राजनांदगांव की कोख है मोतीपुर

राजनांदगांव का इतिहास और पुरातत्व

शेख अंसार

 

साल 1982 में सनसाइन रबर प्रोडेक्ट से काम से निकाले गये। साल 1984 में मशहूर श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी के सम्पर्क में आयें। उनके नेतृत्व में ही इसी साल 12 सितम्बर 1984 को बीएनसी मिल मजदूरों की अधिकारों की लड़ाई में जेल गये। 20 नवम्बर 1984 को उनकी रिहाई हुई। दुबारा जब नियोगी भिलाई में संघर्ष करते हुए मौत के घाट उतारे गये तब भिलाई में श्रमिकों के लड़ाई के दौरान 2 अगस्त 1992 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तत्पश्चात 8 दिसम्बर 1993 को उन्हें रिहा किया गया। इसके बाद भी कई बार वह मजदूरों के अधिकारों के लिये जेल जाते रहें। वह कहते हैं कि इतिहास में मोतीपुर को 'फुलपुर' के नाम से जाना जाता रहा  है। मोतीपुर इतिहास पर उनकी लम्बी कहानी ‘दक्षिण कोसल’ सम्पादित कर प्रकाशित कर रहा है। 

प्राथमिक शाला मोतीपुर के लिए 28 जून 1956 तक 52 छात्र - छात्राओं का नाम दाखिल पंजी में दर्ज हो चुका था। 1 जुलाई 1956 को जब स्कूल का आगाज़ हुआ तब एकमात्र सहायक शिक्षक महबूब खान थे। शिक्षासत्र आरंभ हुई तब और भी बच्चों ने प्रवेश लिया, नतीजतन प्रथम वर्ष में दर्ज संख्या लगभग 70 हो गयी। शिक्षण संस्थान के अभिलेख के अनुसार बच्चों में चेचक फैली हुई थी, लेकिन लगभग सारे बच्चों को चेचक की टीका लग चुका था। उस जमाने में दो बच्चे ऐसे भी थे, जो ग्राम नवागांव से मोतीपुर पढऩे आते थे ये बच्चे हैं, फागू पिता भुखऊ, बिशालदास पिता सुमरनदास पैनका इसे ऐतिहासिक कहने में यदि हम गुरेज भी करें तो भी यादगार अतीत तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है।

अभिलेख के अनुसार एक तथ्य काबिले गौर है, एक दो पालक/अभिभावक विशुद्ध रूप से कास्तकार थे अन्यथा सभी मिल मज़दूर थे। प्राथमिक शाला मोतीपुर के दाखिल पंजी के अनुसार इब्तेदाई छात्र - छात्राओं में गनपत शेण्डे पिता झाड़ूराम, भोंदूराम पिता भारत सिन्हा, चुन्नू लाल पिता सोनसिंग देवांगन, मंगलदास पिता लक्ष्मण ठावरे, जीवनलाल पिता बीरबल भाट, फूलसिंह पिता मेहतर देवांगन, कवंलसिग पिता प्रताप क्षत्री, देवराय पिता तुलसीराम, जनक पिता हीरादास बैरागी, बहादरखां पिता याकूबखां, उर्मिला बाई पिता आत्माराम साहू, कुमारीबाई पिता सखाराम, शान्तिबाई पिता ररूहा साहू, शान्ति बाई पिता भैय्यालाल, राधाबाई पिता केसों देवांगन, ईठाबाई (बड़ी) पिता पूनाराम, ईठाबाई पिता परसराम, बुधिया भाई पिता मेहतर साहू, इन्द्राबाई पिता सखाराम साहू और भी प्रवेशार्थी हंै, जिनके नाम नहीं लिख पाने के लिए खेल प्रकट कर रहा हूं, प्राथमिक शाला का शुरूआती वर्ष होने के बावजूद दर्ज संख्या अपेक्षाकृत अधिक था।

पूर्व माध्यमिक शाला मोतीपुर का आगाज

प्राथमिक शाला मोतीपुर के कक्षा पांचवीं का परिणाम 30 अप्रैल को घोषित हो गया था। लेहाजा 1 जुलाई 1960 को पूर्व माध्यमिक शाला मोतीपुर का आगाज़ हुआ है!

