छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी
सुशान्त कुमारछत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा और छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के संस्थापकों में से एक मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी की महज 48 साल की उम्र में हत्या कर दी गई थी। बताया जाता है कि 28 सितंबर 1991 को छत्तीसगढ़ के मशहूर मजदूर नेता को दुर्ग स्थित उनके अस्थायी निवास पर तड़के चार बजे के करीब खिड़की से निशाना बनाकर गोली मारी गई थी।

इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। शंकर गुहा नियोगी देश के जाने माने श्रमिक नेता थे, ऐसे में सीबीआई ने जांच शुरू की तो उसमें पलटन मल्लाह का नाम भी सामने आया। शंकर गुहा नियोगी 1977 में असंठित क्षेत्र के मजदूरों का सबसे बड़ा आंदोलन खड़ा किया था. छत्तीसगढ़ के इस मजदूर नेता का आंदोलन सिर्फ हड़ताल तक सीमित नहीं था. अपने सामाजिक कार्यों की वजह से इसे आज भी दूसरे आंदोलनों के लिए अनुकरणीय माना जाता है.
मूल रूप से पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के रहनेवाले नियोगी का असली नाम धीरेश था. 1970 के दशक की शुरुआत में वे छत्तीसगढ़ आए और यहां भिलाई स्टील संयंत्र (बीएसपी) में बतौर कुशल श्रमिक काम करने लगे. अपने छात्र जीवन से मजदूरों के समर्थन में काम करने वाले धीरेश जल्दी ही बीएसपी में एक मजदूर नेता के तौर पर पहचाने जाने लगे. उस समय तक इस संयंत्र में कभी मजदूरों की हड़ताल नहीं हुई थी या कहें कि उन्हें कभी अपनी मांगों के लिए एकजुट नहीं होने दिया गया था. लेकिन धीरेश के आने से यहां स्थितियां बदल गईं. पहली बार मजदूरों ने अपनी काम करने की दशाओं में सुधार के लिए हड़ताल की और उनकी मांगों के आगे प्रबंधन को झुकना पड़ा.
बीएसपी प्रबंधन ने धीरेश को नौकरी से बर्खास्त कर दिया. यह घटना 1967 की है. इसके बाद लंबे अरसे तक तक वे छत्तीसगढ़ में घूम-घूमकर मजदूरों को अपने अधिकारों के लिए जागरूक करते रहे. 1970 - 71 में वे दोबारा भिलाई आ गए और अपना नाम बदलकर शंकर कर लिया. अब वे भिलाई के दानी टोला की चूना पत्थर खदानों में मजदूर की हैसियत से काम करने लगे. अपने पहले के काम की वजह से धीरेश यानी शंकर यहां भी मजदूरों के बीच लोकप्रिय हो गए. उन्होंने मजदूरों के लिए ‘कमाने वाला खाएगा’ का नारा दिया था और जीवन भर वे इसी लाइन को सच बनाने के लिए कोशिश करते रहे थे.
उस समय बीएसपी की दल्ली और राजहरा स्थित लौह अयस्क खदानों में ठेके पर काम करने वाले मजदूरों की बहुत बुरी दशा थी. 14 - 16 घंटे काम करने के बदले उन्हें महज दो रुपये मजदूरी मिलती थी. उनकी कोई ट्रेड यूनियन भी नहीं थी. शंकर ने इन मजदूरों को साथ लेकर 1977 में छत्तीसगढ़ माइन्स श्रमिक संघ (सीएमएसएस) का गठन किया और इसके बैनर तले मजदूरों के कल्याण के लिए कई गतिविधियां शुरू कीं.
यूनियन के गठन के दो महीने के भीतर ही इससे तकरीबन 10 - 12 हजार मजदूर जुड़ गए थे. यह शंकर गुहा नियोगी और उनके कुछ साथियों का नेतृत्व ही था कि इस यूनियन ने अपने कामों में शिक्षा, स्वास्थ्य और शराबबंदी जैसे कार्यक्रमों को पूरी प्रतिबद्धता से शामिल किया. यह संगठन सितंबर, 1977 में उस समय देशभर में चर्चा में आया जब दल्ली-राजहरा की खदानों में काम करने वाले हजारों मजदूरों ने नियोगी के नेतृत्व में अनिश्चितकालीन हड़ताल कर दी. यह ठेके पर काम करने वाले मजदूरों की देश में सबसे बड़ी हड़ताल थी. इसका असर इतना व्यापक था कि संयंत्र प्रबंधन को मजदूरों की तमाम मांगें माननी पड़ीं.
