ठेला, खोमचा और पसरा के कब्र पर शिवाजी महाराज का पार्क
सुशान्त कुमारजब से ठेला, खोमचा पसरा का अतिक्रमण कर शिवाजी महाराज के मूर्ति का अनावरण संस्कारधानी राजनांदगांव के पार्क में हुआ है, उस दिन से यहां के ठेला, खोमचा और पसरा में जाकर लिट्टी चोखा या शाम का नाश्ता का लुफ़्त उठाना बंद हो गया है। अब शाम को उस लिट्टी चोखा के कारण कुछ और नाश्ता का मन करता ही नहीं है। बहुत तलाशा वह नाश्ता वाला कहीं नजर ही नहीं आया। मालूम नहीं वह अपना गुजारा कैसे करता होगा?

16 फरवरी के ठीक पहले मैने यहां अंतिम बार शाम के नाश्ते में लिट्टी चोखा नाश्ता में लिया था। आर्थिक हालात उतनी अच्छी नहीं है कि मैं बड़े होटल या रेस्टोरेंट में जाकर नाश्ता कर सकूं। दुकानदार ने बताया था कि यहां मूर्ति स्थापना के साथ सौंदर्यकरण के कारण उनके ठेला, खोमचा और पसरा को कुछ दिनों के लिए हटाया जा रहा है।
उसके बाद एक दिन देखा कि मुख्यमंत्री ने यहां लगे ठेला, खोमचा और पसरा को हटा कर बने उनके कब्र पर शिवाजी महाराज की प्रतिमा को खड़ा कर अनावरण में पधारे हैं। पहले और अभी के तश्वीरों में काफी बदलाव आया है। पहले यहां अलग रौनक थी, लगभग सौ से ज्यादा अलग - अलग नाश्ता और अन्य वस्तुओं का ठेला, खोमचा और पसरा यहां लगता था।
मेरे जैसे आर्थिक रूप से कमजोर जो लोगों की सहयोग से अपना मीडिया हाउस चलाते हैं, यहां पहुंच कर नाश्ते का लुफ़्त तो लेते ही थे बल्कि अपनी जरूरत की समाग्री कपड़े और अन्य सामग्री भी खरीद लेते थे।
अब यहां सौंदर्यकरण के नाम पर शिवाजी महाराज की मूर्ति के साथ वहां लगे ठेला, पसरा और खोमचा के स्थान का अतिक्रमण कर पेड़ पौधे लगा दिया गया हैं। अब वहां शिवाजी महाराज पार्क में तन कर बैठे हैं और उनके सिर पर भगवा भी स्थिर खड़ा है। इससे पहले शिवाजी महाराज की स्थापना के चक्कर में डोम जमीन पर उल्टे मुंह गिर चुका है। अब उनके लिए मजबूत लोहे का फ्रेम निगम ने बनाया है। कभी शिवाजी महाराज के बारे में विस्तार से लिखूंगा। उन पर गोविंद पानसरे ने खूब सटीक लिखा है, शिवाजी कौन थे?
ठेला, पसरा, खोमचा वालों ने कई बार अपनी उजाड़ की फरियाद लेकर निगम प्रशासन के पास गए हैं लेकिन थक हार कर निगम ने वहां प्रतिबंध का बोर्ड लगा ही दिया है और ठेला, पसरा खोमचा वालों को ताकीद कर दी गई है कि वे उस अद्भुत परिसर के सामने जहां वे एक दशक से अधिक समय से अपना दैनिक रोजी रोटी कमाते थे, उस अद्भुत पार्क के इर्द गिर्द बिल्कुल नजर नहीं आएंगे और खुदा (शिवाजी महाराज पार्क) के लिए कहीं और मुंह उठाकर चले जाए?
जब मैं कुछ दिनों के बाद आसपास लिट्टी चोखा वाले को खोजा तो वह नदारत था। दो दुकानदारों को कल ही अपनी दुकान भव्य रोडरोलर जिसे अतिक्रमण कर हमारे देखने के लिए सड़क के किनारे लगा दिया है, के मुहाने लगाते देखा, तो पूछा - भाई मैं पत्रकार हूं बताएं क्या हुआ? एक दुकानदार जो अपनी मलबा को नया रूप देने में लगा था निगम के डर से क्रोधित होकर कहने लगा मैं तो दुकान लगा रहा हूं। कहने लगा - कि उल्टा सीधा मत लिखना, पहले ही लोगों ने इस पर समाचार बना दिया है उन्होंने अपने मोबाइल से पेपर कटिंग को दिखाया।
मैंने कहा तुमको तकलीफ नहीं तो मुझे क्यों होने लगा। एक अन्य कपड़े के दुकान गया, उसने अपना नाम पता नहीं बताया। हां अपनी मजबूरी का बखान किया कि उन्हें धोखा देकर हटवा दिया गया है। उसे भी रोड रोलर के किनारे दुकान लगाने की अनुमति मिली बताते हैं, कोई लिखित में नहीं।
एक गुपचुप वाला पत्रकार सुनकर गुपचुप की तरह कहने लगा - भाई फोटो ओटो मत खींचना मैं बाहर का आदमी हूं लोग कार्यवाही कर देगें।
एक ने कुछ हिम्मत जुटाया उन्होंने अपना नाम और उनके खिलाफ किए गए कारवाई पर नोटिस की कॉपी भी दिखाया। उसने कहा कि सारे दुकान को मुख्यमंत्री शिवाजी महाराज पार्क के उद्घाटन में आ रहे बता कर दो चार दिन के लिए हटाने कहा गया था, अब उनको हटवा कर निगम खुद अतिक्रमण कर यहां भव्य शिवाजी महाराज को पार्क बनवाकर स्थापित कर दिया है और ठेला खोमचा पसरा वालों को धमकाकर हटवा दिया गया है शायद इनसे पार्क का सौंदर्य प्रसाधन खराब हो जाए।
बहरहाल कुछ ठेला, पसरा खोमचा वाले वहां दुकान लगाने की कोशिश में हैं। लेकिन निगम प्रशासन का डंडा का डर उन्हें सता रहा हैं ।
अब वे अपनी दैनिक मजदूरी कैसे कमाएंगे यह बड़ा सवाल है? कइयों के घर में चूल्हा भी नहीं जल रहा होगा। पार्क में युगल जोड़ियां अठखेलिया कर रहें हैं। हां बॉय फ्रेंड जो अपनी जानम को आइसक्रीम, मोमोज, गुपचुप और तरह - तरह के चीजें खिलाते थे उन्हें अब तकलीफ होने लगी है। फोकट का विशाल प्रकाश व्यवस्था कर दिया गया है जैसे कोई कोलकाता का म्यूजियम हो।
निगम अधिकारियों और नेताओं को क्या? सभी मुख्यमंत्री को खुश करने में सफल हो गए हैं। उस दिन मुख्यमंत्री काफी व्यस्त थे, एक ओर पार्क का उद्घाटन दूसरी ओर एस्ट्रोटर्फ में हॉकी और क्या - क्या?, ओ बेचारे व्यस्तता के बोझ तले दबे क्या - क्या देख पाते?
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