हर घर संविधान, घर - घर संविधान
प्रोफेसर लक्ष्मण यादव का पूरा भाषण सिर्फ यहीं
सुशान्त कुमारछत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में ‘गणतंत्र दिवस’ के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता तथा राजनीतिक विश्लेषक डॉ. लक्ष्मण यादव ने ‘संविधान महासभा’ के एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में जो ‘हर घर संविधान, घर - घर संविधान’ के श्लोगन के साथ शुरू हो रहा है, में बेबाकी के साथ अपनी बातों को रखा। उन्होंने देश में चल रही राजनीति, साम्प्रदायिकता, संविधान, बच्चों का भविष्य सहित सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर खुलकर अपने विचार रखे। 'दक्षिण कोसल' ने अथक परिश्रम के बाद उनके भाषणों को सिलसिलेवार ढंग से अपने वेबसाइट में रखने की कोशिश की है। फिर भी अगर कहीं किसी तरह की त्रुटि रह गई हो, तो आप सभी पाठक इस पर अपना विचार आलोचना तथा टीका टिप्पणी रखने में स्वतंत्र हैं जिसे हम अगले अंक में प्रकाशित करेंगे-सम्पादक

गणतंत्र दिवस के अवसर पर संविधान महासभा के इस कार्यक्रम में जो हर घर संविधान घर - घर संविधान के श्लोगन के साथ हो रहा है उसके आयोजकों का आभार कि आपने मेरे लिए एक मौका मुहैया करवाया है कि मैं राजनांदगांव आकर के आप लोगों से मिल सकूं और आपने इतना सम्मान दिया प्रेम दिया। हम जैसे लोगों का यह सम्मान प्रेम मोहब्बत ये कभी संभव ही नहीं था अगर इस देश में भारत का संविधान लागू नहीं होता। और यह बहुत खुशी की बात है कि आप उस संविधान का जश्न मनाने के लिये उसकी ताकत को आमजन तक घर - घर तक पहुंचाने के लिये यह आयोजन किये हुवे हैं। तो मैं समस्त आयोजन समिति का बहुत आभारी हूं।
और उन्हें बहुत बधाई देता हूं कि उन्होंने इस वक्त के लिहाज से सबसे जरूरी कार्यक्रम का आयोजन किया हुआ है। क्योंकि जो चीज खतरे में होती है उसकी बात सबसे पहले और सबसे ज्यादा करनी चाहिए और आज संविधान खतरे में है इसलिए जरूरी है कि जिन्होंने संविधान का लाभ लिया है वो संविधान को घर - घर तक पहुंचाने और बचाने की लड़ाई भी लड़े।
और इसलिए मैं आपका आभारी हूं और बधाई देता हूं इस आयोजन समिति को। मंच में बैठे हुवे सभी सम्मानीय अतिथि गण और इस कार्यक्रम में सामने बैठे अति सम्मानित बैठे आप सभी को जय भीम, जय मंडल, जय संविधान है, इंकलाब जिंदाबाद है।
दोस्तों,
अभी जब छत्तीसगढिय़ा गीत सुनने को मिल रहा था और उसके बाद उसमें भी एक लाइन आ रही थी 'छत्तीसगढिय़ा सबसे बढिय़ा' तो आप की अपनी संस्कृति आपकी परंपरा उसको आपने सेलिब्रेट किया उसका उत्सव मनाया। और राजनांदगांव को संस्कारधानी बोली जाती है। बताया गया कि रायपुर को राजधानी, भिलाई को शिक्षाधानी और राजनांदगांव को संस्कारधानी के नाम से बुलाया जाता है मुझे खुशी हो रही है कि राजनांदगांव ऐसी संस्कृति और संस्कारों का संगम है इसलिए कह रहा हूं आप संविधान का जश्न मना रहे हैं। बड़े - बड़े लोग है सम्मानित लोग हैं, मेरा सम्मान यह किस बात का है? केवल दो बात का है। एक- एक तो दिल्ली - विल्ली से आना यह कतई नहीं कि मैं आप लोगों से ज्यादा अच्छा और काबिल बोलता हूं? हो सकता कि हमारी उम्र जो है उससे ज्यादा उम्र जिन लोगों ने संघर्षों में खपा दी वह हमें बैठकर सुनने सामने पीछे बैठे होंगे? मैं उन्हें सलाम करता हूं। इसलिए मुझमें कोई गर्व अहंकार नहीं है कि मैं कोई नई बात बोलूं?
यह छत्तीसगढ़ संघर्ष की जमीन है पिछले साल जनवरी 2022 में बिलासपुर में पहली बार हमें माता सावित्री बाई फुले और भीमा कोरेगांव का उत्सव जब मनाया तो पहली बार हमें यहां बुलाया था। साहब जब भी इनको पता चलता है कि मैं छत्तीसगढ़ आ रहा हूं ये प्रेम देखिये कि ये दौड़े चले आते हैं। छत्तीसगढ़ से विशेष स्नेह सा बनता जा रहा है कि आपके यहां ऐसा लग रहा है कि कुछ काम आगे बढ़ रहा है। बढ़े भी क्यों ना भाई यहां पता चल रहा है कि 95 से 97 प्रतिशत आबादी इस देश के एससी एसटी ओबीसी और कमेरा लोगों की है। तो आप नहीं बढ़ेगें और लड़ेंगे तो बाकी जगहों का क्या होगा? इसलिए जिम्मेदारी भी ज्यादा है।
कौन लोग मुख्यमंत्री थे?
और अभी भंते साहब कह रहे थे जिस आदिवासी समाज की आबादी यहां इतनी ज्यादा है उस आदिवासी समाज का मुख्यमंत्री होना चाहिए। मैं तो याद कर रहा हूं जब से यह राज्य बना तबसे कौन लोग मुख्यमंत्री थे जिनकी आबादी 3 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है उनको तो आपने हटा दिया। कमसे कम भाई जिनका कोई आदमी नहीं जिनका कोई मानने वाला नहीं वो 15 साल राज्य किये? कल जो वहां कार्यक्रम था रायपुर में साहेब, बूढ़ा बाबा का एक तालाब और उनके मानने वाले आदिवासी अब पता यह चल रहा है कि इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने वाले कुछ लोग वहां आकर किसी की मूर्ति रखकर तालाब का नाम बदल दिये। आपकी संस्कृति पर हमला हुवा ना? हमें नहीं पता था कि आपके यहां पहले ही हो चुका है। मैं जिस उत्तरप्रदेश से आया हूं वहां अब हो रहा है। किसी का काम ना करना हो तो उसका नाम बदल दो और उसको खूब प्रचार करो कि देखों कि हम तुम्हारा विकास कर रहे हैं। ये नाम बदलने वाले हमारे यहां एक मुख्यमंत्री बैठे हैं। नाम मैं नहीं ले रहा हूं उसका भी।
ये बौद्धिक मंच है यहां सारी बात इशारों में होगी बाबा साहेब को मानने वाले बच्चेे सारी बात समझ जायेंगे इसका मुझे भरोसा है। कोई व्यक्ति इतना महत्वपूर्ण है ही नहीं जिसका हम नाम यहां से लें। हमें तो प्रवृत्तियों से लडऩी है। छत्तीसगढ़ के लोगों बातचीत शुरू करने के पहले एक बात बताऊं मैं पिछले दिनों जब - जब आया कभी बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती मनाई जा रही थी। तथागत बुद्ध की याद में चाहे वह भिलाई हो या फिर सिरपुर का अंतरराष्ट्रीय बुद्धिष्ट महोत्सव। वहां जाकर यह महसूस किया कि 10 हजार से ज्यादा विद्यार्थियों को शिक्षा देने का सबसे बड़ा पुराना कोई केन्द्र था तो वह सिरपुर था और वहां जाकर मैंने अपनी जड़ों से जुडऩा महसूस किया। वह जड़े है हमारी और जड़ किस बात की शिक्षा की तालिम की।
तुएगोंदी में आदिवासी अपने संस्कृति का उत्सव मनाने इकट्ठा हुवे
ज्ञान की रोशनी और उसके बाद पिछले दिनों विश्व आदिवासी दिवस पर छत्तीसगढ़ की जंगलों की तरफ गये ओ...दूर बालोद जिले में... तुएगोंदी उस जगह पर हमने देखा लाखों आदिवासी समाज के लोग बारिश हो रही है भींगते हुवे भी सडक़ पर खड़े होकर जाम लगा हुवा है। रास्ते के गड्डों में पानी भरा हुआ है फिर भी अपनी संस्कृति को बचाने के लिये और अपने संस्कृति का उत्सव मनाने के लिये वहां इकट्ठा हुवे थे। तो एक तरफ ये बुद्धिष्ट परंपरा और एक तरफ आदिवासी समाज का अपना काम फिर पिछले दिसम्बर में जब मैं आया था तब 'सतनामी समाज' के लोगों ने गुरूघासी दास जयंती मनाई थी और वहां 5 हजार से ज्यादा विद्यार्थी बैठकर अपने सांस्कृतिक परंपरा को याद कर रहे थे।