इस हड़ताल ने छत्तीसगढ़ में नियोगी को सबसे प्रभावशाली मजदूर नेता बना दिया. उनकी यूनियन का साल दर साल विस्तार होने लगा. भिलाई की कई निजी कंपनियों के मजदूर भी उसके सदस्य बनने लगे. कहा जाता है कि सन 1989 के आसपास उद्योगपतियों की ताकतवर लॉबी इस संगठन से आशंकित रहने लगी. नियोगी को जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं और आखिरकार सितंबर, 1991 में उनकी हत्या कर दी गई.
यह घटना छत्तीसगढ़ के मजदूर आंदोलन के लिए बहुत बड़ा आघात थी.उनका 31 वाँ शहीद दिवस छत्तीसगढ़ में विभिन्न धड़ों द्वारा आयोजित है, उक्त कार्यक्रम में सम्मिलित होकर शहीदों का सपना पूरा करने का संकल्प लेंगे।
नियोगी हत्याकांड की दोबारा जांच कराने सरकार की टाल-मटोल
सिम्पलेक्स के मालिक उद्योगपति मूलचंद शाह सहित 9 लोगों को सी.बी.आई. द्वारा आरोपी बनाया गया था, सेशन कोर्ट दुर्ग द्वारा गोली मारने वाले पल्टन मल्लाह को फांसी तथा बाकी पांच आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा दी गई, उक्त प्रकरण उच्च न्यायालय होकर उच्चतम न्यायालय में अपीले पेश की गई, उच्चतम न्यायालय द्वारा मात्र एक आरोपी पल्टन मल्लाह को आजीवन कारावास की सजा दी गई बाकी सभी को बरी किया गया.
सी. बी. आई द्वारा शराब कंपनी के मालिक कैलाशपति केडिया को आरोपी नहीं बनाया गया जबकि नियोगी ने अपने ऑडियों कैसेट में हत्या की साजिश में केडिया व मूलचंद शाह का नाम रिकार्ड किये थे, जो कैसेट न्यायालय में पेश हो चुकी है, के बावजूद केडिया को आरोपी नहीं बनाया गया इसलिए बाद में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा उक्त प्रकरण की दोबारा जाँच कराने का निवेदन महामहिम राष्ट्रपति से किये थे महामहिम द्वारा छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को समुचित कार्यवाही हेतु पत्र 13 जनवरी 2016 को भेजा गया, किंतु डॉ. रमन सिंह की सरकार द्वारा जाँच नहीं कराई गई ना ही वर्तमान सरकार करा रही है।
केन्द्र सरकार द्वारा श्रम कानूनों में किया गया संसोधन
भीमराव बागड़े और जयप्रकाश नायर कहते हैं कि श्रमिक संघर्षो के कारण 44 श्रम कानून बने थे, केन्द्र सरकार द्वारा उन्हें समाप्त कर मात्र 4 श्रम कोड में तब्दील किया गया, जो 8 घंटे ड्यूटी का कानून था उसे 12 घंटे करके कार्पोरेट उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाया गया, ताकि सस्ते दर में श्रमिक उपलब्ध हो सकें, इसके अलावा रेल्वे, बैंक, बीमा, कोयला का निजीकरण किया जा रहा है, काला धन लाने का सपना दिखाने वाली सरकार उसी काले धन से जनता द्वारा चुनी गई सरकारों को खरीदने व सरकार गिराने में लगी हुई है, समर्थन मूल्य गारंटी का कानून अभी तक नहीं बनाया गया, डॉ. बाबा साहब आम्बेडकर द्वारा बनाये गये संविधान को बदलने की कोशिश जारी है, श्रमिक व मेहनतकशों को अधिकार पाने ट्रेड युनियन अधिनियम 1936 बनाया गया था, उसे भी उद्योगपतियों के पक्ष में संशोधित किया गया।
राजनांदगांव निगम के नेता व अधिकारी घोटाले को दबा रहे हैं
