नग्न प्रदर्शन करने वाले आन्दोलनकारियों पर राजकीय दमन की निंदा

अपराधी साबित करने में जुटी है सरकार

दक्षिण कोसल टीम

 

यह विदित हो कि छत्तीसगढ़ प्रदेश एक नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद से ही जातिसत्ता और पूंजीवादी शोषणकारी ताकतों ने इस नए राज्य को चारागाह के रूप में देखना प्रारंभ कर दिया था। प्रदेश का आधा से अधिक भू-भाग पांचवी अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र में आता है और यहां की अनुसूचित जाति-जनजाति की आबादी भी राज्य के कुल आबादी की लगभग आधा है।

इसके बावजूद यहां के अनुसूचित जाति-जनजाति हासिये में जीने के लिए मजबूर हैं। सत्ता में कुंडली मारकर काबिज़ शोषणकारी ताकतों के वज़ह से इन वर्गों / समुदायों की सामाजिक और आर्थिक परिस्थिति / स्टेटस अपेक्षाकृत निम्न हैं।

जहां राज्य गठन के बाद से ही पेसा कानून के प्रावधानों के अनुरूप राज्य कमेटी के अध्यक्ष के रूप में अभी तक किसी अनुसूचित जाति/आदिवासी वर्ग के व्यक्ति को आसीन होने नहीं दिया गया है। अनुसूचित जाति-जनजाति के आरक्षण का कोटा कम कर दिया गया है। वर्तमान में भी नक्सल उन्मूलन के नाम पर फर्जी मुठभेड़ों में आदिवासी मारे जा रहे हैं, फर्जी मुकदमों के तहत हजारों की तादाद में अनुसूचित जाति-जनजाति समुदायों के लोग जेलों में निरुद्ध हैं।

 

 

विशेष लक्ष्य करते हुए पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में स्थानीय तथा अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों के रोजगार नियोजन सम्बन्धी साल 2012 के आदेश पर रोड़ा अटका दिया गया है। सरकारी और निजी कम्पनियां अपने परियोजनाओं में प्रावधानों के विपरीत आदिवासियों की जमीन लूटकर उन पर काबिज़ हैं। कानून निष्क्रिय है और न्यायपालिका में न्याय विलंबित है। 

डिग्री प्रसाद चौहान, प्रदेश अध्यक्ष, पीयूसीएल छत्तीसगढ़. रिनचिन, प्रदेश सचिव, पीयूसीएल छत्तीसगढ़. रजनी सोरेन, प्रदेश सचिव, पीयूसीएल छत्तीसगढ़. आशीष बेक, कार्यकारी सचिव, पीयूसीएल छत्तीसगढ़. ने ऐसी स्थिति में राज्य सत्ता और जातीय पूंजी आधारित शोषणकारी ताकतों के गठजोड़ के खिलाफ जन आक्रोश होना बहुत ही स्वाभाविक है।

प्रदर्शनकारियों ने लोकतान्त्रिक परिवेश में पिछले दो सालों से लगातार शासन को सूचित करते हुये धरना प्रदर्शन और ज्ञापन ध्यानाकर्षण कराया है। यह बहुत ही दुखद स्थिति है कि राज्य इस उपजे आक्रोश और असंतोष पर वास्तविक चिंतन और उसके तह तक जाकर जन समस्याओं के समाधान के दिशा में सार्थक प्रयास करने की उसकी जबाबदेही सुनिश्चित करने के बजाय प्रदर्शनकारियों के खिलाफ ही पुलिस के सहारे कानून की असंगत धाराओं के तहत झूठे और मनगढंत अपराध दर्ज कर प्रदर्शनकारियों को ही अपराधी साबित करने जुटा हुआ है।

 

 

राज्य सत्ता अपने चरित्र के अनुरूप हर बार की तरह अपने संचार माध्यमों से प्रदर्शनकारियों के खिलाफ समाज में उनके छवि धूमिल कर समाज से उन्हें अलग-थलग करने के मकसद से दमन के हथकंडे अपना रही है, जो कि नागरिकों के धरना - जुलूस तथा प्रदर्शन के संवैधानिक अधिकारों पर भी कुठाराघात है। 

छत्तीसगढ़ पीयूसीएल प्रदेश में अनुसूचित जाति-जनजाति समुदायों के नागरिक, संवैधानिक अधिकारों के साथ ही उनके जीविकोपार्जन तथा संसाधनों पर हक अधिकारों के संरक्षण की जबाबदेही सुनिश्चित करने की मांग करती है और इसके साथ ही राज्य में सत्तारूढ़ सरकार से यह भी अपील करती है कि राज्य प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पिछले समय से लेकर हाल में हुये नग्न प्रदर्शन तक, धरना आंदोलनों के दौरान दर्ज किये गये समस्त झूठे मुकदमों को वापस लेते हुए उन्हें निशर्त रिहा करें।

पीयूसीएल ने स्पष्ट किया है कि सरकार मीडिया को मैनेज कर इन युवकों को व्यक्तिगत रूप से अपराधी साबित करने में जुटी हुई है जबकि उन पर लगाये गए सभी आरोप विभिन्न जनआंदोलनों के दौरान झूठे लगाए गए हैं जो न्यायालय में साबित नहीं हो सके हैं। 


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