सचमुच मौत ने दल्लीराजहरा के हृदय में किया आघात! 

सुशान्त कुमार

 

टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (टिस्को) का निर्माण साल 1903 में हुआ था। अंग्रेजों के बदनीयती के फलस्वरूप अकाल - दुकाल छत्तीसगढ़ की नीयति बन गई थीं। ऐसे ही अकाल के काल - कलवित होने  से बचने के लिए छत्तीसगढ़ से इतनी संख्या में लोग पलायन किया करते थे कि जमशेदपुर (टाटा) में सोनारी, भालूबासा, साक्षी, बिष्टुपुर, काशीडीह, भुईयांडीह जैसे विशाल भू - भाग को लोग आम बोलचाल में छत्तीसगढ़ प्रान्त कहते नहीं अघाते थे। इन छत्तीसगढ़ी बस्तियों में छत्तीसगढ़ से पलायन कर लोग  रोजी - मजूरी कर अपना जीवन यापन करते थे।

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अगुआ शेख अंसार ने कहा कि छुरिया विकासखण्ड के वनग्राम बादराटोला जंगल सत्याग्रह के अमर शहीद रामाधीन गोंड का पैतृक गांव है। शहीद रामाधीन के गांव से महज 7- 8 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पुर्रामटोला है। पुर्रामटोला चौधरी जी के पूर्वजों का गांव है।

पुर्रामटोला का घर - द्वार बेचकर नीदानी चौधरी (चौधरीजी के दादा) अपनी पत्नी रजोलाबाई चौधरी पुत्र आशाराम (चौधरी जी के पिताजी) को लेकर काम की तलाश में जमशेदपुर (टाटा) चले गयें।

कालान्तर में आशाराम चौधरी का ब्याह ग्राम शिकारी महका(छुरिया विकासखण्ड) की रैमूनबाई से हुआ। आशाराम चौधरी - रैमूनबाई चौधरी की छह संताने हुए चार पुत्री, दो पुत्र! पुत्रियां - भागबतीबाई, गैंदीबाई, प्रेमबतीबाई एवं श्यामबाई। पुत्र - ननकूराम और गणेशराम।

वे कहते हैं कि जमशेदपुर के भुईयांडीह में पिता आशाराम चौधरी माता रैमूनबाई चौधरी के घर 21 जुलाई 1954 को कॉमरेड गणेशराम चौधरी का जन्म हुआ था। गणेशराम चौधरी अभी केवल 4 वर्ष के थे तभी इनके माता - पिता इन्हें लेकर परिवार सहित 1959 में भुईयांडीह से कोकपुर आ गये थे। कोकपुर में छोटा सा घर लेकर रहने लगे। गरीबी - भूखमरी कहां इनका साथ छोड़ रही थीं। 1967 में चार कुरिया और आंगन से संलग्न कोकपुर के घर को बेचकर काम की तलाश में दल्लीराजहरा आ गये।

अंसार इतिहास के उन पन्नों को याद करते हुवे कहते हैं कि तर्क - ज्ञान, इतिहासबोध, सामाजिक सरोकार, शालीनता - परिश्रम के अद्भुत मिश्रण थे गणेश भैइया! उनके जीवन पर कहते हैं कि दल्लीराजहरा आकर सेठों के घर बेगारी किया, जंगल से लकड़ी चुनकर बेचा, अमानी का काम करते हुए 7 मार्च 1974 को ठेकेदारी रेजिंग मजदूर के तौर भर्ती हुए जहां से 31 जुलाई 2014 को डीपीआर (विभागीय खण्ड दर) रेजिंग मजदूर के तौर झरनदल्ली खदान से सेवानिवृत्त हो गए लेकिन चौधरी जी ने जीवनपर्यंत संघर्ष कर साबित कर दिया कि मजदूर वर्ग का योद्धा कभी रिटायर्ड नहीं होता। उन्होंने शासकीय उच्चत्तर माध्यमिक शाला, छुरिया से सत्र 1972 - 73 में हायर सेकेंडरी की परीक्षा प्रथम दर्जे से उत्तीर्ण किया था।

गणेशराम के अंतिम यात्रा में पहुंचे समीर स्वरूप मुख्य महाप्रबंधक (सीजीएम, आयरन ओर काम्प्लेक्स, दल्लीराजहरा ) संस्मरण सुनाते हुए कहते है कि सुलहवार्ता की टैबल  पर कभी भी चौधरी जी आक्रोशित नहीं होते थे न ही शालीनता का त्याग कर शांति भंग करते थे, फिर भी हम उनके तर्क - तथ्य और मांगों की जानकारी से घिर जाते थे, उनकी तैयारी और दस्तावेजीकरण से नजर चुराकर प्रबंधक वर्ग सीख लेते थे। भिलाई इस्पात संयंत्र से श्रद्धांजलि देने पहुंचे  तपनसूत्रधार (कार्यपालन निर्देशक खदान) ने चौधरी जी के तकनीकी ज्ञान एवं औद्योगिक अशांति के पूर्वानुमान की अनेकों समझाईशों का मुक्तकंठ से तारीफ करते रहे।