पूर्व माध्यमिक शाला मोतीपुर के कक्षा छठवीं के पहले वर्ष के पहले सत्र में  शिवप्रसाद पिता सतनू सिन्हा, थनवार पिता कार्तिक राम यादव,  भागवतसिंह पिता फूलसिंह क्षत्री, त्रिभुवनलाल पिता रघुनाथ देवांगन, गंगूलाल पिता श्यामलाल देवांगन, रामदास पिता हंशीलाल, ताराचंद पिता तुकाराम, मोहनलाल पिता छोटेलाल, सम्पतलाल पिता लहनू, पन्नालाल पिता झाड़ूराम, नत्थूलाल पिता लालाराम, ओंकार पिता मंशाराम, गणेशदास पिता बहुरदास पनिका, मंगलूराम पिता समारू सतनामी, मंथीरदास पिता कुलंजन सिन्हा, तीजूलाल पिता जोहरन सिन्हा, प्रेमनारायण पिता गन्नूवर्मा यह सारे विद्यार्थी कक्षा छठवीं के प्रथम वर्ष के प्रथम सत्र में दाखिला लिये थे।

मोतीपुर स्कूल (प्राथमिक शाला, पूर्व माध्यमिक शाला) बजरंगपुर नवागांव और नया ढाबा जाने के तिकोने स्थल पर आबाद है। स्कूल शासकीय भूमि खसरा नम्बर 79/1 का कुल क्षेत्रफल 2 एकड़ 23 डिसमिल है। लगभग ढ़ाई एकड़ के भूखण्ड में प्राथमिक शाला - माध्यमिक शाला खेल का मैदान, मैदान इतना बड़ा कि उसमें एक समय अखिल भारतीय हॉकी मैच के मापदंड और मानक के अनुसार कई बार हॉकी मैच सम्पन्न होते रहा है। स्कूल परिसर के पीछे की तरफ तीन - चार डोली ( खेत ) था। छात्रा - छात्राओं को बागवानी और कृषि कार्य में दक्ष करने के लिहाज़ से शिक्षकगण  खेती - बाड़ी सिखाते थे। स्कूल मैदान प्रतिदिन प्रात: मवेशियों के लिए ठहराव स्थल ( दैईहान ) बन जाता था, वर्ष में एक बार इस मैदान में शानदार मंडई का आयोजन होता था।

 

 

मोतीपुर का अतीत अर्थात इतिहास 

बेहद अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा कि, मोतीपुर नाम से कोई जानकारी नहीं मिल पायी। आपको याद होगा मध्यप्रदेश के अस्तित्व के पूर्व का 700 वर्ष प्राचीन शहर 4 जुलाई 2004 को सदा के लिए अस्तित्वहीन हो गया नर्मदा बांध में डूबकर फना हो गया।

27 मार्च 2022 को  सरकार ने मोतीपुर चौकी हमेशा के लिए बंद कर दिया। जब तक हम उदासीन रहेंगे चौकी बंद रहेगा, जिस दिन हम ठान लेंगे उस दिन नजारा दूसरा हो सकता है। चौकी बंद होने से हमारा मोतीपुर प्रवेश रूक नहीं सकता, मोतीपुर पहुंचने के लिए महापुरुषों के मार्ग पर चलकर आसानी से पहुंच सकते हैं। आम्बेडकर चौक, गांधी चौक, सुभाष चौक के जरिए मोतीपुर के फिलवक्त का मुख्य स्थल आजाद चौक पहुंच सकते हैं। आज आजाद चौक मुहाना है मोतीपुर स्कूल पहुंचने का और स्कूल के ज्ञात इतिहास को याद करने का ....!

