लोक अउ साहित्यिक चेतना
पाँखी काटे जाही गजल संग्रह का विमोचन
राजकुमार चौधरीलोक अउ साहित्यिक चेतना एकर उपर बड़का विद्वान मन के गोठ जाने सुने बर मिलत रथे। अउ ये बिषय उपर कतको चर्चा होही कमती ही हो सकथे। आज कुछ विचार मन मा हिलोर मारिस त कुछ लिखागे। पहिली बात लोक - लोक माने आम जन मानस होथे। लोक समूह वाचक शब्द आय जेमा लिंग भेद नइ रहय। स्त्री पुरुष बुढ़वा जवान सब के समूह हर ही लोक आय। आगू के बात मा साहित्य चेतना आथे। अब यहू विचार करे जा सकथे कि आम जन मानस मा साहित्य के चेतना या चेतना मा साहित्य कइसे पनपिस होही।

एकर सुत्रधार कोन हरे, कब के हरे। अउ कतको सवाल मन मा उथत रथे। चेतना माने चेतन या जागृत अवस्था। जे हर लोक के संतुलित मानसिकता संतुलित व्यवहार ला दर्शाथे। चेतन या जागरूक अवस्था हर ही मनखे के पहिचान हो सकथे। नइते आदमी अउ पशु पक्षी मा भेद नइ रही जाही।
मानवीय विकास के प्रक्रिया मा चेतना चैतन्यता विवेक अउ विचारशीलता हर नवा सृजन नवा निर्माण बर प्रेरित करिस होही। लोक के हर विकास क्रम मा एक ठन प्रयोग हर अंतिम रूप धारण करिस होही। लोक के बीच मा आर्थिक विकास के चेतना संस्कृति अउ संस्कार के चेतना समाजिक स्वरूप के चेतना के सँग मनोरंजन के विकास बर चेतना जागिस। कभू कभू अइसे लगथे कि इन सब के कोनो न कोनो वाचिक या लिखित साहित्य हर ही चेतना जगाइस होही। हर छोटे बड़े क्रमिक विकास के प्रवृत्ति हर ही संस्कार हर बनत चले आगे।
इही क्रम मा लोक के सँग एक बड़का प्रभावशाली तथ्य जुड़े मिलथे जेला साहित्य चेतना कहे जा सकथे। इही साहित्यिक चेतना हर मानवीय विकास के मूल हो सकथे। एकरे सेती साहित्य ला समाज के दर्पण अभी से नहीं बल्कि जबले साहित्य हर विचार अउ भावना ला लोक मा एक दूसर ले बाँटे के माध्यम बनिस तब ले कहत हे ये सोच हो सकथे। साहित्य समाज ला रसता देखाथे लोक के भीतर लोक कल्याणकारी भावना जगाथे। लोक मा व्याप्त विसंगति ला दूर करे के सीख देथे। उही कारण हे कि साहित्य सदा अमर रथे। अउ समय काल परिस्थित के हिसाब ले साहित्य के अलग अलग विधा नवा सँवागा के सँग लोक के बीच आवत रथे।
मानवीय विकास के प्रक्रिया मा मनखे चेतना जागे ले डारा पाना मा तन ढकने वाला मनखे कपड़ा लत्ता के आश्रय तक आगे। अपन विचार ला लोक तक पहुंचाय बर लोगन वो तरकीब ला घलो अपनाइन जेकर माध्यम ले कमती मा जादा सरल सहज के सँग गहिरा चिंतन शीलबात ला कहे जा सके। शायद इही प्रयास के नाम हर ही साहित्य परगे। ये हमर कल्पना हो सकथे।