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के प्रमुख जनकलाल ठाकुर ने बताया कि उनकी याद में यही कोशिश रहेगी कि छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा को अब और तेजी से मजबूती प्रदान किया जाये। बाहरी और आंतरिक अंतरविरोध को सुलझाते हुवे नियोगी जी के संघर्ष और निर्माण के रास्ते पर मोर्चा को आगे ले चलना है।

राजनांदगांव छमुमो के अगुवा नेता भीमराव बागड़े जी ने कहा कि छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा को अब ठहर कर सोचने की जरूरत है, उन्होंने अपने पुराने दिनों को याद करते हुवे कहा कि हम दोनों ही महाराष्ट्र के गड़चिरौली में खदानों में काम करने वाले लोगों के नियमितिकरण के लिये काम किया है। 

कांग्रेस के आदिवासी नेता रतिराम कोसमा ने बताया कि गणेश राम चौधरी ट्रेड यूनियन के किताब थे। वे असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों की समस्याओं को बहुत ही बारिकी से समझते थे। समस्या का समाधान कैसा होगा इस बात का ख्याल वे रखते थे। बीएसपी (भिलाई इस्पात संयंत्र) के अधिकारी भी जब समस्याओं में फंस जाते थे तो उन्हें बुलाकर सलाह लेते थे।

जो भी व्यक्ति उनके करीब रहे हैं, समझे हैं या पढ़े हैं अर्थात चौधरी जी के काम काजों पर ही चले तो मजदूरों की समस्याओं का समाधान बड़ी आसानी से होगा। उनके रास्तों पर चलकर अब मोर्चा और मजबूत हो सकेगा।

छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के अध्यक्ष सोमनाथ उइके ने कहा कि ट्रेड यूनियन में आने का रास्ता है जाने का नहीं। जिस तरह नियोगी जी ने अपना पूरा जीवन छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ के बीच आकर अपनी सेवा और कुर्बानी दी उसी तरह से नियोगी जी के पदचिन्हों में चलते हुवे शहीद चौधरी जी ने भी अपना जीवन रेजिंग मजदूर से शुरूआत करते हुवे टे्रड यूनियन का कार्यभार सम्हालते हुवे अपने रिटायरमेंट के बाद भी कार्य करते रहें। जब रिटायरमेंट के बाद लोग अपने घर लौट जाते हैं तब वे अपनों मजदूर साथियों को जागरूक करते रहे, अपने जिम्मेदारियों का निर्वहन किया।

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के नेता बसंत साहू ने कहा कि उनसे अंतिम मुलाकात दिसम्बर में हुई उन्होंने माईन्स के बारे में बताया कि योजनाओं को लागू करने दूर से वॉच कर रहा हूं। कुछ कुछ जगह पर कमजोरी की बात भी की। स्वास्थ्य के संबंध कहा था कि सीने में कभी कभी दर्द होने लगता है। गांव में समय पर किसानी का अभाव तथा सोसायटी में धान बेचने जाना है इसके लिये समय का अभाव है।

बसंत कहते हैं कि मैं दल्ली राजहरा में 1987 से लगभग 3 साल चौधरी भैया के साथ एक कार्यकर्ता के रूप में संगठन के लिये कार्य करने लगा तो इस दौरान उन्हें साधारण कार्यकर्ता से ट्रेड यूनियन के नेतृत्वकर्ता नेता के रूप में आगे बढक़र देखा और उस दौरान उनके साथ कार्य करने और सीखने का मौका भी मिला। 

उन्होंने कहा कि नियोगी जी जब उनकी आवश्यकता होती तो मुझे उन्हें घर जाकर बुलवाने को भेजते। यह मेरे लिये कुछ कार्यों में से एक हुवा करता था। नियोगी जी पहले इशारा भी करते कि चौधरी जी के साथ कार्य करना है। चौधरी भैया के नेतृत्व में ट्रेड यूनियन कुशलता को सभी साथी, टे्रड यूनियन नेता एवं बीएसपी मैनेजमेंट को भी मानना पड़ा, जो उनके आखिरी दर्शन में भी देखने को मिला। वे सीधे सरल थे। उनकी मृत्यु हमारे लिये अपूरणीय क्षति है।

