लोकसभा ने वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 पारित 

यह कितना जनहितकारी और कितना जनविरोधी

दक्षिण कोसल टीम

 

वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 देश में वन संरक्षण के लिये एक महत्वपूर्ण केन्द्रीय कानून है। कानून के तहत प्रावधान है कि आरक्षित वनों को अनारक्षित करना, वन भूमि का गैर-वन कार्यों के लिये उपयोग, वन भूमि को पट्टे पर अथवा अन्य तरीके से निजी इकाईयों को देना और प्राकृतिक रूप से उगे पेड़ों का पुन:वनीकरण के लिये सफाया करने के लिये केन्द्र सरकार की पूर्वानुमति आवश्यक है।

विभिन्न प्रकार की भूमि के मामले में कानून की उपयोगिता भी बदलती रही है, जैसे कि शुरूआत में इस कानून के प्रावधान केवल अधिसूचित वन भूमि पर ही लागू होते थे। उसके बाद 12 दिसम्बर 1996 के न्यायालय निर्णय के बाद कानून के प्रावधान राजस्व वन भूमि अथवा ऐसी भूमि जो कि सरकारी रिकार्ड में वन भूमि के तौर पर दर्ज है और उन क्षेत्रों में भी जो कि उनके शब्दकोष में वन की तरह दिखते हैं, उनमें भी लागू होने लगे।

इस प्रकार की काफी भूमि को सक्षम प्राधिकरण की मंजूरी से पहले ही मकान, संस्थान और सडक़ आदि बनाने जैसे गैर-वन उपयोग के काम लाया जा चुका था। विशेष तौर से सरकारी रिकार्ड में दर्ज वन भूमि, निजी वन भूमि, पौधारोपण वाली भूमि आदि मामले में कानून लागू करने के मामले में प्रावधानों की अलग अलग परिभाषायें सामने आने से यह स्थिति बनी।

यह देखा गया है कि ऐसी आशंका रही कि व्यक्तियों और संगठनों की भूमि पर पौधारोपण से वन संरक्षण कानून (एफसीए) के प्रावधान लागू हो सकते हैं, वन भूमि के बाहर वनीकरण और पौधारोपण कार्य को वांछित बल नहीं मिल पाया। इसके कारण सीओ2 के 2.5 से 3.0 टन के बार कार्बन उत्सर्जन में अतिरिक्त कमी लाने के राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबद्ध योगदान लक्ष्य को पूरा करने में जरूरी हरित कवर के विस्तार में बाधा बन रही थी।

इसके अलावा विशेषतौर से अंतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी), नियंत्रण रेखा (एलओसी), और अधिसूचित एलडब्ल्यूई क्षेत्रों जैसे इलाकों में राष्ट्रीय महत्व की रणनीतिक और सुरक्षा संबंधी परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने की आवश्यकता होती है ताकि व्यापक सुरक्षा अवसंरचना का विकास सुनिश्चित किया जा सके। इसी प्रकार छोटे प्रतिष्ठानों, सडक़ों/रेल लाइनों के साथ बने मकानों में रहने वालों के लिये मुख्य सडक़ तक संपर्क मार्ग और दूसरी सार्वजनिक सुविधायें उपलब्ध कराने की भी आवश्यकता होती है।

कानून लागू होने के बाद समय के साथ राष्ट्रीय के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पारिस्थितिकीय, सामाजिक और पर्यावरण विकास से जुड़ी नई चुनौतियां उभरकर सामने आने लगीं। उदाहरण के तौर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना, वर्ष 2070 तक शून्य उत्सर्जन के राष्ट्रीय लक्ष्य को हासिल करना, वन कार्बन स्टॉक को बरकरार रखना अथवा उसका विस्तार करना आदि।

इसलिये देश के वनों और उनकी जैव-विविधता को संरक्षित रखने की परंपरा को आगे बढ़ाने तथा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिये यह जरूरी हो गया कि इन सभी मुद्दों को कानून के दायरे में लाया जाये।