मीडिया साबित करने में लगे हुवे हैं कि वो बाबा बिल्कुल सही बोल रहे हैं
उसके बाद मैं आया तो 'ओबीसी समाज' के लोग वहां भी बड़ी तादाद में ओबीसी समाज के लोग भी आये थे। और ओबीसी समाज के लोगों ने 'पुरखा के सुरता' से लेकर तमाम कार्यक्रम जो किसान कामगार कमेरा जातियां हैं उन लोगों ने वहां इकट्ठा किया। तो मुझे लगा छत्तीसगढ़ तो बहुत सही रास्ते में जा रहा है उसके बाद अब आया तो पता चला कोई बाबा - वाबा घूम रहे हैं तो -‘कथा सुनाकर एक लोटा जल सभी समस्याओं का हल।’ मैंने कहा ये क्या हो रहा है भाई। मेरी चिंता बढ़ गई। और अभी एक बाबा भाई मैंने पहले ही शर्त लगा दी नाम किसी का नहीं लूंगा।
पहचान आप सभी जायेंगे हरकतों से। एक बाबा जो नागपुर में कथा - वथा सुनाकर अपना सबका भविष्य बता रहे हैं कि बच्चा तुम्हारे ये देखों बिना देखे हम तुम्हारा भविष्य बता रहे हैं। जाओ कृपा रूकी हुई है हमारी ऊपर से आदेश आ रहा है और आपके रायपुर में आकर किस्मत बता रहे हैं। और टीवी और मीडिया दिनभर ये साबित करने में लगे हुवे हैं कि वो बाबा बिल्कुल सही बोल रहे हैं। ओ पाखंड अंधविश्वास नहीं है उनको सीधे ऊपर से जो दर्शन हो रहा है, तो उससे वो किस्मत बता रहे हैं। मैंने सोचा क्यों ना इन लोगों को मीडिया वालों को कह दूं कि जब सारी किस्मत बाबा ही बतायेंगे तो स्कूल विश्वविद्यालय बंद कर दो। अस्पताल बंद कर दो और वहां भी कोई ना कोई बाबा को खड़ा कर दो। तुम्हारे बच्चों का भविष्य भी वही बतायेंगे। भाई कमाल का देश हो गया है यह।
धर्म की किताब में इतनी ताकत होती तो ये सारी खोज वो कर देते
आप विज्ञान की बनाई हुई टीवी सेटेलाइट से चल रही टीवी और उसके बाद जो मंच बना हुआ है जो कुर्सियां बिछी हुई है। जो ये माइक से आवाज जा रही है। इन बिजली के तारों से जो ये काम हो रहा है, जितनी मोबाइल आप इस्तेमाल कर रहे हैं, जितना कपड़ा आपने पहना हुआ है, जितना भी कुछ आपके चारों तरफ दिख रहा है। ये सब विज्ञान और तकनीक का इस्तेमाल करके बना। अगर धर्म की किताब में इतनी ताकत होती तो ये सारी खोज वो कर देते। सारा फायदा विज्ञान से ले रहे हो और कह रहो हो हमारे ऊपर से नजर मिली हुई है और गुरू का उनका दया हो गई।
और तुम्हारी किस्मत बतायेंगे अरे बाबा सुनो... अगर तुमको सही में किस्मत बतानी है तो जाकर इस देश के प्रधानमंत्री को बताना कि अगली बार चीन भारत पर कब हमला करने वाला है, कि जाकर बताओं इस देश में कि रूपया इस देश में डॉलर की कीमत से कब बढऩे घटने वाला है। जाकर बताओं उनको कि महंगाई कैसे कम होगी। जाकर बताओं उनको कि पंद्रह लाख रुपया कब आएगा? 2 करोड़ रोजगार कब मिलेगा? भाई जब तुम्हें सारा कुछ पता है तो सब तुमको ऊपर से उतर रहा है ज्ञान मिल रहा है, तो बंद कर दो इस देश के बड़े बड़े वैज्ञानिक और एजूकेशन केन्द्र, मेडिकल और एम्स बंद कर दो विश्वविद्यालय बंद कर दो। अब इस सबकी कोई जरूरत नहीं है भाई। जब टीवी पर दिखा ही दिया गया कि यह कोई अंधविश्वास नहीं है यह एक रोहानी दौलत है जो ऊपर से उतरी है। तो हर घर में बाबा बनाओ। हर घर में ये सारा काम करों।
हर घर में संविधान, घर - घर संविधान
ऐसे वक्त में जिन लोगों ने हर घर में संविधान, घर - घर संविधान की मुहिम छेड़ी है मैं सलाम करता हूं ऐसे लोगों को क्योंकि आप भारत को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। लड़ाई एकदम आमने - सामने है भाई एक तरफ इस देश को बर्बाद करने वाले लोग हैं और दूसरी तरफ तथागत बुद्ध से लेकर कबीर, रैदास, पल्टू, दादूभीखा,बुल्लेशाह-फरीद और तमाम आगे बढ़ते हुवे नारायण गुरू, बसवअन्ना, चोखामेला, अब्दुल कय्यूम अंसारी, ज्योतिबा फुले, साहू जी महाराज, डॉ. भीमराव आम्बेडकर, डॉ. राम मनोहर लोहिया, मंडल, कांशीराम के वारिश खड़े हैं। जो इन बर्बाद करने वालों लोगों के सामने चुनौती बन कर खड़े हैं कि हम इस मुल्क को बचायेंगे। ये साफ - साफ लड़ाई दोनों तरफ छिड़ी हुई है। मैं रायपुर से लेकर ये राजनांदगांव तक आ रहा था कम से कम 5 जगहों पर कथा भागवत चल रही है। एक जगह कथा भागवत में बता रहा है कि -‘शबरी जी जब गई राम जी के आगे और उन्होंने झूठे बेर खिलाया।' मुझे लगा वह आदमी इतना कान्फीडेंस से बता रहा है जैसे -तीसरा आदमी वही वहां बैठा हुवा था।'
भारत का संविधान बदलना है और हिंदू राष्ट्र बनाना है
भाई मैं किसी का धार्मिक भावना आहत नहीं कर रहा हूं। आपको पूजा करनी है करिये पता चला यहां से लौटकर मुझे दिल्ली जाना है वहां बुलडोजर चला दे मुकदमा लगा दे और जेल में भर दें। इसलिए हम आपकी कोई भावना आहत नहीं कर रहे हैं। लेकिन यह कथा भागवत इतने कान्फीडेंस से सुनाते हैं ये लोग मैं उस पर कुछ नहीं बोलूंगा। कोई देवी - देवता पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। लेकिन मैं जानता हूं कि ये कथा - भागवत करने वाले लोग और मैं पिछली बार छत्तीसगढ़ आया था। इसी छत्तीसगढ़ में लाखों की भीड़ में करोड़ों रुपया खर्च करके करोड़ों रुपया का चंदा लेकर जाकर कथा - ‘भागवत वाले जाते जाते बोलकर गये हैं कि भारत का संविधान बदलना है और हिंदू राष्ट्र बनाना है।’ ये कौन सा धर्म का प्रचार है। मैं सवाल आपसे पूछने आया हूं।
तुम्हें अगर अपने भगवान का प्रचार करना है तो अरे मूर्खों ये वाला अधिकार भी भारतीय संविधान तुमको दिया है। अगर ये संविधान बदल दोगे तो अपना धर्म का प्रचार किस अधिकार से करोगे। इसलिए संविधान बचाना है और दूसरी बात वह जो कह रहा है किस्मत बता रहा है। और आपको बता रहे हैं कि धर्म ही सबसे महत्वपूर्ण चीज है जो लोग धर्म को मानने वाले हैं उनको मेरी एक मुफत की सलाह है जाओ आप किसी मंदिर में जाओ आप किसी कथा - भागवत को सुनने बस एक काम करना शुरू कर देना 'एक रुपया वहां चंदा दान दक्षिणा में नहीं चढ़ायेंगे' तो अपने आप देखना इनकी बाजार अगर बंद न हो जाये तो कहना आपसे एक तो पैसा ले रहे हैं और पैसा लेकर जाते जाते क्या बोल रहे हैं संविधान बदलना और हिंदू राष्ट्र बनाना है।
इसी छत्तीसगढ़ में मुझे पता चला पिछले कार्यक्रम में एक व्यक्ति ने वीडियो सुनाई कि कथा सुनाने वाले कह रहे हैं कि संविधान बदलना है हिन्दू राष्ट्र बनाना और अखंड भारत बनाना है। रे भाई तुम अपने धर्म का प्रचार कर रहे हो कि किसी पोलिटिकल पार्टी का प्रचार कर रहे हो। साफ - साफ क्लियर बता दो अगर ये दोनों में अंतर नहीं है तो हम तुम्हारा विरोध करेंगे।
अंधविश्वासी बनाये ऐसी पॉलिटिकल पार्टी को हराओ
