17 मार्च को पादरी यालम शंकर के मौत की घटना
'बस्तर का बहिष्कृत भारत' - अल्पसंख्यक इसाई आदिवासियों पर अनवरत जारी हिंसा और अत्याचारों पर लेखा-जोखा
दक्षिण कोसल टीमछत्तीसगढ़ राज्य के पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में/आदिवासी इलाकों में आदिवासी समुदायों के मध्य धार्मिक आस्थाओं के सवाल को लेकर आपसी तनाव और तकरार की परिस्थितियों पर पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज छत्तीसगढ़ राज्य इकाई के पहल पर छत्तीसगढ़ प्रोग्रेसिव क्रिश्चियन अलायन्स, आल इंडिया पीपुल्स फोरम तथा दलित अधिकार अभियान, आल इंडिया लायर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस आदि जनसंगठनों के संयुक्त तत्वाधान में एक फैक्ट फाइंडिंग टीम का गठन किया गया।

इस जांच दल में रिनचिन, अखिलेश एडगर, विभीषण पात्रे, आशीष बेक, वैभव इफ्राइम, संजीत बर्मन, डिग्री प्रसाद चौहान, विजेंद्र तिवारी, डॉ गोल्डी एम.जॉर्ज शामिल रहे हैं। घटना की पृष्ठभूमि इस प्रकार है- जांच दल को दक्षिण छत्तीसगढ़ में होलिका दहन के दिन यानि मार्च 17 को घटित हुये एक घटना पादरी यालम शंकर के मौत की घटना का जानकारी प्राप्त हुआ।
ऐसे तमाम मामलों को गहराई से समझने के लिए जब टीम ग्राउंड जीरो पर पहुंची तब पता चला कि यालम शंकर के मौत का मामला तो हिमशैल का केवल एक उभरा हुआ सिरा है। जांच दल ने तथ्यान्वेषण के दौरान पाया कि इस तरह के सैकड़ों मामले हैं, जिनमें अधिकांश मामलों में कभी कोई रिपोर्टिंग नहीं हुई है और न ही सरकार ऐसे मामलों को गंभीरता से लेती है।
यह टीम ग्राउंड जीरो में स्थानीय समुदायों से मिलकर व बात-चीत कर घटित घटनाओं के सम्बन्ध में जांच -पड़ताल किया, पीडि़तों और संबंधितों के बयान दर्ज किये तथा घटना के सम्बन्ध में तथ्य संग्रहण किया। जांच दल ने अपना तथ्यान्वेषण पांच चरणों में बस्तर, धमतरी, बलौदा-बाजार, सरगुजा-जशपुर और कोंडागांव-नारायणपुर में क्रमश: 03 से 09 अप्रैल 2022, 24 से 25 मई 2022, 31 मई 2022, 08 से 09 जून 2022, 22 से 23 दिसम्बर 2022 के दरम्यान संपन्न किया।
घटित घटनाओं पर पीडि़तों के बयान व गवाही
छत्तीसगढ़ में आदिवासी इसाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ अनवरत घटित हो रहे अत्याचार के पीडि़तों के बयान-
1. पादरी यालम शंकर की हत्या
अंगमपल्ली (बीजापुर), मद्देड़ थाना क्षेत्र, 17 मार्च, 2022 का मामला
17 मार्च को छत्तीसगढ़ के दक्षिणी जिले बीजापुर के मद्देड़ थाना क्षेत्र के अंगमपल्ली गांव के रहने वाले यालम शंकर की धारदार हथियार से हत्या कर दी गयी। 50 वर्ष के शंकर एक ईसाई संस्था के पादरी के रूप में काम कर रहे थे। घटना को अंजाम उस समय दिया गया जब 17 मार्च की शाम लगभग 7 बजे सारा गांव होलिका दहन कर रहा था, तभी चेहरे पर नकाब पहने 6 व्यक्तियों के एक अज्ञात गिरोह ने उन्हें मार दिया। घटना बीजापुर जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर मद्देड़ थाना क्षेत्र में घटी। पूरी घटना को विस्तार से समझने पर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। इस संस्था में शंकर, नागेन्द्र जेना के नेतृत्व में काम करने वाले पादरी थे। जेना के नेतृत्व में लगभग 30-35 पादरी इस अंचल में काम कर रहे हैं। शंकर गोंड जनजाति से थे तथा अपने समाज को बेहतर मानवीय दिशा देने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे।
