रोहित वेमुला को याद करते हुए तीन ख़त

लक्ष्मण यादव

 

साथी रोहित! काश तुम देख पाते इस 'आज' को... (17 जनवरी 2017)

पूरे एक साल हो गए आज तुम्हारी 'सांस्थानिक हत्या' के। तुमको व्यक्तिगत से रूप से बहुत कम जानने के कारण तुमसे सहमति-असहमति की बात अस्पष्ट है। हाँ, तुम्हारे ऐक्टिविज़्म को सलाम। तुम्हारे अंतिम पत्र को आज भी एक 'टेक्स्ट' के रूप में हम जैसे जाने कितने युवा अक्सर पढ़ते होंगे; तुम्हारे सपने आज जाने कितनी आँखों में आंसुओ के बीच पलते होंगे; तुम्हारे लगाए नारे आज जाने कितनी ज़ुबाँ पर चढ़कर गूंजते होंगे; तुम आज भी हो, काश तुम भी ये देख पाते। 

लेकिन सुनो, तुम हार मान लिए ये सही नहीं लगता मुझे आज भी। लड़ना था साथी, माना कि लड़ना आसां कत्तई नहीं थी। माना कि तुम हार मानते हुए भी, टूटते हुए भी एक सन्देश देकर हज़ारों वर्षों के संघर्ष को एक मोड़ देना चाहते थे, बावज़ूद इसके तुमको टूटना नहीं चाहिए था साथी। तुम उस आख़िरी लम्हों में क्या सोच रहे थे, बताओ ना। क्या अकेलापन हावी हो गया था। क्या सत्ता प्रतिष्ठानों के षड़यंत्र भारी पड़ने लगे थे, या सदियों की लड़ाई को एक नया मोड़ देने की ज़िद आन पड़ी थी।

बताओ ना, आख़िरी बार चलती क़लम कैसे रोके होंगे तुम। क्यों रोक दिए उसे तुम? काश! तुम देख पाते कि सुदूर गाँवों तक तुमने क्या ताक़त भर दी है। शैक्षणिक मठाधीशी को ललकार गए थे ना, आज भी रोज़ वो हिले ही जा रहे हैं। दिवार दरकनी शुरू हो चुकी है। हाँ! हमले अब गुप्त रूप धर लिए हैं। काश तुम ये भी देख पाते कि आज तुम्हारी तस्वीरें किन किन दीवारों पर हैं। हाँ! कुछ फ़ेसबुकिया शूरवीर आज चुप हैं, ये भी देख पाते। विचारों के संघर्ष में तुम जीत गए, झकझोर गए, सोये हुओं को जगा गए। तुम सही थे या ग़लत, लेकिन तुम मोड़ तो दे गए। तुमको पता है, वो हुंकार भरती हुई मंत्री साहिबा की हुंकार ग़ुम कर गए हो। और जाने कितनी मिमियाहटों में हुँकार भर गए हो।

साथी, तुम आज भी अपने उस पत्र के साथ हमारे साथ हो जो अब भी पढ़े नहीं जा सके; उन सपनों के साथ ज़िंदा हो जो आज भी अधूरे हैं; उन नारों के साथ गूंजते हो जो आज और ज़रूरी हैं; उन विचारों के साथ कौंधते हो जो कभी मरते नहीं। इसलिए आज उदास नहीं, उत्साहित हूं। बहुत कुछ करना है, बहुत लंबा सफ़र है लड़ना है। तुम भी होते तो हम साथ लड़ते। 

लड़ेंगे, जीतेंगे। 
जय भीम
इंक़लाब ज़िंदाबाद


साथी रोहित वेमुला, तुम हममें ज़िंदा हो....(17 जनवरी 2018) 

सबसे पहले तो तुम्हें क्रांतिकारी सलाम साथी. आज 17 जनवरी है. तुमको गए दो साल हो गए. तुम आज भी बहुत टूटकर याद आते हो. आज के दिन फिर से तुमसे अपनी वही एकमात्र शिकायत करूँगा कि साथी! यूँ हार नहीं मानना था, लड़ना और जीतना था. माना कि लड़ाई बहुत कठिन और लंबी थी, जिसे लड़ने में सब कुछ झोंक दिया था तुमने; लेकिन ये सही नहीं किये तुम.

साथी आज तुम्हारे बाद भी तुमसे ऊर्जा लेकर हम जैसे जाने कितने लड़ रहे हैं. काश! तुम भी आज होते और हम साथ मिलकर नारे लगा रहे होते- 'ब्राह्मणवाद की छाती पर, बिरसा फूले अम्बेडकर'. साथी! ये नारे अब और गूंजने लगे हैं. मुझ जैसा 'चुप्पा' युवा तक अपने कैम्पस में अब ज़ोर से ये नारा लगता है, तो तुम याद आते हो. तुम हममे जिंदा हो. 

