मनुष्यों का समूहों के साथ सहचर्य व सहभागिता अनिवार्य है
पूरा शासकीय योजनाओं व सिस्टम को बर्बाद कर दिए हैं
प्रभाकर ग्वालआज पूरा शासकीय योजनाओं व सिस्टम को बर्बाद कर दिए हैं, जब शासकीय सिस्टम कुछ हद तक सही काम कर रहे थे तो कम से कम खर्च पर, हम लोग अच्छे से पढ़ लिख कर बड़े बड़े अधिकारी बन गए हैं, हम लोग नौकरी में आते तक जितनी खर्चा पढ़ाई में नहीं किये हैं, आज उससे कई गुना खर्च हमारे बच्चों के पीपी 1, पीपी 2 क्लास में हमारे बच्चों के लिए खर्च कर रहे हैं। आर्थिक कमजोरी के कारण हमारे एक से एक होनहार बच्चे 10वीं, 12वीं के बाद घर में चुपचाप रोजीमज़दूरी करने के लिए मजबूर हैं।

क्या इस संसार में, मैं या मेरा परिवार या मेरा कुल, मेरा समाज ही अकेले ही जीवित रहेगा? शायद नहीं, सबको जीने व एक दूसरे के सहयोग होना बहुत जरूरी हैं, इसके बिना जीवित संसार चल ही नहीं सकता हैं।
संसार में हर विविधता का होना व स्वीकार कर सहभागिता देना अनिवार्य है, इसके बिना हम सब वर्गभेद में फंसकर शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप से गुलाम बन जाएंगे, गुलाम बन रहे हैं, पूर्व में गुलाम बने भी थे। जैसे ही मैं, मेरी जाति को व वर्ग को श्रेष्ठ होने का व्यवहार करने लगता हूँ, दूसरे मनुष्य व दूसरे वर्ग को निम्न समझने लगता हूँ, जिससे घृणा व कुंठा घर करने लगता हैं। इसी मेँ मैं की बात कुवें के मेंढक की कहानी को चरितार्थ करता हैं।
इसका व्यवहारिक वीभत्स, विनाशकारी उदाहरण विभिन्न जाति समूहों में होने वाली जेनेटिक बीमारी, अल्पायु, वंशो का सर्वनाश के रूप में दिखाई दे रहा है। तत्काल में सिकलिंग नामक बीमारियों से परिवार के परिवार समाप्त हो जा रहे हैं।
ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि हम झूठे जातीय वर्ग घमण्ड की श्रेष्ठता को बनाये रखने के लिए फर्जी धर्म का आचरण, व्यवहार कर रहे हैं, जातीय संकीर्णताओं को पालन कर रहे हैं, प्राकृतिक आहार को त्याग कर रहे हैं, प्राकृतिक आहार को बर्बाद होने दे रहे हैं।
और सबसे बढ़ी गम्भीर बात ये है कि हम सब राजनीतिक नीतियों, नियमों से रोज शिकार हो रहे हैं और पूरे समाज को समझा रहे हैं कि हमको राजनीति से कोई लेना देना नहीं हैं, और कुछ मूर्ख लोग मान भी रहे हैं कि हमको राजनीति से कोई लेना देना नहीं। ये राजनीति से कोई लेना देना नहीं का तर्क ठीक वैसे हैं, जैसे तालाब की जीवित मछली ये कहे कि पानी से मुझे कोई लेना देना नहीं हैं।
आप, हम, मैं राजनीति से कोई लेना देना नहीं का कुतर्क कितना भी कर लें, पर राजनीति को तो हमसे 24 घण्टे, सातों दिन, 12 महीनों, सालों साल, युगों, युगों तक लेना देना है। यहां तक हमारी मौत व मृत शरीर भी वर्तमान व भविष्य की राजनीति से प्रभावित होती हैं और भविष्य को प्रभावित करती हैं।
आज की तिथियों में जो हमें ये समझाने का काम करता हैं और कहता है कि हमें राजनीति से कोई मतलब नहीं, वह छुप कर भाजपा या कांग्रेस के लिए काम कर समाज के विश्वास व मत को इन्ही दलों के पास बेचने का काम कर रहा है।
विश्वास न हो तो देश व समाज के इतनी बर्बादी के बाद भी, पूछ लीजिए कि पिछले बार वोट किसको दिए ओर अगली बार किसको दे रहे हो, निश्चित रूप से यही कहेगा कि भाजपा या कांग्रेस को वोट देने व दिलाने की बात करेगा।
मान लिया जाए कि प्राचीन काल में हमारा समाज किसी उत्पादन व सृजन के क्षेत्रों में बहुत बड़ा काम किये थे, तो उस प्राचीन घटनाओं को लेकर आज हमारी रोजी रोटी चल सकती हैं, क्या ?