वर्ष 2004 से वह उक्त संस्था से जुड़ गए थे। जांच दल को पता चला कि कि कुछ महीने पहले गांव में धर्म परिवर्तन को लेकर कट्टरपंथियों द्वारा ईसाई धर्म के अनुयायियों के साथ मारपीट की गयी। इस घटना की शिकायत शंकर ने मद्देड़ थाने में दर्ज करवायी थी। जेना के मुताबिक 14 मार्च सोमवार को शंकर ने उन्हें फ़ोन कर कहा कि ‘ऐसी खबर मिली है जिसमें दो बकरों की बलि चढ़ाने की बात हो रही है।’ एक नाम स्वयं उनका था तो दूसरा एक अन्य सहकर्मी, वासम शंकर का। यानि जड़ को ही काट दिया जाए तो शेष धड़, तना, डाली और पत्ती खुद ब खुद नष्ट हो जाएगी। 4 अप्रैल को यालम शंकर के गृहगांव अंगमपल्ली में एक शांति सभा का आयोजन हुआ जिसमें लगभग 1500 के आस पास लोग शामिल हुए। यालम शंकर के बड़े बेटे गोपाल शंकर का कहना है कि इस आयोजन में काफी लोगों ने भाग लिया पर हमारी उम्मीद और ज्यादा लोगों के शामिल होने की थी। स्थानीय लोग जो इस कार्यक्रम में शामिल हुए उनका कहना है कि डर, भय और कई अन्य कारणों की वजह से लोगों का आना शायद नहीं हो पाया।
परिजनों और साथ काम करने वालों के बयान-
पुष्पा यालम
पूरी घटना की एकमात्र चश्मदीद गवाह यालम शंकर की बहू पुष्पा यालम के मुताबिक उनके ससुर को 5-6 नकाबपोशों ने मार डाला। पुष्पा 2013 से 2018 के बीच अंगमपल्ली पंचायत की सरपंच थीं। पूरी घटना की आपबीती को वह इस प्रकार बयान करती हैं-‘17 मार्च को शाम के करीब 7 बजे थे। मेरे पति (गोपाल) भुवनेश्वर से लौटे नहीं थे। मेरे ससुर और सास खाना खा रहे थे। अचानक दरवाजे पर कुछ लोग आए और मेरे पति गोपाल को बुलाया। मैं बाहर गई और उनसे कहा कि वह घर पर नहीं हैं। वे चले गए। एक मिनट से भी कम समय में वे लौट आये और मेरे ससुर को बुलाने आए- शंकरभय्या... शंकरभय्या...।’ आगे उन्होंने बताया कि ‘एक-दो को छोडक़र सभी पुरुष नकाबपोश थे। मेरे ससुर अपनी थाली लेकर खाते-खाते दरवाजे की ओर चले गए। उन्होंने कहा कि हम आप से कुछ बात करना चाहते हैं। मेरे ससुर ने सास को बुलाकर अपनी थाली दी।
वह थाली मुझे थमाकर जल्दी से पड़ोस के घर की ओर दौड़ीं ताकि कुछ मदद ले सकें। मेरी सास को उन नकाबपोशों के हाव-भाव से कुछ गलत लगा।’ पुष्पा का कहना था कि-‘मैं थाली को रसोई में ले गयी और तभी पहली गोली की आवाज सुनी। मैं भागती हुई बाहर गयी तो पाया कि मेरे ससुर के हाथ बंधे हुए थे। वह अपने घुटनों पर थे। पहली गोली की पीड़ा में वे कराह रहे थे, पर शांत थे। उनके शरीर से खून निकल रहा था। उनमें से एक ने मेरे माथे पर दूसरी बंदूक तान दी और मुझे चुप रहने की चेतावनी दी, नहीं तो वे मुझे भी मार देंगे ऐसा बोला।’
पुष्पा यालम ने बताया कि ‘तभी मेरे सामने एक ने पीछे से गोली मारी और वह गोली उनके पेट को चीर कर निकल गई। फिर नकाबपोशों में से एक ने उनके सीने के निचले हिस्से में चाकू मारा। वहीं दूसरे ने चाकू से उनका गला काट दिया। उसके बाद वह जमीन पर गिर पड़े और नकाबपोश लोग उनको लात मारकर चले गए।’ पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई कि उन्हें 2 गोली मारी गई और उन पर धारदार हथियार से तीन वार हुए।