इसलिये, देश की एनडीसी, कार्बन निरपेक्षता जैसी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पतिबद्धताओं को हासिल करने, विभिन्न प्रकार की भूमि के मामले में संशयों को दूर करने और कानून की व्यवहारिकता को लेकर स्पष्टता लाने, गैर-वन भूमि में पौधारोपण को बढ़ावा देने, वनों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिये कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया गया और यही कारण है कि केन्द्र सरकार ने वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 को आगे बढ़ाया।

लोकसभा में पारित संशोधन में कानून का दायरा व्यापक बनाने के लिये एक प्रस्तावना को शामिल किया गया है। इसके साथ ही एक्ट का नाम बदलकर वन (संरक्षण एवं सवर्धन) अधिनियम, 1980 किया गया है ताकि इसके प्रावधानों की क्षमतायें इसके नाम में परिलक्षित हों, संशयों को दूर करने के लिये विभिन्न प्रकार की भूमि में कानून लागू होने का दायरा स्पष्ट किया गया है।

इन संशोधनों के साथ ही विधेयक में वन भूमि के उपयोग को लेकर कुछ छूट दिये जाने के प्रस्तावों को भी लोकसभा से मंजूरी दी गई है। इनमें अंतरराष्ट्रीय सीमा, वास्तविक नियंत्रण रेखा, नियंत्रण रेखा से 100 किलोमीटर के दायरे में स्थित राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी रणनीतिक परियोजनाओं को छूट शामिल है।

इसके अलावा सडक़ों और रेलवे लाइनों के साथ बने मकानों और प्रतिष्ठानों को मुख्य सडक़ से जोडऩे के लिये 0.10 हेक्टेयर वन भूमि उपलब्ध कराना प्रस्तावित है, सुरक्षा संबंधी अवसंरचना के लिये 10 हेक्टेयर तक भूमि और वाम चरमपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में सार्वजनिक सुविधा परियोजनाओं के लिये पांच हेक्टेयर तक भूमि देने का प्रावधान है। ये सभी छूट और रियायतें जो विधेयक में दी गई हैं उनके साथ कुछ शर्तें और परिस्थितियां जोड़ी गई हैं जैसे कि बदले में क्षतिपूर्ति वनीकरण, न्यूनीकरण योजना आदि, जैसा केन्द्र सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किया जायेगा।

निजी इकाइयों को वन भूमि पट्टे पर देने के मामले में मूल कानून के मौजूदा प्रावधानों में समानता लाने के लिये प्रावधान का विस्तार सरकारी कंपनियों के लिये भी कर दिया गया है। विधेयक में कुछ नई गतिविधियों को भी शामिल किया गया है, जैसे कि अग्रिम क्षेत्र में तैनात वनकर्मियों के लिये जरूरी सुविधायें, वन संरक्षण के लिये वानिकी गतिविधियों के तहत इको टूरिज्म, चिडिय़ाघर और सफारी जैसी गतिविधियां चलाना।

इस बात को ध्यान में रखते हुये कि ऐसी गतिविधियां अस्थायी प्रकृति की होती हैं और इनसे भूमि उपयोग में कोई वास्तविक बदलाव नहीं आता है, वन क्षेत्र में सर्वेक्षण और जांच को गैर-वानिकी गतिविधि नहीं माना जायेगा। विधेयक की धारा 6 केन्द्र सरकार को अधिकार देती है कि वह कानून के उचित क्रियान्वयन के लिये निर्देश जारी कर सकती है, इसे भी लोकसभा ने पारित कर दिया।

कानून की व्यवहारिकता के मामले में संशयों को दूर करने से प्राधिकरण द्वारा वन भूमि का गैर-वानिकी कार्यों के लिये इस्तेमाल से जुड़े प्रस्तावों के मामले में निर्णय लेने की प्रक्रिया बेहतर होगी। सरकारी रिकार्ड में दर्ज ऐसी वन भूमि जिसे सक्षम प्राधिकरण के आदेश से 12 दिसम्बर 1996 से पहले ही गैर-वानिकी इस्तेमाल में डाल दिया गया है, उसका राज्य के साथ ही केन्द्र सरकार की विभिन्न विकास योजनाओं का लाभ उठाने के लिये इस्तेमाल में लाया जा सकेगा।

