रंगीला गांधी के रचयिता और भीम पत्रिका के सम्पादक एलआर बाली का परिनिब्बान
एलआर बाली अर्थात भीम पत्रिका के सम्पादक
सुशान्त कुमाररंगीला गांधी, हिन्दुइज्म : धर्म या कलंक, डॉ. आम्बेडकर और धर्म की संस्था, आरक्षण क्यों, अंबेडकर बनाम मार्क्स, शहीदे आजम भगतसिंह के असली वारिस कौन?, धर्म परिवर्तन, उत्तर प्रदेश का पुनर्गठन, नहीं मिटेगी छुआछात, जैसे सैकड़ों पुस्तकों के लेखक और आम्बेडकरवादी साहित्यकार और पत्रकार एलआर बाली अब हमारे बीच नहीं रहें।

एलआर बाली यानी लाहौरी राम बाली को आप भीम पत्रिका के संपादक के रूप में जानते हैं। लेकिन असल में वह एक संस्थान हैं। 91 साल के बाली पिछले 50 से ज्यादा सालों से ‘भीम पत्रिका’ प्रकाशित कर रहे थे। उन्होंने आरपीआई के नेता के रूप में काम किया है।
आज हम जो बाबासाहेब के लिखे को हर भाषा में पढ़ सकते हैं, (अम्बेडकर वांग्मय), जिसने करोड़ो लोगों को अम्बेडकरवाद से रूकरू करवाया और आम्बेडकरवादी बनाया अब वह हमारे बीच नहीं रहे। सह मायनी में कहा जाये तो आम्बेडकरवाद को सरकार से प्रकाशित करवाने के लिए आंदोलन करने वाले शख्स का नाम एलआर बाली ही है।
आम्बेडकरवाद के लाइब्रेरी में आपने ‘रंगीला गांधी’ किताब का नाम सुना होगा? इस चर्चित पुस्तक के लेखक का नाम बाली ही हैं। बताया जाता है कि बाली बाबासाहेब के आखिरी सालों में 6 वर्षों तक उनके साथ रहे थे।
एमएल परिहार कहते हैं कि मानो एक युग का अंत हो गया। एलआर बाली साहब का बिछुडऩा हम सभी के लिए बहुत दुखद है। लेकिन गर्व है कि उन्होंने तथागत बुद्ध और बाबासाहेब के बताए मार्ग पर चलते हुए 94 साल का सफल और सार्थक जीवन जिया। उनके द्वारा जालंधर से संपादित ‘भीम पत्रिका’ और उनके प्रकाशन की विभिन्न विषयों पर पुस्तकों ने देशभर में वैचारिक जागृति की जो लहर चलाई वह बेमिसाल है।
जब मैं पाली कॉलेज में पढ़ता था तब उनके द्वारा लिखी हुई किताबें हम साथी मंगवा कर पढ़ते थे और शहर में वितरित करते थे। उस मुश्किल दौर में देशभर में ऐसे 2 - 3 प्रकाशक ही थे। किताबें लिखना, छापना और बेचना बहुत मुश्किल था। उन्होंने शुरू में लिखने का जो मकसद तथा अंदाज बनाया, वह ताउम्र कायम रहा। विचारों के साथ कभी समझौता नहीं किया।
याद करता हूं तो 1975 - 80 के बीच में पाली जैसे छोटे से शहर में हमारे वरिष्ठ साथियों, प्रबुद्धजनों द्वारा आमंत्रित किए जाने पर वे आते थे और कई दिनों तक साइकिल पर घूम - घूम कर बुद्ध और बाबासाहेब के विचारों की अलख जगाते थे।
परिहार कहते हैं कि अभी 5 दिन पहले ही तो मैंने उनसे फोन पर लंबी बात की थी। आवाज में वही वैचारिक प्रतिबद्धता, स्वाभिमान और धम्म एवं बाबा साहेब के मिशन के प्रति समर्पण का भाव गूंज रहा था। लग नहीं रहा था कि कोई 94 साल के बुजुर्ग बोल रहे थे बल्कि 30 साल के युवा मिशनरी की उत्साहभरी आवाज। इसी महीने में 94वां जन्मदिन मनाने वाले थे।
उनको सुनकर, देखकर और पढ़ कर हर कोई रुक जाता था फिर इस मार्ग पर चल पड़ता था। पंजाबी, उर्दू, हिंदी, इंग्लिश के विद्वान और धम्म, नॉलेज एंड इन्फॉर्मेशन से भरी उनकी पर्सनैलिटी लाजवाब थी।