बेहद प्रतिभाशाली विद्यार्थी जगतारणदास मानिकपुरी

मोतीपुर स्कूल के बेहद प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे जगतारणदास मानिकपुरी, जगतारणदास दिव्यांग थे। पढ़ाई में मेधावी और खेलो में उत्कृष्ट स्थान रखते थे, जगतारणदास की शारिरीक अक्षमता कदाचित उनके व्यक्तित्व निखार में बाधा नहीं बनी। जगतारणदास की अल्पायु में अकाल मौत हो गयी, उनके सहपाठी जगत में शोक की लहर फैल गयी। दिवंगत जगतारणदास के इष्टमित्रों ने एकराय होकर उनके स्मृति में हॉकी मैच कराने का निर्णय लिया। जगतारणदास स्मृति हॉकी मैच समिति का गठन किया गया जिसमें प्रमुख रूप राजेन्द्रयादव, झम्मन देवांगन, संतोष देवांगन, नूतन साहू, विश्वनाथ वर्मा, नाथूराम सिन्हा, शिवराम साहू, सागरदास मानिकपुरी, रामरतन डड़सेना, रिचर्ड फ्रांसिस, राजू परेता, श्रीकिसन साहू, गणेश देवांगन, उमेश देवांगन, राजेश देवांगन थे।

स्वर्गीय जगतारणदास स्मृति हॉकी मैच 1980, 1981, 1982, 1983 लगातार 4 वर्षों तक शानदार हॉकी मैच सम्पन्न हुए। स्थानीय अखबार सबेरा संकेत प्रतिदिन मैच की जानकारी प्रकाशित करती।


सुभाषचन्द्र बोस के नाम से आजाद हिन्द अखाड़ा

मोतीपुर वास्तव में मोतियों की माला है। इस माला के मनके विविध वैचारिकता - सद्भावना से पिरोए गये है। मोतीपुर के विविध विचारधारा की बानगी देखिये - चौकी से बाएं से यदि स्कूल जाना चाहे तो डॉ. आम्बेडकर चौक का सहारा लेना पड़ेगा, सीधा जाना चाहे तो शहीद मार्ग से गुजरना पड़ेगा, बाइबाड़ा से होकर यदि स्कूल जाना चाहेंगे तो महात्मा गांधी के स्मरण में रखे चौक गांधी चौक से गुजरना होगा और यदि सीधा ही जाना है, तो गुरू घासीदास बाबा के प्रांगण से गुजरकर ही आजाद चौक पहुंचेंगे। मोतीपुर में 1960 से नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के फौज से प्रेरित होकर ही हमारे बुजुर्गो ने व्यायाम शाला का नाम आजाद हिन्द अखाड़ा रखा था।

 

 

नांदगांव रिसायत की भूगोल में मोतीपुर

नांदगांव रियासत के चप्पे - चप्पे से जो फरियादी राजा साहब से फरियाद करने आते थे उन्हें रियासत के जमातखाना में रियासत के मुलाजिम ठहराते थे, कालान्तर में उस स्थान को ही हम जमातपारा कह रहे हैं। दक्षिण में जमातपारा, दक्षिणपूर्व में बूढ़ासागर समक्ष मुख्य मार्ग (क्योंकि जीई रोड घोषित नही हुआ था) बैलापसरा, उससे लगा चीरघर का मैदान, जेलखाना, बगल में मोतीतालाब (जिसे आम बोलचाल डंकीन तरीया कहते हैं) पूरब में रियासत की स्टेट स्कूल, भूलनबाग, बलदेवबाग उत्तर में बंगाल नागपुर कॉटन मिल्स, मिल के पीछे रेलपटरी (नागपुर - राजनांदगांव के मध्य 1871 में शुरूआत हुई थी) फिर प्यारा गांव मोतीपुर मेरा गांव,  मेरा देश है। मोतीतालाब का पानी एकदम स्वच्छ, पारदर्शी निर्मल होता था, स्नान करते समय यदि आपका माला - मोंदरी गिर जाए तो सतह से तह तक दिखाई दे जाता, दस्तावेजों  से प्रमाणित नहीं है, क्योंकि अब प्रमाणित दस्तावेज ही नहीं है, किन्तु आमजनमानस की तसदीक तो यही कहती हैं कि मोती जैसे पानी वाले मोतीतालाब के कारण ही इस पुराने आबादी का नाम मोतीपुर पड़ा।

