सरखेड़ा में माराय सेडो जमींदारिन की मूर्ति को लेकर बवाल

हल्बा समाज ने कहा दुर्गा की मूर्ति को असामाजिक तत्वों ने जलाया

गोविन्द वालको

 

ग्राम सरखेड़ा आदिवासी बाहुल्य गांव है, जिसका वर्ष 1989 में दो फाड़ होता है। एक पक्ष कांग्रेस तथा दूसरा पक्ष भाजपा। इसके पूर्व पूरा गांव कांग्रेसी था और औंधी परगना में भाजपा को जानते भी नहीं थे। वर्ष 1989 में राजनांदगांव लोक सभा सीट से भाजपा जीत हासिल कर लेती है। कांग्रेस पक्ष आदिवासी परंपरानुसार तलूर मुत्ते पेन (ठाकुर देवी) के व्यवस्था को  विरोध करते हुए हमारे साथ उठना बैठना बंद कर दिए। दूसरा पक्ष गायता व्यवस्था को मानने लगा और जिद - जिद में साल 1989 में दोनों पक्ष में दुर्गा की मूर्ति स्थापित कर दशहरा पूजा चालू किए। 

बिरजू राम ने अपने वर्चस्व के लिये मामले को भ्रष्ट राजनीतिक रंग दिया

पूजा, झांकी तथा डेकोरेशन की खर्चा के लिए धान रोपाई का ठेका (हुंडी) में लगाया जाता था। 30 दिन की रोपाई में 20 दिन की रोपाई की मजदूरी पूजा के लिए किया जाता था। भाजपा अर्थात गायता पक्ष में गायता का नहीं बल्कि बिरजू राम की तुति बोलती थी  उसी का  फैसला मान्य होता था। 

आज से 20 वर्ष पूर्व हमारे गायता परिवार के बुजुर्गों के सामने बात रखा गया कि माराय सेडो जमींदारिन माता का सुंदर मूर्ति बनाएंगे। हमारे भैया एवं काका लोग स्पष्ट कह दिए कि हमारे माराय सेडो महुआ पेड़ में स्थापित एवं विराजित है किसी मूर्ति में नहीं इसलिए मूर्ति बनाने की जरूरत नहीं है, लेकिन बिरजू राम हार मानने वालों में से नहीं थे उसके बाद दो बार हमारे बुजुर्गों द्वारा उन्हें मनाने की कोशिश की गई लेकिन वे नहीं माने तीसरे प्रयास में बुजुर्गों को जमींदारिन माता के पालो को पूछने के लिए राजी किये, पालो को पूछने पर माता ने कहा  मैं महुआ पेड़ में ही ठीक हूं। मुझे मूर्ति नहीं चाहिए दूसरी बार भी पूछने पर वही जावब दी। 

माराय सेडो जमींदारिन अर्थात बूढ़ी महिला लाठी पकड़ी खड़ीं रहेगी...

मेरे और भतीजा निरंगसाय के अनुपस्थित में माता को तीसरी बार पूछा गया हमारे बुजुर्गों को बिरजू राम अपने जाल में फंसाकर माता को दो हाथ वाली बूढ़ी महिला लाठी पकड़ी खड़ीं रहेगी और एक घोड़ा की मूर्ति के लिए राजी करवा लिए। 

मूर्ति के निर्माण में ही गड़बड़ी हुई 

गांव में  बैठक करके बताया गया कि मारायन सेडो मूर्ति के लिए तैयार हो गई है, बिरजू राम स्वयं मूर्ति का आर्डर दूंगा बोले और आर्डर दिया गया। 9 माह बाद मूर्ति बनकर तैयार हो गया। फिर बिरजू राम गांव के बैठक में बताया कि मूर्ति बनकर तैयार हो गया है इससे कई लोग उत्सुकतावश पूछने लगे कि हमारी माता की मूर्ति कैसी है इस पर बिरजू राम कहने लगे कि -‘जिस तरह का माता की मूर्ति के लिए आदेशित किया था वह मूर्ति बलिपूजा का नहीं है वह सेत पूजा का है,  उसके जगह शेर में  बैठा चार हाथ वाली महिला बनकर तैयार है।’

