2 - 3 जून 1977 दल्लीराजहरा गोलीकांड
भारत के मज़दूर आन्दोलन में, छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ की ऐतिहासिक भूमिका
शेख अंसाररज्जाक आयोग ने अपने निष्कर्ष में संदेहजनक तौर पर यह उल्लेखित किया कि क्या नियोगी को गिरफ्तार करने गयीं पुलिस गोलीचालन का मजिस्ट्रियल आदेश लेकर गई थी? 2 जून रात के गोलीचालन का मजिस्ट्रियल आदेश आयोग के समक्ष प्रस्तुत दस्तावेज में उपलब्ध नहीं है। 2 जून के गोलीचालन पश्चात गोलीचालन रोक का आदेश भी नहीं है। परिणामत: 3 जून 1977 को गोलीचालन निरंतरित रहा जो कि सरकार के गंभीर लापरवाही को दर्शित करता है।

छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ का देश के अन्य किसी राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन से या किसी राजनीतिक दलों से कोई औपचारिक संबंध नहीं रहा है। लेकिन कल - कारखानों, खेत - खलिहनों, बड़े बांधों से उजडऩे वाले लोगों, वनों की रक्षा और आदिवासी जीवन संस्कृति के लिए लडऩे वाले संगठनों, जातिगत वैमनस्यता से पीडि़त दलितों के लिए लडऩे वाले मंचों, पुरूष प्रधान समाज की घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के मोर्चो, नये भारत का सपना आंखों में संयोजे नवजवानों के संगठनों - आन्दोलनों से अटूट संबंध रहा है।
दल्लीराजहरा (आयरन ओर) महामाया (आयरन ओर) नंदनी (डोलोमाईट ) हिर्री (आयरन ओर) दानीटोला (क्वार्ट्जाइड) की खदानें, खदान अधिनियम 1952 के तहत भिलाई स्टील प्लांट की परिग्रहित (Captive mines) है।
शहीदों की नगरी दल्लीराजहरा की पहाडिय़ों से उत्खनित लौह अयस्क को भिलाई स्टील प्लांट तक इन प्रक्रियाओं से गुजरकर - डिलींग, ब्लास्टिंग, रेंजिंग, सेम्पलिंग, ट्रान्सपोर्टिंग इसके अतिरिक्त अमानी के परिश्रमी श्रमिकों के माध्यम से नियमित आपूर्ति की जाती रही है। भिलाई स्टील प्लांट तक अयस्क पहुंचाने के इस कार्य में तत्कालीन छत्तीसगढ़ के सात जिलों में से चार जिलों बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, और राजनांदगांव के लगभग दस हजार ठेका श्रमिक एवं लगभग तीन हजार श्रमिक मशीनीकृत माइंस में नियोजित थे।
प्रास्पेक्टिंग एवं अन्य शुरुआती अनिवार्य प्रक्रियाओं के पश्चात वर्ष 1956 में भिलाई स्टील प्लांट की अधिग्रहीत खदानों के मेहनती श्रमिक उत्पादन प्रक्रिया की श्वसन नली के मानिंद बीएसपी के अभिन्न कड़ी है। दल्लीराजहरा के इस खदान समूह (आईओसी) में औद्योगिक विवाद अधिनियम 1948 प्रभावशील है। लेकिन यथार्थ की धरातल पर औद्योगिक विवाद अधिनियम के प्रावधान अधिसूचना काल से ही माइंस ऑफिस की फाईलों की शोभा बढ़ा रहे थे।
