पीयूसीएल ने मानवाधिकार हनन पर किया सम्मेलन 

जारी किया ‘बस्तर का बहिष्कृत भारत’ रिपोर्ट

दक्षिण कोसल टीम

 

पिछलों दिनों पीयूसीएल ने अपने राज्य ईकाई की पहल पर ईसाई आदिवासयों पर हो रहे लगातार हमलों पर छत्तीसगढ़ प्रोग्रेसिव क्रिश्चियन अलाएन्स, ऑल इंडिया पीपल्स फोरम (छत्तीसगढ़ ईकाई), दलित अधिकार अभियान, ऑल इंडिया लाएर्स असोसियशन फॉर जस्टिस (छत्तीसगढ़ ईकाई) आदि जन संगठनों के संयुक्त तत्वावधान में एक फ़ैक्ट फाईडिंग टीम का गठन किया गया था। इस जांच दल ने वर्ष 2022 में पांच चरणों में पूरे प्रदेश की इन घटनाओं का तथ्यान्वेषण किया है।

छत्तीसगढ़ में मानवाधिकार उल्लंघन मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। चाहे अल्पसंख्यक ईसाइयों के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं हों, या मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दमन का सवाल हो या फिर नक्सल उन्मूलन के नाम पर आदिवासी ग्रामीणों के ऊपर हिंसा की घटना हो, मानवाधिकार हनन के इन अनगिनत मामलों ने प्रदेश को चिंताजनक परिस्थिति में ला खड़ा कर दिया है। मानवाधिकार पीडि़तों के न्याय के संघर्ष में छत्तीसगढ़ लोक स्वातन्त्रय संगठन (पीयूसीएल) ने 20 जनवरी 2023 को मायाराम सुरजन स्मृति लोकायन भवन, रजबन्धा मैदान, रायपुर में एक राज्यस्तरीय सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें देश-प्रदेश के मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता एकजुट हुये।

सम्मेलन के प्रथम सत्र का विषय था ‘छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमले तथा उभरते सवाल - ‘क्या आदिवासी स्वशासन के नाम पर पेसा कानून का सांप्रदायीकरण हो चुका है और पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में ‘डी-लिस्टिंग’ अभियान के क्या परिणाम होंगे।’

इसी सत्र में अल्पसंख्यक ईसाई आदिवासियों पर अनवरत जारी हिंसा और अत्याचारों पर सम्मेलन के मुख्य वक्तागण व्ही. सुरेश (राष्ट्रीय महासचिव, पीयूसीएल, चेन्नई), रवि नायर (साउथ एशिया ह्यूमन राइट्स डॉक्यूमेंटेशन सेंटर, बेंगलुरु), जनकलाल ठाकुर (पूर्व विधायक एवं अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा), हिमांशु कुमार (गांधीवादी कार्यकर्ता), लारा जंसानी (राष्ट्रीय संगठन सचिव, पीयूसीएल मुम्बई), सोनी सोरी (मूलवासी अधिकार कार्यकर्ता) तथा फ़ैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्यों डिग्री प्रसाद चौहान (प्रदेश अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ पीयूसीएल). डॉ. गोल्डी एम. जॉर्ज (मानवाधिकार व दलित अधिकार कार्यकर्ता), अखिलेश एडगर, रिनचिन, वैभव अब्राहम, आशीष बैक, बृजेन्द्र तिवारी के द्वारा संयुक्त रूप से ‘बस्तर का बहिष्कृत भारत’ के नाम से एक रिपोर्ट जारी की गई।

पिछले कुछ सालों से छत्तीसगढ़ व खासकर के राज्य के आदिवासी बहुल बस्तर संभाग इसाई अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमले व अत्याचार का गढ़ बन गया है। ‘डी-लिस्टिंग’ के मांग व सरकारी राशन के वितरण पर रोक से लेकर चर्चा व घरों का जलाया जाना, छत्तीसगढ़ के इसाई समुदाय को घोर हिंसा का सामना करना पड़ रहा है।

अप्रैल 2022 में पीयूसीएल छत्तीसगढ़ ने कुछ अन्य संगठनों के साथ मिलकर इन सब हिंसा के घटनाओं पर एक तत्थ्यान्वेशन कार्य को पूरा किया। जांच दल ने जो ज़मीनी हकीकत पाया, उसको ‘बस्तर का बहिष्कृत भारत’ अल्पसंख्यक इसाई आदिवासियों पर अनवरत जारी हिंसा और अत्याचारों पर लेखा-जोखा नाम का एक रिपोर्ट जारी किया है, जिसमें लगभग 122 घटना व बयान शामिल हैं। 

