फतेहपुर में ईसाइयों पर पुलिस उत्पीडऩ और देशवासियों के नाम पत्र

ब्रॉडवेल ईसाई अस्पताल की हैरान कर देने वाली सच्ची कहानी

दक्षिण कोसल टीम

 

पहले 14 अप्रैल 2022 की घटना के अनुसार जब कई कर्मचारी शांतिपूर्ण तरीके से इस धर्म से जुड़े गुरुवार की सेवा में भाग ले रहे थे, तब एक भीड़ ने चर्च के दरवाजों को बंद कर दिया और आरोप लगाया कि अंदर जबरन धर्म परिवर्तन हो रहा था। पुलिस बयान लेने के बहाने चर्च के सदस्यों को थाने ले गई, जहां उन्हें अवैध रूप से हिरासत में रखा गया। अगली सुबह एक झूठी प्राथमिकी दर्ज की गई और 26 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद शनिवार की रात सभी आरोपी जमानत पर रिहा हुए।  

शुरुआत में धर्मांतरण की सुविधा के लिए ईसाईकृत आधार कार्ड बनाए जाने की झूठी कहानियों का इस्तेमाल का उपयोग कर मामलों को उछालने का प्रयास किया गया, उसके बाद पुलिस बल बड़ी संख्या में अस्पताल पहुंचती है यहीं से पुलिस प्रताडऩा शुरू होती है। कर्मचारियों के साथ मरीजों की गरिमा का ख्याल किए बिना लंबे समय तक पुलिस झूठी छापेमारी का कार्य शुरू करती है और अस्पताल का काम बाधित किया जाता है। 

कर्मचारियों को कई बार आतंकित किया गया है और गंदी भाषा में गाली गलौच करते हुवे उनके साथ दुव्र्यवहार किया गया है। इसके बाद पुलिस झूठे आरोपों के साथ झूठी प्राथमिकी दर्ज कर ईसाइयों के घरों को तोडऩे की कू्रर कार्यवाही करते हुवे निर्दोष परिवारों को प्रताडि़त कर रही है। 

यहां कि पुलिस ने झूठे आरोपों को पुख्ता करने के लिए झूठे सबूत गढ़े। पुलिस ने सीनियर डॉक्टरों को डराया-धमकाया और उनसे फर्जी दस्तावेजों पर दस्तखत करवाए। उन्होंने बिना किसी कारण के उनके मोबाइल फोन जब्त कर लिए। पुलिस अधीक्षक ने आरोपियों को सुना तक नहीं, बल्कि सीधे सभी कर्मचारियों को सलाखों के पीछे डाल दिया।

एक अलग धर्म के सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मचारी को 24 घंटे से अधिक समय से हिरासत में रखा गया है। पुलिस उसे यह गवाही देने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रही है कि अस्पताल उसकी धर्म बदलने की कोशिश कर रहा है। उनकी पत्नी शिकायत दर्ज कराई है और पुलिस के डर से कहीं छिप गई है। 

हमें डराने और डराने की कोशिश में नई एफआईआर तेजी से दर्ज किये जा रहे हैं। लेकिन हम दृढ़ता से खड़े रहेंगे, सेवा करना जारी रखेंगे, अच्छा काम करना जारी रखेंगे और जरूरतमंद लोगों के बीच मसीह की प्रेम को बांटना जारी रखेंगे। 

फतेहपुर यूपी के दक्षिणी भाग में लखनऊ और इलाहाबाद से 3 घंटे और कानपुर से 2 घंटे की दूरी पर स्थित एक जिला है। यहां ‘ब्रॉडवेल क्रिश्चियन अस्पताल’ साल 1909 में शुरू किया गया था। आधी सदी से भी अधिक समय तक यह पूरे जिले का एकमात्र स्वास्थ्य सुविधा केन्द्र है। 1970 के दशक के बाद ही सरकारी अस्पताल और निजी नर्सिंग होम सामने आए। फिर भी अस्पताल न केवल जिले के लिए बल्कि आसपास के कुछ अन्य जिलों के लिए भी अक्सर सर्वोच्च स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने का एकमात्र केंद्र है। 

गौरतलब बात है कि इसने लगभग 120 वर्षों में सभी कठिन परिस्थितियों के बीच मसीह तथा परमेश्वर के प्रेम को प्रदर्शित करने और घोषित करने का प्रयास किया है। 11 वर्षों (2008 - 2019) के लिए इस अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक, सलाहकार सर्जन और चिकित्सा व्यवसायी के तौर पर और अब प्रबंध निदेशक के रूप में मुझे लगा कि पिछले 10 महीनों में जो कुछ हुआ है उसका समयानुसार सिलसिलेवार घटनाक्रम का वर्णन करना जरूरी है। 