दल्लीराजहरा के खदानों में नियोजित श्रमिकों का कार्य स्थायी एवं नियमित प्रकृति का हैं। दल्लीराजहरा की इन खदानों में संविदा श्रमिक ( विनियमन एवं उन्मूलन ) अधिनियम 1970 का तनिक भी अनुपालन नहीं हो रहा था, फलत: श्रमिकों के मन में अत्यंत असंतोष - आक्रोश व्याप्त रहा है। जो समय - समय में श्रमिकों की सुविधाओं की मांग के लिए फूट पड़ती थी।
25 जून 1975 को केन्द्र की श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने भारत में आपातकाल घोषित किया था
इधर मीसा ( Maintane Indian Security Act ) में निरूद्ध किए गयें शंकर गुहा नियोगी 13 महीने बाद 23 जनवरी 1977 को जेल से छूटकर दानीटोला में रह रहे थे। नियोगी जी आपातकाल के पहले से ही दानीटोला के क्वार्ट्जाइड माइंस के श्रमिकों के बीच अनूठे तरीके से ट्रेड यूनियन का कार्य कर रहे थे।
मुख्य नियोक्ता - भिलाई स्टील प्लांट (केन्द्र सरकार की उपक्रम, स्टील ऑथारिटी इंडिया लिमिटेड ) कार्यस्थल - दल्लीराजहरा की खदानें, बाजार - हाट, व्यापारिक प्रतिष्ठान दल्लीराजहरा, श्रमिकों की कार्यदशा समान, खदान और श्रमिकों पर प्रभावशील कानून औद्योगिक विवाद अधिनियम 1948 सारी समानताओं के बावजूद मात्र कागजी व्यवस्था कर बीएसपी मुश्तरका मज़दूरों को विभागीयकृत एवं ठेकेदारी प्रथा में बांटकर मैनेजमेंट श्रमिकों का शोषण बदस्तूर जारी रखें हुआ है।
वह काल आपातकाल के अंतिम दौर का था। दल्लीराजहरा की बस्तियों में तूफान उठ रहा था, खदान मज़दूरों के छाती में वर्षो से दबी दैनंदिनी के भेदभाव और असमानता से उपजी आक्रोश की चिंगारी अब आचरण की धरातल पर क्रियान्वित होना चाहती थी।
2 - 3 जून 1977 दल्लीराजहरा गोलीकांड
बीएसपी की खदानों में मान्यता प्राप्त यूनियन पहले इंटुक (कांग्रेस का मज़दूर मोर्चा) फिर संयुक्त खदान मजदूर संघ (भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी का लैबर फ्रंट, एटक) रहा है। जबकि मज़दूरो का पसंदीदा - चहेता यूनियन छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ (लाल - हरा) जिसका गठन इंटुक - एटक से विद्रोह कर मजदूरों किया था!
भिलाई स्टील प्लांट की कैप्टीव माइंस दिल्लीराजहरा में कार्यरत विभागीयकृत और ठेका मज़दूरों के लिए खदान में मान्यता प्राप्त यूनियन संयुक्त खदान मजदूर संघ (एटक) ने फरवरी 1977 में जो बोनस समझौता किया उसके अनुसार विभागीयकृत श्रमिकों के लिए 308 रूपया एवं ठेका श्रमिकों के लिए मात्र 70 रूपया बोनस राशि के भेदभाव ने मज़दूरों के असंतोष को विद्रोह में बदल दिया। बोनस राशि तो संघर्ष का आगाज़ था उस फैसलाकुन दिशा का जो मजदूरों ने तय कर लिया था।