मान लीजिए हमारे समाज के लोग कपास की खेती करने में, धागा बनाने में, कपड़ा बनाने में महारत हासिल किये थे, तो ठीक है, बहुत अच्छी बात हैं, तो खेती करने के लिए नांगर बैल किसके थे?, मजदूर कौन थे?, कपड़ा बनाने के लकड़ी व लोहे के औजार कौन बनाये थे?, परिवहन का साधन कौन बनाये थे?, विभिन्न प्रकार के तेलों को कौन खोंजे थे?, क्या कपड़ा के ग्राहक लोगों के पास केवल कपड़े का ही व्यापार था? अर्थात अन्य मनुष्यों के समूहों के साथ सहचर्य व सहभागिता अनिवार्य है।
अतः आप सभी से निवेदन है कि समाज मे विभिन्न सामाजिक ग्रुपो में देश, काल समय परिस्थितियों पर खुलकर चर्चा होने दीजिए, लोगों को विचार व्यक्त करने दीजिए, सुनने दीजिए।
किसी के विचारों से कोई असहज हैं तो वह विचारों से असहज नहीं है बल्कि किसी दल व नेता का गुलाम होने से असहज हो रहा है, क्योंकि वह किसी दल व नेता को स्वयं का व समाज का विश्वास देने का वचन दे चुका है।
आज पूरा शासकीय योजनाओं व सिस्टम को बर्बाद कर दिए हैं, जब शासकीय सिस्टम कुछ हद तक सही काम कर रहे थे तो कम से कम खर्च पर, हम लोग अच्छे से पढ़ लिख कर बड़े बड़े अधिकारी बन गए हैं, हम लोग नौकरी में आते तक जितनी खर्चा पढ़ाई में नहीं किये हैं, आज उससे कई गुना खर्च हमारे बच्चों के पीपी 1, पीपी 2 क्लास में हमारे बच्चों के लिए खर्च कर रहे हैं। आर्थिक कमजोरी के कारण हमारे एक से एक होनहार बच्चे 10वीं, 12वीं के बाद घर में चुपचाप रोजीमज़दूरी करने के लिए मजबूर हैं।
हर मनुष्य को मानव जीवन एक बार मिलता है, अतः अपने अपने स्तर पर अन्याय करने वाले व अन्याय को संरक्षण देने वाले लोगों को मत समर्थन कीजिए।
इस लेख को हमारे ग्रुप के उद्देश्य व कार्यों के विपरीत है, कहकर खारिज न कीजिए क्योंकि आदमी जीवित रहेगा, स्वास्थ्य रहेगा, दुनिया के अन्य समाज समूहों के समांतर चलेगा तो अस्तित्व बनाएगा, अन्यथा विनाश को प्राप्त करेगा और फिर किसी इतिहास के सुखद कल्पना को याद कर वर्तमान व भविष्य के लिए बच्चों को गुलाम बनाने की तैयारियां करते रहेंगे?
पूर्व सीबीआई मजिस्ट्रेट, छत्तीसगढ़, +91 94792 70390
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