क्यों सरला को गांधी से प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं है?
त्वरित टिप्पणी : गाँधी और सरलादेवी चौधरानी
संगसार सीमासरला देवी की विलक्षण प्रतिभा जिसके कायल वंकिमचंद्र चटर्जी भी थे। महात्मा गांधी ने उन्हें आध्यात्मिक पत्नी का दर्जा दिया और उनसे अथाह प्रेम किया। यह तो इतिहास की एक असाधारण घटना थी लेकिन गांधी के पुरुषवादी सोच ने कहीं न कहीं इस प्रेम का वही हश्र किया जो अमूमन एक साधारण पुरुष करते हैं...

गाँधी और सरलादेवी चौधरानी : बारह अध्याय एक स्त्री के जीवन का वह अध्याय है, जो उसके उत्स का कारण है तो उसके पतन की भी एक वजह है ...
प्रेम इंसान को अंधा करता है ये सुनती आई हूँ और दुर्बल भी होता है इंसान यह भी महसूसा है मैंने लेकिन एक हद तक हठी और सनकी भी हो सकता है वह तो इस अध्याय को पढ़ कर खत्म करने के बाद यह धारणा और भी पुख्ता हो गई...
प्रेम अगर कोई साधारण इंसान करे तो समझ में आता है लेकिन महात्मा समझने वाले गांधी अगर करे तो बात हजम नहीं होती।
आखिर क्यों उनके सारे आदर्श एक स्त्री और उसके प्रेम के आगे खोखले साबित हो जाते हैं? अगर इस बात की सूक्ष्मता से पड़ताल की जाए तो यही बात प्रमुखता से उभर कर आती है कि पितृसत्तात्मक समाज की जड़ें इतनी मजबूत है कि हमारे देश का महात्मा गांधी भी उससे अछूता नहीं है।
हमारे समय की एक महत्वपूर्ण और सशक्त लेखिका Alka Saraogi ने इस पुस्तक के जरिए जो आत्ममंथन किया है वह एक गहरे स्त्री विमर्श को साकार करती हुई नजर आती है। भले ही उनकी लेखनी किसी खास विमर्शों या खांचे में कभी नहीं ढली है लेकिन उनके स्त्री पात्रों में जो करुण वेदना होती है और एक सन्नाटा पसरा होता है वह कहीं न कहीं स्त्रियों के स्वतंत्र शुचिता व अस्मिता पर प्रश्न खड़े करती है ...
सरला देवी चौधरानी एक ऐसा ही जीवंत पात्र है जिनकी कहानी पढ़ने के बाद मेरे मन में कई सारे सवाल उमड़ने लगे और स्वभावगत मेरा स्त्री मन विद्रोह कर बैठा ...
अलका सरावगी अपनी लेखनी के जरिए यही तो करती हैं वह पात्र रचती हैं कहानी सुनाती हैं और पाठकों के दिलों में बवंडर छोड़ जाती हैं ...
सबसे पहले तो सरला देवी चौधरानी के नामांकरण पर ही मेरा स्त्री मन आहत हुआ कि आखिर किसकी चौधरानी और कैसी चौधरानी? अपने उम्र से दुगूने और तीसरी बार ब्याहे गये पति रामभज चौधरी की पत्नी होने के नाते वह चौधरानी है ? तो मैं ऐसी सरला देवी को सिरे से खारिज करती हूँ जो व्यक्तिगत रुप से खुद एक शेरनी हैं। उनकी वय्क्तिगत आभा किसी परिचय की मुहताज नहीं है चाहे वह रविन्द्रनाथ टैगोर की भांजी हो या फिर कलकत्ते की राजघराने की बेटी के तौर पर हो। सरला देवी का परिचय इन सभी उपादानों से कहीं ऊपर है।
सरला देवी की विलक्षण प्रतिभा जिसके कायल वंकिमचंद्र चटर्जी भी थे। महात्मा गांधी ने उन्हें आध्यात्मिक पत्नी का दर्जा दिया और उनसे अथाह प्रेम किया। यह तो इतिहास की एक असाधारण घटना थी लेकिन गांधी के पुरुषवादी सोच ने कहीं न कहीं इस प्रेम का वही हश्र किया जो अमूमन एक साधारण पुरुष करते हैं...
