जाति भेदभाव के खिलाफ अमेरिका में ऐतिहासिक कानून पारित
यह आदिवासियों दलितो के संघर्ष की जीत
मनोजइस कानून के बनने में कई दिलचस्प बाते रही---इसको लागू करवाने की सबसे पहले पहल एक ब्राम्हण महिला कौंसिलर क्षमा सावंत ने की और आखिरी तक लड़ती रही ---उसका इंटरव्यू और बयान देखना बहुत ही पावरफुल है. फिर जितने पंजाबी, मुस्लिम और सिख समुदाय के थे, जो भी थोड़े बहुत दलित और आदिवासी थे ( SC - ST ), ढेर सारे अम्बेडकराईट... वो सब एक साथ जुड़के इस कानून के समर्थन में आये थे. बहुत बड़े तादात में ब्राम्हण भी थे जो की मैंने पहले कभी नही देखा है.

अमेरिका में 50 लाख भारतीय रहते है. ज्यादातर अमीर वर्ग और सवर्ण जाति से है. अमेरिका और पश्चिम देशो में भारत के बारे में जो समझ है वो इसी जाति के नजरिये से है. चूँकि भारत में जाति इतना कॉम्लेक्स और भीतर तक धंसा हुआ है की इसके खात्मे के लिए कई पीढ़ी लगे, लेकिन अमेरिका में आज हमारे दोस्तो द्वारा जो हुआ है वो चमत्कारिक सा ही है.
वो कहते है ना की जाति है की जाती नही है!
अमेरिका में भी भयंकर जातिगत भेदभाव होता रहा है इंडियन सेक्टर में और हमेशा लोगो को ये बताने में भेजा खराब हो जाता था कि सब भारतीय कथित हिन्दू नही है. यहाँ पर शाखा , विश्व हिन्दू परिषद् , और भाजपा का भयंकर पैसा और पावर है. ये किसी भी तरह नही चाहते की जाति के बारे में भारत के बाहर बात हो.
आज बहुत लम्बे संघर्ष के बाद अमेरिका के एक शहर सियाटल में जाति भेदभाव के खिलाफ कानून के समर्थन में वोट दिया गया है. भले ही ये एक छोटी बात हो लेकिन इसका मतलब बहुत बड़ा होगा आने वाले समय में. अमेरिका में जो होता है उसका असर दुनिया भर में होता है इसीलिए इसका होना बहुत जरुरी था.
दक्षिण पंथ और शाखा के लोगो ने भरसक कोशिश की, जमके पैसा लगाया की ये कानून मत बने... लेकिन पूरा सिटी हाल भरा था जो जय भीम के नारो से गूँज रहा था. लोग 2 बजे रात से लाइन में लगे थे अपना गवाही देने को. हर एक को बोलने के लिए 30 सेकेंड दिया गया था ---उस 30 सेकेंड के लिए लोग कनाडा और दुसरे राज्यो से भी आये थे। लोगो को पता था कि ये 30 सैकेंड कितना महत्वपूर्ण है... शायद उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण 30 सैकेंड.
इस कानून के बनने में कई दिलचस्प बाते रही---इसको लागू करवाने की सबसे पहले पहल एक ब्राम्हण महिला कौंसिलर क्षमा सावंत ने की और आखिरी तक लड़ती रही --उसका इंटरव्यू और बयान देखना बहुत ही पावरफुल है. फिर जितने पंजाबी, मुस्लिम और सिख समुदाय के थे, जो भी थोड़े बहुत दलित और आदिवासी थे ( SC -ST ), ढेर सारे अम्बेडकराईट... वो सब एक साथ जुड़के इस कानून के समर्थन में आये थे. बहुत बड़े तादात में ब्राम्हण भी थे जो की मैंने पहले कभी नही देखा है.
ये होता है allyship मतलब सही में किसी चीज का समर्थन सही तरीके से करना। बिना allyship के कोई भी आंदोलन सफल नही हो सकता और जातिगत जो आंदोलन है उसमे प्रगतिशील सवर्णो की भूमिका जरुरी है... भारत मे लोग पावर को लेके बैठे है अपने जाति के ग़ुमान के साथ और जिनको विरोध करना चाहिए वो उनके ही राग मे ब्रेनवाश हो जाते है इसलिए ये जीत एक उदाहरण है की वो अपने जमीर पे आये और जागे मानवधिकारो के लिए.
जब लोगो के पास पावर हो कुछ करने का तो थोड़े ही सही लेकिन अच्छे लोग कितना कुछ बदल सकते है. हम सबने बहुत मेहनत की है इसके लिए --- ये संघर्ष आगे भी जारी रहेगा।
ये एक बड़का बदलाव का हवा है जो SC -ST के एकता के गठजोड़ को और आगे ले जाता रहेगा।
वर्तमान हमेशा हम सबको मौक़ा देता है इतिहास बनाने का और जब माइक खुद के हाथ में आये तो कैसे हम उस माइक का इस्तेमाल करते है. जातिविनाश की जो बात अम्बेडकर कहते थे उसका कारवां आगे भी चलता रहेगा..
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