मोतीपुर का चौकी, रेलवे के अनुसार, रेलवे क्रासिंग क्रमांक 461 है, लेकिन हमारे लिए मोतीपुर चौकी हृदयस्थल मोतीपुर अभी जिन्दा है। प्राथमिक शाला और माध्यमिक शाला भवन के इतर सम्पूर्ण स्कूल का रकबा अनुभवी नागरिकों के अनुसार कागज में दर्शित रकबा के अनुसार मौके पर न्यून हैं। इस तथ्य पर बगैर बहस - मुबाहिसे में ना पढ़ें। कहा जाता है कि जमीन कभी भी तन्हा रहना नहीं चाहती, फिक्रमंद परवाह करने वालों के आगोश में चली जाती है। मोतीपुर स्कूल की जमीन भी खिसकर भूमिहीन के दामन में चली गयी, जबकि सब जानते हैं रियासत की अन्य जमीन - सम्पदा किन लोगों के बाहुपाश में जकड़ गयी।

मोतीपुर का स्कूल हम सब की मां है, उनके कोख से पैदा हुए हैं, जो हमारी प्रथम गुरु है, लेकिन मोतीपुर स्कूल समूचे मोतीपुर की गुरू है। वास्तव में उसी ने हमें गढ़ा है, हमें सभ्य नागरिक बनाया है, कर्मचारी - अधिकारी बनाया है, क्लर्क, मुंशी, मास्टर, इन्स्पेक्टर, डॉक्टर वकील बनाया है, पंच - सरपंच बनाया, पक्ष का प्रतिपक्ष, पार्षद से पार्लियामेंट तक पहुंचाया है। 

हॉकी की नर्सरी राजनांदगांव लेकिन थरहा मोतीपुर

राजनांदगांव बेशक हॉकी की नर्सरी है, लेकिन नर्सरी का थरहा मोतीपुर से भी मिलता था, तब जाकर अखिल भारतीय स्तर के हॉकी मैच का उपवन सजता था!

मोतीपुर के चौकीपारा, अम्बेडकरचौक, भाटापारा, शितलापारा, गांधीचौक से हॉकी टीम निकलती थी। मोतीपुर के हॉकी खिलाडिय़ों में इतनी शानदार तालमेल होती थी कि सतनामीपारा, गणेशपारा, नवागांव, ढाबा के हॉकी खिलाड़ी उपरोक्त टीमों में शामिल होकर हॉकी टीम को मजबूती से परिपूर्ण करते थे। 

 

 

मोतीपुर के हॉकी खिलाड़ी, हॉकी जगत के रौशन सितारे थे 

सर्वप्रथम एरमन बैस्टियन, शिवप्रसाद सिन्हा, रामप्रसाद सिन्हा, किसून वर्मा, गोपाल वर्मा, शंकर नेताम, हीरा नेताम, रमेश यादव, बिहारी यादव, सेवाराम यादव, गजानंद, कारू स्वामी, डॉ. रमेश, मुक्तानंद हिरवानी, मदन सिन्हा, रहमण्ड, चतुर साहू, महबूब शरीफ, अहमद शरीफ, प्रेमसाहू, बुधराम वर्मा। इस बैच के बाद के खिलाड़ी राजेंद्र यादव, झम्मन देवांगन, संतोष देवांगन, भागवत देवांगन, हेमंत लाउत्रे, नूतन साहू, रिचर्ड्स फ्रांसिस, राजू परेता। हरेंद्र यादव, संतोष पटेल, रविन्द्र वर्मा, महेश साहू, महेश वर्मा, श्रीचंद साहू, अमजद अली, गोविंद यादव, सत्येन्द्र देवांगन, रोशन महोबे, शान्ता देवांगन, गिरधरसाहू, उमेश साहू अनेक उभरते हॉकी के सितारे रहे हैं।

एरमन बैस्टियन जो तुलसीपुर में रहते थे। कोई कह सकता है एरमन बैस्टियन मोतीपुर के कैसे हो गयें? निसंदेह एरमन बैस्टियन राजनांदगांव के हैं, छत्तीसगढ़ के हैं, हमारे देश के नामचीन खिलाड़ी हैं। किसी भी गांव क्षेत्र की हदबंदी शासन का राजस्व विभाग निर्धारित करता है, राजस्व अभिलेख के अनुसार ठाकुर प्यारेलाल सिंह स्कूल के पास हरे बोर्ड पर सफेदा में लिखा है - मोतीपुर इस हदबंदी के अन्तर्गत समूचा तुलसीपुर मोतीपुर का रकबा है। इसी तर्क और जर्मन साहब से मोहब्बत के कारण इस महान खिलाड़ी को हम मोतीपुर का कह रहे हैं, लेकिन यदि राजनांदगांव के दूसरे इलाके के लोग अपना कहेंगे तो पलक झपकने से पहले उनके स्वर में अपने सहमति का स्वर शामिल कर देंगे।