आम जनता के जानकारी के लिए फतेहपुर में यह याद दिलाना महत्वपूर्ण है कि हम एक ऐसे देश में रहते हैं जिसका संविधान का अनुच्छेद 25 में प्रत्येक व्यक्ति को अंत:करण की स्वतंत्रता का अधिकार देता है और सार्वजनिक आदेश, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार देता है। और संविधान का अनुच्छेद 26 में सभी संप्रदायों को धर्म के मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार प्रदान करता है।  

14 अप्रैल 2022 को अस्पताल के कई ईसाई कर्मचारी अस्पताल से 5 मिनट की पैदल दूरी पर स्थित ईसीआई (पंजीकृत इवेंजेलिकल चर्च ऑफ इंडिया) चर्च में गुरुवार शाम को ईसाई धर्म सेवा के कार्य में भाग ले रहे थे। अचानक लगभग 50 लोगों की भीड़ ने चर्च को घेर लिया, गेट बंद कर दिए और नारे लगाए और आरोप लगाया गया कि उस समय चर्च के अंदर जबरन धर्मांतरण हो रहा था! 

कोई भी जो एक जरूरी काम के लिए चर्च में गया है वह समझेगा कि जबरन धर्मांतरण की जा रही होगी! इसके अलावा वहां उपस्थित सारे लोग पंजीकृत ईसाई थे! पहले भी इस तरह की भीड़ चर्च में घुस आई थी और लोगों को पीटा था। जिसके लिए एफआईआर भी दर्ज कराई गई है। 

पुलिस की शर्मनाक हरकत 

जब पुलिस को बुलाया गया तो उन्होंने शांतिपूर्ण चर्च-अटेंडरों की रक्षा करने के बजाय आश्चर्यजनक रूप से उपद्रवी भीड़ का पक्ष लिया। लोगों के बयान लेने के नाम पर चर्च के सभी लोगों को थाने ले गये। हालांकि कोई बयान दर्ज नहीं किया गया और इसके बजाय सभी ईसाइयों को पुलिस स्टेशन में अवैध रूप से हिरासत में रखा गया। जिला प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद रात एक बजे तक नाम लिखवाकर 19 महिलाओं और एक नाबालिग बालिका को छोड़ा गया। बाकी लोगों को रात भर हिरासत में रखा गया। गुड फ्राइडे के शुरुआती घंटों में 35 लोगों को रिहा किया गया  और 20 अज्ञात लोगों के खिलाफ एक झूठी प्राथमिकी दर्ज कर ली गई। 

रात में अवैध रूप से हिरासत में लिए गए लोगों को जमानती धाराओं के तहत रिमांड पर जेल भेज दिया गया तथा गैर-जमानती आरोपों में फंसाने का प्रयास किया। इसके अलावा उन्होंने सभी का आधार कार्ड ले लिया और निर्दोष पीडि़तों को मानसिक रूप से प्रताडि़त किया, लेकिन वे अपने आरोपों को सिद्ध नहीं कर सके। 

पुलिस को मजबूरन सभी आरोपियों को शनिवार रात तक जमानत पर रिहा करना पड़ा। शुरुआती प्रयास में गलती को सही ठहराने का प्रयास अगले कुछ हफ्तों के दौरान चलता रहा। उपद्रवियों ने यह कहते हुए एक झूठी कहानी गढ़ी कि उन्हें दो आधार कार्ड मिले हैं, जिनमें माना जाता है कि गैर-ईसाई नामों को जबरन धर्म परिवर्तन के बाद ईसाई बनाया जा रहा था। बाद में ‘द प्रिंट’ के स्वतंत्र पत्रकारों द्वारा इसकी पुष्टि की गई कि आधार कार्ड के दो मालिकों से भूमि संबंधी कुछ मामलों के बारे में विरोधी गुटों के सदस्यों द्वारा संपर्क किया गया था और उनका विवरण प्राप्त करने के बाद ईसाई नामों के साथ कुछ नकली आधार कार्ड बनाने की कोशिश कर रहे थे। 

विरोधी समूह जबरन धर्मांतरण की कहानियों के साथ कई झूठे गवाह पेश करते रहे और पुलिस पूछताछ के नाम पर ईसाई चर्चों के साथ-साथ अस्पताल के संचालन को भी प्रभावित करते रहे। 