3 मार्च 1977 के अलसुबह मजदूर प्रतिदिन की भांति अपनी - अपनी झोपड़ीनुमा दरबे से निकले थे, लेकिन आज इनके क़दम खदान की ओर नहीं उस ऐतिहासिक लाल मैदान की ओर थे, देखते ही देखते सारा लाल मैदान महिला - पुरुष मज़दूरों से अट गया, मैदान गगनभेदी नारों से गूंजने लगा ऊपर खदानों में सन्नाटा पसर गया उत्पादन पूरी तरह ठप हो गया। राजहरा की इकलौती सडक़ पर सीआईएसएफ और पुलिस की गाडिय़ां दौडऩे लगी भिलाई की धमन भट्टियों तक मज़दूरो के नारे की हुंकार भरी ताप पहुंचने लगी। राजहरा का थानेदार रघुनंदन पटनायक दुर्ग जिला के पुलिस प्रशासन को सूचना देने लगे।
भिलाई स्टील प्लांट के मैनेजिंग डायरेक्टर शिवराज जैन को एम अंगईया साहब (उप खान प्रबंधक) सीएस ब्रम्हा साहब (खान अधीक्षक) अपने - अपने स्तर से मज़दूरों की हड़ताल की जानकारी देने लगे। भिलाई स्टील प्लांट का मैनेजिंग डायरेक्टर इस्पात मंत्रालय दिल्ली को सरकारी संस्तर के माध्यम से केन्द्र की जनता पार्टी सरकार के इस्पात मंत्री बीजू पटनायक तक हाटलाईन से खबर हो गयी।
इंटुक - एटक यूनियन छोडक़र लाल मैदान में जमा मज़दूरों को एक विश्वसनीय नेतृत्व की तलाश थी। मार्च का गर्मी मौसम भी मज़दूरों के संघर्ष के ताप के आगे कमतर लग रहा था। बिखरे यूनियनविहीन मजदूरों के बीच आठ - दस श्रमिकों का एक समूह लाल मैदान में सक्रिय नजर आ रहा था। जब कभी यह समूह लाल मैदान के किसी किनारे एकत्र होते, और उसके बाद मैदान में कुछ - कुछ सकारात्मक बदलाव होता दिखाई देता, जैसे खुले मैदान में तालपतरी का लगाया जाना, पण्डाल में पेयजल का इंतजाम हो जाता, सामान्य तौर निर्णय कौन ले रहा है दिखाई नही देता लेकिन पण्डाल बेहद अनुशासित रूप से संचालित हो रही थी।
महिला मजदूर बारी - बारी से बच्चों को दूध पीलाने घर जाती, गई महिलाएं जब वापस आती तब एक दूसरा महिला समूह उठकर जाते दिखाई देतीं। नारे की जिम्मेदारी कभी किसी खदान के मुखियाओं को दी जाती तो कभी किसी दिगर खदान के मुखिया नारा लगाने लगते। विद्रोह कर, यूनियन छोडक़र तो आयें थे, लेकिन फिर भी लाल मैदान के खुले मंच में मजदूरों के संघर्ष की कसौटी पर जांचने के लिए पुराने स्थापित नेताओं को बोलने का अवसर दिया जा रहा था।
इस तरह मज़दूरों की कसौटी पर सारे स्थापित नेता एक के बाद एक धराशाई होते गये। कोई भी अनुभवशील व्यक्ति लाल मैदान के इन क्रियाकलापों - गतिविधियों को आसानी से समझ सकता है कि दरअसल यह सारी की सारी कवायद एक अच्छे संगठन, अच्छी यूनियन गठन की पूर्व बेला है, पूर्व स्थिति है।
23 मार्च 1977 को लाल मैदान के संघर्षशील मज़दूरो की ओर से आठ - दस लोगों के सक्रिय समूह के साथ बंशीलाल साहू और जनकलाल ठाकुर दूसरी ओर मैनेजमेंट के मध्य समझौता सम्पन्न हुआ। इसी ऐतिहासिक समझौते को लाल मैदान के हड़ताल पण्डाल में पहुंच कर अविभाजित दुर्ग जिला के जिलाधीश रमेश सक्सेना समझौते का सार्वजनिक घोषणा कर शीघ्र अनुपालन कराने का आश्वासन दिया।
अगले दिन 24 मार्च को मज़दूरो ने अनूठा विजय जुलूस निकाला!