मैं यहां खड़े होकर के अभी कि इस पार्टी को वोट मत दो मैं इशारे में कहूंगा मैं यह भी बोलूंगा किसको वोट दो किसको मत दो लेकिन मेरे बोलने का तरीका यह होगा कि जो पॉलिटिकेल पार्टी आपके बच्चे का स्कूल बर्बाद करें अस्पताल बर्बाद करे नौकरी खत्म करे महंगाई बढ़ाये बेरोजगारी बढ़ाये अंधविश्वासी बनाये ऐसी पॉलिटिकल पार्टी को हराओ। ये मैं कहने आपके यहां आया हूं। मैं किसी का प्रचार नहीं कर रहा हूं। और वो कथा भागवत भगवान और भगवान के बीच में पॉलिटिकल पार्टी कैसे आ गया रे भाई। चंदा देना बंद कर दीजिये आधा कथा - भागवत बंद हो जाएगी।
सारा खेल तो चंदा का है। ओ एक आदमी नोटबंदी में जब 500 - 1000 की नोट बंद हो गई। गया सोचा कि भगवान को ही चढ़ा दे बैंक में तो जा नहीं सकता थोड़ा उधर वाला था। नोटबंदी करने के बाद इस देश का प्रधानमंत्री कह रहा है कि 50 दिन मुझे दे दो भाइयों बहनों अगर 50 दिन में आपका भरोसा नहीं जीत पाया तो जिस चौराहे में बुलाना मैं उस चौराहे पर आऊंगा और जो सजा हो मुझको दे देना। उसके बाद से वह पैदल और सडक़ से घूमना ही बंद कर दिया। 50 दिन बाद अब आप खोजते रहिये। भाई नोटबंदी से फायदा क्या हुवा यह तो बताना चाहिए भाई ये सवाल करना मेरा अधिकार है। और यह मेरे नागरिक होने का धर्म है।
भगवान को थोड़े ही पता है ये वाली नोट बंद हो गई
हम आपसे पूछेंगे और उसी समय का हमारे यहां का एक किस्सा याद आ रहा है। एक व्यक्ति गया धराधरा मंदिर में 500 - 1000 के नोट चढ़ाने लगा और अचानक एक आदमी बीच में आया और कहा कि अरे मूर्ख ये नोट तो बंद हो गई है ये नोट क्यों चढ़ा रहा है। ओ... आदमी पलटकर बोला चुप रहो भगवान को थोड़े ही पता है ये वाली नोट बंद हो गई है। भाई वह आदमी बोला मैं किसी की भावना - आवना आहत नहीं कर रहा हूं। किसी का नाम नहीं ले रहा हूं इसलिए मैं आपसे कह रहा हूं वह आदमी बोला कि तुम्हें पता है नोट बंद हो गई मुझे पता है कि नोट बंद हो गई भगवान को थोड़े ही पता है कि यह नोट बंद हो गई है। तुरंत वह आदमी गुस्से में बोला यह भगवान थोड़े ही ये नोट लेते हैं कि उन्हें पता होनी चाहिए जो लेता है उसे पता है कि यह नोट बंद हो गई है असली खेल यहां है। और इसलिए सबसे ‘महत्वपूर्ण बात चंदा देना बंद कर दीजिए।’ अच्छा एक बात बताइये मान लीजिए इनके भगवान कोई हैं तो उन्होंने किस किताब में लिखा है कि मैं तभी खुश होऊंगा जब मुझे चंदा दोगे। कहीं लिखा है क्या?
वस्तु विनिमय था ना पैसा तो नहीं था ना
अब दूसरी बात बताइये जब पैसे की खोज नहीं हुई थी सिक्का नहीं बना था। नोट नहीं बना था कि इस दुनिया का इतिहास है कि किसान कामगार और कमेरा लोगों कि आप लोगों को पता होगा हमारे पुरखों का इतिहास क्या है कि 'गेहूं हमने पैदा किया तो गेहूं लेकर गये और सब्जी वाले के पास गये कि भाई गेहूं तुम ले लो और तुम अपनी सब्जी हमें दे दो। वस्तु विनिमय था पैसा तो नहीं था ना' पैसा तो बहुत बाद में आया उस समय सामान देकर सामान लेते थे। तो उस समय पूजा कैसे होती थी भई सवाल है मेरा। पैसा तो नहीं था कि तुम कह रहे हो कि जो - ‘जो जात - पात को पूछे नहीं जो हरि को भजै सो हरि को होई’ तो पैसा बीच में कहां से आ गया? ये मैं आपसे सवाल कर रहा हूं इसलिए जितने भी मंदिर हैं यहां बैठे हुवे लोग उम्मीद है कि यहां कोई मंदिर वाला होगा?
लेकिन यह बात यहां से बाहर भी तो जाएगी और बाहर जितने लोग भी सुने उनसे केवल एक गुजारिश है पहले तो वहां पैसा देना बंद करो, कि वह पैसा जो आप किसी पूजा में किसी मंदिर में किसी कथा - भागवत में देनेवाले थे उतनी पैसा का कोई कलम खरीद कर, कोई किताब खरीद कर, किसी भूखे को रोटी देकर, किसी बीमार को दवा देकर अगर आपने मदद कर दी तो कोई भगवान होगा तो सबसे ज्यादा इस काम से खुश होगा। कोई भी धर्म दुनिया का है ओ इस बात से नाराज कभी नहीं होगा कि जिसने पूजा कराई उसको पैसा देने की बजाए आपने किसी भूखे को रोटी खिलाई। सबसे बड़ा वाला धर्म यह वाला है कि - इंसान धर्म।
कृष्ण के जितने मंदिर हैं उसके पुजारी यादव होने चाहिए की नहीं?
अब आप एक बात बताइये पैसा बंद दूसरा काम एक और करिये जितने लोग हैं कि मैं अब कई यादव जी के बीच में जाता हूं उनको कहता हूं कि आपको कह दिया कि कृष्ण आपके भगवान हैं तो ये बताइये कृष्ण के जितने मंदिर हैं उसके पुजारी यादव होने चाहिए की नहीं होना चाहिए? असली खेल यहां से करिये दक्षिण भारत में पेरियार की जमीन पर एक उनका वारिश बनकर बैठे हुवे हैं मुख्यमंत्री बनकर के और उसने कहा कि बाबा साहब ने अपनी किताब 'एनिलेशन ऑफ कास्ट' अर्थाक 'जाति के विनाश' के अंतिम पन्नों पर लिखा है कि ‘जाति के खात्मे कि लड़ाई के लिये रोटी - बेटी का संबंध होना चाहिए।
अंतरजाति विवाह कराओ और पुजारी का इंट्रेंस इक्जाम होना चाहिए। पुजारी परीक्षा देकर जो पास हो जाये किसी भी जाति का हो तो उसको पुजारी बनाओ।’ तो ये किसान कामगार लोगों जितने देवी देवता तुम्हारे हैं सब मंदिर के पुजारी तुम बनो ये मांग कहीं से गलत है क्या? जबतक मंदिर है तबतक चंदा लो और जब आपकी चेतना अपने आप विकसित हो जायेगी तो अपने आप बाबासाहेब की ओ बात याद करोगे कि जिस दिन इस देश की मंदिर जानेवाली भीड़ स्कूल विश्वविद्यालय जाने लगेगी इस देश को सोने की चिडिय़ा बनने से कोई नहीं रोक सकेगी।
चालाकी क्या पैसा देना बंद
धीरे धीरे भारत बदलेगा भाई तेजी से नहीं बदलेगा। और बहुत सारे लोग बहुत तेजी के साथ चाहते हैं कि इस देश को हम आज ही क्रांति कर दें। बाबासाहेब से ही हमारे लोग नहीं माने मैं गलत कह रहा हूं तो बताएगा फुले साहेब की नहीं सुने। बाबासाहेब की नहीं सुने, साहू जी की नहीं सुने, कबीर की नहीं सुने, रविदास की नहीं सुने तो हमारी सुनकर तुरंत क्रांति कर देंगे क्या? हम उनसे बड़े थोड़े ही हैं भाई इसलिए मेरा काम क्या है साथियों कि मैं आप लोगों से गुजारिश करने आया हूं थोड़ा आपको चालाकी से काम करने की जरूरत है।
चालाकी क्या पैसा देना बंद। कथा - भागवत में कोई पैसा नहीं। उसके बाद करो प्रचार। अभी बात बताइये वह आदमी कह रहा है कि मैं किस्मत बता रहा हूं। टीवी वाला कह रहा है कि एकदम सही है सनातन का प्रचार कर रहे हैं मैं नाम नहीं ले रहा हूं। भाई आप प्रचार करो न भाई आप अपना धर्म बनाओ कि देश में आप तो इतने ताकतवर हो मेरे सवाल का जवाब दे दो जिसको तुम हिन्दू बनाते हो तुम कहते हो तुम अगर यादव हो तो भूद भरो, जाटव हो तो भूद भरो, कुर्मी हो तो भूद भरो, आदिवासी हो तो भूद भरो, ब्राह्मण हो तो भूद भरो, और अगर सब मिल गये तो समुद्र भरो तो आओ हिन्दुओं एक हो जाओ देखा उस धर्म वालों से तुमको खतरा है। वो अपनी जनसंख्या बढ़ा रहे हैं। ओ देश से हिन्दुओं को मार देंगे। 80 परसेंट जिसको बता रहे हो खतरे में हैं किससे जिसकी आबादी 20 परसेंट हैं। भाई किसको किससे लड़ा रहे हो भाई यहां पर।
