहे हैं जिनमें बराबरी और बदलाव के सपने को मरने-जीने की ज़िद तक ढोने का सपना था, जिसकी खातिर न जाने कितने लोग कहां-कहां खप गए, कितनी विस्मृत शहादतें इतिहास के नामालूम पन्नों में दफऩ हो गईं।

...बल्कि शायद हमें यह रास भी आने लगा है

प्रिय दर्शन कहते हैं कि अब गदर को याद करने का क्या मतलब है? बस यही कि हम इतिहास के ऐसे मोड़ पर लाकर खड़े कर दिए गए हैं जहां बदलाव की कल्पना के लिए भी ज़मीन बंजर हो चुकी है, क्रांति का स्वप्न लगभग हास्यास्पद बना दिया गया है, एक चुस्त-चालाक, सजा-धजा बाज़ार हमें जीने की नई हिकमतें सिखा रहा है जिसमें अपने चारों तरफ़ के अंधेरों से आंख मूंदे रखना भी शामिल है। 

एक भाषणबाज राजनीतिक संस्कृति- जो अपने चरित्र में घोर सांप्रदायिक और यथास्थितिवादी है- राष्ट्र, धर्म और संस्कृति का चोला ओढ़ कर हमें ऐसे लोकतंत्र का ककहरा पढ़ा रही है जिसमें चुनाव ही सबकुछ है और वोट हासिल करने के सारे जतन बिल्कुल वैध हैं। हम विकल्पहीनता पर यकीन के आदी बनाए जा रहे हैं, बल्कि शायद हमें यह रास भी आने लगा है। 

गीत पोदुस्तन्ना पोद्दुमीडा तेलंगाना आंदोलन का ‘थीम सांग’ जैसा बन गया

उन्होंने दलितों के दमन के खि़लाफ़ आवाज़ उठाई, फर्ज़ी मुठभेड़ों के खि़लाफ़ आंदोलनरत रहे और अपने जीवन को जन-संघर्षों के लिए समर्पित कर दिया। उनका गीत पोदुस्तन्ना पोद्दुमीडा तेलंगाना आंदोलन का ‘थीम सांग’ जैसा बन गया था। यू ट्यूब पर गदर की आवाज़ में इस गीत को सुनने का अपना ही प्रभाव है। वे एक डंडे से लगा लाल झंडा हिलाते-घुमाते हुए और नाटकीय ढंग से बीच-बीच में भाषण देते हुए यह गीत गाते हैं और तेलंगाना का क्षोभ और स्वप्न जैसे गीत में साकार हो उठते हैं।

मगर यह गायकी नहीं थी जो उनके स्वर से फूट कर सबको प्रभावित करती थी। उन्हें संगीत के लिए आंध्र का प्रतिष्ठित नंदी सम्मान दिया जा रहा था जिसे उन्होंने लेने से इनकार कर दिया था। यह उनकी आत्मा से निकलती स्वतंत्रता की चेतना थी जो उनके सुरों के ज़रिए दूसरों की आत्माओं में उतर जाती थी।

द वायर ने लिखा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गदर के निधन पर दुख जताया है। राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘तेलंगाना के प्रतिष्ठित कवि, गीतकार और उग्र कार्यकर्ता गुम्मादी विट्ठल राव के निधन के बारे में सुनकर दुख हुआ। तेलंगाना के लोगों के प्रति उनके प्यार ने उन्हें हासिए पर मौजूद लोगों के लिए अथक संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। उनकी विरासत हम सभी को प्रेरित करती रहेगी।’

द वायर के अनुसार गदर 'जन नाट्य मंडली' के संस्थापक थे। ‘द साउथ फर्स्ट’ का हवाला देते हुए लिखा गया कि ‘उन्होंने गदर पार्टी, जिसने देश की आजादी के संघर्ष में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में शामिल थी, से प्रेरणा लेकर गदर नाम रखा था.’ उन्होंने कई नुक्कड़ नाटक भी लिखे और रैलियां भी आयोजित कीं।

 

 

गदर के बेटे जीवी सूर्य किरण 2018 में कांग्रेस में शामिल हुए थे

द न्यूज मिनट के अनुसार, ‘2022 में गदर ने घोषणा की कि वह केए पॉल की प्रजा शांति पार्टी से मुनुगोड उपचुनाव लड़ेंगे। यह आश्चर्यजनक कदम था, खासकर कवि के कांग्रेस पार्टी के साथ संबंधों को देखते हुए। कई लोगों को यकीन था कि वह उनके साथ शामिल होंगे। गदर के बेटे जीवी सूर्य किरण 2018 में कांग्रेस में शामिल हुए थे, उसी साल गदर ने पहली बार मतदान किया था।’ 

गदर ने दलितों को उनका हक न देने और इसके बजाय राज्य में ‘नया सामंतवाद’ लाने के लिए भारत राष्ट्र समिति और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की आलोचना की थी।

गदर और वरवर राव छत्तीसगढ़ में पहुंचे थे

जो पत्रकार साल 1989-91 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं उनके सूत्र बताते हैं कि गदर और वरवर राव छत्तीसगढ़ में पहुंचे थे और प्रख्यात श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी के 2 अक्टूबर विशाल आमसभा में उनकी जन नाट्य मंडली ने अपना सांस्कृतिक प्रस्तुति पेश की थी। 