थरहा, नर्सरी, उपवन, हॉकी के इस हरे - भरे दुनिया से एक - एक डंगाल का चयनित कर पोषित दीक्षित करने वाले साधकों को हम कोच कहते हैं। ऐसे खिलाड़ी का निर्माण करने वाले शिल्पकारों की  लम्बी फेहरिस्त है - गंगाराम यादव, एरमन बैस्टियन, आरएन पटेल, नंदकिशोर गौतम, तुलाराम यादव, मैकूलाल यादव, चुन्नीलाल महोबे, आरआर शुक्ला, भूषणसाव, भूवन पटेल, आरएन विश्वकर्मा, विनोद ढोक आदि रहे हैं।

एशिया चैम्पियन पद्मश्री सतपालसिंह पहलवान 

मोतीपुर स्कूल मैदान में 16 - 17 - 18 फरवरी 1996 को तीन दिवसीय खुले दंगल का भव्य आयोजन किया गया था। जिसके मुख्य अतिथि एशिया चैम्पियन पद्मश्री सतपालसिंह पहलवान थे। आयोजन की अध्यक्षता राष्ट्रीय कबड्डी टीम के कप्तान रणजीत सिंह ने किया ।

निर्णायक का निर्णय अंतिम एवं सर्वमान्य होगा, लाल लंगोट में अखाड़ा (गोदा) के पूर्व दिशा में है, मुश्ताकअली पहलवान आजाद हिन्द अखाड़ा मोतीपुर, अखाड़ा के पश्चिम दिशा में हरे लंगोट में अपनी जगह पर वार्मअप कर रहे हैं आजाद हिन्द अखाड़ा के नसर पट्ठा गोवर्धन यादव पहलवान मोतीपुर है। इन दोनों पहलवानों की कुश्ती उद्घाटन कुश्ती होगा, ये दोनों पहलवान एक ही अखाड़े के हैं! इन पहलवानों की कुश्ती होगी पांच मीनट की, इस कुश्ती के निर्णायक होंगे एशिया चैम्पियन पद्मश्री सतपालसिंह पहलवान!

राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त हनुमानसिंह पहलवान का वास्तविक नाम विजयपाल यादव था, इनका जन्म 15 मार्च 1901 को जिला - झुंझुनूं राजस्थान में हुई थी, इनकी मृत्यु 24 मई 1999 को हुई थी। रियासत कालीन, आजाद हिन्द अखाड़ा नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के आजाद हिन्द फौज से प्रभावित होकर मोतीपुर के नवजवानों ने बब्बू उस्ताद की अगुवाई में शुरू किया था!

नवजवान लाठी, पटा, तलवार, गंदा, आग का गोला चलाना, जम्प का अभ्यास तो करते थे। रियासत के किसी भी उत्सव आयोजन में किला के सामने अपने जौहर का प्रदर्शन करने जाते थे। मोतीपुर के गांधी चौक के रहने वाले धामड़ सिन्हा के बड़े से आवास में मल्लयुद्ध की भी प्रैक्टिस नियमित करते थे, जहां कहीं भी दंगल का एलान होता उसमें भाग लेकर मोतीपुर का नाम रौशन करते।

सुखदेव सिन्हा, बिल्लू सिन्हा दोनों भाईयों के पिता थे दिवंगत धामड़ सिन्हा, इनके आवास में कुश्ती के अभ्यास में थोड़ी असुविधा होने लगी तों बाइबाड़ा के उमराव देवांगन के बड़े से हाल में अखाड़ा संचालित होने लगी।

 

 

कुबूल फरमाया एशिया चैम्पियन पद्मश्री सतपालसिंह पहलवान 

उच्च सरकारी अफसरान और अमोलकसिंह अखाड़े के आमंत्रण को विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर हमारे इंतजाम को कुबूल फरमाया एशिया चैम्पियन पद्मश्री सतपालसिंह पहलवान ने...!