अब कबीर का एक दोहा सुनिये -‘हिंदू कहूं तो हूं नहीं, मुसलमान भी नाई और गये भी दोनों बीच में खेलूं दोनों माई। हिंदू कहे मोहे राम पियारा तुरत कहे रहमाना और आपस में दोऊं लड़ी मुये हैं मरम कोई नहीं जाना।’ ये हमारा पुरखा कबीर आज से 700 साल पहले लिख कर चला गया है कि हिंदू मुसलमान के नाम पर लड़ाने वाले आपके बच्चों का भविष्य बरबाद करने वाले हैं। कोई धर्म खतरे में नहीं है रे भाई धर्म कैसे खतरे में हो जाएगा। अच्छा एक बात बताओ मुसलमानों को तो एक ही इबादत करते हैं। आपके यहां तो इतने देवी - देवता हैं फिर जैसे-कैसे? खतरे में हो जाएंगे। और कैसे बदलते हैं सब बिहार में हमारे एक शिक्षा मंत्री हैं। उन्होंने कुछ दिन पहले बयान दे दिया कि जिस रामचरित्रमानव को पढ़ते हो उसमें लिखा हुआ है कि ‘पूजति विप्र सील गुण हीना। शुद्र न गुुुुुुुुुुन गन गयान प्रबीना।। ’
पुजिये चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीण
मेरे पुरखे का एक दोहा याद आ गया। रैदास -‘ब्राह्मण मत पूजिये जो होवे गुणहिन और पुजिये चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीण।।’ यह सांस्कृतिक लड़ाई है साथियों हमारे पुरखे रविदास ने पहले ही जवाब दे दिया। अगर मेरी जाति के बारे में किसी ग्रंथ में गलत लिखा है तो क्या संविधान इस देश में इतना भी नहीं बचा है कि मैं इस बात की शिकायत कर सकूं। ‘महाबृष्टि चली फूटि किआरीं। जिमि सुतंत्र भएं बिगरहिं नारीं।।’ अगर इसकी आलोचना महिला कर देगी तो कैसे गलत हो जाएगी। ‘जे बरनाधम तेलि कुम्हारा। स्वपच किरात कोल कलवारा।’ ‘पनारि मुई गृह संपति नासी। मूड़ मुड़ाई होहिं संन्यासी।।’ आपने जातियों का नाम लेकर कहा कि -‘अधम जाति में विद्या पाये भयो अधम में दूध पिलाये’ ये सब पता था। रामचरित्र मानस में देखिये मैं साहित्य का विद्यार्थी हूं इसलिये कभी नहीं कहूंगा कि वो सारा गड़बड़ है। उसमें कुछ जगह अच्छी भी है। ‘मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक। पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।।’
मंदिर टूटने का मस्जिद बनाने का मुसलमानों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं
और एक मजेदार बात सुनिये तुलसीदास कब पैदा हुवे। कब रचना कर रहे थे। अकबर के समकालिन। अकबर के पहले बाबर आ चुका होगा। अगर इनकी कथा मान ले तो बाबर ने मंदिर तोड़ कर मस्जिद बना दी होगी। राम का सबसे बड़ा उपासक उस समय कौन? तुलसी दास बारह रचनायें प्रमाणिक मिलती हैं। किसी भी रचना में मंदिर टूटने का मस्जिद बनाने का मुसलमानों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं लिखा गया है। ये कैसे हो गया रे भाई। और तो और तुलसीदास ने कविता की उत्तरावली में क्या कहा -‘धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ। काहू की बेटी सों, बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगर न सोऊं। तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको, रूचै सो कहै कछु ओऊ।’ ‘मांगि के खैबो, मसीत को सोईबो, लैबो को, एकु न दैबे को दोऊ।।’ तुलसी दास राम का सबसे बड़ा उपासक क्या लिख रहा है कि मांग कर खाऊंगा और मस्जिद में सोऊंगा। उसे पता ही नहीं था कि एक दिन ऐसा आएगा कि उसकी इबादत करने वाले उस राम के नाम पर भी इस देश में लींचिंग हो जाएगी।
नककटा आ गया, नककटा आ गया
इसलिए मैं आपसे कह रहा हूं कि आपकी पीढिय़ों को भटकाया जा रहा है भरमाया जा रहा है कि कोई पढ़े ना कौवा कान ले गया कौवा को दौड़ाया। पिछली बार यहीं आपके बिलासपुर में कहानी सुनाई थी आपको भी सुना रहा हूं। एक गांव में एक आदमी की नाक कट गई। तो उसको सब कहते थे नककटा आ गया, नककटा आ गया। और बड़ा अपमान करते थे कि नाक कट गई है उसकी बेइज्जति हो रही है। उसने दिमाग लगाया। कहा कि - अगर मैं अकेला रहूंगा तो मुझे ऐसे ही आलोचना करते रहेंगे। उसने एक आदमी को बुलाया और कहा कि बच्चा सुनो पता यह नाक कैसे कटी? तो कहा नहीं? उसने कहा यह नाक मैंने जानबूझकर कटवाई है। और जैसे ही नाक कटवाई वैसे ही उसे खुदा परमेश्वर से सीधे साक्षात्कार हो गया और मुझे मोक्ष मिल रहा है। वो आदमी कहा अच्छा तो - हां। तो तुमको विश्वास नहीं। नहीं। कहा कि -अपने नाक कटा कर देखो? तुरंत बोला और बहुत समझाते - समझाते कम पढ़ा लिखा कम समझदार वो ऐसे किसी कार्यक्रम में गया नहीं होगा। उसको भी लगा होगा इस जनम में पेट नहीं भर रहा है। चलो भगवान से मिल लेंगे।
मोक्ष मिल जाएगा उसने अपनी नाक कटवा दी। नाक कटवाने के बाद भगवान - वगवान तो नहीं मिला। उसको बहुत दर्द हुआ। उससे पूछ रहा है कि हमको भगवान मिला तो नहीं? तो उसने कहा हमको भी नहीं मिला था। तो फिर तुमने क्यों कटवाई? तो कहा इस गांव में एक नककटा था अब हो गये हम दो। चलो तीसरे को खोजते हैं। इस देश में आपके स्वाभिमान मान सम्मान विज्ञान तकनीक भारत के संविधान सामाजिक न्याय और पुरखों की लड़ाई से बना हुआ भारत और आपके हाथ से छिनकर के एक मुर्खों की भीड़ तैयार की जा रही है। और एक मूर्ख अपने जैसा दूसरा मूर्ख खोजने के लिये अलग - अलग हथकंडे अपना रहा है। और धीरे धीरे आपकी शिक्षा बर्बाद कर रोजगार छिन रहा है। कलम और किताब आपसे छिन रहा है कि एक अविवेकी भीड़ बन जायें और सब एक साथ चलकर किसी कथा - भागवत का हिस्सा बन जायें। इस देश में स्कूल कॉलेज इसलिए ही बर्बाद किये जा रहे हैं। इसलिए हम अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ खड़े हो रहे हैं।
मैं हिंदू हूं इसलिए मैं अपने घर की बुराई का बात कर रहा हूं
अरे भई क्यों ना खड़े हो पुराने लोग जो मंच में बैठे हैं उनको भी याद होगा 1990 और 2000 के बीच सर देश में एक बार ऐसा समय आया था कि एक देवता की मूर्ति दूध पीने लगी थी। याद है आपको। मैं देवता का नाम भी नहीं लिया। किसी देवता का नाम नहीं ले रहा हूं। अधम ते अधम, अधम व्यक्ति मैं हूं मैं नाम नहीं ले रहा हूं। सम्मान कर रहा हूं किसी का अपमान नहीं कर रहा हूं कि आप ये बताइये उस देवता को आप जानते हैं ना जो दूध पीने लगी थी। और उसके बाद तब तो टीवी भी नहीं था मोबाइल भी नहीं था। टीवी बहुत कम घरों में था। धीरे - धीरे सारे देश में खबर फैल गई कि फलां मूर्तियां दूध पी रही है।
और सारा दूध ले जाकर लोग मूर्तियों को पिलाने लगे। कुछ दिनों के बाद खबर बंद। अब क्या मूर्तियां दूध पीना बंद कर दी क्या? ये मेरे मन में सवाल आ रहा है भाई? हम अपमान कर रहे हैं क्या किसी का। कि देखों भाई हिन्दू धर्म वालों का दावा है कि मैं हिंदू हूं इसलिए मैं अपने घर की बुराई का बात कर रहा हूं। हमारे तमाम मुसलमान धर्म, सिखों और ईसाइयों को भी है वो लोग भी अपनी आलोचना करें और करवायें। जहां भी इस तरह की कोई भी चीज हो जो नफरत पर आधारित हो उसे रोकना उनकी जिम्मेदारी है। अपना घर ठीक करना हमारी जिम्मेदारी है। और घर कैसे ठीक होगा मोहब्बत और प्यार से। तर्क और विवेक से और मिलकर रहे इसलिए हम यह बात कर रहे हैं।