गोपाल यालम
अपने पिता की हत्या के संदर्भ में उनके बड़े बेटे गोपाल यालम का कुछ और ही कहना है। घटना के समय वह ओडिशा में थे। मिली जानकारी का ब्यौरा देते हुए उसने बताया कि उनके पिता उस वक्त खाना खा रहे थे। तभी वो लोग आये और पिता खाना खाते-खाते उठकर गए और पलक झपकते ही सब कुछ खत्म हो गया। वे लोग जान पहचान के नहीं थे। शायद दूसरे गांव के होंगे। जब पूछा गया कि इस घटना को किसने अंजाम दिया होगा, तब वो बताने लगे कि गांव में ईसाई धर्म को मानने वालों के ऊपर कई प्रकार का सताव गोंडवाना समाज के नाम से चलता आ रहा है। वो लोग ‘घर वापसी’ करवाने में लगे हुए हैं। बाहर से लोग आकर नाना प्रकार से नफरत की आंधी फैलाते रहते हैं। यह सब गोंडवाना समाज के नाम से चलाया जा रहा है। इनकी डर से 13'4 परिवार हिंदू धर्म में ‘घर वापसी’ कर लिए। इस पूरे अभियान को कथित तौर पर गोंडवाना समाज के नाम से चलाया गया।
कई लोगों के साथ जब मार-पीट करते थे, तो उनको पिताजी पनाह देते थे, मदद करते थे। मद्देड़ वाले चर्च को यालम शंकर और अंगमपल्ली गांव के चर्च को गोपाल चलाते हैं। इस तरह के विरोध की वजह से कई आदिवासी परिवार वापस हिंदू बन गए। अभी वहां भयानक डर और आतंक का माहौल बना हुआ है। क्या कभी माओवादियों की ओर से उनके पिता को कोई चेतावनी मिली या माओवादियों ने उन्हें बुलाया था? इसके जवाब में उन्होंने बताया कि ऐसा कभी कुछ नहीं हुआ। यह तो कट्टरपंथियों का ही काम है। दिसंबर के महीने में गांव में गोंडवाना समाज की घर वापसी के लिए बैठक हुई थी, जिसमें उनके पिता ने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया था, तब से माहौल और बिगड़ता गया। एक दूसरे के साथ कोई भी रिश्ता या जन्म, शादी, मृत्यु में नहीं आना जाना भी तय हुआ।
यानी आपस में हुक्का पानी बंद। इसके बाद खेती बाड़ी की मनाही भी हुई। स्वयं गोपाल को वनाधिकार क़ानून के तहत 2 एकड़ खेत मिला है। और दूसरी जगह अलग से 5 एकड़ में खेती कर रहे हैं। उस पर भी खेती करना वर्जित हो गया। इस तरह के अनेक दबाव की घटनाएं पाई गईं।
वासम शंकर
यालम शंकर के सह-ग्रामवासी वासम शंकर भी उसी तथाकथित माओवादी पर्चे वाले सूची में थे, जिसमें अन्य ईसाई पादरियों का नाम शामिल था। उस पर्चे में इनका नाम पहले नंबर पर था। दो बकरों की बलि वाली सूची में वासम शंकर का नाम सबसे ऊपर था। दोनों दोस्त बचपन से लेकर विगत मार्च 17, 2022 तक साथ पले-बढ़े, साथ रहे, साथ चले, साथ प्रचार किये, पर अब उसमें से एक शंकर दूसरे का साथ छोड़ हमेशा के लिए सो गया। पर वासम ने अभी हार नहीं मानी है। वे कहते हैं कि आतंक और तनाव से नहीं डरेंगे। लोगों का मनपरिवर्तन जरूरी है, ताकि वे गुलामी से बाहर निकल पाएं।