इस पर बैठक में विरोध होना चालू हो गया कहने लगे उस मूर्ति को नहीं लाएंगे घोड़ा का मूर्ति को लाया जाएगा।  इस पर बिरजू राम कहने लगे मूर्तिकार कहता है कि मूर्ति ले जाना पड़ेगा नहीं तो केस करके जेल में डलवा दूंगा, इस पर लोग कहने लगे कि हम मूर्ति का राशि दे देगें बिरजू राम ने कहा मूर्ति का राशि देने से भी मूर्ति को लाना पड़ेगा नहीं तो जेल भेजवा देगा। इससे हमारे सीधे - सादे बुजुर्ग लोग डर गए और मूर्ति लेने के लिए चल दिए यह सब बिरजू राम का चाल था।

गलत आकृति की मूर्ति के कारण विवाद

मूर्ति  को लाया गया और विरोध के कारण स्थापित नहीं हुआ 3 - 4 वर्ष बाद हमारे बड़े पिता जी के पुत्रों ने मूर्ति स्थापित करने का प्रयास किये लेकिन हमारे एक घर के विरोध के कारण नहीं हो सका। इन्होंने हमारे पारिवार को दो फाड़ कर और मूर्ति को मारायन के पास निर्मित सांस्कृतिक भवन मे रखा गया। गांव में इस तरह दुर्गा पूजा की जाती रही। हम एक घर के लोग चंदा देना बंद कर दिए दूसरे वर्ष हल्बा समाज के 30 घर के लोग चन्दा देना बंद कर दिए। तीसरे वर्ष मेरे परिवार के लोग चन्दा देना बंद कर दिए और क्षेत्र में कई जगह गणेश, सरस्वती पूजा करना बंद हो गया।

गांव में कई प्रकार से प्राकृतिक बीमारियां हो रही थी हम अपने परम्परानुसार पेन पुरखो से पता लगाया कि गांव में मेरे नाम से गलत मूर्ति लाये हो इसी कारण है उसे हटाकर गांव के सरहद पर रख दो और उसे कोई नहीं मानेगा। इसलिए  9 - 10 वर्ष पूर्व उसे बाहर करने का कार्यक्रम किया गया लेकिन बिरजू राम ने कहा इस माराय सेडो के स्थान से हटाकर गांव के बीच निर्मित सामुदायिक भवन में रख देते हैं उसके बाद देखते हैं कि बीमारी होती है की नहीं और वैसे ही किया गया। लेकिन गायता द्वारा मूर्ति को स्थापित एवं प्राण प्रतिष्ठा नहीं किया गया। 

आदिवासी आज भी रूढि़ परम्परा को मानते हैं?

आदिवासी परांपरा अनुसार किसान के फसल को कीड़े - मकोड़े, नुकसान नहीं पहुंचाते। उसके बाद अगस्त से अक्टूबर तक सप्ताह के एक दिन पोलो किया जाता है। 

इसी तरह 2022 में हमारे गांव में भी पोलो रखा गया था पहले मेरे द्वारा बताया गया कि हमारे गायता परिवार में कई तरह के बीमारियां हो रही थी। जमींदारिन माता ने बताया है कि यह सब मूर्ति के कारण हो रहा है उसे बाहर करना आवश्यक है लेकिन पहला पोलो में कोई भी कुछ नहीं बोला।

दूसरे पोलो में फिर इस बात को दोहराया इसमें बिरजू राम एवं सुमन सिंह ने कहा कि किसके छाती में दम है मूर्ति को निकालने में इसके बाद पंचों ने कहा कि वालको परिवार के पेन पुरखा से इस संबंध में पूछा जाए! तीसरे पोलो में हमारे वालको कुल के भूमिहरियाल पेन को हल्बा समाज के तीन बैगा और बाहर के एक बैगा द्वारा पूछा गया। इस पर पेन ने बताया कि इस मूर्ति को बाहर करना ही होगा बिरजू राम पूछा तो उसे पाठ भी नहीं दिया इसके बाद पेन को झूठा बोलते हुए चले गए।