इस्लाम भारत में आकर जातिवादी हो गया
पसमांदा समाज के लोग मुसलिम तबके में है कि नहीं भाई। जातिवाद क्या होता है इस्लाम ने दुनिया को समानता और मोहब्बत का पाठ पढ़ाया और भारत में आकर जातिवादी हो गया। खान पठान शेख सैय्यद एक तरफ और पसमांदा एक तरफ यह सच्चाई है कि नहीं। इसलिए मैं आपसे गुजारिश करने आया हूं। इन बातों का किसी धर्म से कोई मतलब ही नहीं है। इन बातों का मतलब मोहब्बत और प्यार से है और अगर आप अपनी पीढिय़ों को अंधविश्वासी बनाएंगे, तो आपकी पीढिय़ा मानसिक रूप से गुलाम पैदा होंगी। और कोई धर्म बचाने और कोई मंदिर मस्जिद के नाम पर लडऩे आपके घर से चला जाएगा आपका बच्चा बर्बाद हो जाएगा। मेरी गुजारिश यह है कि अपने बच्चों को किसी साम्प्रदायिक दंगों में किसी कथा - भागवत में जाने से रोकिये और किसी तरह उसको स्कूल कॉलेज विश्वविद्यालय भेजिये तभी वह जाकर बचेगा। यही केवल कहने आया हूं। और इसके लिये संविधान बचाना जरूरी है।
नाराज मत होइये, कुछ देर बैठ के सुन लीजिए
यह संविधान इसलिए बचाना जरूरी है कि ‘माटी का एक नाग बनाकर पूजै लोग लुगाया।’ अब बात छोडिय़े मैं ज्यादा बोलूंगा तो मुझ पर कल को मुकदमा और इसलिए मैं अपने पुरखे को याद कर रहा हूं। कबीर को बाबा साहेब अपना गुरू मानते थे। पहला गुरू-तथागत बुद्ध, दूसरे गुरू कबीर साहेब और तीसरे गुरू महात्मा ज्योतिबा फुले। ‘अपने कथा भागवत की बात छोडिय़े। देखिये कुछ लोग नाराज भी हो रहे हैं। नाराज मत होइये, कुछ देर बैठ के सुन लीजिए मैं आपकी काम की बात बता रहा हूं।
क्या है इन्होंने लिखा है जिसमें भारत का संविधान किसी व्यक्ति को कथा भागवत करने की इजाजत देता है तो वही संविधान हमें भी अपनी बात कहने का अधिकार देता है। और इसे कोई रोक नहीं सकता कोई छिन नहीं सकता। इसलिए हम यह बात करने आये हैं। शिक्षा और स्कूल बर्बाद हो रहे हैं इसकी चिंता कौन करेगा? हम करेंगे की नहीं करेंगे। हमारी चिंता इस छत्तीसगढ़ के जितने भी सरकारी स्कूल हैं, जितने भी सरकारी विश्वविद्यालय हैं? जितने भी सरकारी अस्पताल हैं? जितने भी आपके कंपनी हैं, जितना भी आपका सरकारी जमीन हैं?उसको बचाना हमारी जिम्मेदारी है की नहीं है? और इसलिए हम यह जिम्मेदारी निभाने यहां आये हैं।
आपके बच्चों की शिक्षा और रोजगार की चोरी हो रही है
हमारे गांव में एक किस्सा चलता था सुनिये! गांव में भैंस चुराने वाले लोग आते थे। कि गांव में होता है कि भैंस के गले में घंटी बांधते हैं। अंधेरे में भैंस अगर हिलती डूलती है तो घर वाले चैन से सोते हैं कि भाई भैंस सुरक्षित है और हम चैन से सो रहे हैं तो चोर जब आते थे तो भैंस को चुराकर ले जाते थे और घंटी कोई और चुराकर ले जाता था। इसलिए मैं कह रहा हूं तो जो गांव वाले जागते थे तो इसलिए वे किसके पीछे जागेंगे? जिधर घंटी बज रही है। और बाकी चोर भैंस चुराकर दूसरे रास्ते ले जाते थे। इसलिए अंत में जब चोर घंटी को फेंक के भाग गये तो गांव वालों को क्या मिला सिर्फ घंटी?
इसलिए असली चोरी उधर हो गई मेरा कहना है कि इस समय आपके बच्चों की शिक्षा और रोजगार की चोरी हो रही है की नहीं हो रही है। आपके कलम किताब खतरे में हैं की नहीं हैं? हम उसी की बात करने आये हैं रे भाई और ये कहां से गलत बात हो गई रे भाई। और भारत का संविधान अनुच्छेद 51 (ए) इस बात की इजाजत देता है कि हम अपने देश में वैज्ञानिक चेतना का प्रसार करेंगे। आप अपना पक्ष चलाओं हम अपना चलाएंगे जिसका सही होगा उसकी बात आगे बढ़ जाएगी। इतना सा ही तो खेल है।
मंडल कमीशन कह रहा है कि प्राइवेट सेक्टरों में भी आरक्षण होना चाहिए?
अगर शिक्षा और कलम की बात करना, रोजगार की बात करना सरकारी संपत्तियों को बेचने से रोकने की बात करना इसका हक कौन दे रहा है संविधान दे रहा है। ये लड़ाई है की नहीं अच्छा एक बात बताइये। सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलता है मिलता है ना। अगर सरकारी चीजें प्राइवेट हाथों में बेची जा रही हैं तो उसमें आरक्षण है क्या आपका। तो नहीं है उसमें आरक्षण? तो मंडल कमीशन कह रहा है कि प्राइवेट सेक्टरों में भी आरक्षण होना चाहिए? क्या हमारी यह लड़ाई नहीं होनी चाहिए क्या? कि जहां भी इस देश में कोई भी सरकारी गैर सरकारी संपत्ति हो उसमें इस देश के एससी, एसटी, ओबीसी और जितने भी कमेरा लोग हैं उनको उनकी आबादी के अनुपात में वहां उनको जगह मिलनी चाहिए की नहीं? यही तो हम यहां कहने आये हैं। और यहां पर छत्तीसगढ़ और ‘छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा’ पिछले दिनों आरक्षण बढ़ाया गया ना? एक बात बताइये? जितने लोग ये धर्म - वर्म की बात करे हैं आरक्षण का विरोध क्यों करते हैं?
आप अपना काम करिये हम अपना काम करेंगे? अगर आरक्षण न होता तो हमारे देश में जितने प्रोफेसर, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, बने हैं क्या इतने कभी एससी - एसटी समाज के कभी बन पाते क्या? जहां आरक्षण नहीं है वहां एससी, एसटी, ओबीसी पहुंच पाये हैं क्या? जैसे न्यायापालिका- न्यायपालिका में आरक्षण नहीं है। आज की डेट में सुप्रीम कोर्ट में दो शेड्यूल कास्ट के जज हैं और एक ओबीसी के जज हैं। शेड्यूल ट्राइब का तो कोई जज ही नहीं। ये सवाल पूछना क्या संविधान विरोधी बात करना है?
मैंने अभी एक आरटीआई लगाई है। मेरे यूट्यूब चैनल में आप देखेंगे। इस देश के 45 केन्द्रीय विश्वविद्यालय में आज की डेट में जितने भी प्रोफसरों के पद हैं 90 से 99 प्रतिशत तक एससी, एसटी, ओबीसी के प्रोफेसरों के पद खाली पड़े हैं। और आज भी इस देश में 45 केन्द्रीय विश्वविद्यालय में 41 प्रोफेसर ओबीसी के हैं और 20 - 25 पोस्ट शेड्यूलड कास्ट के हैं और ऐसे ही 10 प्रतिशत ट्राईब के हैं और 90 प्रतिशत पोस्ट में कौन हैं मैं नहीं जानता उनकी जाति क्या है। आप समझदार लोग हैं आप ही बताइये उनकी मेरिट कौन चेक करता है।
1 प्रतिशत लोगों के पास साढ़े चालीस प्रतिशत सम्पत्ति
अब एक बात बताइये अभी भारत में एक रिपोर्ट आई है। वो रिपोर्ट कह रही है कि इस देश में 1 प्रतिशत लोगों के पास साढ़े चालीस प्रतिशत सम्पत्ति हैं। आपने रिपोर्ट पढ़ी है क्या? इसको आसान भाषा में कहूं तो अगर 100 लोग इस देश में हैं तो और सौ रुपया इस देश का है तो 100 रुपये में से एक आदमी साढ़े चालीस रुपया कब्जा किया हुवा है। और 50 आदमी केवल तीन रुपये में अपना गुजारा कर रहे हैं। मैं जानना चाहता हूं कि वह 50 आदमी जो तीन रुपये में अपना गुजारा कर रहे हैं वो कौन से समुदाय से हैं। ये जानना मेरा हक है और इसका अधिकार मुझे भारत का संविधान देता है। सबसे ज्यादा गरीब कौन है रे भाई...। सबसे ज्यादा बीमारियों से कौन मर जाता है...। सबसे ज्यादा किसके प्रोफेसर कम बने हैं ...किसके डॉक्टर कम बने हैं...। ये सवाल क्या छत्तीसगढ़ का सवाल नहीं है क्या?