उत्पीडऩ आगे बढ़ता है

13 अक्टूबर 2022 को एसएचओ अमित मिश्रा के नेतृत्व में लगभग 50 पुलिस कर्मी लगातार अस्पताल के कामों को बाधित करते हुवे मांग करते हैं कि जिन महिलाओं और बच्चों के नाम एफआईआर में दर्ज हैं, उन्हें उनके सामने पेश किया जाए। जब अस्पताल के अधिकारियों और वरिष्ठ कर्मचारियों ने आरोपियों को इक_ा करने के लिए थोड़ा समय मांगा, तो पुलिस जबरन दो वरिष्ठ डॉक्टरों (चिकित्सा अधीक्षक सहित) और दो वरिष्ठ कर्मचारियों को थाने ले गई। 

राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों के हस्तक्षेप पर चिकित्सकों और एक वरिष्ठ कर्मचारियों को रिहा कर दिया। अन्य वरिष्ठ कर्मचारी, जो अस्पताल के पीआरओ भी थे, को फिर से अवैध हिरासत में ले लिया गया क्योंकि उनका नाम एक अन्य प्राथमिकी में झूठे आरोप में दर्ज कर लिया गया था। बताया जाता है कि उन्होंने अस्पताल में आए दो पुलिस कर्मियों पर शारीरिक हमला किया था और भागने की कोशिश की थी। ये दोनों आरोप झूठे थे क्योंकि वह एक पीआरओ के रूप में केवल अपना काम कर रहा था और सामने खड़े होकर 50 पुलिस बल (दो नहीं) से बात कर रहे थें। 

फिर पुलिस ने विभिन्न झूठे गवाह पेश कर जबरन धर्मांतरण से संबंधित गैर जमानती धाराओं के तहत सभी पर नए झूठे आरोप लगाए। अदालत में आरोपियों के वकील को अपना पक्ष रखने की अनुमति तक नहीं दी गई और विरोधी पक्षों द्वारा प्रस्तुत झूठी कहानी के आधार पर उन्हें जेल भेजने का निर्णय लिया गया। इसके अलावा उनकी रिहाई के लिए सभी जमानत आवेदनों को या तो स्थगित कर दिया गया या खारिज कर दिया गया। 

फतेहपुर जेल में 79 दिन गुजारने के बाद अंतत: माननीय उच्च न्यायालय से जमानत नहीं मिली। अन्याय और उत्पीडऩ के इन चरम कृत्यों के बावजूद अस्पताल ने उन लोगों की देखभाल करना जारी रखा जो अस्पताल में इलाज के लिये आते रहे। पीडि़तों के मनोबल टूटने की उम्मीद बढ़ रही है। लगभग रोजाना उपद्रवी और पुलिसकर्मी अस्पताल के कामकाजों को प्रभावित कर रहे हैं। 

30 अक्टूबर 2022 (रविवार) को अमित मिश्रा के नेतृत्व में करीब 100 पुलिसकर्मी अस्पताल परिसर में घुस आई और अस्पताल परिसर के पीछे का गेट बंद कर दिया। उन्होंने अस्पताल के कर्मचारियों और प्रार्थना कक्ष में प्रार्थना कर रहे परिवारों के एक समूह को जबरन रोका। उन्होंने मरीज के परिजनों को अंदर खाना ले जाने से रोका जिससे मरीजों को इस दौरान भूखा ही रहना पड़ा। सीसीटीवी कैमरे के फुटेज में आपातकालीन मरीजों को प्रसव पीड़ा में दिखाया गया है। मरीजों को अस्पताल के गेट से वापस चले जाने के लिए मजबूर किया गया क्योंकि कर्मचारियों को मरीजों से मिलने की अनुमति नहीं थी। उन्होंने अस्पताल के आवश्यक काम को भी बाधित किया और कर्मचारियों और मरीजों को आतंकित किया। 

पुरुष पुलिस कर्मी लेबर रूम में दाखिल हुए जहां एक मरीज की डिलीवरी हो रही थी। वे अपने जूते और बाहर के कपड़ों के साथ ऑपरेशन थियेटर में चले गए और ऑपरेशन थियेटर से स्त्री रोग विशेषज्ञ और अन्य कर्मचारियों को जबरदस्ती पूछताछ के लिए बुलाया गया। इस दौरान चिकित्सकों के कामों में रूकावट डालते हुवे स्त्री रोग विशेषज्ञ और एनेस्थेटिस्ट से पूछताछ की गई। इमरजेंसी सर्जरी के लिए आए एक मरीज को दूसरे अस्पताल में रेफर करना पड़ा क्योंकि सीसीटीवी फुटेज से सबूत के तौर पर डॉक्टरों से पूछताछ की जा रही थी।