सरदार किरसान को हल्बा समाज से बहिष्कृत किया गया          

चौथी पोलो में भुनेश्वर नेताम ने बात रखी कि हमारे पारा में हल्बा समाज का पांगर है उसका एक प्रबंधक होता है। उस पांगर के अनुसार उस पारा का हल्बा समाज शासित होता है। हमारी संख्या कम होने के कारण विवाह, जन्म संस्कार, मृत्यु संस्कार में सहयोग पांगर के हिसाब से चलता है आर्थिक  दण्ड भी उनके ही अनुसार चलता है।

सरदार किरसान को हल्बा समाज से बहिष्कृत किया गया है पांगर का बैठक बुलाकर हमें कहा गया है कि जो भी व्यक्ति सरदार के साथ सहयोग करेगा उसे दस हजार रूपये आर्थिक दंड देना होगा नहीं तो पारा एवं पांगर से बहिष्कृत किया जायेगा। फिर मैंने कहा ये मसला हल्बा जाति का है इस पर दूसरे जाति  का क्या लेना देना हमारा सरदार क्या बिगाड़ा है? हम गायता परिवार को गांव में सभी को लेकर चलना पड़ता है हम उसको सहयोग करेंगे। 

इस पर बिरजू राम, सुमन सिंह, कीर्तन कहने लगे तुम गायता हो इसलिए गांव से सरदार को बहिष्कृत करना होगा मेरे नहीं कहने पर मारपीट पर उतारू हुए, कई पंच कहने लगे गांव का मसला नहीं है यह हल्बा जाति का है। उसके साथ सहयोग करोगे तो तुम्हारे साथ उठेंगे - बैठेंगे कहकर वहां से चले गए और औंधी क्षेत्र के हल्बा समाज का बैठक हुआ और कहा गया कि वालको परिवार का कोई  भी कार्यक्रम होता है तो उसमें क्षेत्र  का कोई भी हल्बा जाति का व्यक्ति शामिल नहीं होगा परिणामस्वरूप गांव  का पेन (देव) मंडई में जो हल्बा जाति का डॉग, पालो को आने नहीं दिया। 
हल्बा समाज का एक पक्ष आदिवासी परम्परा मानता है दूसरा पक्ष हिन्दू धर्म को मानने वाले है।

शादी में सहयोग करने के कारण 42 हल्बा परिवार बहिष्कृत हुए

बिरजुराम साजिश करके सरदार जो अपने बेटे के लिए लडक़ी का मंगनी - भरनी किया था उसे तोड़वा दिया। फिर बहिष्कृत होने के कारण सरदार को बहू मिलना मुश्किल हो गया लेकिन फरवरी में सरदार को लडक़ी डौंडी बालोद जिला से मिल गया। कुछ रस्मे पूरा किया गया। औंधी क्षेत्र के हल्बा समाज को पता लगा फिर तीन सर्कल प्रमुख ने डौंडी के सर्कल प्रमुख को लडक़ी न देने का अनुरोध करते हुवे पत्र लिखा।

डौंडी के सर्कल प्रमुख को कहा कि गांव गायता को लेकर आइये आपके विरुद्ध औंधी क्षेत्र का पत्र आया है जिसका निराकरण करना है। मैं गया और उनका निराकरण हुआ। हल्बा समाज का एक पक्ष आदिवासी परम्परा मानता है दूसरा पक्ष हिन्दू धर्म को मानने वाले हैं। सरदार के शादी को क्षेत्र के गोंड और 42 घर के हल्बा लोग मिल कर किए। शादी में सहयोग करने के कारण 42 हल्बा परिवार बहिष्कृत हुए।

जुलाई माह में औंधी परगना का बिदाव हुवा बिदाव वर्षा होने के बाद प्राकृतिक बीमारियां फैलती है। इनके रोकथाम के लिए क्षेत्र के सरहद में सेवा अर्जी किया जाता है। इस गढ़ में वालको परिवार का परंपरा से भात हांडी अर्थात महासचिव पद है साथ में मालगुजार भी रहे हैं। बिदाव के दिन इस महासचिव पद से बिरजू राम ने हटाने का भरपूर कोशिश किया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा।

औंधी विद्यालय का नामकरण डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर नाम पर रोड़ा   