भीमराव बागड़े बताया कि मिशन क्लीन सिटी योजना के अंतर्गत नगर पालिक निगम राजनांदगांव सहित पूरे छत्तीसगढ़ में अप्रैल 2017 से कचरा संग्रहण शुरू किया गया किन्तु शासन के निर्देशानुसार राजनांदगांव निगम की 436 स्वच्छता दीदीयों को 6 हजार रूपये मासिक वेतन के अलावा कबाड़ी की राशि भुगतान नही की जा रही थी, इसलिए छ. ग. मुक्ति मोर्चा युनियन के साथ जुड़ने व संघर्ष करने के कारण जून 2021 से प्रत्येक महिला व पुरूष श्रमिकों को प्रतिमाह वेतन के अलावा 1000, 1200, 1500 रूपये राशि जो प्रतिमाह करीब 5 लाख रूपये वितरण की जा रही है किन्तु अप्रैल 2017 से मई 2021 तक कुल 4 वर्षों की कबाड़ी की राशि प्रत्येक महिला श्रमिक को 40-40 हजार करीब 1 करोड़ 50 लाख रूपये मिलनी थी जो निगम के अधिकारियों द्वारा गबन की गई, इस संबंध में निगम कमीश्नर महोदय द्वारा 6 अधिकारियों की जांच समिति अगस्त 2021 में बनाई गई किन्तु एक वर्ष बीतने के बावजुद सिटी पुलिस राजनांदगांव को जांच रिपोर्ट नही दी जा रही है इसलिये एफ आई आर दर्ज नही की जा रही है, निगम के अधिकारी व नेता मिलकर घोटाले को दबाने स्वच्छता दीदीयों को काम से बंद करने की धमकी दे रहे है।
जल, जंगल, जमीन की लूट जारी
हसदेव के 6 हजार एकड़ जंगल जो सरगुजा, सूरजपुर, कोरबा जिले की सीमाओं में है वहां की खनिज सम्पदा पर अडानी कम्पनी की नजर है, आस-पास के कई हजारों लोगों का जीवन यापन उसी पर निर्भर है जो अपने जल, जंगल, व जमीन को बचाने संघर्ष कर रहे हैं, आदिवासियों के हत्या के विरोध में बस्तर के सिलगेर में आज भी आन्दोलन जारी है, कांग्रेस सरकार भी इन मांगों को नजर अंदाज कर रही है।
भिलाई औद्योगिक क्षेत्र में श्रम कानूनों का खुला उल्लघंन
वर्तमान में ए.सी.सी. जामुल भिलाई द्वारा श्रम प्रावधानों का पालन नहीं किया जा रहा है सप्लाई श्रमिक के नाम पर अवकाश के दिनों का तथा ओव्हरटाईम ड्यूटी कराने पर नियमानुसार दो गुना मजदूरी नही दी जा रही उनके बोनस व लीव में भी कटौती की जा रही तथा उन्हें रेग्युलर 26 हाजरी काम नहीं दिया जा रहा है, ग्रेच्युटी में भी भेदभाव किया जा रहा है सुरक्षा के उपकरण भी नही दिया जा रहा है, औद्योगिक क्षेत्र में जहां श्रमिक संगठित नही है वहां उद्योगपति व ठेकेदारों की मनमानी जारी है, चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज कचान्दुर के स्वास्थ्य कर्मचारी जो करीब एक वर्ष से संघर्ष में डटे हुए है, उसी तरह शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय राजनांदगांव में छ.ग. सरकार द्वारा सीधी भर्ती के नाम पर ठेकेदारों के माध्यम से लुटने की योजना बनाई गई है।
उद्योगपति व ठेकेदार श्रम विभाग के निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं
क्रेस्ट कंपनी जोरातराई राजनांदगांव द्वारा शासन से बिना अनुमति लिये 21 महीनों तक संस्थान को बंद रखा गया तथा जुलाई 2021 से पुनः चालू किया गया, कंपनी द्वारा 200 से अधिक कर्मचारियों को रेग्यूलर वेतन का भुगतान किया गया किन्तु उसी कंपनी के 500 श्रमिकों को 12 माह का वेतन भुगतान कर 9 माह का वेतन भुगतान नही किया जा रहा है तथा करीब 100 श्रमिकों को 21 माह का वेतन भुगतान नही किया गया इसी तरह टॉपवर्थ रसमड़ा दुर्ग कंपनी द्वारा श्रम कानूनों की अनदेखी करते हुए वर्ष 2020 में 4 माह तथा वर्ष 2021 में 11 माह बंद रखा गया.