एक स्त्री को हमेशा कमतर देखना और उसके दायरे को संकुचित करना कहीं न कहीं उसकी प्रतिभा और उसमें छिपी असीम संभावनाओं को नष्ट करती है।
प्रेम में प्रेमी या प्रेमिका को क्यों हमेशा उसके फ्रेम में ही फिट होना है ?
गांधी गांधी थे और सरला सरला फिर गांधी को क्यों उससे गांधी बनने पर एक सनक सवार था।
बचपन से ही जो स्त्री देश सेवा के लिए न्योछावर होना चाहती थीं उसे क्यों गांधी बन कर ही अपनी एक अलग पहचान बनानी है ?
जबकि वह खुद सक्षम है नारी मुक्ति मोर्चा और स्वदेशी पर स्त्रियों को जागरूक करने और देश के हित में अपने आपको कूर्बान करने में। आखिर सरला देवी अपने जीवन को गांधी के आगे ही कूर्बान करके क्यों महान हो सकती है जबकि वह खुद देश के लिए पूरी तरह से कुर्बान है। अपने पति, सौतेले बच्चों समेत अपने मासूम बच्चे दीपक और सासू माँ सबको त्याग कर वह देश सेवा के लिए अपने आपको होम न करके क्यों वह गांधी के पास जाकर ही उसकी सेवा सत्यापित होगी ?
क्या गांधी ने सरला देवी का मानसिक दोहन नहीं किया? उनका अपने निजी व देश सेवा हित के लिए उनका उपयोग नहीं किया?
क्यों सरला देवी को उनसे असहयोग आंदोलन जैसे मुद्दों पर असहमति का अधिकार नहीं है? क्यों सरला को गांधी से प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं है ?
और गांधी को यह हक किसने दिया कि सरे आम सभाओं में कस्तूर का मजाक उड़ाए और सरला देवी का खादी पहनने पर महिमामंडन करें.....?
ऐसे न जाने कितने सारे प्रश्न मेरे जेहन में चकरघिन्नी खा कर बेदम हो रहे है ...
मुझे लगता है कि इन सारे सवालों के जबाब कहीं न कहीं इसी बारह अध्याय में छुपे पड़े हैं। जिसे जरूरत है तो बस टटोलने की हाय मेरा समाज तू न बदला ...
अलका सरावगी ने जिस जतन से गांधी और सरला देवी के मध्य पत्राचार को माध्यम बनाकर इस उपन्यास को लिखा है वह अद्भुत है ।
बहुत सारी ऐसी बातें हैं जो इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं है उनमें स्वयं सरला देवी चौधरानी भी है जो गांधी की आध्यात्मिक पत्नी का दर्जा पाते हुए भी सत्य के प्रयोग से नदारद है ...
जबकि उन्होंने अपने ब्रहमचर्य के पालन में भी सरला देवी को एक चूक के रुप में माना जिससे वे बाल बाल बच गये।
एक ऐसा ऐतिहासिक दस्तावेज जो एक स्त्री के जीवन को गुनती है जरूर पढ़ा जाना चाहिए साथ ही गांधी की नीतियों और उनके प्रयोगों को जानने की भी एक अदद पुस्तक मानी जा सकती है। यह कभी गुदगुदाती है, रुलाती है तो बहुत सारे प्रश्नों को अपने पीछे छोड़ जाती है।
पुस्तक - गांधी और सरला देवी चौधरानी: बारह अध्याय
लेखक - अलका सरावगी
प्रकाशन - वाणी
कीमत - 299/-
Add Comment