वर्ष 2013 - 14 में पूर्व मुख्यमंत्री रमनसिंह औंधी प्रवास के दौरान शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय औंधी का नामकरण डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय औंधी की घोषणा हुई । उस समय मैं सभापति जनपद पंचायत मानपुर का था।

कुछ उपद्रवी लोगों ने बाबा साहब का विरोध करते हुए नाम लिखने नहीं दिए और नाम लिखा नहीं गया। मोहला मानपुर अम्बागढ़ चौकी नया जिला बनने के बाद जिला शिक्षा अधिकारी ने लिखने का आदेश किया लेकिन भाजपा कांग्रेस के लोग लिखने के विरोध में लगातार धरना, प्रदर्शन, अनिश्चितकालीन हड़ताल अक्टूबर से मार्च माह तक लगातार करते रहे। 

मेरे द्वारा क्षेत्र का गोंड़ समाज का बैठक सीएफआर बनाने के लिए 27 दिसम्बर 2022 को रखा गया था जिसमें सीसीएफआर पर चर्चा करने के पश्चात औंधी विद्यालय का चर्चा चलाया। लोगों ने नाम लिखने का समर्थन किया। पुन: इस नाम लिखाने के इस साल 4 जनवरी को बैठक रख कर कलेक्टर के लिए पत्र लिखा गया। और इस पर तुरंत ब्लाक सर्व आदिवासी समाज का बैठक बुलाने का प्रस्ताव पास किया गया और 10 जनवरी को बैठक रखी गई जिसमें 19 जनवरी को सर्व आदिवासी समाज ब्लाक इकाई मानपुर के नेतृत्व में जिला स्तर पर धरना प्रदर्शन किए जाने का प्रस्ताव पारित किया गया।

विरोधी पक्ष  9 जनवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठ गए और 10 जनवरी को मेरे लिए पत्र हड़ताल में उपस्थित होने के लिए था, पत्र लेकर आए। मैंने कहा समर्थन करना न करना मेरी स्वतंत्रता है। डॉ. आम्बेडकर हमारे लिए बहुत कुछ किया है। 19 जनवरी को सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले मोहला में विशाल धरना प्रदर्शन किया गया। जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यलय में जाकर तुरन्त नया प्रचार्य की नियुक्ति आदेश जारी किया गया। 27 जनवरी को नाम पट्टिका में नाम लिखा गया। भाजपा, आरएसएस एवं कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का घमंड इस तरह चूरा - चूर हो गया।

वालको परिवार के खिलाफ बहिष्कार का फरमान रद्द

जब इनकी एक भी नहीं चली तो धोखा से कुछ आदमी को बुला कर पेन स्थल में बैठक कर हमारे परिवार को क्षेत्र से बहिष्कृत करने का घोषणा किये और पेन मंडई में हमारे खिलाफ बहिष्कार रद्द हो गया। 40 गावों से भी ज्यादा गांवों के गायता हमारे पक्ष में थे, पेन मंडई सुंदर ढंग से निपट गया।

बहिष्कृत वाले समास्या का निपटारा करने के लिए ग्राम औंधी में बैठक किया गया जिसमें मेरे ओर से विषय रखा गया कि हमें क्यों मंडई में राज पेन को नहीं दिया गया? विरोधी पक्ष कहने लगा कि आप नाम लिखने के विरोध के हड़ताल में क्यों नहीं आये? मैंने कहा कि डॉ. आम्बेडकर हमारे लिए बहुत कुछ किया है उसका विरोध कैसे कर सकता? दुबारा फैसला देते हुए दयाराम आचला ने सुनाया कि यह सरकारी मसला है और वालको ब्लाक सर्व आदिवासी समाज का अध्यक्ष है वह कैसे विरोध कर सकता है? 