बयान के साथ साथ रिपोर्ट में दी गई ग्राम सभाओं द्वारा पारित किए गए प्रस्ताव, आदेश व शपथ पत्र के नमूने यह साबित करती है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों पर ऐसी हिंसा का जड़ असल में हिंदुत्व के सांस्कृतिक आक्रमण में है। ऐसे महौल में ग्राम सभाओं को भी पुरातन जाति व्यवस्था के पुनसर््थापना के लिये दुरुपयोग किया जाना आसान हो जाता है, जिससे गांव के सामाजिक आर्थिक व्यवस्था में गैर हिन्दू अथवा भिन्न जीवन शैली और धार्मिक आस्था रखने वाले लोगों व समूहों को बहिष्कृत किया जाता है। 

इसके साथ पुलिस व प्रशासन न केवल ऐसी हिंसा को खुलेआम होने दे रही है बल्कि ईसाईयों व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत व शक को फैलाने का काम सक्रीयता से कर रही है। पीयूसीएल, छत्तीसगढ़ का यह रिपोर्ट इन सब मुद्दों पर रोशनी डालते हुए धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हो रही हिंसा व हिंदू दक्षिणपंथी ताकतों के कार्यप्रणाली पर एक विस्तृत व गहरा समझ प्रदान करता है।

रिपोर्ट में पीडि़तों के बयान व गवाही के आधार पर 122 घटनाओं का वर्णन है। रिपोर्ट में बहुत से तथ्य और विश्लेषण हैं, यथा-यालम शंकर को किसने मारा? दक्षिणपंथी ताकतें आदिवासी समाज को धर्म के नाम पर बांट रही है और उसी का नतीजा है शंकर की हत्या।

नारायणपुर में पुलिस की लीपा-पोती का दांव उल्टा पड़ गया। क्या आदिवासियों के मध्य हाल ही में उपजे हिंसा और बड़ते वैमनस्य के मूल में हिन्दू धर्म गुरुओं की भूमिका है?

पाँचवी अनुसूचित क्षेत्रों में जातिगत ढांचे की पुनर्रचना घरवापसी अथवा मूल धर्म में वापसी एक दक्षिणपंथी अवधारणा है। धर्मांतरण बनाम घर वापसी-राज्य का धर्म विशेष को प्रश्रय बस्तर का पाठ पेसा कानून और आदिवासी स्वशासन के नारों की आड़ में सांप्रदायिकता का उभार। ‘डी लिस्टिंग’ क्या है व इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे?

डॉ. व्ही. सुरेश ने रेखांकित किया कि न्याय पालिका के द्वारा समय पर उचित कदम नहीं उठाए जाने से हिंसा और प्रताडऩा की घटनाएं बढ़ती हैं। वंचित समुदायों के उत्पीडऩ के साथ मानव विकास सूचकांक, पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों की लूट, शिक्षा, खाद्यान्न सुरक्षा आदि विषयों पर भी लगातार ध्यान देने की आवश्यकता है।

रवि नायर ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत पुलिस-प्रशासन को प्राप्त ‘दंड से मुक्ति’ समाप्त किये जाने, पीडि़तों को शीघ्र और समुचित मुवायजा, दोषियों पर विधिसम्मत कार्यवाही तथा न्याय के लिये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध प्रावधानों के उपयोग पर ज़ोर दिया।

जनकलाल ठाकुर ने सांप्रदायिकता के विरोध में सर्वहारा वर्ग का बड़ा आंदोलन खड़े किये जाने का आह्वान किया। डिग्री प्रसाद चौहान ने कहा कि प्रदेश में ईसाई आदिवासी अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और आदिवासियों के मध्य आपसी वैमनस्य कि मूल वजह आदिवासियों का हिन्दुकरन तथा हिन्दू राष्ट्रवाद कि अवधारणा है। डॉ. गोल्डी एम. जॉर्ज ने सांप्रदायिक धु्रवीकरण के लिये पेसा कानून के दुरुपयोग पर रोक लगाए जाने की मांग रखी।

दूसरे सत्र में बस्तर और छत्तीसगढ़ के अन्य स्थानों में हो रहे जनांदोलनों और और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हो रहे दमन के विषय में चर्चा हुई। मुख्य वक्तागण हिडमे मरकाम, लॉरा जेसानी, हिमांशु कुमार, रिनचिन व डिग्री प्रसाद चौहान थे। बजर जी, आशु मरकाम, पान्डु मरकाम, सुनीता पोट्टाम, तुहिन देव, कलादास डहरिया, संजीत बर्मन, सौरा यादव, इन्दु परिचर्चा में शामिल हुए। सत्र की अध्यक्षता सोनी सोरी तथा संचालन श्रेया ने किया।