इन सब बातों के बावजूद वासम शंकर के अंदर भी एक तरह का डर समाया हुआ है। वो नहीं जानते कि उनके जिगरी दोस्त को किसने मौत के घाट उतारा - गोंडवाना समाज, माओवादी या फिर और कोई। गांव का माहौल कई महीनों से बिगडऩे की बात वो बताते हैं। पर इन सबसे उनके काम करने की ऊर्जा में कोई कमी नहीं हुई है। वे अपने मित्र यालम शंकर के अधूरे सपनों को पूरा करना चाहते हैं और वे इस मसले में अपनी निरंतरता जारी रखे हुए हैं। अंगमपल्ली की घटना के बाद पुलिस का शांत होना लोगों में कई प्रकार की आशंकाएं पैदा कर रही हैं। वैसे अन्य कोई माओवादी वारदात के बाद पुलिस प्रशासन बहुत ज्यादा सक्रिय नजऱ आता है, पर इस मामले में अब तक कोई विशेष कार्रवाई हुई या हो रही है ऐसा बिलकुल प्रतीत नहीं हो रहा है।
यालम शंकर के संयोजक रहे नागेन्द्र जेना का मानना है कि मसीही लोगों को ऐसे समय में ज्यादा हिम्मत और धैर्य से काम लेने की आवश्यकता है। जेना दावा करते हैं कि कट्टरपंथियों के भय और धमकी के वे स्वयं शिकार हैं। उनके अनुसार उनको भी जान का खतरा है और यदि परिस्थितियों में सुधार नहीं हुआ तो उनको भी कभी भी मारकर फेंक दिया जा सकता है। लोग ऐसे मामलों में अक्सर शिकायत नहीं करना चाहते हैं क्योंकि जैसे ही शिकायत होगी वैसे ही उन्हें टारगेट किया जायेगा। जेना कहते हैं कि वे कई मामलों में इसी तरह से टारगेट में हैं। अंगमपल्ली की घटना का विवरण देते हुए जेना कहते हैं कि यह गांव करीब 3-4 महीनों से ईसाई विरोध और सताव का केंद्र था। दिसंबर 8, 2021 से मद्देड़ अंचल में तनाव की स्थिति बनी रही।
‘हिंदू कट्टरपंथी हर दिन ईसाई विश्वासियों के ऊपर कुछ न कुछ अन्याय करते रहे। उदाहरण के लिये, कहीं धान कटाई में बाधा, तो कहीं खेती करने की मनाही, तो कहीं लोगों को अपने गांव घर से न निकलने देना, यह सब चलता रहा।’ इन सब परिस्थितियों में यालम शंकर पीड़ीत लोगों की सहायता करते, उन्हें पनाह देते एवं उनकी सहायता हेतु पुलिस प्रशासन से मदद दिलवाते रहे। उनके अंदर एक अद्भुत नेतृत्वकारी गुण था। इन सब वजहों से शंकर इन कट्टरपंथियों की नजऱ में चुभ रहे थे। वे उनकी गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने लगे।
2 .दीनबन्धु
पिता श्री माधव समेली, उम्र 36 वर्ष, गांव सरगीपाल थाना-परपा, (बस्तर) - घटना स्थल - करंजी (आई.सी.एम.चर्च) परपा थाना, घटना - 16 अप्रैल 2016
मेरा घर और चर्च आसपास ही है... मैं रविवार के दिन शाम के समय परिवार के साथ घर पर ही था तभी दो लोग घर में आए और पीने के लिए पानी मांगे और मुझे प्रार्थना करने के लिए कहा। तब मैंने किस बाबत् पूछा तो उन्होंने कहा कि वे लोग लाल चर्च से आए हैं, मेरे द्वारा दुबारा पूछने पर उन लोगों ने करंजी के पास पोटानार का होना बताया। वे लोग किसी से पुराना दुश्मनी है इसीलिए उनसे माफी मांगने का प्रार्थना करने के लिए कह रहे थे।
वे लोग मुझे दबाव बनाने लगे तब मैं आसपास निवासरत् अन्य विश्वासियों को फोन करने लगा तभी उन लोगों ने मेरा फोन छिन लिया और एक हथौड़ा जो कि वे लोग अपने साथ लेकर आए थे, निकाले और जय श्रीराम बोलने के लिए मुझे कहा, जब मैंने मना किया तब चर्च के गेट को हथौड़ा से मारकर तोड़ दिया फिर मेरी पत्नी को चर्च के गेट का चाबी लाने बोले और उसके हाथ से छिनकर दरवाजा खोलकर अन्दर घुसे फिर उन लोगों ने बाईबिल के ऊपर चढऩे और उस पर थूकने के लिए कहा, चर्च के वेदी के ऊपर मुझे लेकर तलवार को मेरे गले मे रखकर बाईबिल पर थूकने बोला, फिर बाईबिल को एक टेबल में रखकर पेट्रोल डालकर बाईबिल में आग लगा दिए और भाग निकले। वहां पर दरी, माइक सामान इत्यादि जल गया तथा रूपये 30000/- के लगभग क्षति हुआ।
