रजनीश, उनके अनुयायी, आश्रमवासी, शीला, अमेरिका के अधिकारी, एंटीलोप शहर

धर्मगुरु की काली करतूतों पर बना कोई कार्यक्रम/फिल्म/सीरीज देख लो तो सहज ही जिज्ञासा जाग जाती है

Rashmi Ravija

 

ओशो रजनीश की जिंदगी, उनके आश्रम के विषय में बहुत कुछ पढ़ रखा था. उनके विचार कोट्स के रूप में आज भी सर्कुलेट होते रहते  हैं. वे बहुत ज्ञानी थे, उनका अध्ययन विशद था पर विवादित भी थे.  इस सीरीज में अमेरिका में  उनके आश्रम निर्माण, वहाँ के अधिकारियों से विवाद, उनकी पर्सनल सेक्रेटरी 'माँ शीला' का वर्चस्व, अंततः अमेरिका से Deport किया जाना दिखाया गया है. ये एक लम्बी डाक्यूमेंट्री है, इसलिए इसमें कुछ भी काल्पनिक नहीं है.

उस वक्त रजनीश के अनुयायी, आश्रमवासी, शीला, अमेरिका के अधिकारी, एंटीलोप शहर के वासी, सबके लम्बे इंटरव्यूज़ हैं. उन दिनों के अखबार और टी वी समाचार के क्लिप्स, आश्रम की जिंदगी के क्लिप्स, उनके विवादित मेडीटेशन के तरीके के क्लिप्स भी हैं (जिसे किसी रिपोर्टर ने भक्त  बनकर चुपके से शूट किया था जिसमे निर्वस्त्र  स्त्री/पुरुष के झूमते वीडियोज  की क्लिपिंग्स हैं.)

इस सीरीज  में  अलबत्ता रजनीश को बहुत कम दिखाया गया है. पर इसकी वजह भी है, अमेरिका जाते ही उन्होंने मौन धारण कर  एकांतवास चुन लिया था. जब पुणे में रजनीश आश्रम विदेशियों के मध्य बहुत लोकप्रिय हो गया और डॉलर बरसने लगे तो रजनीश की महत्वाकांक्षाएं बढ़ीं. वे इस तर्ज पर एक विशाल शहर के निर्माण का सपना देखने लगे जहाँ हजारों से बढ़कर उनके लाखों अनुयायी रह सकें. उन्होंने जबलपुर, कच्छ, भुज, मुंबई कई जगह विशाल जमीन  खरीदने का प्रयास किया पर बात नहीं बनी. पुणे में उनके आश्रम के विरुद्ध आवाजें भी उठने लगीं थीं. उन्हीं दिनों शीला उनकी अनुयायी बनी. रजनीश ने उन्हें अपनी पर्सनल सेक्रेटरी बना लिया. शीला ने अमेरिका में आश्रम बनाने का सुझाव दिया. रजनीश सहर्ष मान गए और आधी रात को बिना अपने हजारों अनुयायिओं को कोई खबर किये चोरी से अमेरिका के लिए उड़ गए.

अमेरिका में Oregon के Antilope शहर में जहाँ सिर्फ पचास बाशिंदे थे, शीला ने हज़ारों एकड़ बंजर जमीन खरीद ली. रजनीश के अनुयायी ज्यादातर, खाए - पिए - अघाए, जीवन से उकताए अमीर लोग थे. उन लोगों ने जी खोलकर दान भी दिया और शहर निर्माण में पूरा योगदान भी. (हमारे विनोद खन्ना भी वहाँ गाजर और मूलियाँ उगाते थे ) हर क्षेत्र के एक्सपर्ट उनके अनुयायियों में  थे लिहाजा तीन वर्षों में पूरा शहर बन कर तैयार हो गया. जहाँ बिजली - पानी - झील - खेत - घर - अस्पताल सब कुछ था. सभी लोग बेफिक्री में हंसते गाते उत्साहपूर्वक काम करते दिखे.

जब पूरा शहर तैयार हो गया तो रजनीश अपने Rolls Royce में पधारे. पर इन तीन वर्षों तक पुणे से आने के बाद रजनीश कहाँ  रहे, यह नहीं दिखाया गया है. वैसे भी  यह अमेरिकन सीरीज है, उनका पूरा फोकस है कि किस तरह आश्रम के बढ़ते वर्चस्व को खत्म कर इसे बंद करवाया गया.पूरी सीरीज में  'शीला' ही नजर आती हैं और यह आश्रम भी उन्हीं का ब्रेन चाइल्ड था.