बंद के दौरान 300 श्रमिकों को रेग्युलर वेतन का भुगतान किया गया किन्तु 600 श्रमिकों को वेतन का भुगतान नही किया गया इसलिये संघर्षशील इंजीनियरिंग श्रमिक संघ (छ.मु.मो.) द्वारा की गई मांग पर सहायक श्रमायुक्त दुर्ग द्वारा 1 माह के भीतर पूरा वेतन भुगतान करने निर्देशित किया गया, क्योंकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार कोई भी कंपनी किसी भी कारणों से बंद हो, श्रमिकों को पूरे वेतन भुगतान के लिये कंपनी जिम्मेंदार होगी।
अघोषित आपातकाल ने नौजवानों की पत्रकारिता और राजनीतिक सोच ही बदल कर रख दी है लेकिन 70 के दशक के आपातकाल के समय या बाद में पैदा हुए लोगों ने इन 31 सालों में इस तरह का ऐसा कोई बड़ा घटनाक्रम वाला राजनैतिक दौर नहीं देखा है। आजादी के इस फासीवादी दौर में केवल कहानी सुनते रहे बाद का जो परिवर्तन था, वह यह कि पहले नोटबंदी, जीएसटी और धार्मिक अंधविश्वास को बढ़ावा देते हुए फासीवाद। आज नौजवानों को इसी ने सबसे ज्यादा जकडक़र रखा है। इस दौर में देश के अलग-अलग हिस्सों में बहुत सी घटनायें हुई लेकिन परिवर्तन लाने की हद तक कोई बहुत बड़ा आन्दोलन नहीं हुआ। सभी जनसंगठनें अपने-अपने क्षेत्र में अपने-अपने स्तर पर संघर्ष करती रहीं। आज का नौजवान कहीं न कहीं आपातकाल के दौर की तरह झंडे लिए मुट्ठी बांधे बदलाव के प्रहसन करते दिखते हैं।
नियोगी व बीएनसी मिल का ऐतिहासिक संघर्ष
1908 में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ लडऩे वाले बाल गंगाधर तिलक की गिरफ्तारी पर बीएनसी मिल के मजदूरों ने हड़ताल की थी। 1923 में चर्चित ठॉ. प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में 6 माह तक यहां लंबी हड़ताल चली। मजदूरों ने जब अधिकार मांगा, तो उन पर गोली चलाई गई। जिसमें जरहू गोंड नाम का श्रमिक शहीद हो गया। उन्हें भारत के मजदूर आंदोलन का पहला शहीद का दर्जा प्राप्त है। सिंह को अंग्रेजों ने जिलाबदर कर दिया और उनका राजनांदगांव रियासत में प्रवेश पर पाबंदी लगा दिया था। प्रतिबंध के अवस्था में प्यारेलाल सिंह ने चिट्ठी भेजकर नागपुर से रामचंद्र सखराम रूईकर को बुलाया। उनके आने के बाद पहली बार 23 दिन और दूसरी बार 65 दिन की हड़ताल हुई। रूईकर पर कई बार जानलेवा हमले हुए। उनको बोरे में बंद कर बाघ नदी की पुलिया में डाल दिया गया। इस हादसे में उनके शरीर के कई हड्डियां टूट गई। स्थानीय मछुवारों ने उन्हें बामुश्किल बचाया।
उस दौरान एक ऐसा समय भी आया जब सोशलिष्ट पार्टी कमजोर पडऩे लगी थी। तब उस समय प्रकाश राय पहली बार राजनांदगांव आए। प्रकाश राय भारतीय कम्युनिस्ट पाटी की मजदूर संगठन इंटक के नेता कहलाते थे। वे कभी कंपनी में पैठ नहीं बना सके। उसके बाद यहां के मजदूर इतिहास में काला अध्याय आता है। जिसे हम खजान सिंह खनूजा व बलवीर सिंह खनूजा के बदनुमा समय के नाम से जानते है। बड़ा भाई मैनेजमेंट का वकील था और छोटा भाई मजदूरों का वकील। यूनियन इन दोनों के बीच पाटे में पिसकर कारोबार बन गया था। जब मजदूर किसी तरह के समस्या को लेकर इनके पास आते थे।