उन्होंनेे नियोगी जी के साथ कार्य कर उनके विचारों को जीने का प्रयास किया। ऐसे इंसान का जाना पूर्णविराम नहीं, यह अल्प विराम है क्योंकि अब हमें उनके समस्त कार्यों का विश्लेषण कर सिर्फ आगे बढऩे की जरूरत नहीं बल्कि उनके कार्यों को विकसित करने की अति आवश्यक है, यह सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

जन मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष जीत गुहा नियोगी ने कहा कि यहां दल्ली राजहरा में मजदूर किसान, व्यापारी, समाज प्रमुखों की खासियत रही है कि जब कभी यहां किसी का निधन हो जाता है तो सभी पारिवारिक रिश्तों को निभाते हुवे इकट्ठे हो जाते हैं। हम छोटे छोटे थे तब यहां मजदूरों की बस्ती हुवा करती थी और उनका आंदोलन होता था, तब कौन घर लौटेगा उसकी गारंटी नहीं होती थी।

ठाकुर जी, हो, चौधरी जी हो, या फिर शंकर गुहा नियोगी इसमें से किसी के भी जीवन की कोई गारंटी नहीं थी कि वे घर लौटेंगे! हम छोटे थे तो हमने देखा वे संघर्षो में लगे रहते थे आंदोलन करते थे, गोली चलती थी और जीत कर लौटते थे। गणेशराम जी उस संघर्ष के सिपाही थे। और युवाओं को उन लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए जो घर परिवार को छोड़ संघर्ष का रास्ता अपनाते हैं। 

शहीद अस्पताल के मशहूर डॉक्टर शैबाल जाना ने कहा कि हम जल्द ही उनकी याद में एक स्मरण सभा का आयोजन करेंगे। मेरा उनके साथ अच्छा संबंध था। वे अस्पताल के मुख्य बॉडी के मेम्बर में से एक थे। उनसे विभिन्न विषयों में बातचीत होती थी। वे लगातार बिना थके काम करते थे और विभिन्न विषयों में उनका अध्ययन भी काफी गहरा था। 

पूर्व शिक्षक और भारतीय बौद्ध महासभा के नेता हेमंत कांडे ने बताया कि गणेश राम चौधरी ट्रेड यूनियन को संचालित करने के समस्त गुणों को धारित कर अर्ध मशीनीकरण के पैरोकार थे, ताकि लोगों को रोजगार प्राप्त होता रहे। वे औद्योगिक कारखानों से मजदूरों की छटनी, निजीकरण, पूंजीवाद और ठेकेदारी प्रथा के घोर विरोधी थे। शासन प्रशासन व मैनेजमेंट को मजदूरों के हक अधिकार और वेजेज को दिलवाने वाले बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। 

चौधरी जी नियोगी की विरासत को संभालने वाले एक परिपक्व, संयमी, साहसी, निर्भीक व सूझबूझ से किसान मजदूर आम जनता की एकता को कायम रखते हुए श्रमिकों के जीवन को सम्मुनत बनाने के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। छत्तीसगढ़ ने मजदूर संगठन के इतिहास में एक कुशल संगठक, संघर्षशील योद्धा, मजदूर हितैषी व्यक्तित्व को खो दिया है। जिसकी क्षतिपूर्ति असम्भव है। उनके अंतिम यात्रा में उमड़ा जान सैलाब इसका जीता जागता उदाहरण है।

शेख अंसार कहते हैं कि गणेशराम चौधरी नियोगी जी के हत्या के बाद से 27 फरवरी 2022 तक ‘छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ’ के अध्यक्षीय कार्यभार को बखूबी संभाला, अनेक हड़तालों, संघर्षो, रेल रोको सत्याग्रह में अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर नेतृत्व प्रदान किया।

वह चौधरी जी ही थे जिन्होंने वैचारिक मतभेदों और व्यवहारिक अड़चनों के बावजूद विभिन्न श्रमिक संघों को संघर्ष के मैदान में संयुक्त रूप से उतारा एवं वर्गीय दुश्मन जो मुखौटे के छिपे हुवे थे, उनके मुखौटे को नोचकर बेपर्दा किया।

उन्होंने पुर्रामटोला का वंशज भुईयांडीह में मां रैमून की गोद में पहली किलकारी लिया था। आईओसी ऑयरन ओर कॉम्पलेक्स के इस्पात नगरी दल्लीराजहरा में 30 जनवरी 2023 को गगनभेदी नारों के साथ हजारों - हजार साथियों को सदा के लिए अलविदा कह दिया।


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