साहित्य के दू विधा हे एक गद्य अउ दुसर पद्य। दुनो विधा मा अपन वात ला प्रभावशाली शब्द शिल्प के माध्यम ले लोक तक रखे जाथे। शुरुआती वाचिक परम्परा से लेके लिखित अउ आधुनिक मिडिया के जमाना तक साहित्य लोक के बीच समाहित हे। या यहू कहे जा सकथे कि लोक हर साहित्य सँग जीथे। साहित्य मा सम्पूर्ण लोक कल्याण सम्पूर्ण मानवीय विकास के चिन्तनशील विषय वस्तु रथे। इही कारण हे कि लोक मा साहित्य के प्रति चेतना कतको जुग ले जुड़े हे। अउ आगू घलो जुड़े रही।
आज हम जौन पढ़त लिखत या सुनत हावन सब साहित्य चेतना के परिणाम आय। मानव समाज मा साहित्य के प्रति चेतना या लगाव नइ रही तौ ये सच हे कि सामाजिकता अउ मानवीय व्यवहार मा सुन्यता आ जही। विज्ञान के जोर ले विकास तो संभव हे फेर साहित्य के सुन्यता ले व्यवहार मा पशुता के भाव उभर सकथे। दुनिया मा सम्हल के तमड़ के रेंगे बर साहित्य रूपी गोटानी जरूरी हे।
साहित्य के प्रति लगाव सबो मनखे ला रथे। कोनो सुनेके कोनो पढ़ेके त कोनो लिखे के रूचि रखथे। विचार अउ भावना के समुन्दर मा गोता लगाके शब्द ला पिरोके लिखथे तब वो साहित्य के रूप ले लेथे। लिखित साहित्य कतको जुग ले जिन्दा रहिके समाज ला रसता देखावत रथे। अब इँहा मन मा बात उभरथे कि आज के दुषित व्यवस्था गंदगी भरे वातावरण मा साहित्य कतका सामर्थ्यवान हे। दूसर आज जौन साहित्य रचे जावत हे लोक सँग जुड़े मा कतका बलकारी हे।
साहित्यिक चेतना साहित्य के प्रति चेतना के स्तर का हे? लोक के प्रति चेतना या लगाव तभे होथे जब कोनो भाषा के साहित्य मा भाषा भाव कथ्य शिल्प अउ साहित्यिक सौन्दर्यता के दर्शन होथे। वो हर सहज रूप ले लोक सँग जुड़ जथे। उही ला लोक चेतना कहे जा सकथे। इही कारण हे कि चार लाईन के दोहासोरठा चौपाई के भाव प्रधान कथ्य हर लोक मा जगा बनाके जबान मा रमे रथे। तब अपन कथ्य ला शब्द शिल्प मा ढालके लोक तक परोसे जाथे तब जेन लगाव या जुड़ाव के भाव लोक मा अवतरित होथे उही हर साहित्यिक चेतना हो सकथे।
माने जौन लिखित या वाचिक साहित्य बर चित्त मा चिन्तन होय ले चेतना या चैतन्यता जागथे वो साहित्य हर लोक के होके मानविय विकास मा जुड़ जाथे तब कहि सकथन कि लोक के सँग साहित्य चेतना जुड़े हे। अउ हर साहित्य सृजन आ लोक के ही हर क्रिया कलाप आचार विचार व्यवहार अउ लोक जीवन के हर हिस्सा के किस्सा जुड़े रथे। तब लोक मा साहित्य चेतना कहन कि साहित्य चेतना मा लोक संदर्भ। एके बात हो सकथे।
पाँखी काटे जाही गजल संग्रह का विमोचन
विगत पाँच फरवरी को छत्तीसगढ़ी गजल संग्रह "" पाँखी काटे जाही " कृतिकार राजकुमार चौधरी रौना टेड़ेसरा का गरिमामयी विमोचन सृजन संवाद भवन त्रिवेणी संगम शा. दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगांव में सम्पन्न हुआ।