साथी रोहित! तुमको पता है कि अब देश भर के कैम्पस में माहौल बदल रहा है. जहाँ एक तरफ़ वंचित-शोषित तबके के युवाओं में एक चेतना आई है और वे खुलकर बोल रहे हैं, तो वहीँ सत्ता अब और सूक्ष्म तरीके से हमला कर रही है. महीनों तुम्हारी फ़ेलोशिप बंद करने वाली सरकार अब तो सबकी फ़ेलोशिप बंद करती जा रही है. सीटें आधी कर दी, कैम्पसों में अपने चापलूसों को भर दिया, बोलने वालों की आवाज़ें प्रकारांतर से दबा रही है. शोधार्थी को गाइड धमकाता-समझाता है, तो नौकरियों के नाम पर सत्ता एक रीढ़विहीन चापलूस पैदा कर रही है.

अब कैम्पसों में आवाज़ उठाना और कठिन हो गया है. तुम्हारे जाने के दो साल बाद भी कैम्पस बदले नहीं, बल्कि और बदतर हो गए हैं. तुम होते, तो तुमको डीयू बुलाता और दिखाता.

साथी रोहित! हम आज भी मानते हैं कि तुम्हारी सांस्थानिक हत्या की गई. तुमको पता नहीं होगा कि तुम देशभर के युवाओं और विश्वविद्यालयों को झकझोर गए. तुम बता गए कि आज़ादी के सत्तर साल बाद भी देश की अकादमिक संस्थाओं में ब्राह्मणवादी, मनुवादी, सामंती, पितृसत्ता का ही कब्ज़ा है, जिसे तुमने नंगा कर दिया. इतना ही नहीं, तुमने जाने कितने द्रोणाचारियों को नंगा कर दिया, जो प्रगतिशील लिबास में छिपे थे.

आज पिछले एक साल में अपने दिल्ली विश्वविद्यालय में हम जैसे युवा बाकायदा इस कब्ज़े को देख पा रहे हैं, झेल रहे हैं और उसके खिलाफ़ खड़े होने की हिम्मत जुटा रहे हैं. तुमने हिम्मत दी, आज जाने कितने रोहित पैदा हो रहे हैं, लड़ रहे हैं. अब सवाल और पूछे जाने लगे हैं, आज के युवा बेचैन हैं. तुम होते, तो ....

साथी रोहित! तुम वैज्ञानिक बनना चाहते थे, तुम लड़ना और बदलना चाहते थे, लेकिन तुम्हारे सपनों की हत्या करने वाली सत्ताएँ आज भी ज़िंदा हैं और लगातार वही कर रही हैं. लेकिन अब चीज़ें बहुत तेज़ी से बदल रही हैं. तुमने जाने कितने प्रगतिशील संगठनों तक को अपने बैनर-पोस्टर में आंबेडकर की तस्वीर लगाने को मजबूर कर दिया, तुमने सत्ता चला रही पार्टी को आंबेडकर के सामने ला खड़ा किया, बशर्ते तमाशे जैसा ही सही, लेकिन अब तो आंबेडकर के राजनैतिक क़ातिल तक बेचैन हो गए.

जाने कितने युवा आज भी तुम्हारे ख़त को पढ़ते होंगे, बेचैन होते होंगे. तुमने कैम्पस ही नहीं, देशभर के युवाओं को झकझोरा, तो आज कहीं चंद्रशेखर लड़ रहा है, तो कहीं जिग्नेश बोल रहा है. तुम जहाँ कहीं होगे, तो क्या सोच रहे होगे, कभी सपने में आकर मुझे ज़रूर बताना. इसी बहाने मिलते रहना. 

एक बार फिर से तुम्हें इंकलाबी सलाम करने का मन है, ज़िन्दा रहना हममे, हम लड़ेंगे साथी, जब तक लड़ने की ज़रूरत बाकी होगी...

अलविदा दोस्त 
जय भीम, हूल जोहार
इंक़लाब ज़िंदाबाद 
तुम्हारा दोस्त, तुम्हारा हमख्वाब युवा.


(17 जनवरी 2020)

साथी रोहित!
जय भीम

भरोसा है कि सितारों के बीच ख़ुश होगे. चार साल हो गए तुम्हें देखे. तुम सितारों की सैर का वादा कर गए, तब से हर सितारे में तुम नज़र आते हो. चार साल से तुम्हारी एक ही तरह की तस्वीरें देख रहा हूँ, नई तस्वीरें नहीं देखीं. तुम सितारों के बीच ख़ुश होगे, लेकिन हम तुम्हें आज अपने बीच देखना चाहते हैं. भीतर तो तुम हो ही, काश, बाहर भी होते तो आज बड़ी तिश्नगी से वह लड़ाई लड़ रहे होते, जो देश लड़ रहा है. बहुत कुछ बदल गया दोस्त, आज तुमको याद करते हुए देश लड़ने की अपनी फ़ितरत हासिल कर लिया है. जो एक चीज़ नहीं बदली तो वह है ज़ालिम. आज भी हँस रहा है ज़ालिम.