तब जवाब में मजदूरों को इन भाइयों द्वारा कोर्ट केस करने कहा जाता था। इस तरह दोनों भाई मजदूरों के हितों के साथ खिलवाड़ करने के मामले में बदनाम हो चुके थे। यह मिल 1974 में नेशनल टेक्सटाईल कार्पोरेशन के अधिपत्य में चलना शुरू किया। कंपनी में श्रम कानूनों का घोर उल्लंघन होता था। मिल में 110 - 115 डिग्री फैरनहाइट के तापमान पर यहां सूत भाप से बनता था। मध्यप्रदेश में नेशनल टेक्सटाइल कार्पोरेशन में 7 कारखाने थे और सबका मालिक एक।
राजनांदगांव के इस मिल को इंदौर के मिल मजदूरों को मिलने वाली वेतन से कम वेतन मिलता था। यह उस समय का इतिहास है, जब इस मिल में 5500 मजदूर की मेहनत से 55 हजार मीटर कपड़ा बुना जाता था। उत्पादन के साथ मजदूरों की संख्या घटाकर 4,700 कर दी गई। इस तरह उत्पादन 65 हजार मीटर हो गया था। 1984 में यहां 4 यूनियनें थी।
सुनवाई किसी का नहीं होता था। मजदूरों ने अपनी मुक्ति के लिए दल्ली राजहरा के प्रसिद्ध श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी को अपना नेता बनाया। उनके संगठन छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में 8 जुलाई 1984 को पहली राजनांदगांव कपड़ा मजदूर संघ के रजिस्ट्रेशन के कार्य को पूरा किया गया। इसके बाद मिल में खलबली मच गई। मिल में गर्मी 110 से 120 डिग्री फैरनहाइट तक रहता था।
यूनियन पंजीकरण के बाद 13 जुलाई को मिल की गर्मी न झेल सकने के कारण कुछ महिलाएं बेहोश हो गई। इस घटना पर 14 जुलाई को मिल के 3600 मजदूरों में से 3 हजार मजदूर हड़ताल पर चले गए। जब लगातार मैनेजमेंट की अनदेखी से मजदूरों की हालत बिगडऩे लगी तो मजदूरों में रोष व्याप्त हो गया। उत्तेजित मजदूरों को निकालने की धमकी तक दे दी गई। आक्रोशित मजदूर आंदोलन के लिए उतर आए। पुलिस व जिला प्रशासन ने मैनेजमेंट से मिलकर मजदूरों को नौकरी से निकालने की कार्रवाई शुरू की। पुलिस ने लाठी चार्ज की, जिसमें एक हजार मजदूर घायल हो गए।
75 गंभीर रूप से घायल हो गए। कुछ को आईपीसी की धारा 151 में जेल भेज दिया गया था। 14 जुलाई 1984 को राजनांदगांव में गली व मोहल्लों से लेकर विभिन्न फैक्ट्री, ईंट भट्ठे, ठेका मजदूरों को इस धधकती आंदोलन से जोड़ा गया। मजदूरों की मेहनत रंग लाई। 108 गांवों में संगठन तैयार हो गया। 31 अगस्त को राजनांदगांव बंद करने का आह्वान मजदूरों ने किया। आह्वान के बाद मजदूरों पर पुलिस ने हमले तेज कर दिए। गिरफ्तारी व रिहाई का सिलसिला चला।
बेहतर कार्य परिस्थितियां, विशेषकर स्वास्थ्य संबंधी अधिकारों के लिए संघर्ष तेज हो गए थे। इंटक-एटक के खिलाफ मजदूरों में रोष भर गया था। 14 जुलाई से 30 अगस्त तक प्रदर्शन, घेराव, आमसभा, जुलूस के बाद पुलिस द्वारा लाठी चार्ज व गिरफ्तारी की कार्रवाईयां की गई। 31 अगस्त को नियोगी को गिरफ्तार कर रायपुर सेंट्रल जेल भेजा दिया गया। इस तरह 11 सितंबर तक आंदोलन जारी रहा। उत्पादन ठप कर दिया गया। इस पर वर्चस्व के लिए बौखलाई इंटक के एक समूह द्वारा मोर्चा के संघर्षरत मजदूरों पर हमला बोल दिया गया।