उनके गीतों का प्रभाव जय भीम कामरेड फिल्म के अभिनेता और मशहूर कवि गायक विलास घोघरे और कवि गायक संभाजी भगत के गीतों में खास उभर कर आता है। दक्षिण भारत सहित महाराष्ट्र, बंगाल, बिहार, झारखंड जैसे गैर तेलुगु भाषी क्षेत्रों में उनके गीतों को उनकी शैली में गाने लोक गीतों में नजर आती है।

देशबन्धु ने लिखा है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने रविवार को क्रांतिकारी गीतकार गदर के निधन पर शोक जताया। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने कहा कि वह गदर के निधन के बारे में जानकर स्तब्ध हैं। उन्होंने तेलंगाना आंदोलन के दौरान अपने गीतों के माध्यम से भावना को हर गांव तक पहुंचाया था।

चेतना जगाने वाले लोगों के दिलों में हमेशा रहेंगे

केसीआर ने कहा कि अपने गीतों और नृत्य से लोगों में अपने राज्य के लिए चेतना जगाने वाले लोगों के दिलों में हमेशा रहेंगे। सीएम ने अपने शोक संदेश में कहा कि गदर ने अपना जीवन लोगों के लिए समर्पित कर दिया था। उनके निधन से पूरे तेलंगाना ने एक महान जनकवि खो दिया है।

केसीआर ने कहा कि लोककला और आंदोलनों के लिए गदर के कार्यों को कभी नहीं भुलाया जा सकता। उनके निधन से जो शून्यता आई है, उसे कभी नहीं भरा जा सकता।

गदर एक महान व्यक्ति थे

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने भी गदर के निधन पर शोक व्यक्त किया। सीएम ने कहा, ‘गदर एक महान व्यक्ति थे जिन्होंने एक सार्वजनिक गायक के रूप में अपने गीतों से गरीबों को प्रेरित किया और उनके अधिकारों के लिए आंदोलन शुरू किया। ऐसे महान व्यक्ति को खोना समाज के लिए बहुत बड़ी क्षति है। गदर के परिवार के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं हैं और मैं भगवान से उनकी आत्मा को शांति देने की प्रार्थना करता हूं।’

तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन ने कहा कि उन्हें प्रसिद्ध गीतकार और कवि गदर के निधन के बारे में जानकर दुख हुआ। तेलंगाना राज्य आंदोलन के लिए उनके योगदान और बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा। शोक संतप्त परिवार के सदस्यों के प्रति मेरी संवेदनाएं।

केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा कि उन्हें यह जानकर गहरा दुख हुआ कि क्रांतिकारी गायक गदर का बीमारी के कारण निधन हो गया। उन्होंने तेलंगाना आंदोलन में अपनी आवाज से लोगों में जागरूकता लाने में अहम भूमिका निभाई थी।

कोई दूसरा गदर कभी नहीं हो सकता

एआईएमआईएम अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया कर गदर के निधन पर शोक जताया। उन्होंने गदर के निधन को तेलंगाना के वंचितों के लिए एक बड़ी क्षति बताया और कहा, ‘वह गरीबों की एक साहसी आवाज़ थे। उन्होंने कुछ मौकों पर मेरे दिवंगत पिता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी से मुलाकात की थी। उनके गीतों ने जनता में क्रांतिकारी भावना पैदा की। कोई दूसरा गदर कभी नहीं हो सकता।’

तेलंगाना के कांग्रेस प्रभारी माणिकराव ठाकरे और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रेवंत रेड्डी ने गदर के निधन पर शोक प्रकट किया है। इन नेताओं के अलावा भी अन्य नेताओं ने गदर के निधन पर दुख जताया है।

प्रेम कुमार मणि ने लिखा है कि अलविदा जनकवि गदर!  कवि, संस्कृतिकर्मी और जनयोद्धा गदर भौतिक रूप से नहीं  रहे। आज शाम उन्होने आखिरी सांस ली। 1949 में आज के आंध्र में जन्मे गुम्मड विठ्ठल राव को लोग प्यार से गदर कह कर पुकारते थे। वह किताबों के नहीं, जनता के कवि थे। कम्युनिस्ट आंदोलन में उन्होने सकिय भूमिका निभाई और राजदन्ड की कठिन मुसीबतें झेलीं। वह कभी झुके नहीं।  जनता की बेहतरी के लिए सतत संघर्षशील रहे। 

अंत में पत्रकार और टिप्पणीकार प्रिय दर्शन के अनुसार गदर के न रहने की क़ीमत यही है- हमने ऐसी एक आवाज़ खो दी है जिससे हम अपनी स्वतंत्रता की चेतना अर्जित करते और कर सकते थे। ऐसे समय में जब हमारी आज़ादी पर बहुत सारे हमले लगातार जारी हैं, 'गदर' का जाना हमारी प्रतिरोध-क्षमता के एक बड़े स्रोत का चले जाना है।


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  • 07/08/2023 बसंत साहू

    दुखत घटना है, वे विचारों में जिंदा रहेंगे....

    Reply on 11/08/2023
    जी