Antelope शहर रिटायर्ड लोगों का शांत शहर था. वहाँ हज़ारों अजनबी लोगों का इस तरह आकर स्वछन्द जीवन जीना और शोर शराबा करना, निश्चय ही वहाँ के लोगों को पसंद नहीं आना था. विरोध होने लगा और शीला ने कई गुणा कीमतों पर  वहाँ की प्रॉपर्टी खरीदनी शुरू कर दी. लोकल इलेक्शन जीत कर  शहर का नाम "रजनीशपूरम " कर दिया. चौराहों के भी नाम बदल दिए. एक चौराहे का नाम कबीर था. (रजनीशपूरम के खात्मे के बाद जब कबीर के नाम की पट्टी तोड़ी जाती है तो देख दुःख हुआ. क्या जरूरत थी कबीर के नाम के इस्तेमाल की).

वहाँ के लोगों का गुस्सा इतना बढ़ा कि रजनीश आश्रम के एक होटल पर बमबारी की गई. कोई आहत नहीं हुआ पर होटल जल गया और शीला दहाड़ उठीं, एक इंटरव्यू में कहा ," अगर वे हमारे एक को मारेंगे तो हम उनके दस जन को मार डालेंगे."  इसके बाद रजनीशपूरम में बड़े तादाद में हथियारों की खरीदारी होने लगी. सेना तैयार की गई,  हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाने लगी. फंड की  कमी थी नहीं, हॉलीवुड के बड़े बड़े लोग दान दे रहे थे. अब महत्वाकांक्षा और बढ़ीं कि हम वास्को काउंटी पर ही कब्जा कर लें, अपना वोट बैंक बढाने के लिए पूरे अमेरिका से सडक पर रह रहे बेघर लोगों को बसों में भर कर लाया जाने लगा. उन्हें सर पे छत, भोजन,साफ कपड़े देकर उनकी मेडिकल जांच की जाने लगी. वे सब बहुत खुश थे. मुझे भी देख अच्छा लगा,  कुछ तो अच्छा काम कर रहे. 

अब अमेरिकन अधिकारी भी सतर्क हुए. उन्होंने वोटिंग के नियमों में फेरबदल किये. पहले शायद पन्द्रह दिनों पहले वोट के लिए रजिस्टर किया जा सकता था. अब कई तरह की शर्तें लगा दी गईं और बसों में भरकर वोटिंग के लिए गए बेघर लोग बैरंग वापस कर दिए गए.

अब उनका आश्रम में क्या काम, उन्हें बियर में नशे की दवा मिलाकर दी गई और वापस सडकों पर छोड़ दिया गया. (यह सब देखते दुःख हो रहा था कि एक भारतीय महिला और उसके साथी कैसी कैसी करतूतें कर रहे हैं.) रजनीश सिर्फ डायमंड से जड़े मुकुट, लम्बी लहराती पोशाक, महंगी घड़ियाँ पहने कभी कभार अपने भक्तों को दर्शन देते और फिर अपनी गुफा में चले जाते. सिर्फ अकेली शीला ही उनसे मिल सकती थी. कहीं पढ़ा था कि रजनीश ड्रग्स के नशे में पड़े रहते थे. कितना सच, कितना झूठ नहीं पता पर इस सीरीज़ में ऐसा कोई जिक्र नहीं है.

शीला पर आरोप था कि उसने वास्को काउंटी के रेस्टोरेंट के खाने में जहर मिलाया,ताकि लोग बीमार पड़ जायें और वोट देने नहीं जा सकें. सैकड़ों लोग बीमार भी पड़े. (शीला को इसकी सजा भी हुई). रजनीशपूरम के विरोधी US Attorney Charles Turner की  हत्या का षडयंत्र भी रचा गया (शीला और उसकी सहयोगी को इसकी भी सजा हुई)

हॉलीवुड की बड़ी बड़ी हस्तियाँ रजनीशपूरम की तरफ आकृष्ट हुईं. उनमें  Godfather जैसी फिल्म के प्रोड्यूसर की पूर्व पत्नी भी थीं. उन्होंने कई हजार डॉलर का अनुदान दिया. जाहिर है, वे रजनीश के ज्यादा करीब आने लगीं,  शीला को अपनी सत्ता खतरे में महसूस हुई और वो रातोरात अपने कुछ करीबियों के साथ जर्मनी भाग गई. कितने माल असबाब लेकर साथ गई होगी, इसका भी जिक्र नहीं है पर अंदाजा लगाया जा सकता है.

अब रजनीश नींद से जागे और अपनी चुप्पी तोड़ी. वे अपने विषय के प्रकांड विद्वान् थे पर व्यावहारिक बिलकुल नहीं. प्रेस को बुलाकर बयान देते हुए रजनीश एक चोट खाकर तिलमिलाए हुए बहुत ही साधारण पुरुष लग रहे थे। कहीं से आध्यात्मिक गुरु नहीं लग रहे थे जिनके भाषण को हज़ारों लोग सम्मोहित होकर सुनते थे। शीला को गालियां दी रहे थे, शीला  ने हत्या की है, पूरे शहर  को जहर देने की साजिश की, उनके कमरे में तार लगाकर जासूसी की, आश्रम में कई सारी आपराधिक गतिविधियां की इसकी जांच होनी चाहिए और उसे कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए. 