एक मजदूर की मौत हो गई। 12 सितंबर को पुलिस द्वारा गोलीचालन हुई। तीन मजदूर मारे गए। अनेक घायल हो गए। 13 सितंबर तक आंदोलन चलता रहा। अक्टूबर में नियोगी रिहा कर दिए गए। उनके रिहाई के बाद पुन: प्रबंधन के साथ बातचीत शुरू हुई। मोर्चा का यह आंदोलन विस्तार करते हुए 1986 में राजाराम मेज प्रॉडक्ट में आंदोलन के रूप में पहुंच गई।
31 जुलाई 1984 को राजाराम मेज प्रॉडक्ट के मालिक राजाराम गुप्ता को बीएनसी मिल का मैनेजिंग एजेंट नियुक्त किया गया था। उन्होंने एक पत्र मिल के जनरल मैनेजर को लिखा था। उन्होंने नियोगी, राजनांदगांव कलेक्टर व श्रम अधिकारी के साथ चर्चा की। नियोगी ने 75 प्रतिशत मांगे चर्चा में उठाई। 17 बर्खास्त मजदूरों का सवाल भी रखा गया। उस चर्चा में 35 सौ मजदूरों के भविष्य को लेकर चर्चा हुई।
10 जुलाई 1990 को नेशनल टेक्सटाइल कार्पोरेशन लिमिटेड के निर्देशक (तकनीकी) कनक राय ने नियोगी को पत्र लिखते हुए कहा था कि मेरे कार्यकाल में वर्ष 1988-89 का सर्वश्रेष्ठ कामकाज (उत्पादन, औद्योगिक संबंध) का पुरस्कार मिल को दिया गया है। यह आपके सहयोग के बगैर संभव नहीं था। मिल को सुचारू रूप से चलाने में समय-समय पर विभिन्न संवेदनशील मसलों पर आप से मिली मदद के लिए मैं व्यक्तिगत रूप से आभारी हूं। 23 मई 1991 को दूसरी बार इंदौर से नेशनल टेक्सटाइल कार्पोरेशन लिमिटेड के अध्यक्ष व प्रबंध निर्देशन पी सरावणन ने नियोगी को लिखा कि आप अपने नेतृत्व में मिल की रोजमर्रा की समस्याओं का समाधान करवा पाए है। आशा है कि आप वही सहयोग मुझे भी देंगे।
मुझे विश्वास हैं कि आपके बहुमूल्य सहयोग से हम बंगाल-नागपुर कॉटन मिल्स को और भी ज्यादा मजबूत और स्वस्थ आधार पर विकसित कर पाएंगे। इन दोनों पत्रों से नियोगी व उनके संगठनों पर उठाए जा रहे आरोप बेबुनियाद साबित हो जाते हैं कि नियागी के कारण बीएनसी मिल बंद हुई। जून 1986 को प्रधानमंत्री राजीव गांधी को नियोगी ने बीएनसी मिल के हालातों पर पत्र लिखा था। उन्होंने दमन रोकने, छटनी बंद करने और वेतन के ढांचे को बदलने की दीर्घकालीन मांगों को पूरा करवाने उनसे हस्तक्षेप की अपील की थी।
अस्सी के दशक के इस चर्चित आंदोलन के दौरान मेहतरू देवांगन, घनाराम देवांगन, जगत सतनामी, रोधेबालक ठेठवार मारे गए। 12 सितंबर 1984 को राजनांदगांव गोली चालन पर पीयूसीएल ने रपट जारी किया।
जिसमें लिखा था कि ‘इस दौर में प्रबंधन राष्ट्रीय कपड़ा निगम का रूख बड़ा ही तकनीकी रहा है। इस समस्या को सिर्फ मान्यता प्राप्त श्रमिक संगठन से बातचीत के दौरान ही हल किया जा सकता है और सदियों पुराना तर्क दिया जाता है कि मिल तो चालू है, श्रमिकों को काम पर आना चाहिए।...पर अधिकारीगण अपनी जिम्मेदारी को राजनांदगांव से भोपाल और भोपाल से दिल्ली की ओर सरकाते रहे है।...समस्या की जड़ों तक न जाकर उसे केवल कानून और व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा या राष्ट्रीय एकता और कुछ नहीं तो विदेशी हाथ की संज्ञा देकर निरर्थक बना दिया।
इस लंबी हड़ताल के दौरान कोई भी सत्ताधारी राजनीतिज्ञ पीडि़तों अथवा प्रभावित क्षेत्रों में आजतक नहीं आया। ...जनता से दूरी बढऩे पर ही सत्ताधारी अमानवीय और कूरूर हथकंडों को अपनाते हैं। यही कारण था कि प्रशासन ने संघर्षरत मजदूरों और किसानों पर संगठित हिंसा का उपयोग किया। यह संगठित हिंसा उस त्रिकोणीय संबंध का परिणाम है, जो प्रशासन, प्रबंधक और राजनैतिक दलों के बीच बढ़ रहा है। पुलिस, राजकीय दमन का केवल एक प्रतीक मात्र ही है।