वह हमारे लिए बहुत कुछ किया है। विरोधी पक्ष की हार हुई। फिर कहा गया उनके गांव का झगड़ा है गांव में निपटारा होगा फिर सरखेड़ा में बैठक रखी गई जिसमें पंचों ने बिरजू राम से पूछा। उन्होंने बताया कि मूर्ति माराय सेडो तथा सिगार माता का है इसमें बिरजू राम गलती स्वीकार किया और मूर्ति को बाहर निकालने की सहमति पत्र अर्थात पंचनामा भी तैयार किया गया। और पंचों ने इसे जल्दी करने की बात कर 2 जून को पेन कार्य किया गया। 

उसी दिन मूर्ति को किसने जलाया, किसने कहा कि वह दुर्गा की मूर्ति थी?

इस पेन कार्य के लिए हर परिवार से एक किलो चावल, पांच सौ रुपये चन्दा किया गया था। मूर्ति को गांव के सरहद में एक बजे दिन को जाकर छोड़ दिया गया था लेकिन वापस आने के बाद रात्रि में असामाजिक तत्वों ने आग लगा दी। हमें 3 जून के संध्या को मूर्ति को जलाये जाने की जानकारी हुई।

मूर्ति को हल्बा समाज का आराध्य दुर्गा देवी कहा गया। मानपुर के राजू टांडिया एफआईआर करवाया। रात्रि को पुलिस मूर्ति को ले गये, 4 जून को हल्बा समाज के पदाधिकारियों ने जिला स्तर पर धरना प्रदर्शन गिरफ्तारी की मांग करते हुए ज्ञापन में हल्बा समाज का आराध्य दुर्गा देवी कहा गया है।

इस पर हल्बा समाज का संभागीय अध्यक्ष आकर पुलिस प्रशासन में दबाव बनाने के लिए वे भी इसे अपना आराध्य दुर्गा देवी ही स्वीकारा। उसके बाद विश्व हिंदू परिषद के जिला प्रमुख आरएसएस एवं बजरंग दल के लोग सरखेड़ा आकर माहौल को और बिगाडऩे का काम किया।

इन लोगों ने 21 मई के बैठक में सहमति पत्र में बिरजू राम एवं क्षेत्र के हल्बा समाज के प्रमुख के रूप में हस्ताक्षर भी किया है। जिसमें मूर्ति को माराय सेडो सिंगार माता कहा गया है वही लोग अपने ज्ञापन में इस घटना के बाद हल्बा समाज का आराध्य दुर्गा देवी कहा है।

आदिवासी गोंडी परंपरा में जो व्यक्ति गांव स्थापित करता है उसका भूम्याल एवं माराय सेडो होता है, जिसकी जिम्मेदारी गांव की सुरक्षा करना होता है, अगर गांव बसता है और अगर कोई परिवार गांव छोडक़र चले जाता है तो कोई दूसरा गौत्र परिवार गांव की सेवा अर्जी करना चाहेगा तो उसे पहले बसाया जाता है। 

आदिवासी देवी देवता के मामले को धर्म का रंग दिया गया

उसका माराय सेडो को निकाल के सीमा में रख देते हैं और अपना मराय सेडो पुन: स्थापित करते हैं। जो मूर्ति लाया गया था वह वालको परिवार के माराय सेडो का मूर्ति माना जाता है। वैसे दुर्गा का 8 हाथ और शेर में सवारी, सरस्वती की सवारी हंस होती है। राजनीति स्वार्थ के कारण इस आदिवासी देवी देवता के मामले को धर्म का रंग दिया गया। गांव के दोनों पक्ष को एक जगह बैठाने का जिला सर्व आदिवासी समाज मोहला मानपुर अम्बागढ़ चौकी एवं प्रशासन कई बार कोशिश किए लेकिन विरोधी पक्ष तैयार नहीं हुए, यहां तक विधायक गांव आकर कोशिश किए लेकिन बैठने के लिए तैयार नहीं हुए।

बहरहाल ब्लाक अध्यक्ष गोंड समाज मानपुर के नेतृत्व में जिला स्तर पर दोनों ही समाज को आमंत्रण दे कर बैठक रखा गया लेकिन समाज की उपस्थिति के अभाव में इस ज्वलंत समस्या का निराकरण नहीं हो सका है। 


लेखक ब्लाक सर्व आदिवासी समाज मानपुर के अध्यक्ष हैं, साथ ही आदिवासी रूढि़ प्रथा जैसे संवैधानिक मामलों के जानकार हैं।


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