इन सबमें सबसे हास्यास्पद बयान था, " यह सब उसने इसलिए किया क्यूंकि वह जेलस थी, मैंने कभी उस से शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाये. मेरा वसूल है, अपनी सेक्रेटरी के साथ कभी सम्बन्ध मत बनाओ ."

अमेरिकी अधिकारी तो बहाना ही ढूँढ रहे थे, उन्हें आश्रम में जाने का अवसर मिला. शीला के भवन में ढेरों तहखाने और सुरंग मिले. जांच के घेरे में रजनीश भी आये. खबरें आईं कि रजनीश कभी भी गिरफ्तार हो सकते हैं. आश्रम की प्रायवेट सेना, उनके अनुयायी लड़ाई के लिए तैयार थे कि किसी कीमत पर अपने गुरु को गिरफ्तार नहीं होने देंगे. सभी एक खूनी भिडंत से आशंकित थे और रजनीश फिर रात के अँधेरे में सबको सकते में छोड़ प्रायवेट जेट से उड़ लिए. अमेरिकन पुलिस ने भी निगाह रखी और प्लेन का लंबा पीछा कर सबको उतार लिया. रजनीश एक सीट के पीछे छुपे हुए थे. सबसे अंत में उतारे गए. इन सभी गुरुओं का यही हश्र होता है. हथकड़ी लगाये, हाथ जोड़े मुस्कुराते हुए रजनीश बहुत ही कमजोर और दयनीय लग रहे थे.

अपने वकीलों की सलाह पर रजनीश अपना अपराध क़ुबूल कर भारत Deport होने को तैयार हो गए. पुनः पुणे आश्रम में वापस आये अपना नाम रजनीश से ओशो कर लिया. जो एक जापानी शब्द है ,गुरु को यही कहकर सम्बोधित करते हैं. ओशो ने  फिर से मौन धारण कर लिया. 1990 में 58 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई. कुछ लोगों का कहना है कि उनकी स्वाभाविक मृत्यु नहीं हुई उन्हें दवा की ओवरडोज़ दी गई थी.

जर्मनी से शीला को भी अमेरिका लाया गया. उसे 20 वर्ष की सजा हुई पर पता नहीं कैसे अपने अच्छे व्यवहार की बनिस्पत साढ़े चार वर्षों में ही रिहा हो गई. उसकी सहयोगी को भी दस वर्ष की सजा हुई।

मुझे रजनीश का मौनव्रत और एकांतवास चुनना कुछ अजीब लगा. वे इतने लोगों के गुरु थे. उनके पास अथाह ज्ञान भी था. प्रवचन देना, उनका कर्तव्य होना चाहिए था. उनके अनुयायी उन्हें सुनना चाहते होंगे. सिर्फ एक पैटर्न पर उन्मत्त होकर नृत्य करना, फ्री सेक्स, चीखना चिल्लाना, एक स्वछन्द जिंदगी जीने के लिए ही आश्रम में दाखिल नहीं हुए होंगे.

एक चीज कुछ और अजीब लगी. Hindi में सन्यासी और सन्यासिन शब्द है पर रजनीश, शीला, अमेरिका के लोग  स्त्री/पुरुष सबके लिए सन्यासिन शब्द का ही प्रयोग करते हैं.

पूरी सीरीज़ में अमेरिकन लोग रजनीश की जगह 'भगवान' कहते हैं. बार बार भगवान ने ये कहा, ऐसा किया, भाग गए, गिरफ्तार हुए सुनना कुछ अच्छा नहीं लगता. उन्हें पता नहीं भगवान शब्द के हमारे लिए क्या मायने हैं पर एक भारतीय ने ही जब इस शब्द का Missuse किया तो किसे क्या कहें.

शीला शुरू से ही कहती है,  मेडिटेशन में उनकी कोई रूचि नहीं थी. वे सिर्फ आश्रम का कार्यभार सम्भालना चाहती थीं.

मैंने सीरीज का सार ही लिख दिया है. ये सब बातें मुझे भी पता नहीं थीं. जिनमें इतनी लम्बी सीरीज देखने का धैर्य नहीं होगा. उन्हें सामान्य जानकारी मिल जायेगी. अगर किसी रजनीश भक्त की भावनाएं आहत हुई हों तो इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी नहीं हूँ. मुझे जो दिखा, सही लगा, मैंने लिखा.

दूसरे अनुयायी भी अपने घर, अपने परिवार के पास लौट गए हैं, या नया परिवार बसा लिया और बीस वर्षों तक स्वच्छन्द जीवन बिताने के बाद अब परिवार की महत्ता के गुण गा रहे हैं। Antelope के लोग वापस अपने शहर पर अपना अधिकार पाकर खुश तो बहुत हैं पर दुखी भी हैं कि काफी सारे लोग यहाँ से अपना घर बेचकर चले गए, अब शहर में पहलेवाला अपनापन नहीं रहा।


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