एक अन्य अस्पताल के एक वरिष्ठ प्रबंधक, जो इस संकट की स्थिति में मदद करने के लिए आए थे, उनके साथ मारपीट की गई और उन्हें जबरदस्ती पुलिस जीप में डाल दिया गया और उन्हें थाने ले जाया जाने वाला था। ये सभी घटनाएं बिना किसी वारंट के हुईं और पुलिस ने उन्हें तभी छोड़ा जब वरिष्ठ जिला और राज्य अधिकारियों (पुलिस अधिकारियों सहित) ने हस्तक्षेप किया और बल को तत्काल वापस बुलानेे का आदेश दिया। 

झूठे आरोपों का सिलसिला अमित मिश्रा अपने पुलिस बल के साथ लगभग प्रतिदिन कथित तौर पर जांच के लिए या काल्पनिक अपराधियों की तलाश में आकर करते रहते हैं। कभी-कभी जबरन धर्मांतरण में फंसे लोगों की तलाश करने के बहाने पुरुष पुलिसकर्मी रात में भी कर्मचारियों के घरों में घुस जाते हैं। एक रात, उन्होंने बिना सर्च वारंट के अस्पताल के कार्यालय में जबरदस्ती तलाशी ली और अस्पताल की फाइलों और रजिस्टरों से जबरदस्ती स्टाफ और अन्य लोगों की जानकारियां ले ली। 

इन सभी पुलि ऑपरेशनों में वह कर्मचारियों और अस्पताल के अधिकारियों को पुलिस के साथ असहयोग करने पर गिरफ्तार करने और जेल भेजने की धमकी देते रहे। यहां तक कि उन्होंने आतंकवाद विरोधी दस्ते को भी बुलाया और उन्हें आरोपी कर्मचारियों के घरों, यहां तक कि अन्य राज्यों में भी भेज दिया। 

एक 18 वर्षीय छात्र जो अस्पताल के कर्मचारियों में से एक का बेटा है, जो इलाहाबाद के एक विश्वविद्यालय में बीएससी नर्सिंग पाठ्यक्रम का प्रथम वर्ष का पढ़ाई कर रहा था, उसे कॉलेज से गिरफ्तार किया गया। धर्मांतरित ईसाइयों के लिए फर्जी आई कार्ड बनाने का एक झूठा आरोप लगाया गया था कि उनके कमरे में ऐसे आधार कार्ड पाए गए थे। उसे वापस फतेहपुर लाया गया और उसके माता-पिता और उसके 11 वर्षीय भाई को फंसाने के प्रयास में पुलिस लॉक-अप में पीटा गया, जो गुरुवार को चर्च में थे और जिनका नाम प्राथमिकी में दर्ज था, इसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया। 

अफसोस की बात है कि इस तरह के निराधार आरोप के लिए केवल एक महीने जेल में रहने के बाद ही जमानत मिल सकी। अभी भी लगभग 6 महिलाएं ऐसी हैं जिनकी जमानत अभी तक नहीं मिली है, जिनमें से एक 18 वर्ष की कॉलेज की छात्रा है जो दूसरे राज्य में पढ़ती है। बढ़ते अन्याय और कू्ररूरता के बीच उपद्रवी भीड़ ने फतेहपुर के अन्य चर्चों में सिलसिलेवार हमलों के कार्य को अंजाम दिया है। 

ईसीआई चर्च के पादरी को रविवार की सेवा करते हुए गिरफ्तार किया गया था और उन्हें जबरन ‘धर्मांतरण मास्टर माइंड’ पादरी घोषित किया गया था। एजी चर्च के पादरी को एक रात पूछताछ के लिए बुलाया गया और वह कभी वापस नहीं आया। उचित मुकदमे के सुनवाई के बिना वह अब भी जेल में हैं, उसकी सभी सुनवाई या तो किसी अन्य तारीख के लिए स्थगित कर दी गई है या जमानत याचिकाएं खारिज कर दी गई हैं। 

जबरन धर्मांतरण के आरोप में कई अन्य दूसरे चर्चों के कई पादरियों और एल्डर्स को गिरफ्तार किया गया और अन्य जिलों में भी ईसाइयों की इस तरह गिरफ्तारी की जा रही है। 