15 फरवरी 1996 को एशिया चैम्पियन पद्मश्री सतपालसिंह पहलवान और भारतीय कबड्डी टीम के कप्तान रणधीरसिंह को तृतीय सितारा श्रेणी की मयूरा हॉटेल पुराना बस स्टैण्ड रायपुर में ठहरने का प्रबंध किये थे। सतपालसिंह पहलवान भोजन कर रहे थे। उनका भोजन विशुद्ध रूप से सात्विक था, चपाती, दाल, हरी सब्जी और दही खा रहे थे, अचानक से उनके निवाले में कांच का टुकडा आ गया। 

कोहराम के बाद बवाल होते - होते बचा लिया गया। मयूरा हॉटेल के बावर्ची खाने खानसामा - कूक से जानकारी लिए तो ज्ञात हुआ कि दिन में कोई क्रॉकरी - कांच का बर्तन टूटा था, जिसका टुकड़ा दाल के गंज में गिर गया था। सतपाल पहलवान के सरल सहृदयतापूर्ण व्यवहार ने हमें उनका कायल बना दिया, पहला - अन्य विकल्प की मौजूदगी के बावजूद हमारे साधारण - सीमित इंतजाम - समायोजन को सहर्ष स्वीकार करना, दूसरा - भोजन में कंकड़ नहीं कांच के आ जाने के बाद भी निसंकोच पूरे इत्मिनान से भोजन समाप्त किया और शांति की अपील करते रहे।

सतपालसिंह रणधीरसिंह को मयूरा हॉटेल रायपुर में ठहराएं गए

16 फरवरी 1996 को हमारे अखाड़े के पहलवानों की टोली, मज़दूरों का जत्था, जब उन्हें लेने रायपुर के मयूरा हॉटेल पहुंचे तो सतपाल पहलवान और रणधीरसिंह स्वागत शैली और स्वागत में शामिल होने आये उरला - भनपुरी औद्योगिक क्षेत्र के मजदूरों की संख्या देखकर अतिथिद्वय अभिभूत हो गये। गाडिय़ों के कारवां के साथ जब मोतीपुर चौकी पहुंचे तो पहले से ही मोतीपुर के लोग धुमाल दल और पटाके, गुलाल के साथ आतुरता से प्रतीक्षारत थे। 

वातावरण उल्लास से भर गया पहलवानों - नवजवानों में सतपाल पहलवान और कुश्ती के लिए दीवानगी देखते बनती थी। बुजुर्गों की बाहें अतीत में विचरण करते फडफ़ड़ा रही थी, सडक़ किनारे दोनों ओर महिलाएं ओट लेकर खड़ी थी उनकी नजऱों में जानने की तमन्ना के समुच्चय कौतुहल से भरा था। दो महीने के अविराम प्रयास के बाद जब वह क्षण आया और आग्रह पर सतपाल पहलवान से कि चलिए अखाड़े में और आरंभ के लिए फीता कांटिये, तब उन्होंने एक बेहतरीन पहलवान के साथ एक बेहतरीन इंसान का परिचय देते हुए बेहद विनम्रता से कहा मैं आप लोगों के साथ हूं, लेकिन उद्घाटन यहां के उस्ताद करेंगे, तब हम बब्बू उस्ताद ( महबूब अली ) और अब्बू उस्ताद ( शेख अरमान ) के जरिए दंगल का आगाज़ किये।

 

 

विराट - विशाल, दंगल के सफल आयोजन के कई दिनों बाद तक आयोजन विषयक आंकलन - विश्लेषण का दौर चलता रहा। बाद में लोगों को समझ आया कि उस दौर में ऐसे लोग और ऐसी विचारधारा मौजूद थी, जो ग्रामीण भारत की सबसे स्वीकार्य खेल मल्लयुद्ध और कबड्डी को तरजीह दे रही थी।