संघर्षशील मज़दूरो ने अपना फैसला लेते हुए मान्यता प्राप्त यूनियन द्वारा ठेका मजदूरों के लिए निर्धारित 70 रूपया बोनस राशि को ठुकरा कर अपने निर्णय के तहत 50 रूपया बोनस राशि लिया और घोषणा कर किया यह हमारा फैसला है। और कहने लगे कि अब हाथी के पांच पैर हो गये। इसीलिए उस दिन गत्ते का हाथी बनाया गया, और उस हाथी को लेकर विजय जुलूस के आगे - आगे चल रहे थे और नारा लगा रहे थे। राजहरा का मज़दूर एक हो गया। आश्चर्य किन्तु सत्य हाथी का पांच पैर हो गया।
मान्यता प्राप्त यूनियन जो बोनस समझौता किया था कतिपय मज़दूरों को छोडक़र दल्लीराजहरा की व्यापक मजदूर आबादी सम्पन्न समझौते को सिरे से नकार दिया था। लाल मैदान के सभा में घोषणा किया करते थे कि लाल मैदान के संघर्षशील मज़दूर अपना फैसला खुद करेंगे। इधर मान्यता प्राप्त यूनियन के नेतागण राजहरा बस्तियों में घूम - घूमकर यह कहते हैं कि हमने 70 रूपया का समझौता कर दिया अब आगे कुछ नहीं हो सकता और आगे बढक़र यह भी दावा करने लगते कि जिस दिन हाथी का पांच पैर होगा उस दिन हमारा 70 रूपया बोनस राशि समझौता अमान्य होगा। मज़दूरों ने पांच पैर वाला हाथी बनाकर जैसे को तैसा जवाब दिया।
2 - 3 जून 1977 के दल्लीराजहरा गोलीकाण्ड जांच के लिए गठित एमए रज्जाक आयोग के निष्कर्ष के अनुसार गोलीकाण्ड गैरवाजिब अवैधानिक था। मध्यरात्रि को अपने साथियों बीच सो रहे गुहानियोगी को गिरफतार करना राज्य सरकार का गलत निर्णय था !
छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के पदाधिकारियों के विरूद्ध थाना प्रभारी राजहरा ने 13 फौजदारी मामला पंजीबद्ध किया था। संयुक्त खदान मजदूर संघ के पदाधिकारियों के विरूद्ध 6 फौजदारी मामला राजहरा थाना में पंजीबद्ध था। यूनियनों पर पंजीबद्ध मामले सामान्य प्रकृति के थे, एकाध मामले को छोडक़र सारे प्रकरण जमानती थे।
दल्लीराजहरा के खदान मजदूरों ने राष्ट्रीय यूनियनों का जो स्थानीय शाखा के नेताओं का परित्याग किया था, उसके नेपथ्य में मैनेजमेंट द्वारा खदान मज़दूरों को मूलभूत श्रम विधियों को वंचित करना था, जिस पर यूनियन द्वारा कोई कार्यवाही न कर मौन साध लेना प्रमुख कारण था लाल मैदान के लम्बे और ऐतिहासिक संघर्ष में जो मजदूर मुखियाओं के द्वारा पहलकदमी की गयी उसमें शंकर गुहा नियोगी की विशेष भूमिका रही है। लाल मैदान आंदोलन से पहले ही राजहरा खदान के मजदूरों का सतत सम्पर्क नियोगी जी से रहा है।
दानीटोला खदान मजदूरों की समस्या लेकर जब नियोगी जी माइंस ऑफिस राजहरा आते थे, तो उस समय कुछ साथी उनसे मिल कर सलाह - मशविरा किया करते थे। नियोगी हमेशा एक ही बात कहा करते थे, आप लोग खदानों में दफाई में संगठन बनाइये हम सब मिलकर संघर्ष करेंगे। तय कार्यक्रम के अनुसार 24 मार्च 1977 के विजय जुलूस के अगले दिन अर्थात 25 मार्च 1977 को बंशीलाल साहू, सहदेव साहू, जनकलाल ठाकुर सहित करीब 40 - 50 साथी नियोगी को लाने दानीटोला गये और नियोगी को साथ लेकर दल्लीराजहरा आयें।
रज्जाक आयोग ने दल्लीराजहरा गोलीकांड के लिए राज्य सरकार के निर्णय की आलोचना की है, बीएसपी एवं स्थानीय ठेकेदारों को 31मई 1977 के सम्पन्न समझौते के परिपालन में नाफरमानी को मुख्य एवं प्रमुख कारण माना है।
2 - 3 जुन 1977 के बर्बर गोलीकांड के शहीद
1. अनुसुईया बाई
2. बालक सुदामा
3. जगदीश
4. टीभू राम
5. सोनऊ राम
6. रामदयाल
7. पुनऊ राम
8. समारू राम
9. हेमनाथ
10. डेहर लाल