पुलिस उत्पीडऩ की कहानियां

कलीसिया के एक बुजुर्ग के छोटे बच्चों वाले एक परिवार को एक दिन नहीं बल्कि कई दिनों तक परेशान किया गया। कड़ाके की ठंड के बीच पुलिस ने घर से सब कुछ जब्त कर लिया, यहां तक कि बच्चों के कपड़े भी। दो दिन बाद पुलिस के जवानों ने आकर उनके मकान को तोड़ दिया। 

ईसाइयों के खिलाफ हास्यास्पद तरीकों से आरोप लगाते हुवे कई झूठे गवाह खड़े किए गए। लगभग सभी चर्चों को बंद कर दिया गया था और विशेष रूप से रविवार की सुबह लोगों को पूजा करने से रोकने के लिए पुलिसकर्मियों को चर्चों के सामने पहरेदारी के लिये रखा गया था। पुलिस ने थाने में रहने के दौरान अपने प्रियजनों को खाना देने गए लोगों के रिश्तेदारों को भी गिरफ्तार कर लिया। 

विडंबना देखिये मीडिया ने दुर्भावना से इस पूरे ऑपरेशन को ‘देश में जबरन धर्मांतरण के रैकेट का सबसे सफल भंडाफोड़’ बताया।  इस साल 2 जनवरी, 2023 को अमित मिश्रा व टीम ने बिना किसी वारंट के सामुदायिक स्वास्थ्य विभाग में छापा मारा और मौखिक रूप से यह घोषणा की कि वह अदालत के आदेश के तहत ऐसा कर रहे हैं। तलाशी वारंट न होने पर जब उन्हें चुनौती दी गई तो उन्होंने एक वरिष्ठ अधिकारी से फोन पर बात की और उस वरिष्ठ अधिकरी के बार-बार समझाने के बावजूद कि उनके पास यह तलाशी करने का अधिकार नहीं है, उन्होंने तीन कंप्यूटरों की हार्ड डिस्क तथा रजिस्टर जब्त किये और गालियां दी। 

हमारे सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मचारियों में से आधे से अधिक ईसाई नहीं हैं और उनमें से प्रत्येक ने गरीबों और वंचितों के उत्थान के लिए कड़ी मेहनत की है। दुर्भाग्य से, उपद्रवी संगठनों ने ईसाईयों द्वारा किए गए सभी अच्छे कार्यों को ‘जबरदस्ती धर्मांतरण’ के रूप में परिभाषित कर रहे हैं। हम पर सीधे साधे लोगों को लुभाने का आरोप गढ़ा जाता है। बिना यह जाने कि हम जो भी अच्छा करते हैं वह केवल गरीबों और हाशिए पर खड़े लोगों के लिये प्यार और चिंता से बाहर आने के लिये करते हैं, जिनकी कोई और परवाह नहीं करता है! 

अगले दिन से पुलिस ने हार्ड डिस्क से प्राप्त तस्वीरों की मदद से मीडिया को जबरन धर्मांतरण की बिल्कुल मनगढ़ंत कहानियां देनी शुरू कर दी। अगले ही दिन उन्होंने सोसायटी के चेयरमैन डॉ. मैथ्यू सैमुअल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा ली, जिनकी अग्रिम जमानत भी सत्र न्यायालय से खारिज हो चुकी है। 

आज भी फर्जी सबूतों को इकट्ठा करना डॉक्टरों को धमकाना जारी है। 18 जनवरी को अमित मिश्रा ने फिर से आकर लेखा विभाग में संदिग्ध सर्च वारंट के सहायता से छापा मारा और फिर से पूरे अस्पताल के कंप्यूटर और हार्ड डिस्क को जब्त कर लिया। इस बीच ‘सीएच कार्यालय’ ने विभिन्न स्थानों में लगभग 100 पर्चे लगाए। जिसमें ईसाई होने के लाभों (अस्पताल और अन्य ईसाई संगठनों में नौकरी पाने, ईसाई स्कूलों में अपने बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा प्राप्त करने और उच्च शिक्षा संस्थानों में पढा़ई के महत्व के बारे में बताया गया था) और ईसाई कैसे बनें? का प्रचार किया। 