इस दमनात्मक रवैये ने हड़ताली मजदूरों के मन में असुरक्षा और डर पनपाने के बजाए कुछ नए क्रांति दूत पैदा कर दिए है। अब धीरे-धीरे लोग यह महसूस करने लगे हैं कि इस व्यवस्था के तहत सामाजिक न्याय गरीबों की चौखट पर नहीं पहुंचाया जा सकता। ...इसका असर यह है कि उनमें एक नयी राजनीतिक चेतना का संचार हो रहा है। खासकर नई पीढ़ी के लोगों के बीच, जो राज्य की संगठित हिंसा और सत्ताभोगियों के हथकंडों का शिकार बनकर आज की व्यवस्था का सही रूप को पहचान रहे है।’
उस वक्त पीयूसीएल ने आशा व्यक्त किया था कि इस संघर्ष के माध्यम से वे एक नया विकल्प ढूंढने में सफल होंगे। आखिरकार सन् 1991 के 28 सितंबर को श्रमिक नेता नियोगी की हत्या कर दी गई। उसके बाद कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार ने पूरे देश भर में निजीकरण के तहत कई निजी उद्योगों को बंद करना शुरू किया। इसी नीति के तहत 30 सितंबर 2002 को इस ऐतिहासिक मिल को भी बंद कर दिया गया। इसके साथ ही सूती के बेहतरीन मच्छरदानी बनना बंद हो गया। उसके स्थान पर कारर्पोरेट घरानों के मच्छर मारो यंत्रों व अगरबत्तियों ने ले ली। इस इतिहास में देखा हमने की हाथ से कपड़ों को बुनने की तकनीक अत्याधुनिक पावरलुम ने ले ली।
2008 में इसके कुछ हिस्सों व मलबों को 12.5 करोड़ में उच्च न्यायालय के पंजीयक की उपस्थिति में नीलाम कर दिया गया। कहा जाता है कि 1995 को मिल जिस जमीन पर स्थित है उसका लीज खत्म हो गया है। इसका नवनीकरण नहीं होता है। नेशनल टेक्सटाइल कार्पोरेशन ने 2008 में बैंक कर्ज, निगम का बकाया राशि, बिजली बिल का भुगतान करने के लिए उक्त कारखाना जमीन का कुछ हिस्सा बेचने की अर्जी उच्च न्यायालय में लगाया। जिसने इसे नीलाम में खरीदा इस जमीन को अंदर ही अंदर किसी दूसरे पार्टी को बेच दिया।
आज भी इस मिल में नगर निगम का नोटिस चस्पा हुआ है कि इस मिल को खरीदने वाले को बकाया करों का भुगतान करना पड़ेगा। तन ढंकने के लिए कपड़ा व मच्छरों से निजात देने मच्छरदानी बनाने वाले मजदूर बेरोजगार हो गए। हाल ही में तुलसीपुर रेलवे चौकी पर स्थित दो दशक पुरानी कपड़ा मिल मजदूर संघ के कार्यालय को रोड चौड़ीकरण के नाम पर तोड़ दिया गया। उनके संघर्ष और बंद मिल को चालू करने की मांग मजदूर नेताओं द्वारा आज भी उठाया जाता है।
28 सितम्बर को छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा समन्वय समिति द्वारा विशाल श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया है। जिसमें तमाम उद्योगों के निकाले गए मजदूरों को वापस लेने, नियोगी के हत्यारों को सजा देने, मारे गए मजदूरों के अधिकारों के साथ वर्तमान में मजदूरों के गिरते हालातों पर चिंतन किया जाएगा। इस तरह नियोगी द्वारा स्थापित संघर्ष व निर्माण का जज्बा मजदूरों के दिलों में जिंदा है।
उनकी हत्या के बाद जो कसम खाई गई थी, उसका क्या हुआ?