11. जयलाल
बोनस के मुद्दे पर यूनियन गठन के पूर्व संचालन समिति राजहरा के समूचे मेहनतकश आबादी के मन में एक मजबूत भरोसे का निर्माण किया था। संचालन समिति नियोगी के देखरेख में लेनिन की ऐतिहासिक यूनियन संचालन की मुख्य पद्धति और एकमात्र पद्धति जनवादी केन्द्रियता का अनुसरण कर रही थी। मज़दूरों का मानना था आखिरकार संचालन समिति एडहाक है, लिहाजा जल्दी ही मान्य प्रक्रियाओं - औपचारिकता की पूर्ति कर यूनियन का पंजीयन करा लेना चाहिए।
तत्कालीन मध्यप्रदेश में यूनियन पंजीयन का कार्य इंदौर के राज्य रजिस्ट्रार ऑफिस में होता था। नियोगी साथियों के साथ एक दो फेरा के बाद छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ का पंजीयन 27 अप्रैल 1977 को कराया। नई यूनियन छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ (पंजीयन क्रमांक 2019) औपचारिक गठन के बाद मजदूर साथियों में उत्साह का संचार हुआ। नई यूनियन के तहत भिलाई स्टील प्लांट राजहरा मैनेजमेंट के समक्ष मांग पत्रक प्रस्तुत की गई।
छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ का आरंभकाल से स्पष्ट मानना था, कि यूनियन की गतिविधियों को कार्यस्थल और आठ घंटे की चौहद्दी के इतर मज़दूर वर्ग के चौबीस घंटे के जीवन के लिए काम करेगी। यूनियन ने कार्य के सुचारू संचालन के लिए 17 विभाग बनाये, इन 17 विभागों के चिन्हित - चयनित कार्यों के क्रियान्वयन के लिए 17 समितियां बनाई गई हर समिति में एक प्रमुख मज़दूरों द्वारा चुने गये।
मांग पत्र प्रस्तुत करने यूनियन ने राजहरा के समस्त खदानों दफाई और आसपास के गांव इलाके जहां से मजदूर काम करने दल्लीराजहरा आते थे, उन गांवों के स्तर में यूनियन के सदस्यों को सुगठित करने के काम को आगे बढ़ाया गया। छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ की नई यूनियन द्वारा मांग पत्र प्रस्तुत किया गया। छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ द्वारा प्रस्तुत मांग को मनवाने के लिए राजहरा के मजदूरों ने आन्दोलनों का ऐसा सिलसिला अख्तियार किया कि बीएसपी मैनेजमेंट और ठेकादार सुलह वार्ता के लिए राजी हुए तथा 30 मई 1977 को अपरान्ह 3 बजे से राजहरा के स्थानीय विश्रामगृह में 31 मई 1977 के अपरान्ह 5 बजे तक लम्बी वार्ता पश्चात समझौता हुआ।
समझौते के मुताबिक 1 जून 1977 को प्रत्येक श्रमिक को 100 रूपया झुग्गी मरम्मत के लिए ठेकेदार भुगतान करेंगे और 4 जून 1977 को उपस्थिति वेतन का भुगतान करेंगे।
1 जून को झुग्गी मरम्मत का 100 रूपया भुगतान नही होने से सभी मज़दूर साथी यूनियन ऑफिस के मैदान में इकट्ठा रहें, रात को सारे मजदूर कार्यालय मैदान के आसपास हो गये। आधी रात को नियोगी जी को गिरफतार कर पुलिस ले गयीं।
रज्जाक आयोग ने अपने निष्कर्ष में संदेहजनक तौर पर यह उल्लेखित किया कि क्या नियोगी को गिरफ्तार करने गयीं पुलिस गोलीचालन का मजिस्ट्रियल आदेश लेकर गई थी? 2 जून रात के गोलीचालन का मजिस्ट्रियल आदेश आयोग के समक्ष प्रस्तुत दस्तावेज में उपलब्ध नहीं है। 2 जून के गोलीचालन पश्चात गोलीचालन रोक का आदेश भी नहीं है परिणामत: 3 जून 1977 को गोलीचालन निरंतरित रहा जो कि सरकार के गंभीर लापरवाही को दर्शित करता है।
लेखक छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अगुआ नेता रहे हैं और राजनांदगांव छत्तीसगढ़ में निवासरत हैं।
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