इन पैम्फलेटों को लगाने के बाद पुलिस ने चिकित्सा अधीक्षक और लगभग 4 अन्य कर्मचारियों को परेशान करना शुरू कर दिया और मौखिक रूप से उन्हें यह कहते हुए गाली दी कि पैम्फलेट साबित कर रहे हैं कि वे ‘धर्म परिवर्तन’ कर रहे हैं। महिला कर्मचारियों को शौचालय जाने की अनुमति नहीं थी और एक महिला डॉक्टर ने जब अपने बच्चे को भोजन देने जाने की अनुमति मांगी तो उसे पुलिसकर्मी के सामने बैठकर खाना खिलाने के लिए कहा गया। 

अमित मिश्रा ने चिकित्सा अधीक्षक के साथ लगभग मारपीट की और पर्चे पर हस्ताक्षर नहीं करने पर उन्हें गिरफ्तार करने की धमकी दी गई। अंत में उन्हे और उनकी पत्नी के खिलाफ हिंसा की गंभीर धमकी के साथ जो कमरे में थी, उन्होंने उसे पैम्फलेट के साथ जब्त कर सभी वस्तुओं को सूचीबद्ध करने वाले एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया। 

इसके बाद पुलिस ने चिकित्सा अधीक्षक सहित वरिष्ठ कर्मचारियों के निजी फोन बिना किसी वारंट के जब्त कर लिए और उन्हें अभी तक वापस नहीं किये हैं। उस शाम पूरे स्टाफ ने फतेहपुर जिले के एसपी के पास जाकर अपनी शिकायत दर्ज कराने का फैसला किया। लेकिन पुलिस बल ने उन्हें बीच में ही रोक लिया और उनके साथ मारपीट की। 

अन्य धर्मों का मिला समर्थन

अन्य धर्मों के अस्पताल के कई कर्मचारियों ने भी पुलिस से बहस की और अस्पताल का बचाव किया। लेकिन पुलिस ने उन्हें वापस भेजने के लिए बल प्रयोग किया और धमकी दी कि जमानत पर छूटे सभी लोगों को फिर से गिरफ्तार कर लिया जाएगा। अगले दिन कर्मचारी शांतिपूर्ण ढंग से पुलिस अधीक्षक के पास गए, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई, बल्कि गालियां देने लगे और धमकियां दी गई कि वह उनमें से प्रत्येक के साथ और अस्पताल पर प्राथमिकी दर्ज कराएंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि उनमें से प्रत्येक को सलाखों के पीछे भेजा जाएगा। 

पुलिस उन पर जबरन धर्मांतरण की गंदी हरकत करने का आरोप लगाया और यहां तक आरोप लगाया कि पिछली शाम अस्पताल के कर्मचारियों ने एसपी पर हमला करने का प्रयास किया था। 

ताज़ा घटना 20 जनवरी 2023 की है। विभाग के गैर-ईसाई समुदाय के एक कर्मचारी को पुलिस स्टेशन बुलाया गया और उसे अस्पताल के खिलाफ गवाह बनने का आदेश दिया गया। पुलिस ने आरोप लगाते हुवे दावा किया है कि अस्पताल के कर्मचारियों ने इस मामले में कुछ ना करने की बात कि थी लेकिन पुलिस इस झूठ का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया। इसके बाद पुलिस ने हमारे लोगों को जाने दिया लेकिन कहा कि उन्हें दोबारा बुलाया जाएगा। 

जैसा कि प्रबंध निदेशक ने पहले से ही अपनी वार्षिक छुट्टी की योजना बनाई थी, और प्रशासनिक जिम्मेदारियों से हटने की भी इच्छा रखते थे, मुझे नेतृत्व द्वारा अस्पताल का प्रभार लेने के लिए बुलाया गया था। मैं कल दोपहर 1:00 बजे लखनऊ पहुँचा और अचानक सामुदायिक विभाग के कर्मचारी, जो अस्पताल के प्रति बहुत वफादार हैं और एक अनुकरणीय कर्मचारी हैं, ने मुझे यह कहते हुए बुलाया कि पुलिस उन्हे और उनके परिजनों को फिर से थाना बुला रही है और उन्हें धमकी दे रही है और उन्हें थाना आने के लिए कहा गया है। 

थाना फतेहपुर पहुंचने के बाद जब मैंने उसे फोन करने की कोशिश की लेकिन तब उस व्यक्ति का फोन स्विच ऑफ था। वह एक उत्पीडि़त जाति के बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखता है और अस्पताल से लगभग 10 किमी दूर एक गांव में रहता है। देर रात तक हम उसका इंतजार करते रहे। आखिरकार हमें पता चला कि पुलिस और उपद्रवी उसे परेशान कर रहे थे और थाने में हमारे खिलाफ झूठी गवाही देने के लिए लगातार प्रताडि़त कर रहे थे। 