मैं ओडिशा में 2004 में ईसाई धर्म अपनाया हूं अभी भी मैं परिवार में अकेला विश्वासी हूं। मैं मूल रूप से ओडिसा कोरापुट जिला माली भीमडोल गांव का हूं, आदिवासी कोण्डापरजा जाति से हूं, परिवार गैरमसीही है लेकिन हिन्दू रीतिरिवाज भी परिवार में लगभग 1 दशक पहले ही शुरूआत हुआ था। मेरी पत्नी शादी के पश्चात् मसीही धर्म अपना लिया है, वह महरा जाति की है।
मैं थाना में घटना दिनांक को ही रिपोर्ट लिखवाया, एक सप्ताह के बाद जब पुलिस ने उनका स्क्रेच आदि समाचार में डाले तो थाने में वे लोग सरेण्डर कर दिए, हम पति-पत्नी को मसीही समाज के समझाइश पर कोर्ट में माफीनामा लिखकर दे दिया है। कुछ दिन बाद पता चला वो लोग आर.एस.एस., बजरंग दल तथा बंगाली समाज से तालुक रखते थे। बाद में उन लोगों से कोर्ट में मुलाकात हुआ तो वे लोग अफसोस जाहिर किए। उनमें से एक का नाम बाबू बोराई है।
3. मनिकराम नाग
पिता लखमू नाग, 33 वर्ष, गांव सरगीपाल, थाना बोधघाट (बस्तर), घटना स्थल सरगीपाल, घटना - 27 दिसम्बर 2020
गांव में मेरा सायकिल एवं मोटर सायकिल रिपेयरिंग की दुकान है। गांव में महरा समाज के लोगों को जो शासन की योजनायें हैं, उसकी जानकारी के लिए ग्राम पंचायत में सूचना अधिकार आवेदन लगाया था। नहीं देने पर जनपद में अपील भी किया था। ग्राम पंचायत का पूर्व सरपंच आर.एस.एस.एवं भाजपा से सम्बघित है वह हाल के चुनाव में हार गया था। वर्तमान में कांग्रेस समर्थित सरपंच है और मैं वार्ड पंच हूं. मैं मसीही धर्म को मानता हूं मेरा घर बारिश में टूट जाने के कारण सरकार से मुआवजा प्राप्त कर रिपेयर कर रहा था तभी घटना दिनांक को पूर्व सरपंच के द्वारा उसके समर्थक लगभग 100 लोगों को लेकर मेरे घर में सब्बल आदि लेकर घुस गए, तब मैं घर पर अकेला था। मेरे घर रिपेयरिंग को वे लोग चर्च बनाने का आरोप लगा रहे थे। कॉल नम्बर 112 से सूचित होकर आए पुलिस वालों की उपस्थिति में ही मेरा घर उन लोगों ने तोड़ दिया। पूर्व सरपंच मोहन सिंह नाग गदवा आदिवासी समाज से है।
गांव में कुल 50 परिवार महरा समाज से तथा शेष लगभग 900 आदिवासी परिवार निवासरत् हैं। कुल 50 महरा परिवार में से लगभग 40 परिवार मसीही धर्म को मानते हैं। गांव में आर.एस.एस., विश्वहिन्दू परिषद, सर्व आदिवासी समाज के लोग एकजूट होकर मसीही समाज को प्रताडि़त करते हैं। गांव के हिसाब से नहीं चलने का मतलब पूजा-पाठ, चन्दा-बरार इत्यादि है। गांव में यह पहला घटना मुझे मसीही होने के कारण लक्ष्य करके किया गया है। हम लोग 2006 में पूरा परिवार मसीही धर्म को अपनाया। हमारा उन लोगों के व्यवहार में नहीं जाना और मुफ्त में गाय आदि चराने का काम नहीं करते हैं शायद इसलिए वे लोग नाराज हैं। गांव में करीब 60 परिवार महार समाज से हैं। जिनमें से करीब 40 परिवार ईसाई धर्म के अनुयायी हैं। गांव में बिहारी लोग/बाहरी लोग आकर हिन्दू संगठन बना रहे हैं। गांव में गदबा, महरा, रावत, ब्राह्मण, साहू, समाज के लोग रहते हैं।
