आखातीज अक्ती केवल हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी भाषिक गोंड लोग ही मानते हैं?

मैं यह नहीं कह रहा कि मैं जहाँ रहता हूँ वहाँ की परम्परा सबसे शुद्ध है

गोविन्द शाह वालको

 

मैं एक छोटा - सा सामाजिक कार्यकर्ता हूं लगभग दो तीन वर्षों से अक्षय तृतीया, आखातीज, अक्ती के संबंध में जानने का प्रयास करता रहा इस वर्ष भी समाचार पत्र, व्हाट्सएप, फेसबुक में देखकर जानने का और जीज्ञासा हुई। लेकिन जिज्ञासा तब और बढ़ गयी जब गोंडवाना के नाभी कहे जाने वाले लांजीगढ़ किले में यह पर्व धूमधाम से मनाया गया। मैं जहाँ रहता हूं गोंडी भाषिक गोंड अक्षय तृतीया आखातीज अक्ती नहीं जानते केवल हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी भाषिक गोंड लोग ही मानते हैं।

छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ी भाषिक क्षेत्र में अक्ती को जानते हैं और बस्तर, कांकेर, दन्तेवाड़ा, कोंडागांव, बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर, मोहला मानपुर अंबागढ़ चौकी जिला, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली, चन्द्रपुर जिले के गोंडी भाषिक क्षेत्र में इसको नहीं जानते। गोंदिया जिले के दक्षिण भाग नहीं जानता और तेलंगाना के गोंडी भाषिक आदीवासी नहीं जानते।

मैं नहीं कहता कि आदीवासी त्यौहार नहीं है, होगा लेकिन अक्षय तृतीया आखातीज में तो लक्ष्मी एवं विष्णु की बैसाख महीना के तीसरे दिन में धन सम्पत्ति पाने के लिए कुशीनगर के महोदय वैष्य व्रत रखा और राजा बन गया और सोने चांदी से आबाद हो कर ब्राह्मण को भोजन एवं दान देने लगा।

दूसरी जगह कृष्ण को खुश करने के लिए व्रत रखे जाने की बात की गई है। एक जगह परसूराम की जयन्ती बताई गई है अनेक कहनी है जो ब्रम्हाण देवी देवताओ की पूजा की बात किया गया है। लांजीगढ़ में मनाया गया अक्षय तृतीया आखातीज को आदिवासी रीतिरिवाज संस्कृति है ऐसा बताया गया है। छत्तीसगढ़ में अक्ती अक्षय तृतीया को मनाया जाता हैं उनकी मान्यता है कि बीज बोने की पर्व धन सम्पत्ति पाने की इसमें ग्रामीण एवं निजी देवताओं का पूजा किया जाता है।

पूर्व में बताया था गोंडी भाषिक क्षेत्र में जेठ महीना में महुआ का फल टोरा जब पकने की स्थिति में आती है इसमें तलुरमुत्ते पेन में पूरे इकट्ठा होते हैं इसके भोग (पूजा) बाद उसी समय महुआ पेड़ मे स्थापित भिमाल पेन का मरमींग किया जाता है जिसमें के गांव सभी महिला, बच्चे पुरूष गाजा, परांग के साथ नाचा गाया जाता है गाँव भर के लिए इसी स्थान पर भोजन बनता है। भोजन के बाद तलुरमुत्ते पेन में बैठ कर प्रत्येक परिवार को बीज भुमया (गायता, खडरी) द्वारा बांटा जाता है इसके बाद गाँव में किसी की विवाह नहीं होगा और जागा पेन का अखाड़ी तक पूजा नहीं होगा।

मैं यह नहीं कह रहा कि मैं जहाँ रहता हूँ वहाँ की परम्परा सबसे शुद्ध है मैं जानना चाहता  हूं कि अक्षय तृतीया आखातीज तो एक ही है लेकिन अक्ती छत्तीसगढ़ी बोली में ही छत्तीसगढ़ मे ही भले मजदूरी करने बाहर गये बोलते होगे मुलत: यह शब्द छत्तीसगढ़ की है ऐसा मै समझता हूं हो सकता अन्य भाषा शब्द लेकिन अक्षय से आखा से, आखा से अक्ती आया होगा और यहाँ के मूलनिवासीयों के बिजौरी, विजा पंडुम के साथ जोड़ दिया गया और अक्ती शब्द जुड़ गया तथा विजा पंडुम, बिजौरी हट गया। अक्ती में बीज बोने की पराम्परा 50 प्रतिशत गोंडी भाषिक क्षेत्र वीजा पंडुम से नहीं मिलता।

अक्ती में बीज बोनी के साथ धन संम्पति प्राप्त करने की बात आ रही है और अक्षय तृतीया में भी धन संम्पति पूजा से प्राप्त करने की और वीजा पंडुम मे एक बीज को पानी हवा लगती है अंकुर आती है तो उसे गोंडी में जीवा अरता कहते हैं अर्थात जीवन आ गया। इसी तरह इस बीज को जमीन में छिड़कना है पौधे बनने बाद गर्भ में आती है और पोला के मध्य रात्रि में बैसेसूर का भोग (पूजा) किया जाता हैं नियम तह इसके तीसरे दिन धान की गर्भ होती है उसे गोटा में भरा जाता हैं उसे तलूरमुत्ते (ठाकुर देव) में बांध दिया जाता है और अन्य धान के बाली को गाँव प्रमुख पेन ठाना पर चढ़ा जाता है।

इसे पुनांग आयना (नया होना) नवा खाई कहा जाता हैं इसके बाद धान की कटाई बाद धान बाली को लेकर तलुरमुत्ते पेन में बाली रख कर भोग किया जाता है। फिर बाली लाकर मिजाई किया जाता है। मिजाई के बाद कोडींग अरहीना अर्थात धान लेकर ग्रामीण गायता के घर आते हैं इसको गोट्टा पंडुम में सभी ग्रामीण मिल कर तलुरमुत्ते पेन का भोग कर खाया जा है। इसकी प्रक्रिया है एक बीज में जीवन है यह बीज पौधा होता है और फिर गर्भ में आता है फिर जन्म देता है फिर नामकरण होता है फिर शादी होता हैं फिर बूढ़ा हो कर समाप्त होता है।

प्रकृति में हर जीव को स्तर गुजरना पड़ता है मनुष्य भी पहले अपने पत्नी में बीज डालता है। यही विजा पंडुम, गर्भ पुजा (पोला के मध्य रात्रि में) हर जीव यहीं से गुजरती है, नवा खाईं बच्चे की जन्म, गोट्टा पंडुम बच्चे का नामकरण, फिर बच्चा जवान होता है भिमाल पेन के मरमींग और फिर मृत्यु प्राप्त करले लेता। फिर बिज बनता है यही विजा पंडुम है। गोंडी पंडुम यही है।

लेखक सर्व आदिवासी समाज ब्लॉक इकाई मानपुर अध्यक्ष हैं तथा छत्तीसगढ़ में निवास करते हैं। 


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