पता है रोहित, इन चार सालों में बहुत कुछ बदल गया. आज के संघर्षों को तुम देखते तो खिलखिला कर ख़ुश होते क्योंकि आज देश की हर सड़क पर हो रहे संघर्ष का नायक आंबेडकर हैं. आज देश भर के स्टूडेंट्स एसोसिएशन आंबेडकर के बिना कुछ नहीं करते. ध्यान देना, स्टूडेंट्स बोला है लूम्पेन नहीं. रोहित, लेकिन एक दुःख है यार. तुम जिन्हें रोक रहे थे, उन्हें हम आज तक भी रोक नहीं पाए. वे बेख़ौफ़ हमला किए जा रहे हैं. वे सब कुछ रौंद देना चाहते हैं. इसीलिए तुम पर गुस्सा आता है कि ऐसे क्यों चले गए. होते तो मिलकर लड़ते न. ऐसे नहीं जाना था दोस्त. ये शिकायत हर साल करता रहूँगा.

मेरे यार रोहित! हम कभी मिल नहीं पाए, लेकिन पिछले चार सालों में अगर किसी से हर रोज़ मिला तो वह तुम हो. क्योंकि तुममें जो बात दिखी, वह कहीं और नहीं दिखी. एक ईमानदार थी तुममें, वैचारिक भी और ज़ेहनी भी. अगर तुम होते तो तुमको अब तक कई बार डीयू बुला चुका होते. हमने तुम्हारे नाम पर नारे लगाए हैं कि तुम ज़िंदा हो हमारे अरमानों में. पता है, आज तुम्हारे नाम पर कार्यक्रम कर रहे हैं हम. तुम होते तो भाषण देते. टूटी फूटी हिंदी बोलते, ताकि हमारे टूटे ज़ख्म भर पाते. तुम्हारी याद इसीलिए आती है कि पढ़ने के नाम पर तुमने कुछ फ़ेसबुक पोस्ट ही छोड़ रखी और छोड़ा तो एक लेटर.

यार, तुमने अपने आख़िरी पत्र में लिखा कि कोई रोए न. हर बार, हर साल इसी बात से रुलाते हो. मेरी माँ नहीं जानती थी तुम्हारे बारे में. लेकिन उसे हमेशा मुझे लेकर डर बना रहता है. लेकिन जब तुम्हारी माँ को रोते हुए भी लड़ते और हर जगह खड़े देखता हूँ तो उसमें मेरी माँ नज़र आती है. कितना कुछ सहना पड़ा है न इन माँओं को. लेकिन आज जब देश के तमाम 'शाहीन बागों' में लड़ती हुई माएँ दिखती हैं, तो ऐसा लगता है कि तुम इन सारी माँओं में ज़िंदा हो दोस्त. ऐसे ही ज़िंदा रहना होगा तुम्हें, जब तक कि हम तुम्हारे और तुम जैसे अनगिनत अनाम शहादत दे चुके लोगों के ख़्वाबों की दुनिया न रच लें. ज़िंदा रहना यूँ ही.

रोहित, पता है तुम जिन ताकतों से लड़ रहे थे न, वे आज बेइंतहा ज़ालिम हो चली हैं. अब लड़ाई ऑयर पर की लग रही है. तुम होते तो साथ लड़ने में कितना जोश रहता. फिर से कह रहा हूँ कि तुम हो. हमारे हर इंक़लाबी क़दम में तुम हो. बहुत कुछ बदला है लेकिन काफी कुछ बदलना बाकी है. अभी लड़ाई जारी है. जारी रहेगी दोस्त. हमारे दुश्मन बहुत होते जा रहे हैं, कई बार बहुत कमज़ोर महसूस करने लगता हूँ ख़ुद को. कई बार अकेला पाता हूँ ख़ुद को. लेकिन जब जब ऐसा महसूस करता हूँ, तब तब तुम भीतर से हिम्मत देते हो. ऐसे ही साथ रहना.

तुम सितारों में रहते हुए भी हमें ऐसे ही रोशनी देते रहना दोस्त. तुम रौशन हो. 
जय भीम दोस्त, साथी रोहित...

 


Add Comment

Enter your full name
We'll never share your number with anyone else.
We'll never share your email with anyone else.
Write your comment

Your Comment