उद्घाटन के पश्चात रिवायत के अनुसार मुख्य अतिथि पद्मश्री एशिया चैम्पियन सतपालसिंह पहलवान ने अखाड़े में खड़े होकर पूरे मनोयोग से छत्तीसगढ़ के विभिन्न अखाड़ों से आये पहलवानों, कुश्तीप्रेमियों एवं मोतीपुर के आमजनों से कहा-

‘यहां आकर मैं जो देख रहा हूं, कुश्ती के प्रति जो लगन - उत्साह है, उससे मैं अभिभूत हूं। अभाव के बावजूद बच्चे पहलवानी कर रहे हैं। हमारा भ्रम टूटा है, हम सोचते थे कि कुश्ती केवल  दिल्ली, हरियाणा, पंजाब में होता है, इतने पुराने समय से आप लोगों ने अखाड़ा बना रखी है। मैं इस अखाड़े के उस्तादों से यहां के पहलवानों से कहना चाहता हूं, आप हमें प्रतिवर्ष दो छोरे दीजिए हम उनका पढ़ाई - लिखाई के साथ अन्तरराष्ट्रीय मापदंडों, मानकों और स्टाईल से उनको कुश्ती में पारंगत करेंगे ताकि बच्चे आगे जाकर अखाड़ा और आपके गांव का नाम पूरी दुनिया में रौशन करेगा।

आजाद हिन्द अखाड़ा के उस्ताद बब्बू उस्ताद थे। पहले जुड़ावन यादव, सावंतराम यादव, फिर दुर्गाप्रसाद यादव, चमरूयादव, झाड़ूराम वर्मा, खलीफा हुए हैं!

 

 

आजाद हिन्द अखाड़ा की शुरुआत भुनेश्वर सिन्हा के आवास से हुई

आजाद हिन्द अखाड़ा की शुरुआत गांधी चौक के भुनेश्वर सिन्हा उर्फ़ धामड़ पिता सावंत राम सिन्हा के आवास से हुई। उसके बाद बाइबाडा़ के मिटई देवांगन पिता उमराव देवांगन के आवास में संचालित होती थी, कुछ अरसे बाद बब्बू उस्ताद के घर के पीछे रामप्रसाद पिता गोरेलाल ब्राह्मण के आवास पर संचालित हुआ। 

आजाद हिंद अखाड़ा का प्रदर्शन और कीर्तिपताका आसपास इलाकों में फ़ैल रहा था, जो आजाद हिन्द अखाड़ा मोतीपुर में अभ्यास करने आ सकते थे वह नियमित आ रहे थे। जो अधिक दूरी पर रहते थे वे लोग अपने ही ग्राम में आजाद हिन्द अखाड़ा का शाखा खोलकर व्यायाम - अभ्यास मल्लयुद्ध की तैयारी करते थे, 

मोतीपुर अखाड़ा से खलीफा जाकर उन उभरते पहलवानों को  दांव - पेंच सीखाते थे। पहलवान सदस्यों की बढ़ते संख्या के मद्देनजर अब उमराव देवांगन का आवास अखाड़ा संचालन के लिए संकरा - तंग होने लगा था। इसके बाद तीसरे पड़ाव के तौर बब्बू उस्ताद के निवास पीछे के रामप्रसाद पिता गोरेलाल ब्राह्मण के हालनुमा मकान में आजाद हिन्द अखाड़ा संचालित होती थी। इसी दौरान किलापारा में अखाड़े का शानदार प्रदर्शन हुआ, जिससे प्रसन्न होकर रियासत के कारिंदे राजा साहब से सिफारिश किये कि इन नवजवानों को अखाड़ा के लिए जमीन दे दी जाये। 

अखाड़े के लिए जमीन मिली कांई तालाब के पार जहां आजाद हिन्द अखाड़ा संचालित होने लगी, लेकिन अखाड़े भवन का निर्माण हुआ 27 अगस्त 1960 को, तब से आजाद हिन्द अखाड़ा अपने प्रगति का सोपान निरंतर कर रही है। इस तरह मोतीपुर स्कूल मैदान में आयोजित त्रि - दिवसीय कुश्ती 16, 17, 18 फरवरी 1996 को अपनी ऐतिहासिकता के साथ सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।


लेखक छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा में कार्यरत हैं और वर्तमान में राजनांदगांव के मोतीपुर में निवास करते हैं।
 


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