सामाजिक बहिष्कार से परेशान हो खुद को मकान में किया कैद

राजनांदगांव में बहिष्कार के कारण महिला की हुई मौत

दक्षिण कोसल टीम

 

बताया जाता है कि टिपानगढ़ के साहू परिवार की सदस्य सुखबती बाई, चेतन साहू और 7 साल की खुशबू साहू ग्रामीणों के द्वारा बहिष्कार से परेशान होकर कई दिनों से मकान में बंद थी। कई दिनों तक घर का दरवाजा न खुलने पर बाद में सभी को गम्भीर हालत में छुरिया सामुदायिक अस्पताल लाया गया, जहां 50 साल की सुखबती की उपचार के दौरान मौत हो गई।

अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉक्टर दिनेश मिश्र ने बताया कि हमारे  यहां  सामाजिक और जातिगत स्तर पर सक्रिय पंचायतों द्वारा सामाजिक बहिष्कार के मामले लगातार सामने आते रहते हैं। ग्रामीण अंचल में ऐसी घटनाएं बहुतायत से होती है जिसमें जाति व समाज से बाहर विवाह करने, समाज के मुखिया का कहना न मानने, पंचायतों के मनमाने फरमान व फैसलों को सिर झुकाकर न पालन करने पर किसी व्यक्ति या उसके पूरे परिवार को समाज व जाति से बहिष्कार कर दिया जाता है तथा ऐसे परिवारों का समाज में हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है। 

30 हजार से अधिक लोग सामाजिक बहिष्कार के शिकार

कुछ मामलों में तो स्वच्छता मित्र बनने पर, तो कहीं आरटीआई लगाने पर भी समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है। आंकड़ों की माने तो पूरे प्रदेश में 30 हजार से अधिक लोग सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीति के शिकार हैं। 

पिछले कई सालों से अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति सामाजिक बहिष्कार जैसी सामाजिक कुरीति के खिलाफ लगातार जनजागरण एवं प्रताडि़त लोगों की मदद के लिए पिछले कुछ वर्षों से कार्य कर रही है, और कुछ परिवारों का बहिष्कार समाप्त करने में सफल भी हुई है, पर बहिष्कृत परिवारों की संख्या बहुत अधिक है और उनका पुन: समाज में शामिल होना, पुनर्वास के लिए एक सक्षम कानून की आवश्यकता है। 

महाराष्ट्र प्रदेश में कानून लागू

समिति सभी जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखकर आगामी विधानसभा सत्र में सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ कानून बनाने की मांग की है। इसी परिप्रेक्ष्य में ज्ञात हो कि महाराष्ट्र राज्य विधानसभा के सभी सदस्यों ने सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम के संबंध में महत्वपूर्ण कानून को बिना किसी विरोध के सर्वसम्मति से 11 अप्रैल 2016 को पारित कर दिया है तथा 20 जून 2017 को माननीय राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिलने के बाद 3 जुलाई 2017 से पूरे महाराष्ट्र राज्य में लागू कर दिया गया। 

इस तरह छत्तीसगढ़ में सामाजिक बहिष्कार की लगातार बढ़ते अपराधों को मद्देनजर रखते हुए इस प्रदेश में भी सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम की महती आवश्यकता महसूस की जा रही है।

डॉ. मिश्र ने दक्षिण कोसल को बताया कि सामाजिक बहिष्कार होने से दंडित व्यक्ति व उसका पूरा परिवार गांव में बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है। पूरे गांव - समाज में कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत परिवार से न ही कोई बातचीत करता है और न ही उससे किसी प्रकार का व्यवहार रखता है। 

अछूतों की तरह भेदभाव

उस बहिष्कृत परिवार को हैन्ड पम्प से पानी लेने, तालाब में नहाने व निस्तार करने, सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होने, पंगत, राशन लेने  में साथ बैठने की मनाही हो जाती है। यहां तक उसे गांव में किराना दुकान में सामान खरीदने, मजदूरी करने, नाई, शादी - ब्याह जैसे सामाजिक सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी शामिल होने से वंचित कर दिया जाता है जिसके कारण वह परिवार गांव में अत्यंत अपमानजनक स्थिति में पहुंच जाता है तथा गांव में रहना मुश्किल हो जाता है। सामाजिक पंचायतें कभी - कभी सामाजिक बहिष्कार हटाने के लिए भारी जुर्माना, अनाज, शारीरिक दंड व गांव छोडऩे जैसे फरमान जारी कर देती है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड में जानकारी नहीं

छत्तीसगढ़ प्रदेश में कई सालों से सामाजिक बहिष्कार के कारण विभिन्न स्थानों से आत्महत्या, हत्या, प्रताडऩा व पलायन की खबरें लगातार समाचार पत्रों में आती रहती है। इस संबंध में अब तक कोई सक्षम कानून नहीं बन पाया है इसलिए ऐसे मामलों में कोई उचित कार्यवाही नहीं हो पाती है न ही रोकथाम का कोई प्रयास होता है।

सामाजिक बहिष्कार के मामलों के आंकड़े को लेकर नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो, राज्य सरकार, पुलिस विभाग के पास कोई अब तक रिकार्ड में जानकारी उपलब्ध नहीं है ऐसी जानकारी सूचना केअधिकार के अंतर्गत प्राप्त हुई है। जबकि ऐसी घटनाएं लगातार होती है। 

इस संबंध में सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम को विधानसभा सत्र में सामाजिक बहिष्कार के संबंध में सक्षम कानून बनाने के लिए पहल निहायत जरूरी हो गई है ऐसे प्रभावित परिवारों तथा पीडि़तों इस प्रताडऩा से न्याय मिल सके।


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