मृणाल की ब्रश को भारत सरकार की ओर से कॉपीराइट
फोरेंसिक किट्स में उपलब्ध ब्रश की कीमत लगभग 6 से 15 हजार रुपए के बीच
उत्तरा विदानीबचपन में किसी भी बात को सुनकर तत्काल रिप्लाई देने वाली इस बच्ची को मैं साइंटिस्ट कहती थी। सचमुच इसने इसी क्षेत्र में मेरा नाम रौशन कर दिया। आप भी पढ़कर इन्हें आशीर्वाद दीजिएगा। यह शब्द हैं उत्तरा विदानी का। बच्ची को देश में सुविख्यात करने के लिए विवेकानंद ग्लोबल युनिवर्सिटी जयपुर का विदानी ने आभार व्यक्त किया है।

राजस्थान जयपुर स्थित विवेकानंद ग्लोबल यूनिवर्सिटी (वीआईटी) में अध्ययनरत महासमुंद की मृणाल विदानी द्वारा निर्मित फिंगरप्रिंट ब्रश को भारत सरकार की ओर से कॉपीराइट का अधिकार मिल गया है। इस ब्रश को मृणाल ने महासमुंद के गांव खट्टी के पेड़ों में से एकत्र कोसे के रेशे से तैयार किया है। कल देर रात भारत सरकार के आधिकारिक वेबसाइट और कॉलेज प्रबंधन ने मृणाल को ई-मेल के जरिए इसकी जानकारी दी।
मृणाल को उनकी इस उपलब्धि पर विवेकानंद ग्लोबल यूनिवर्सिटी जयपुर के डीन, समस्त प्राफेसरों, कॉलेज स्टाफ के अलावा सांसद महासमुंद चुन्नी लाल साहू, विधायक विनोद सेवनलाल चंद्राकर, नपाध्यक्ष राशि त्रिभुवन महिलांग ने बधाई दी है।
मृणाल विदानी पत्रकार उत्तरा विदानी की बेटी हैं। उन्होंने वेडनर स्कूल से विज्ञान (बायोलॉजी) में बारहवीं पास कर फोरेंसिक साइंस की पढ़ाई जयपुर स्थित विवेकानंद यूनिवर्सिटी से शुरू की है। अभी वे पांचवें सेमेस्टर की पढ़ाई कर रही है। मृणाल को विवेकानंद यूनिवर्सिटी में फोरेंसिक साइंस विषय की एचओडी प्रोफेसर उमैमा अहमद, गुंजित सिंघल और प्रोफेसर पूजा रावत का भरपूर साथ मिला।
मृणाल के इस ब्रश को बनाने के लिए खट्टी स्कूल के शिक्षक भागवत जगत का भी सहयोग मिला। उन्होंने अपने स्कूल के बच्चों से कोसा लेकर मृणाल को भेजा। मृणाल ने उस कोसे को तीन दिनों तक पानी में डुबाकर रखा। अपने हाथों से उसमें से रेशा निकाल धागे का रूप दिया।
कॉलेज के गार्डन से पतली और खूबसूरत लकडिय़ां लेकर हाथों से ही कोसे के बारीक रेशेवाले ब्रश का निर्माण कर लिया। इसके बाद प्रोफेसरों के सहयोग से भारत सरकार को भेजा और दो महीने बाद भारत सरकार ने कल इसकी कॉपीराइट मृणाल को दे दी।
मृणाल के मुताबिक फोरेंसिक किट्स में उपलब्ध ब्रश की कीमत लगभग 6 से 15 हजार रुपए के बीच है। वहीं यदि इस ब्रश का उपयोग किया जाए तो महज हजार रुपए भर में बनकर तैयार हो जाएगा।
मालूम हो कि कॉपीराइट संबंधी आधिकारिक वेबसाइट में कॉपीराइट की अवधि क्रिएटर के जीवनपर्यंत तक और मरने के 60 साल बाद तक होती है। इसे पहली बार जारी होने के कैलेंडर साल से माना जाता है। कॉपीराइट मालिक के तौर पर उसके पास उस काम को इस्तेमाल करने का खास अधिकार होता है। ज़्यादातर मामलों में किसी दूसरे व्यक्ति को इस काम का इस्तेमाल करने की मंज़ूरी देने का अधिकार सिर्फ़ कॉपीराइट के मालिक का होता है। कॉपीराइट एक कानूनी कांसेप्ट होता है।
लेखिका पेशे से पत्रकार हैं और प्रेस क्लब महासमुंद की अध्यक्ष हैं।
Add Comment