राज्यपाल आरक्षण पास नहीं कर रही है
आपको कल को कोई आंदोलन करना हो तो आपको अगर दो विकल्प चुनना पड़े कोई धर्म - वर्म का आंदोलन हो और दूसरी ओर आपके आरक्षण 76 प्रतिशत कर दिया गया जिस पर एक राज्यपाल रोक कर बैठी हुई हैं और वह पास नहीं कर रही है। तो बताइये यह किसका हक मारा जा रहा है। और ये सवाल है मेरा आपसे और अगर आरक्षण मिलता तो आपको उसका लाभ मिलता की नहीं मिलता? आपके बच्चों को शिक्षा मिलती की नहीं? और जहां आरक्षण नहीं है उसका क्या हो रहा है। इसलिए मंडल आंदोलन आया तो मंडल आंदोलन के विरोध में इस देश में दूसरा आंदोलन शुरू हो गया। पता है कि नहीं इस देश में दूसरा आंदोलन शुरू हो गया। हम यह जानना चाहते हैं हम केवल यह गुजारिश करने आये हैं कि ये संविधान भारत का संविधान स्कूल कॉलेज विश्वविद्यालय अस्पताल पढ़ाई, कमाई, सिंचाई, दवाई इन सारी चीजों को लेकर लडऩे की बात करता है।
रीड, राइट एवं फाइट
डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने कहा एजूकेट, आर्गेनाईज और एजिटेट मैं आपसे एक अपील करके जा रहा हूं रीड, राइट एवं फाइट अर्थात पढ़ाई, लिखाई और लड़ाई का वक्त आ गया है साथियों। किसी से डरने की जरूरत नहीं है। हम क्योंकि गलत रास्ते पर थोड़े ही हैं। हम तो हक की बात कर रहे हैं। और हक की बात करना किसी के सामने कोई चीज... नहीं है। भगतसिंह ने एक लेख लिखा है मैं नास्तिक क्यों हूं। आज की डेट में कबीर और भगतसिंह होते तो मुझे पता ही नहीं डर है कि उनका क्या होता? भाई आज की डेट में कबीर साहब होते -‘मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै हीरा पायो गांठ गांठियायो, बार बार वाको क्यों खोलै। हलकी थी तब चढ़ी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोलै।’ ‘कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लिनी बनाय ता चढि़ मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।।’ ‘पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पुजू पहाड़।’ ‘घर की चाकी कोई ना पूजे, जाको पीस खाए संसार।। ’ ‘मोको कहां ढूंढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।।’ और हम कबीर को सिलेबस में पढ़ते और पढ़ाते हैं।
जिंदा नाग जब घर में निकले, ले लाठी धमकाया
कबीर का क्या करेंगे? कबीरदास ने लिखा है क्या लिखा है सुनिये? -‘माटी का एक नाग बनाके, पुजे लोग लुगाया। जिंदा नाग जब घर में निकले, ले लाठी धमकाया।।’ ये तो कबीर को पढ़ रहा हूं ना भाई और कबीर पर अभी तो बैन नहीं है इस देश में अभी बोलने का आजादी है ना। ‘ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग। तेरा साईं तुझ ही में हैं, जाग सके तो जाग।’ और क्या लिखा है ‘मुंड मुडय़ा हरि मिलें, सब कोई लेह मुड़ाय। बार बार के मुड़ते, भेंड़ा न बैकुण्ठ जाय।।’ ये कौन लिख रहा है कबीरदास इसको कौन छपवाया भारत सरकार। और इसको क्या कहे कि ‘मन न रंगाये रंगाये जोगी कपड़ा। आसन मारि मंदिर में बैठे ब्रह्म छांडि़ पूजन लागे पथरा। कनवा फड़ाय जटवा बढ़ौले दाढ़ी बढ़ाय जागी होइ गैले बकरा।’ कबीर बुल्लेशाह इन लोगों ने दो - तीन काम किया। उन कामों का इस समय सख्त जरूरत हैं। पहला काम - ‘किसी भी साम्प्रदायिक काम में हमें नहीं जाना।’ हमें किस काम में जाना है ‘शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार।’
आप किधर जायेंगे?
एक बात बताइये आपको अगर कल दो ऑप्सन मिल जाये एक तरफ इस तरफ... कोई काम करना हो और दूसरी तरफ अपने बच्चे का स्कूल कॉलेज विश्वविद्यालय बचाना हो तो आप किधर जायेंगे? ज्योतिबा फुले का नाम सुना है ना आपने। ज्योतिबा फुले के सामने एक संकट था। उन्होंने कहा इस देश में महिलाओं और दलितों के बच्चों को पढऩे का अधिकार ही नहीं है। पढऩे का अधिकार नहीं था तो महात्मा फुले ने क्या किया स्कूल खोलेंगे किसके लिये? दलित घरों के, शुद्र घरों के जो अछूत घरों के बच्चे थे और लड़कियों को जिनको पढऩे से रोका गया उनको पढऩे के लिये स्कूल खोला गया। इस बात से सबसे ज्यादा कौन नाराज हुआ। उस इलाके के कौन लोग थे मैं इशारा कर रहा हूं आप सब जानते हैं?
जानते हैं तो कौन विरोध किया था शिक्षा का विरोध कौन किया था? सती प्रथा खत्म हो इसका विरोध कौन किया था? विधवा विवाह का विराध कौन किया था? बाल विवाह खत्म हो इसका विरोध कौन किया था? वोटिंग अधिकार महिलाओं को मिले इसका विरोध कौन किया था? महिलाओं को शादी की उम्र बढ़ाई जाये और कम उम्र में विवाह ना हो इसका विरोध कौन किया था? आप पहचानते हैं कि नहीं? इस देश में किसका - किसका विरोध हुआ और तब जाकर महात्मा फुले के पिता को जाकर उन लोगों ने समझा दिया कि आपका बच्चा धर्म विरोधी काम कर रहा है। ये शुद्रों के बच्चों को पढ़ाने के लिये स्कूल खोल रहा है। पिताजी ने बुलाया और उन्होंने कहा कि भाई तुम दोनों ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले तुम दोनों को दो में से एक चुनना होगा या तो तुम अपना घर चुनो या तुम अपना स्कूल चुनो।
वह ऐसा भारत जो किसी धर्म की किताब से नहीं चलेगा
हाथ उठाकर बताओ कि राजनांदगांव के लोगों कि ज्योतिबा फुले ने अपना घर चुना था, क्या कि ज्योतिबा फुले ने अच्छा पुत्र होना चुना था, क्या ज्योतिबा फुले ने पिता होने की बात मानी क्या फुले धर्म वालों से डर गये थे क्या? हम उस पुरखें के वारिश है जिन्होंने अपना सबकुछ छोडक़र स्कूल खोला और अगर वे नहीं स्कूल खोले होते तो हम जैसे लोग यहां खड़े होकर आंख में आंख देकर बात नहीं कर रहे होते। तो जिस सीढ़ी पर चढक़र हम यहां पर आये हैं तो उस सीढ़ी को हम नहीं बचायेंगे तो कौन बचाएगा भाई। अगर स्कूल नहीं होता तो हम यहां नहीं होते। अगर भारत का संविधान नहीं होता तो हम यहां नहीं पहुंच पाते। यह बात करना गलत है क्या? डॉक्टर आम्बेडकर, मंडल कमीशन, डॉक्टर राम मनोहर लोहिया, भगत सिंह इन सारे लोगों ने कौन सा भारत बनाने की कोशिश की थी। अब मैं आखिरी में कुछ बात बोलकर अपनी बात खत्म करूंगा। वह ऐसा भारत जो किसी धर्म की किताब से नहीं चलेगा। किसी भी चीज से नहीं चलेगा।
एक किस्सा सुनाता हूं। राजनांदगांव छत्तीसगढ़ के लोगों... इस देश में जब भारत का संविधान बन रहा था तो कुछ लोगों ने एक सलाह दी थी। भारत का संविधान भगवान के नाम से शुरू होना चाहिए। कुछ और लोग भी थे जिन्होंने कहा कि खुदा के नाम से शुरू होना चाहिए कुछ और लोगों ने कहा कि कुछ और नाम से शुरू होना चाहिए। डॉक्टर आम्बेडकर तो समझदार आदमी तो थे। पढ़े लिखे थे। डॉक्टर आम्बेडकर को पढऩे को मौका नहीं दिया, पीने को पानी नहीं दिया। पढक़र विदेश से लौटकर आये तो घर नहीं दिया रहने को। अधिकारी थे तो उनको फाइल फेंक कर दी जाती थी। कभी डर कर विदेश नहीं गये, कभी डरे नहीं और आंख में आंख मिलाकर अपने समाज के हित के लिये वो ताउम्र लड़ते रहे।
हमारा संविधान 'वी द पीपुल ऑफ इंडिया हम भारत' के लोग से शुरू होता है
उस आदमी ने जो एक चाल चली उसको सुनिये-भारत का संविधान किससे शुरू होगा इसको लेकर अब वोटिंग होगी। वोटिंग में तमाम भगवान खुदा हार गये और हमारा संविधान 'वी द पीपुल ऑफ इंडिया हम भारत' के लोग से शुरू होता है इसलिए हम उस संविधान को बचाने के लिये लड़ रहे हैं। उस संविधान ने हम सबको बराबर बना दिया। इस देश में आस्तिक लोगों को हक है अपने भक्ति करने का, उतना ही इस देश में नास्तिकों को हक है अपनी नास्तिकता की बात करने का। जितना इस देश में हक है लोग अपने को भगवान को पूजने का उतना ही इस देश में हक है जो कोई नहीं मानता किसी को उसको पूजने की अपनी बात नहीं करने का हक है।
जो चार्वाक और लोकायत थे वो भी इस देश के थे ना?