विधेयक में फ्रंटलाइन क्षेत्र में ढांचागत सुविधाओं को खड़ा करने जैसे वानिकी गतिविधियों को शामिल करने से वन क्षेत्र में प्राकृतिक आपदा की स्थिति में त्वरित कार्रवाई की जा सकेगी। कानून में उपयुक्त प्रावधानों की जरूरत के चलते वन क्षेत्र में मूलभूत अवसंरचना का सृजन मुश्किल रहा है जिससे कि वानिकी परिचालन, पुनर्सृजन गतिविधियां, निगरानी और सुपरविजन, वन आग से बचाव जैसे उपाय किये जा सकें।

इन प्रावधानों से उत्पादकता बढ़ाने के लिये वनों का बेहतर प्रबंधन का रास्ता साफ होगा। इससे इकोसिस्टम, सामान और सेवाओं का प्रवाह भी बेहतर होगा जो कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने और वन संरक्षण में मददगार साबित होगा।

प्राणी उद्यान और सफारी जैसी गतिविधियों का स्वामित्व सरकार का होगा और इन्हें संरक्षित क्षेत्र के बाहर केन्द्रीय प्राणी उद्यान प्राधिकरण द्वारा अनुमति प्राप्त योजना के अनुरूप स्थापित किया जायेगा। इसी प्रकार वन क्षेत्र में स्वीकृत कार्य योजना अथवा वन्यजीव प्रबंधन योजना अथवा टाइगर संरक्षण योजना के मुताबिक इकोटूरिज्म गतिविधियां होंगी।

इस प्रकार की सुविधायें, वन भूमि और वन्यजीव के संरक्षण और सुरक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ाने के साथ ही स्थानीय समुदायों की आजीविका बढ़ाने में सहयोग करेंगी और उन्हें विकास की मुख्यधारा के साथ जुडऩे का अवसर मिलेगा।

लोकसभा द्वारा पारित इस विधेयक में प्रस्तावित संशोधन से वन संरक्षण और संवर्धन के लिये कानून की भावना अधिक स्पष्ट होगी और उसमें नयापन आयेगा। ये संशोधन वन उत्पादकता बढ़ाने, वन क्षेत्र से बाहर पौधारोपण बढ़ाने, स्थानीय समुदायों की आजीविका से जुड़ी आकांक्षाओं को व्यवस्थित करने के साथ ही नियामकीय प्रणाली को मजबूत बनायेंगे।
 

https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1943110

 

‘ग्रीन वाशिंग’ - संशोधनों और वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 का मामला पर द हिन्दू की टिप्पणी

संरक्षण कानूनों में बदलाव वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित होना चाहिए

वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023, जिस पर एक संयुक्त संसदीय समिति द्वारा विचार-विमर्श किया जा रहा है, एक ऐसा विवादास्पद कानून है जो औद्योगिक विकास और वनों के संरक्षण को संतुलित करने में निहित जटिल चुनौतियों की ओर इशारा करता है।

जहां औद्योगीकरण का मतलब अनिवार्य रूप से वन भूमि और पारिस्थितिक तंत्र के बड़े हिस्से को हड़पना है, वहीं वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 एक ऐसा महत्वपूर्ण कानून रहा है जिसने राज्य को औद्योगीकरण की प्रक्रिया को विनियमित करने और ऐसे औद्योगिक दोहन पर हर्जाना लगाने का अधिकार दिया है।

मूल रूप से अधिसूचित वनों से जुड़े टी.एन. गोदावर्मन थिरुमलपाद मामले (1996) में, अन्य बातों के अलावा, सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले ने इस तरह की सुरक्षा का दायरा उन वनों के लिए भी बढ़ा दिया था जिन्हें आधिकारिक तौर पर वर्गीकृत नहीं किया गया था।