जब उनकी पत्नी को इस बारे में पता चला तो उन्होंने ऑनलाइन एफआईआर दर्ज कराने का फैसला किया। यहां तक कि वह मानवाधिकार आयोग के प्रभारी को फ़ोन पर अपनी शिकायत मौखिक रूप से दर्ज कराने के लिए भी उत्सुक थी। यह लिखे जाने तक कर्मचारी को रिहा नहीं किया गया है और उसकी पत्नी इस आशंका और  डर से छिप गई है कि जब पुलिस को पता चलेगा कि उसने शिकायत दर्ज की है तो वह क्या करेगी? इस बीच इस कर्मचारी के परिजनों में चाचा मुझे नियमित रूप से शुरू में सौहार्दपूर्ण ढंग से फोन करते रहे हैं लेकिन अब मुझे वह व्यक्ति धमकी दे रहे हैं और मुझ पर आरोप लगा रहे हैं कि मैंने कथित तौर पर उनकी पत्नी को शिकायत दर्ज कराने के लिए मजबूर किया और उसे छिपने के लिए जिम्मेदार हूं। 

झूठी एफआईआर बनना

आज शाम को खबर मिली है कि एक नए व्यक्ति ने उस पीडि़त व्यक्ति के परिजनों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है जिन पर अप्रैल में प्राथमिकी दर्ज की गई थी और इसके अलावा स्थानीय ईसाइयों के कुछ नए नाम और साथ ही 20 अज्ञात लोगों के नाम को भी शिकायत में शामिल किया गया है।

यह प्राथमिकी ईसाई धर्म के पुण्य गुरुवार सेवा के दौरान जबरन धर्म परिवर्तन की उसी फर्जी घटना का हिस्सा है। यानी पुलिस कभी भी आ सकती है और इन सभी लोगों को फिर से गिरफ्तार कर सकती है। हम इस पर चर्चा कर ही रहे थे कि खबर आई कि इसी घटना को लेकर एक और प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है! यह स्पष्ट है कि सभी झूठों की तरह, यह अब शक्तिशाली लोगों द्वारा आक्रामक रूप से फैलाए जाने के कारण चर्चा में आने लगा है। 

क्या जमीनी तौर पर हमारा कोई निहित स्वार्थ है? 

मैं अपने ईसाई मित्रों के साथ-साथ हमारे सभी देशवासियों तक इस कहानी को पहुंचाने के लिए इन पृष्ठों को बहुत जल्दी में टाइप कर रहा हूं। पिछले 10 महीनों से कर्मचारियों को परेशान किया जा रहा है और पुलिस अपने बेबुनियाद आरोपों को साबित करने की कोशिश में इस उत्पीडऩ को जारी रखे हुए है। लेकिन उनके पास कोई सुबूत नहीं है! उनके पास जो कुछ भी है वह मनगढ़ंत साक्ष्य है। ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस बल और जिला प्रशासन के कुछ सदस्य अस्पताल को अस्थिर करने के लिए ईसाईविरोधी उपद्रवी समूहों के साथ काम कर रहे हैं। 

संभव है कि इसमें कुछ निहित स्वार्थ हों, क्योंकि स्थानीय लोगों का एक उपद्रवी समूह है जो कुछ समय से अस्पताल को बंद करने की कोशिश कर रहा है ताकि वे शहर में इस प्रमुख भूमि पर अवैध रूप से कब्जा कर सकें। हमने अतीत में उनके कई धमकियों और जानलेवा हमलों का सामना किया है। 

बहरहाल जबरन धर्मांतरण की कहानी पूरे देश में फैल रही है। फतेहपुर का यह घटना हमारे देश में ईसाईयों के साथ हो रहे अन्याय और अत्याचार का सिर्फ एक उदाहरण है। यह बिल्कुल हास्यास्पद है कि 35 लोगों और उनके परिवारों को लगभग एक साल तक इस एकमात्र अपराध के लिए प्रताडि़त किया गया है यह कह कर कि वे गुरुवार को ईसाई धर्म की प्रार्थना करने के लिए चर्च गए थे। 

यह अकल्पनीय है, न्याय के इस उपहास को तुरंत रोका नहीं किया गया तो अधिक से अधिक यह पीडि़तों को आघात पहुंचाएगा। यह बहुत ही दुखद है कि जो लोग ईमानदारी से पीडि़तों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें इस कठिन परिस्थितियों में सेवा करने से रोका जा रहा है। उन्हें उन लोगों के खिलाफ संघर्ष करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, जिन्हें उनकी रक्षा करनी चाहिए! 