क्या उनके हत्यारों को सजा हो गई? क्या मजदूरों की लड़ाई जिन मांगों को लेकर लड़ी गई थी वह सब पूरी हो गई? अब जब अस्थियों का विसर्जन कर दिया गया है, तब सवाल क्यों नहीं उठाया गया कि उन लिए गए कसमों के पूरा होने से पहले क्यों 18 वर्षों के बाद उनके अस्थियों को विसर्जित किया गया?
संघर्ष के अलावा और कोई विकल्प नहीं
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के नेताओं का कहना है कि बिलासपुर जिले के वेलकम डिस्टलरी कोटा कंपनी के 6 सौ श्रमिकों में से 2 सौ श्रमिकों को न्यूनतम वेतन नहीं दिया जा रहा है, बल्कि उनकी भविष्य निधि की राशि गबन की जा रही है, की शिकायत भविष्यनिधि कार्यालय में विचाराधीन है, उसी तरह गुरू घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर में पिछले 10 वर्षो से सफाई, माली व गार्ड करीब 250 श्रमिक कार्यरत् है, किंतु सफाई व माली श्रमिकों को केन्द्रीय न्यूनतम वेतन प्रतिमाह 11 हजार रूपये के बावजूद 6500 रूपयें तथा गार्ड श्रमिकों को 15 हजार की जगह मात्र 10500 रूपये की दर से भुगतान किया जा रहा था।
जबकि केन्द्रीय शासन द्वारा न्यूनतम वेतन की दर से विश्वविद्यालय को राशि प्राप्त हो रही थी उसमें से प्रतिमाह करीब 14 लाख रूपयें ठेकेदारों के साथ मिलकर गबन की जा रही थी। नवम्बर 2020 में युनियन (छमुमो ) गठित होने के पश्चात शिकायत रिजनल लेबर कमिश्नर बिलासपुर में करने के अलावा आडियाज इंक मैंनेजमेंट (ठेकेदार) के विरूद्ध कोनी बिलासपुर पुलिस थाने में एफ. आई. आर दर्ज कराई गई, पुलिस द्वारा कंपनी के दो डायरेक्टरों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया, के बावजूद श्रमिकों को और भी संघर्ष करना होगा.
संघर्ष में हम है आपके साथी आज छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा समन्वय समिति के साथ कई उप हिस्सों में अलग-अलग लोगों द्वारा संचालित है लेकिन फिर भी दूर-दूर से जो लोग आते हैं वे नि:सन्देह वर्तमान नेता या मुखिया के कारण नहीं बल्कि कामरेड शंकर गुहा नियोगी के कारण ही आते हैं। पिछले 31 साल से हजारों लोग एक ऐसे व्यक्ति को श्रद्धांजलि देने आते है जो उनके लिये तो अब कोई करिश्मा नहीं कर सकता लेकिन आस आज भी बरकरार है।
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27/09/2022
Surykant deshmukh
Intrest
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