मानो एक युग का अंत हो गया। एलआर बाली साहब जैसे महान योद्धा जिनको बाबासाहेब का सानिध्य मिला। आज हमसे देह के रूप में बिछड़ गए लेकिन उनके द्वारा बोया गया बोधिवृक्ष आज फल - फूल कर देश दुनिया में धम्म की शीतल छाया और मानवता की महक फैला रहा है। बाली साहब ने सिर्फ लंबा जीवन ही नहीं जिया बल्कि एक सार्थक जीवन जिया। हमें उन जैसे व्यक्ति के व्यक्तित्व और कृतित्व पर गर्व है। बाली साहब जैसे व्यक्ति कभी मरते नहीं है वे हर काल में हर समय मौजूद रहते हैं।
आरजी कुरील कहते हैं कि भीम पत्रिका के सम्पादक बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर के कारवां के अग्रिम पंक्ति के योद्धा वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्रद्धेय एल.आर.बाली का 93 साल की उम्र में दिनांक 6 जुलाई 2023 को निधन हो गया उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
केवल भारती लिखते हैं कि एलआर बाली के निधन का बहुत दुखद समाचार आया है। अस्सी के दशक में उनकी ‘भीम पत्रिका’ ने अद्भुत जागरण किया था। हिन्दी पट्टी में दलित वैचारिकी और दलित इतिहास को खड़ा करने वालों में चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु और एलआर बाली इन्हीं दो महान विभूतियों का योगदान हैं। मैं इस मामले में धनी हूं कि मैंने इन दोनों ही विभूतियों का दर्शन लाभ किया था। दोनों से पत्र व्यवहार भी हुआ था। ‘भीम पत्रिका’ का मैं नियमित पाठक था। बाली के निधन से एक बड़ी क्षति हुई है। एक इतिहास, एक संस्था और एक युग का अंत हो गया। मेरी उन्हें सादर विनम्र श्रद्धांजलि।
सम्पादक अशोक दास का मानना है कि एलआर बाली यानी लाहौरी राम बाली को आप भीम पत्रिका के संपादक के रूप में जानते हैं। लेकिन असल में वह एक संस्थान थे। 91 साल के बाली जी पिछले 50 से ज्यादा सालों से ‘भीम पत्रिका’ प्रकाशित कर रहे थे। उन्होंने आरपीआई के नेता के रूप में काम किया।
आज हम जो बाबासाहेब के लिखे को हर भाषा में पढ़ सकते हैं, (अम्बेडकर वांग्मय), जिसने करोड़ों लोगों को अम्बेडकरवादी बनाया, उसको सरकार से प्रकाशित करवाने के लिए आंदोलन करने वाले शख्स का नाम एलआर बाली ही था। आपने ‘रंगीला गांधी’ किताब का नाम सुना होगा, उसके लेखक भी बाली जी ही हैं। बाबासाहेब के आखिरी सालों में 6 वर्षों तक उनके संपर्क में रहें।
द प्रिंट से 18 अक्टूबर 1921 में उन्होंने कहा था कि बहुत सी अंतरराष्ट्रीय आंबेडकरवादी संस्थाओं ने सुविधाहीन लोगों को वित्तीय सहायता दी है, जिनमें प्रतिभा तो है लेकिन बाहर जाने के लिए साधन नहीं हैं। जलंधर में आंबेडकर भवन के संस्थापक और राज्य में आंबेडकर मिशन के मार्ग दर्शक एलआर बाली ने कहा था कि - ‘आंबेडकरवादियों ने विदेशों में बहुत काम किया है।
उन्होंने कहा था कि -‘मैं आपको तीन मिसालें दूंगा’ उन्होंने साउथ हॉल इंग्लैण्ड में आंबेडकर सेंटर बनाया है; बरमिंघम में उन्होंने बुद्ध विहार, आंबेडकर भवन तथा लाइब्रेरी, और एक आंबेडकर म्यूजय़िम बनाया है। प्रवासी भारतीयों ने अपने वतन में ‘चमार समुदाय’ के सामाजिक आंदोलन, स्वास्थ्य तथा शिक्षा में बहुत योगदान दिया है और बेहतर जीवन के लिए विदेश जाने में दूसरे सदस्यों की सहायता की है।’
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