यह कई अन्य राज्यों के साथ उत्तर प्रदेश राज्य में कई विभिन्न स्थानों पर लगातार घट रही है। मेरा नैरेटिव है कि मैं अपने देश के नागरिकों के लिए सेवा का कार्य करूंगा और लोकतंत्र और स्वतंत्रता पर गर्व करने वाली इस भूमि में यह अराजकता और अन्याय लंबे समय तक जारी नहीं रह सकता है। 

ईसाई समुदाय मसीह के मार्गों का अनुसरण करता है और अच्छे कार्यों के लिए जाना जाता है। हमें मसीह के सुसमाचार की घोषणा करने और संसार के कष्टों में मरहम बनने के लिए बुलाया गया है। हालांकि, हम जिन अच्छे कामों के लिए जाने जाते हैं, उन्हें आज एक भयावह मोड़ दिया जा रहा है। दुख की बात है कि आज हमारे देश में ईसाई परिवार द्वारा आयोजित जन्मदिन पार्टियों को भी जबरन धर्मांतरण के रूप में चिह्नित किया जा रहा है। 

कोई भी अच्छा काम, कोई भी दान देना या गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना, अगर एक ईसाई द्वारा किया जाता है, तो वह आज जबरन धर्म परिवर्तन के नाम पर अपराध बन गया है। 

हमारे बहुत से पादरी अभी भी जेलों में सड़ रहे हैं और कई पर आरोप लगाए जा रहे हैं। भारत जैसे तथाकथित स्वतंत्र देश में, ईसाइयों ने उस धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने के अपने अधिकारों को खो दिया है जिसे हम संविधान का अनुच्छेद 24 में जानते हैं। लेकिन अब समय आ गया है कि प्रत्येक ईसाई द्वारा स्पष्ट रुख अपनाया जाए। चाहे अधिकार दिया जाए या छीना जाए, हम अभी भी पूरी मानवजाति के लिए ईश्वर के प्रेम के बारे में सच बोलते रहेंगे। हम इसके बावजूद बीमार, उपेक्षित, अन्याय और अत्याचार का सामना करने वालों के लिए प्रकाश और उपचार बनेंगे। 

यह अकल्पनीय है कि हम किसी भी प्रकार के ‘जबरन धर्मांतरण’ में शामिल होना, जैसा कि स्वतंत्रता के दुश्मनों द्वारा परिभाषित किया गया है, क्योंकि यह हमारे प्राथमिक उद्देश्य के बिल्कुल विपरीत है - इस राष्ट्र और इसके लोगों के लिये मसीह की भावना से प्यार करना और उनकी सेवा करना ही हमारा धर्म है। 

मुझे आशा है कि ईसाइयों के इस कहानी को इस देश के आसपास के लोगों को हमारे साथ हो रहे प्रताडऩा के एक झलक पाने में मदद करेगी कि उत्तर प्रदेश में क्या हो रहा है और तेजी से पूरे उत्तर भारत में कहानी के संदेश को फैलाया जाये, जिससे भारतीय ईसाई गुजर रहे हैं। 

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मुझे आशा है कि यह हमारा काम उन्हें चुनौती देगा। सताए जा रहे लोगों के लिए ईमानदारी और उत्साह से प्रार्थना करें और हमारे जीवन और पवित्र कार्य में शामिल हों। बेख़बर और गुमराह लोग हमें हतोत्साहित करने और हमें डराने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हमारा भरोसा प्रभु पर है। कृपया इस तरह के उत्पीडऩ के खिलाफ खड़े होने के लिए साहस, अनुग्रह और शक्ति के लिए प्रार्थना करें। 

कृपया प्रार्थना करें कि उत्तर भारत में चर्च के रूप में हम इन अत्याचारों के बावजूद इस जगह के लोगों की सेवा करना जारी रख सकें। यीशु ने हमसे वादा किया था कि इस संसार में परेशानी होगी और अगर हम इन परेशानी और उत्पीडऩ के बीच विश्वासयोग्य हैं, तो हम जानते हैं कि परमेश्वर के नाम की महिमा होगी। 

मसीह में, 
डॉ सुजीत वर्गीज थॉमस, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, 
ब्रॉडवेल क्रिश्चियन अस्पताल, फतेहपुर (उत्तरप्रदेश)


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