थाने में रिपोर्ट लिखाने के बाद अब स्थिति नियंत्रण में है। गांव की अधिकतर जमीन गदबा - आदिवासी समाज के पास है, मेरे विरूद्ध फर्जी रूप से एक काउण्टर एफ.आई.आर. भी दर्ज किया गया है जिस कारण मुझे जेल में भी रहना पड़ा। सन् 1995/कई साल पहले गांव के एक मसीही व्यक्ति की मृत्यु हो गयी थी जिसे गांव के लोगों ने सार्वजनिक श्मशान घाट में शव को दफनाने नहीं दिया गया था। तब से गांव वालों ने मसीही समाज को अलग श्मशान घाट में दफनाने कहा गया था।
4. गाली मण्डावी
40 वर्ष, गांव मुतनपारा, डोंगरीपारा, मुसकोटा ग्राम पचायत, थाना-बुरगुम, जिला बस्तर, घटना स्थल डोंगरीपारा निवास, घटना - 14 अगस्त 2020
(घटना के बारे में गोण्डी में बताया गया जिसका अनुवाद विश्वनाथ कोवासी ने किया)
ग्राम पंचायत के सरपंच कोसा के साथ गांव के अन्य 50 लोग मेरे घर में आए और बोले कि तुम ईसाई धर्म को छोड़ दो। यदि नहीं छोड़ोगे तो तुम्हार सभी कागजात में जाति के स्थान पर ईसाई लिखो नहीं तो तुम्हे जान से हाथ धोना पड़ेगा। गांव में मेरा 9 एकड़ जमीन है। वे लोग बोले कि तुम्हारे जमीन को भी तुमसे छिन लेंगे। राशन भी नहीं देंगे, तुम्हारा नाम काट दिया जायेगा। उस दिन जात-पानी करवाये थे। गांव के पुजारी के द्वारा पानी छिडक़ते हुए मुझे जबरदस्ती शुद्धिकरण कर गांव के देवगुड़ी में ले गए और पांव पडऩे/सिर झुकाने को बोले इस तरह घर वापसी करा दिए। यह घटना जिस दिन मेरे घर में आए थे उसके अगले दिन हुआ था। उन्होंने धमकी दिया कि कई ईसाई तो मरते ही हैं तुझे भी मरना होगा, अगर घर वापसी नहीं किया तो... मैं बहुत भयभीत और शर्मिन्दा हो गया था, ऐसा लग रहा था कि उस दिन मुझे मार दिया जायेगा।
उसके बाद भी मेरे द्वारा ईसाई धर्म नही छोडऩे के कारण लगातार प्रताडि़त किया जाने लगा। सरकारी स्कूल का मास्टर विमल कश्यप बोलता है कि क्रिश्चियन बच्चों को एडमिशन नहीं देना है जिस कारण हमारे बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। गांव में कुल 2 ईसाई परिवार हैं जिनका सामाजिक बहिष्कार भी किया गया है। डोंगरीपाली मुहल्ला में अन्य 16 परिवार जिनमें से कुछ परिवार सद्गुरू पंथ से जुड़े हुए हैं। गत् 5-6 सालों से ही गांव में गणेश पूजा का शुरूआत सरकारी मास्टर विमल कश्यम की अगुआई में हुआ है जो कि आरएसएस के बस्तानार ब्लॉक इकाई का अध्यक्ष भी है। मेरे द्वारा पुलिस थाना में रिपोर्ट किया गया लेकिन कोई भी कार्यवाही नहीं हुआ है। गांव में एक अन्य परिवार दसमन मण्डावी का भी है जहां टीम ने उसके बेटे जयसिंह मण्डावी उम्र 17 वर्ष से बातचीत किया।
उसने बताया कि वे लोग 3 भाई 1 बहन और माता-पिता के साथ रहते हैं। दिनांक 16 सितम्बर 2020 को गांव और इरपा गांव, मुतनेपाल, एरवार और मुसकोटा पंचायत के आदिवासी समाज के लोग आए थे और गांव के पास स्थित सरगी पेड़ के नीचे लगे जहां मेरी मां चैती को भी पुरूष लोगों ने खींचकर ले गया वहां हमें बोला गया कि ईसाई धर्म छोड़ दो नहीं तो यहां मत रहो। वहां मेरी मां के साथ मारपीट किया गया। हम लोग डरकर ऊपर पहाड़ में भाग गए थे। अगले दिन आकर फिर हमने पुलिस में शिकायत किया जहां पुलिस वालों ने हमें गांव वालों से समझौता करने को कहा।