हिड़मे मरकाम, जो एक साल दस महीने के बाद जेल से रिहा हुई है, ने सभा को संबोधित किया। अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों में वो बरी हुई है। उन्होंने सभा के प्रति आभार जताया, जिन्होंने भी उनके लिए आवाज उठाई, सबको कहा कि वो अपनी लड़ाई जारी रखेंगी।

बस्तर के साथियों ने बताया कि सिलगेर गोली कांड के बाद दो सालों से सुरक्षों बलों की ज्यादति तथा जंगल को बचाने के लिए आदिवासियों की लड़ाई और बुर्जी, बेचापाल अन्य जगहों पर पुलिस कैंपों के खिलाफ चल रहे शांतिपूर्ण धरनों पर लाठी चार्ज करके जबरदस्ती कैंप बिठाए जाने को लेकर लगातार मानवाधिकार का हनन हो रहा है। वीडियो काल पर जुडक़र बुर्जी में धरना पर बैठे साथियों ने 18 जनवरी को पुलिस द्वारा की गई लाठी चार्ज के बारे में बताया जिससे कई लोग घायल हुए।

उनकी अपील है कि सभी बुद्धिजीवी, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता इस बात को उठाए। सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने बस्तर मानवाधिकार हनन के मुद्दों को उजागर करते हुए कहा की सरकार को दमन करने के बजाय जरूरी है कि वो धरने पर बैठे आदिवासियों से संवाद करें व उनकी मांगों पर ध्यान दें और जल जंगल जमीन पर कोई कार्रवाई करने से पहले उनकी राय पर गौर करें। उन्होंने कहा कि यह पेसा कानून और पांचवी अनुसूची के तहत जरूरी है।

हिमांशु कुमार ने अपनी बात रखते हुवे कहा कि 11 और 12 जनवरी को बस्तर की सीमा पर हुये ‘हवाई हमले’ पर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि ऐसे हमले जहां सरकार अपने नागरिकों पर ही वार कर रही है सरासर गैर-कानूनी है। उन्होंने सिलगेर, बुर्जी, बेचापाल में चल रहे आदिवासी किसानों के आंदोलनों पर बात रखी। 

अपने वक्तव्यों के माध्यम से डिग्री प्रसाद चौहान, हिमांशु कुमार और रिनचिन ने अपना मत उजागर किया कि गोम्पाड और एडेसमेट्टा के फर्जी एनकाउंटर पर चल रहे मामलों में किस तरह शीर्ष अदालत याचिकाकर्ताओं पर ही कार्यवाही की मांग कर रही है। उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाओं की भी निष्क्रिय भूमिका पर सवाल उठाए?

दलित उत्पीडऩ पर लगातार आवाज उठाते कार्यकताओं पर किस तरह दमन हो रहा है उसका उदाहरण खुद पर और अपने साथियों पर देते हुये संजीत बर्मन ने बात रखते हुवे कहा कि कैसे दलित अधिकार आंदोलन को दबाने के लिए गुंडा एक्ट और अन्य ऐसे कानूनों का इस्तेमाल किया जा रहा है व किस तरह संवैधानिक अधिकारों को नकारा जा रहा है।

कलादास डहरिया ने चंदूलाल चंद्राकर अस्पताल के कर्मचारियों व दुर्ग-भिलाई में सफाई कर्मचारियों व अन्य मज़दूर आन्दोलनों पर किए जा रहे दमन पर बात रखी। लखन सुबोध ने कहा कि एक मजबूत विपक्ष खड़ा करने के लिए लोगों को संगठित होने की बेहद जरूरत है।

राष्ट्रीय पीयूसीएल की सचिव लारा जेसानी ने कहा कि इन मुद्दों पर ध्यान आकर्षण करने और सरकार को जवाबदार मानते हुए राष्ट्रीय स्तर पर इन बातों को पहुंचाना जरूरी है और इसके लिए राष्ट्रीय पीयूसीएल हर संभव प्रयास करेगा। अंत में सौरा यादव, तुहिन देव व इंदु नेताम ने भी अपनी बात रखी कि इस दौर में बहुत जरूरी है कि सभी जनपक्षधर ताकतें एक साथ आकर इन मुद्दों पर एक साथ आवाज उठाए ।

सम्मेलन में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि बस्तर में चल रहे आंदोलनों व प्रदर्शनों पर पुलिस कि हिंसा तत्काल बंद की जावें तथा शासन आंदोलनकारियों के साथ संवाद करें।

धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले व हिंसा करने वालों तथा इसे प्रोत्साहित करने वाले तत्वों पर कड़ी कार्यवाही की जावे। धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ प्रशासनिक अमले व ग्राम सभाओं के द्वारा निकाले जा रहे आदेशों पर रोक लगाई जावें। सामाजिक कार्यकर्ताओं और याचिककर्ताओं पर कानूनी प्रताडऩा बंद हो।


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