और पता है संविधान के पहले भी यह काम हो रहा था। वेदों के बाद शक दर्शन आये उसमें दो दर्शन शांख्य और वैशेषिक पदार्थवादी चेतना के दर्शन हैं। जो पढ़े लिखे लोग हैं बुजुर्ग लोग हैं वे जानते भी होंगे। चार्वाक और लोकायत कि ‘यावत् जीवेत् सुखम् जीवेत्। ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्। भस्मिभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:।’ ये हमने थोड़े ही कहा यह आपके दर्शन में लिखा हुआ है। जो चार्वाक और लोकायत थे वो भी इस देश के थे ना? जो पदार्थवादी शांख्य और वैशेषिक थे वो भी इसी देश के दर्शन थे ना? जो अलवार नैनार के बाद सिद्ध और नाथ पंरपरा थे ओ भी इसी देश के थे ना जो इस देश में कबीर, रैदास, पल्टू, दादू भिखा भी इस देश के परंपरा है ना नारायण गुरू, बशवन्ना, चोखामेला और साहू जी महाराज से तथागत बुद्ध, आम्बेडकर और लोहिया तक वह भी इस देश की परंपरा है ना। वो लोग अपनी परंपरा मानते हैं हम अपनी परंपरा मानते हैं। उनकी परंपरा में इंसान को इंसान से लड़ाया जाता है हमारी परंपरा में हर जाति धर्म वालों को एक माना जाता है। यह फर्क है उनकी परंपरा और हमारी परंपरा में। उनकी परंपरा में जातिवाद के नाम पर जाति को लड़ाया जाता है हमारी परंपरा में हमको यह बताया जाता है कि कि तुम्हारी जातियां यहां बनाई गई है। इसलिए जातियों को मत पूजो।
हम मोहब्बत और प्यार की बात करने आये हैं
हमारा एक पुरखा घासीदास वो क्या लिखते हैं-‘आप सुनिये उन्होंने क्या लिखा कि -जात पात माने नहीं सत के महिमा गावे और पावन जेखर आचरण वो सतनामी कहाय। मनखे अछूत झन लियो कहो सिर्फ सम्मान और जातपात ला त्याग के सत बर देव जो जान।। ’ और वो सतनामी समाज के गुरू घासीदास हमारी मोहब्बत की परंपरा में हैं। और वो लोग जातियों को जातियों से लड़ाने की परंपरा में हैं। हम जातियों को जातियों से जोडक़र 90 प्रतिशत आवाम को एक करने की परंपरा में हैं। ये फर्क है हममें और उनमें हम मोहब्बत और प्यार की बात करने आये हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि हम जब यहां से जाएंगे यहां एक झगड़ा नहीं हो सकता है क्यों हम झगड़े की बात ही नहीं कर रहे हैं भाई। ये तो कुछ लोग अतिरिक्त उत्साह में आ जाते हैं कि आओ हम तुमको बताते हैं। ऐसे ही कुछ लोग कबीर के खिलाफ भी थे, ज्योतिबा फुले के खिलाफ में भी थे। सावित्री बाई फुले स्कूल पढ़ाने जाती थी तो पत्थर मारते थे। डॉक्टर आम्बेडकर को रहने को घर नहीं देते थे। डॉक्टर लोहिया की किताबे छपने को नहीं दिये।
अब लड़ाई बैलेट और बुलेट दोनों से होगी
वो तमाम लोग मान्यवर कांशीराम जब जाते थे इतना अजीज हो गये कि मान्यवर कांशीराम ने कहा कि जब वोट देने का अधिकार नहीं है तो किस बात का संविधान। 'अब लड़ाई बैलेट और बुलेट दोनों से होगी।' तब जाकर उनको अपना हक अधिकार मिला नहीं तो सामंती लोग जिन जातियों को कहते थे छोटी जात वे इन जातियों को वोट नहीं डालने देते थे। हमें वोट डालने का अधिकार किससे मिला - भारत का संविधान से। हमको पढऩे का अधिकार किससे मिला - भारत का संविधान से। हमको अपनी आजादी से कोई भी पेशा चुनने का अधिकार किससे मिला - भारत का संविधान से। हमें ब्राह्मण और शुद्र के बीच कोई भी छोटा बड़ा नहीं सब बराबर का अधिकार किससे मिला - भारत का संविधान से। मेरे रायपुर राजनांदगांव के वासियों आप अपनी वोट से ऐसे नेताओं को क्यों चुनते हो जिनकी चिंता स्कूल कॉलेज विविद्यालय नहीं है। इशारे में बोलकर जा रहा हूं। उसको वोट देना जो आपके बच्चों के भविष्य को बचाएगा। केवल इतना कह कर जा रहा हूं।
सारे तरफ लड़ाई छिड़ी हुई है इसको बचाएगा कौन?
जो दंगा में लगवाये, जो नफरत में लगवाये, जो जातियों को जातियों में लड़वाये। ओबीसी को ओबीसी से लड़ाते हैं। ये कुर्मी है, ये यादव हैं ये ग्वाल हैं ये अलग जाति के हैं तुम्हारा हक उसने छिन लिया। सतनामी को सतनामी से लड़ाओ और उसके बाद कबीरपंथी को उनसे लड़ाओ और दलितों को दलितों से लड़ा दो और आदिवासियों को अलग लड़ा दो। सारे तरफ लड़ाई छिड़ी हुई है इसको बचाएगा कौन? हम और आप अगर इस लड़ाई को नहीं बचा पाये। हम जब थे, और हम जब हैं, तब भारत का संविधान के कारण यहां ये कार्यक्रम कर ले रहे हैं और आंख में आंख डालकर बात कर ले रहे हैं। इस देश में इतनी बड़ी आबादी आपकी है तो इस देश में 'जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए?' समाजवादी आंदोलन और आम्बेडकरवादी आंदोलनों का नारा क्या था? सौ से कम ना हजार से ज्यादा समाजवाद का यही तकाजा। कोई गरीब अमीर के बीच 100 से 1000 के बीच की खाई नहीं होनी चाहिए।
बेचते - बेचते अपने दोस्त को दुनिया का सबसे बड़ा आदमी बना दिया कि नहीं
कुछ लोग हमारे देश में इतने अमीर हो गये हैं कि अपने नेता को वोट दिलाते हैं और इतना उसको पैसा कि देश बेच कर दिया जाता है। सौगंध मेरी मिट्टी की देश नहीं बिकने दूंगा और वह बेचते - बेचते अपने दोस्त को दुनिया का सबसे बड़ा आदमी बना दिया की नहीं बना दिया? देश बिक रहा है कि नहीं बिक रहा है रेल बिक रहा है कि नहीं बिक रहा है रेल बिक गई, भेल बिक गई, कम्पनी बिक गई? बीएसएनएल बिक गया, एमटीएनएल बिक गया, और बैक बिक रहे हैं, एलआईसी बिक रहे हैं। नई शिक्षा नीति में शिक्षा नीति बिक रही है, आपके जमीन और कंपनी बिक रही है। और नवरत्न की कंपनियां बिक रही है। सारा प्राइवेट सेक्टर बनता चला जा रहा है यह देश बिक नहीं रहा है तो क्या हो रहा है।
जिसके जेब में पैसा नहीं है उसका बच्चा अनपढ़ पैदा होगा
हम किसान थे और मजदूर हमें उन पूंजीपतियों का गुलाम बनाया जा रहा कि नहीं बनाया जा रहा है। गलत कह रहा हूं क्या? ये देश बिकेगा तो हमारी पीढिय़ा हमको माफ करेगी क्या? स्कूल बिक गया कि नहीं बिका जिसके जेब में पैसा है वह अपने बच्चों को अच्छी स्कूल में पढ़ाएगा और जिसके जेब में पैसा नहीं है उसका बच्चा अनपढ़ पैदा होगा। ये बताइये किस्मत तो ओ... बाबा क्या बताएगा मैं भी बता रहा हूं। गरीब घर का बच्चा बहुत मुश्किल है 99.99 प्रतिशत कभी डीएम, एसपी और आईएएस नहीं बन पाएगा? क्योंकि उसको अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाएगी किस्मत तो मैं भी बता रहा हूं। अगर उसको घर में अच्छी फीस जमा करने का पैसा नहीं है तो बहुत संभावना है कि वह बच्चा पढ़ नहीं पाएगा। ‘अगर किसी के घर में पैसा नहीं है तो हो सके तो वह नजला जुकाम से मर जाये।’ और जिसके पास पैसा है वह अपने शरीर का ट्रांसप्लांट करवा लें। विदेश और अमेरिका चला जाये और इलाज करवा ले।
मिटे गरीबी और अमीरी, मिटे चाकरी और मजबूरी