5. टांगरू मण्डावी
50 वर्ष, निवासी लीमूपदर, पंचायत कस्तूरपाल, थाना-मरडूम, जाति-मूरिया, घटना - 16 सितम्बर 2020, घटना स्थल - लीमूपदर
हम परिवार सहित पिछले सात सालों से मसीही धर्म अनुयायी हैं। गांव में कुल 60 परिवार हैं जिसमें मसीह परिवार की कुंल संख्या 08 है। उसने बताया कि मारडूम क्षेत्र में अधिकतर माडिय़ा (गोंड) लोग रहते हैं। माडिया एवं गोड़ जाति एक ही है, बस गोत्र का अन्तर है। मुझे और मेरे दोनों बेटों के साथ गांव के मीटिंग में मारपीट किया गया तथा मेरा हाथ तोड़ दिया गया था। पीठ में एक बड़ा सा पत्थर भी लदक दिया गया था जिस कारण मुझे अस्पताल में 10'2 दिन भर्ती होना पड़ा। पुलिस केस एमएलसी भी हुआ था। पुलिस ने समझौता की कोशिश किया था और आखिर में एफ.आई.आर. हुआ जहां पुलिस ने पीडि़त के भाई को ही मनगड़ंत तरीके से आरोपी बना दिया गया तथा गांव वालों ने धमकी दिया कि यदि तुम्हारे रिपोर्ट पर हमें जेल जाना पड़ा तो तुमको मारकर ही जायेंगे। गांव वालों ने पुलिस और भाजपा समर्थित सरपंच द्वारा ग्रामीणों की उपस्थिति में बैठक हुआ उसके बाद कोर्ट में समझौता हस्ताक्षार कराकर केस खत्म कर दिया।
6. गायां कवासी
50 वर्ष, माडिय़ा, निवासी-चित्रकोट बदामपारा, थाना चित्रकोट, तहसील लोहण्डीगुड़ा, जिला बस्तर, घटना स्थल निवास गांव, घटना स्थल 6 वर्षों से लगातार
गांव में हमारा 15 एकड़ जमीन खेत है जिसमें धान बोकर परिवार का पालन-पोषण करते हैं। हमारे मसीही होने के कारण गांव वाले हमें हमारे खेतों में मवेशी छोडक़र फसलों को रौंद देते हैं तथा खुले रूप से छिन लिया जाता है, हमारे साथ मार-पीट भी किया गया जिस कारण रायपुर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, हम लोग जब पीने के लिए पानी झरना में लेने जाते हैं तो हमारे बर्तन को फेंक दिया जाता है और उस पर गैर-मसीही महिलाओं द्वारा टट्टी कर दिया जाता है। फिर भी हम लोग उसे धोकर लम्बे इन्तजार के बाद पानी लाने को मजबूर हैं।
गांव के सार्वजनिक समारोह में जब हम लोग चन्दा देना चाहते हैं तो हमें अछूत मानते हुए नहीं लिया जाता है, गांव के आम रास्तों में चलने की भी हमें मनाही है। हमारे खेत तक पहुंचने के लिए भी रास्ते की मनाही है। हम लोगों के पानी भरने के बाद वे लोग शुद्धिकरण करते हैं। नए साल, ईस्टर और क्रिसमस आदि के समय लगातार पुलिस पेट्रोलिंग होता है। गांव में अन्य पीडि़त व्यक्ति मड्डा, मोसू, समारू के साथ भी मारपीट किया गया है।
मसीही धर्म के खिलाफ भडक़ाने वाले बजरंग दल आदि से जुड़े लोग बाहर के निवासी हैं जो गांव के लोगो को बजरंग दल से जोडक़र उन्हें भडक़ाकर हिंसा कराया जाता है। मैं विगत तीन सालों से विश्वासी हूं। पुलिस में रिपोर्ट करने के बाद हमें पुलिस वालों ने एक बार माफ कर दो बोला और मामला रफा-दफा कर दिया जबकि आरोपी लोग पुलिस के सामने ही हमें जान से मारने की धमकी दे रहे थे।
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