जैसा कि भारतीय वन सर्वेक्षण की द्विवार्षिक रिपोर्ट बताती है, भारत के वन क्षेत्र में बेहद मामूली वृद्धि ही देखी गई है। आधिकारिक तौर पर दर्ज वनों के अंदर वन क्षेत्र का प्रसार ठहरा हुआ है, या हद से हद वृद्धिशील ही है। यह तो बागों, बागानों और गांव के घरों में लगे वृक्षों का आवरण ही है, जो बढ़ रहा है और भारत के इस दावे का पूरक बन रहा है कि उसका 24 फीसदी इलाका वन और वृक्ष आवरण के अंतर्गत है।

भारत ने जलवायु संबंधी अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के हिस्से के रूप में, 2030 तक इस आंकड़े को 33 फीसदी तक बढ़ाने और इस तरह से 2.5 बिलियन से तीन बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बन सिंक का समावेश करने की प्रतिबद्धता जताई है।

मौजूदा वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 - पर्यावरण मंत्रालय के हिसाब से - इन मकसदों के लिए पर्याप्त नहीं था, क्योंकि यह निजी कृषि-वानिकी और वृक्षारोपण से जुड़ी गतिविधियों को प्रोत्साहित नहीं करता था। वर्ष 2019 से लेकर 2021 के दौरान, भारत ने 1,540 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र का समावेश किया, जिसमें से 1,509 वर्ग किलोमीटर का इलाका दर्ज वन क्षेत्र के बाहर था।

मौजूदा वन अधिनियम में किए गए नए संशोधनों ने 1996 के फैसले की सीमाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करके ऐसे प्रोत्साहन दिए। केवल 1980 या उसके बाद किसी भी सरकारी रिकॉर्ड में ‘वन’ के रूप में दर्ज भूमि पर ही इस अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे। राज्यों द्वारा 1980'996 के बीच गैर-वानिकी उपयोग के लिए अधिकृत वन भूमि पर इस अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे।

इन संशोधनों का प्रभावी रूप से मतलब यह है कि राज्य अब अवर्गीकृत वन भूमि, या वन जैसी विशेषताओं वाले पेड़ों के हिस्सों को ‘वन भूमि’ के रूप में वर्गीकृत नहीं कर सकते हैं। ये संशोधन भारत की सरहदों के निकट स्थित 100 किलोमीटर तक की वन भूमि को ‘रणनीतिक और सुरक्षा’ से जुड़े उद्देश्यों के लिए केंद्रीय अनुमोदन के बिना विनियोजित करने की इजाजत भी देते हैं।

न संशोधनों की बुनियादी आलोचना यह है कि ये दरअसल प्राकृतिक वन को पुनर्जीवित करने में योगदान नहीं देते हैं, बल्कि व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए वनीकरण को प्रोत्साहित करते हैं। चिंताजनक बात यह है कि संसदीय समिति ने अपने वैधानिक विशेषाधिकारों के बावजूद आगे की राह के बारे में कोई राय या सुझाव नहीं दिया है।

निजी वनों को संवारना सैद्धांतिक रूप से भले ही अच्छा लग सकता है, लेकिन उनसे स्थायी कार्बन भंडार बनने की उम्मीद करना एक ख्याली पुलाव है क्योंकि उन्हें ‘कार्बन क्रेडिट’ के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए मजबूत बाजार प्रोत्साहन मौजूद हैं। जलवायु संबंधी नई हकीकतों के मद्देनजर संरक्षण कानूनों की व्याख्या में बदलाव की जरूरत हो सकती है, लेकिन ऐसी व्याख्याओं को ठोस वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित होना चाहिए।

https://www.thehindu.com/hindi/editorial/green-washing-hindi-editorial-on-amendments-and-the-forest-conservation-amendment-bill-2023/article67070842.ece


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