यह भारत बंटा हुआ है कि नहीं 90 प्रतिशत लोग जो मेहनतकश लोग हैं वो एक तरफ हैं और 10 प्रतिशत लोग जो मेहनत नहीं कर रहे हैं वो दूसरी तरफ हैं। तब मैं अपने आंदोलनों का नारा याद करता हूं। ‘मिटे गरीबी और अमीरी, मिटे चाकरी और मजबूरी, और क्या लिखा-पुर्नजन्म और भाग्यवाद इनसे जन्मा ब्राह्मणवाद।’ ‘ब्राह्मणवाद की क्या पहचान गिटपिट बोले करे ना काम, मानववाद की क्या पहचान ब्राह्मण शुद्र एक समान।’ ‘जिसमें समता की चाह नहीं वह बढिय़ा इंसान नहीं।, समाज बिना समाज नहीं बिन समाज जनराज नहीं जो जमीन को जोते बोये वो जमीन का मालिक होवे।’, ‘राष्ट्रपति का बेटा हो या चपरासी का संतान टाटा, बिरला, अडानी का हो सबको शिक्षा एकसमान, शिक्षा पर जो खर्चा हो बजट का दसवां हिस्सा हो।’,‘सबको शिक्षा सबको काम वरना होगी नींद हराम।, और सबको शिक्षा दे ना सके जो वो सरकार निकम्मी है, जो सरकार निकम्मी है वो सरकार बदलनी है।’ यही गुजारिश। यही अपील। और यही सांस्कृतिक लड़ाई इस देश में चल रही है।
बच्चों उस जाल में फंसना मत
राजनांदगांव और छत्तीसगढ़ के लोगों शिकारी आएगा जाल फैलाएगा, दाना डालेगा। और आपसे कोई पुरखा तथागत गौतम बुद्ध डॉ. आम्बेडकर और घासीदास से होते हुवे तमाम लोग आकर कहेंगे कि बच्चों उस जाल में फंसना मत आपको तो हजारों साल से समझाया जा रहा है। शिकारी आएगा जाल फैलाएगा, दाना डालेगा फंसना मत। लेकिन हम सारे वो लोग अपने पुरखों के बात सुने बिना उस जाल में फंसते चले गये हाथ उठाकर बोलिये उस जाल में फंस रहे या नहीं फंस रहे हैं। हम सब उसके शिकार हो रहे हैं कि नहीं और उसके बाद कहानी को आगे बढ़ाइये और अगर फंस भी गये तो सब अलग अलग उडऩा चाह रहे हैं।
उस जाल से सब अलग अलग निकलना चाह रहे हैं। उस जाल में से कोई तो हो जो आकर कहे कि अनेकता में सब खत्म हो जाएंगे। अनेकता में एकता करोगे पूरा ताकत एक साथ लगाओ और बेरोजगारी, महंगाई और साम्प्रदायिकता, भुखमरी, बेकारी, इसके जाल को उड़ा ले चलो संविधान और न्याय की आकाश में तभी जाकर मुक्ति होगी। दलित, पिछड़े , आदिवासी, एससी, एसटी, ओबीसी, मायनोरिटी आओ हम सब मिलकर एक हो जाये मोहब्बत प्यार का भारत बनाये जहां नफरत न हो, कोई इंसान इंसान का दुश्मन ना हो, कोई हमारे बच्चों का भविष्य ना खत्म करें। कोई स्कूल ना बर्बाद करें कोई शिक्षा ना बर्बाद करें। अगर यह नहीं बचा तो संविधान नहीं बचेगा।
जिसने अपने वक्त का सच कहा वो कबीर जिंदा थे, जिंदा हैं और जिंदा रहेंगे
आज तथागत बुद्ध होते तो क्या करते? आज बाबा साहेब होते तो क्या करते हिम्मत से बोलते ना सब? कबीर के समय जाने कितने दरबारी कवि थे जिन्होंने किसी राजा की प्रशंसा की, किसी ने दरबार की प्रशंसा की। जिसने अपने वक्त का सच कहा वो कबीर जिंदा थे, जिंदा हैं और जिंदा रहेंगे। क्योंकि वो सच बोलकर गये। डर गये होते तो क्या वो बचे होते क्या? डरने वालों का इतिहास नहीं लिखा जाता। हम क्यों डरे हम क्या गलत रास्ते पर हैं क्या? हमारी लड़ाई मोहब्बत प्यार की लड़ाई। भारत का संविधान यह इजाजत देता है अनुच्छेद 51 (ए) कि वैज्ञानिक चेतना का विस्तार करो। हम अंधविश्वास पाखंड का विरोध करते रहेंगे। और हम कहेंगे कि वैज्ञानिक चेतना से हमारा समाज आगे बढ़ रहा है। क्योंकि हमें स्कूल चाहिए, हमें विश्वविद्यालय चाहिए, हमें रोजगार चाहिए, हमें सरकारी नौकरियां चाहिए, हमें सरकारी जमीन चाहिए और हमें मंडल कमीशन और भारत का संविधान चाहिए।
बंदर का न्याय?
जातियों को जातियों से लड़ाया जा रहा है आपस में हमारा दुश्मन कोई नहीं है। वो बंदर वाली कहानी मालूम है ना दो बिल्लियों को रोटी मिल गई। बिल्लियां लडऩे लगी तो एक बंदर आया और कहने लगा रूको हम तुम्हारा न्याय करते हैं। और तराजू लेकर आया और एक तरफ जिधर रोटी ज्यादा थी उधर से रोटी तोडक़र खा लिया। फिर तराजू पर हाथ रखा तो दूसरी तरफ पलड़ा ज्यादा दिखा उसे उस तराजू का रोटी तोडक़र खा लिया। तो इधर ज्यादा हो गई और करते - करते दोनों तरफ से दोनों की रोटियां खा गया और कहा जाओ बिल्ल्यिों मैंने तुम्हारा न्याय कर दिया। ना एक टुकड़ा तुमको रोटी मिली और ना एक टुकड़ा तुमको रोटी मिली देखो इससे बड़ा जस्टिस क्या होगा?
कोई तो है जो हमारा हक छिन रहा है। समझदार को इशारा काफी है। इसलिए मैं कह कर जा रहा हूं कि हक की लड़ाई और हक की बात और एक कविता सुनाकर अपनी बात खत्म करूंगा-लडऩे के लिये चाहिए थोड़ी सी सनक, थोड़ा सा पागलपन।
हमारा एक मित्र है विहार वैभव उसने एक कविता लिखी है-
लडऩे के लिये चाहिए थोड़ी सी सनक, थोड़ा सा पागलपन,
और एक आवाज को बुलंद करते हुवे मुफ्त में मर जाने का हुनर।
बहुत समझदार और सुलझे हुवे लोग नहीं लड़ सकते कोई लड़ाई,
सुलझे हुवे लोग नहीं लड़ सकते कोई लड़ाई, नहीं लड़ सकते कोई क्रांति।
जब घर में लगी हो भीषण आग, तो आग के जद में हो बहनें और बेटियां,
तो आग के सीने पर पांव रखकर बढक़र उन्हें बचा लेने के लिये नहीं चाहिए कोई दर्शन या नहीं चाहिए कोई महान विचार।
चाहिए तो बस थोड़ी सी सनक, थोड़ा सा पागलपन और एक खिलखिलाहट और बचाने के लिये बेवजह झुलस जाने का हुनर,
जब मनुष्यता डूब रही हो,
बहुत काली आत्माओं के पाटों के बीच बहने वाली नदी तो नहीं चाहिए।
तैराकी का कौशल सांसों को छाति के बीच रोक नदी में लगाकर छलांग डूबते हुवे को बचा लेने के लिये चाहिए तो बस थोड़ी सी सनक, थोड़ा सा पागलपन,
और एक आवाज की पुकार पर बेवजह डूब जाने का हुनर।
बहुत समझदार और सुलझे हुवे लोग नहीं सोच सकते कोई नदी,
नहीं हर सकते कोई आग, नहीं लड़ सकते कोई लड़ाई।
इसलिए थोड़ा कम समझदार ही सही हम लोग इतना समझ रहे हैं कि अगर आज तो कल स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय नहीं बचेगा। तो कल हम बोलने लायक भी नहीं बचेंगे। हम हैं तो हम बोल रहे हैं। क्योंकि इस देश में भारत देश का संविधान लागू है। हमारी आने वाली पीढिय़ा भी हमारी तरह ललकार के बोल सकें। इसके लिये हर घर संविधान, घर - घर संविधान जैसा एक 'मिशन मूमेंट' ऐसा ही चलाना होगा सबको जोडक़र रखना होगा। मोहब्बत प्यार से आगे बढ़ाना होगा और आपने मुझे इतनी देर सुना बहुत बहुत धन्यवाद, फिर मिलेंगे।
हक हुकूक की लड़ाई लड़ते रहेंगे। बिना डरे बिना हिचके, सच की बात करते रहेंगे। क्योंकि बात यह है कि ‘भूख ने प्यास ने, पलास ने पाला है, हम कभी बहके हैं तो फाको ने सम्हाला है, हमें जब्र ने आहनी तंजीन में डाला है, हमें झोपड़े फूंक कर मैदा में निकाला है।
हम आज लिखेंगे एक नई कहानी अपनी और इस संविधान के लिये दे देंगे जवानी अपनी। और इसलिए हम यहां लडऩे आये हैं कैफी आजमी का ओ शेर-कि ‘हम बचाएंगे, सजाएंगे, संवारेंगे। हर मिटे नक्श से निखार उभारेंगे तुझे। अपनी सोहरत का लहू देकर सींचेंगे तूझे। दार पर चढक़र फिर एकबार पुकारेंगे तूझे। राह इमदाद (मदद) की देखें। भले तौर नहीं हम बाबा साहेब और भगतसिंह के साथ हैं कोई और नहीं।
जय भीम! जय मंडल, !! संविधान जिंदाबाद, !! उलगुलान जिंदाबाद!!! इंकलाब जिंदाबाद!!!! जोहार छत्तीसगढ़!!!!
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23/01/2023
RS MARKO
Very important and informative content. thanks with regards
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23/01/2023
RS MARKO
Very important and informative content. thanks with regards
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