उक्त आयोजन मे अतिथि स्वरूप डा. दादूलाल जोशी साहित्यकार एवं सम्पादक विचार विन्यास, डा. शंकरमुनी राय शोध निदेशक हिन्दी ,अरुण कुमार निगम संस्थापक छंद के छ, दीनदयाल साहू सम्पादक हरि भूमि चौपाल, राजीव यदु वरिष्ठ साहित्यकार, आचार्य सरोज द्विवेदी,आत्मा राम कोसा उपस्थित थे।
अतिथियों के स्वागत सम्मान में महेन्द्र कुमार बघेल मधु द्वारा अभिनंदन वाचन संक्षिप्त एवं माधुर्यपुर्ण वाचन किया गया। साथ ही गजल संग्रह पर संक्षिप्त चर्चा भी हुई।
दादूलाल जोशी ने पाँखी काटे जाही को छत्तीसगढ़ी के लिए सार्थक प्रयास बताया। साथ ही कुछ गजलों को कालजयी निरुपित किया। दीनदयाल साहू ने संग्रह के गजल का उल्लेख करते हुए बौध्दिकता के स्तर को स्पष्ट किया।
राजीव यदु ने सत्ता समाज और आम जन-जीवन में व्याप्त विसंगति ,विडंबना और विद्रुपता पर प्रहार करने वाला संग्रह करार दिया, भाषा भाव के साथ प्रतीक और बिम्ब मे गहरी बात कहने वाला संग्रह बताया।
अरुण कुमार निगम ने राजकुमार चौधरी को छत्तीसगढ़ी गजल के एक सशक्त हस्ताक्षर बताते हुए संग्रह के भाव पक्ष को स्तरीय बताते हुए लोक और जन मानस के ह्रदय तक पहुंचने वाला कहा। विषय वस्तु की भिन्नता के साथ पाठक या श्रोता को अपनी ओर खींचने में समर्थ संग्रह कहा।
शंकरमुनी राय ने अपने वक्तव्य में कहा कि छत्तीसगढ़ी में पाँखी काटे जाही जैसे गजल संग्रह का आना छत्तीसगढ़ी साहित्य के सामर्थ्य को दर्शाता है।
सरोज द्विवेदी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि अपने अनुभव के आधार पर अंचल मे लिखित और किताब, गजल संग्रह का पहली बार आना हम सब के लिए गौरव की बात है। 'पाँखी काटे जाही' आने वाली पीढ़ी के लिए एवं हर नव कलमकार को दिशा देगी।
विचारों के समर्थन में डा. चन्द्रशेखर शर्मा, डा. संतराम देशमुख, डा. पी डी सोनकर, कैलाश श्रीवास्तव, बंशीलाल जोशी, पद्मलोचन शर्मा, अखिलेश मिश्रा, दरवेश आनन्द, सुशांत कुमार, किशोर मेहरा ,कैलाश कुँवारा अग्रणी रहे।
प्रथम सत्र का संचालन गजेन्द्र हरिहारणो दीप ने किया एवं ओम प्रकाश साहू अंकुर ने आभार प्रगट किया।
तत्पश्चात सभागार मे उपस्थित कलमकारों द्वारा सरस काब्य पाठ वीरेन्द्र तिवारी के सफल संचालन में सम्पन्न हुआ। जिसमे पुष्कर सिंह राज झलमला, इकबाल खान तन्हा मोहला, नवेद रजा दुर्ग, अमृत दास साहू डोंगरगढ़, अरविंद लाल छुरिया अनिल कसेर उजाला डोंगरगाँव, फकीर साहू फक्कड़, पवन यादव पहुना, शुभम वैष्णव ,डामेन्द्र देवदास, रामकुमार चन्द्रवंशी, मनीष साहू मन ,भूखन लाल, गजेन्द्र द्विवेदी गिरिश ,ओम प्रकाश साहू अंकुर एवं राजेश जगने आदि कवियों ने रचना पाठ किया एवं वीरेंद्र तिवारी ने आभार प्रकट करते हुए आयोजन का समापन किया।
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