आदिवासियों की जमीनों की फ़र्ज़ी रजिस्ट्री और बेनामी अंतरण मामले में मुख्यमंत्री की चुप्पी

आदिवासी समुदाय को मुख्यमंत्री से भेंट-मुलाकात में जान-बूझकर रोड़ा अटकाया

पवित्री मांझी, मनोज गुप्ता, डिग्री प्रसाद चौहान

 

इस मामले में  संघर्ष समिति ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने रायगढ़-घरघोड़ा भेंट वार्ता कार्यक्रम के दौरान संघर्षरत पीड़ित आदिवासियों से मुलाकात नहीं की। 

आरोप है कि स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों ने प्रभावित आदिवासी समुदाय को मुख्यमंत्री से भेंट-मुलाकात में जान-बूझकर रोड़ा अटकाया है।

दलित आदिवासी संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उल्लेख किया है कि घरघोड़ा अनुभाग अन्तर्गत भेंगारी-नवापारा टेण्डा में टी.आर.एन. एनर्जी कंपनी लिमिटेड और मेसर्स महाबीर कोल बेनीफिकेषन कंपनी द्वयों द्वारा आदिवासी भू-स्वामियों के जमीनों को बिना सहमति, कपटपूर्ण एवं बेनामी रूप से हड़पे जाने के खिलाफ पीड़ित एक सौ आदिवासी भू-स्वामी परिवारों द्वारा एक दशक से भी अधिक समय से संघर्षरत हैं।

भू-राजस्व संहिता की धारा १७०(ख) के तहत गत छह वर्षों से अनुविभाग कार्यालयों तथा राजस्व न्यायालयों में मामले लंबित हैं. राज्य सरकार और औद्योगिक घरानों के गठजोड़ के कारण आदिवासी जमीन वापसी  के मामलों की  सुनवाई आगे नहीं  बढ़ पा रही है। 

इन सभी मामलों में आदिवासी किसान अपने जमीन बेचने कभी भी पंजीयन कार्यालय घरघोड़ा में नहीं गये हैं। फर्जी सेलडीड एवं रजिस्ट्री दस्तावेजों के निर्धारित कॉलम में उल्लेखित क्रेता एवं विक्रेताओं के नाम, पिता का नाम, गवाहों के नाम, उम्र , पता, फोटो, चोहद्दी, भूमि का रिकार्ड पंजीयन तिथि आदि में कूटरचना किया गया हैं। 

सभी एक सौ जमीन अंतरण के मामलों में केवल पांच- छह लोगों का नाम गवाह के रूप में उल्लेख हैं जो उस क्षेत्र में जमीन दलाल के रूप में चर्चित हैं। तथा दस्तावेजों में संलग्न  जाति प्रमाण पत्र पर भी वही अनुविभागीय अधिकारी का ही दस्तखत बतौर जाति प्रमाणपत्र जारीकर्ता दर्ज है।

छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता की धारा 165 के मुताबिक किसी भी आदिवासी भू-स्वामी की जमीन खरीदने के लिए जिला कलेक्टर की अनुमति आवश्यक है। लेकिन इस मामले में इस कानून का भी व्यापक रूप से उल्लंघन हुआ है।

अनुसूचित जाति जनजाति प्रव्रजन संबंधी नियमों के अनुसार जो व्यक्ति जिस राज्य का मूल निवासी था उसी राज्य के लिए उसे अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति का माना जायेगा अन्य दूसरे राज्यों में नहीं। 

फर्जी सेलडीड एवं रजिस्ट्री में कथित क्रेताओं के संबंध में निवासी दीपका कोरबा, झावर दीपका, सरईपाली कोरबा, कसाईपाली तथा लोहरदगा दर्शाया गया है। कंपनी द्वयों द्वारा अन्य राज्य एवं जिलों के एक ही आदिवासी व्यक्ति अथवा अन्य आदिवासी के नाम से टुकड़ों में भूमि खरीदा गया है।

वैसा ही जिले में कंपनियों द्वारा अन्य जिले के एक ही आदिवासी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के नाम से टुकड़ों में भूमि खरीदा गया है जो बेनामी अन्तरण की श्रेणी में आता है। 

प्रशासनिक शह पर आदिवासी भूमियों को हड़प लिए जाने  के इन मामलों में फर्जी सेलडीड और पंजीयन में दिखाए गए क्रेता स्थानीय जिले के निवासी नहीं हैं तथा इन बेनामी क्रेताओं के आदिवासी होने में भी संदेह है वे कंपनी अथवा ठेका का अधिनस्थ कर्मचारी हो सकते हैं जो कंपनी के लालच व दबाव में उक्त कृत्य को करने बाध्य हुए हैं। 

कंपनियों द्वारा आदिवासी किसानों को उनके जमीनों से बेदखल कर उद्योग स्थापित किया गया है। टी.आर.एन. एनर्जी कंपनी प्राईवेट लिमिटेड द्वारा आदिवासियों के पैतृक भूमियों पर जोरजबरदस्ती पूर्वक अपने कंपनी प्रयोजन हेतु वृहद ऐश  डाईक (राख का तालाब) के  निर्माण  पर छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट ने आदिवासी स्वामित्व के भूमियों पर अवैधानिक निर्माण कार्य और उस पर स्थित पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने हेतु निर्णय पारित किया है बावजूद इसके कंपनी और जिला प्रशासन द्वारा उच्च न्यायालय के निर्णय को दरकिनार करते हुए आदिवासी जमीनों के संरक्षण कानूनों का घोर उल्लंघन किया गया है। 

यहाँ यह बताना जरुरी है कि इन कंपनियों ने उद्योगों के स्थापना के लिए भू-अर्जन एवं किसी भी पारदर्शी  प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। एक ही क्षेत्र में अगल-बगल स्थित सामान्य तथा गैरआदिवासियों के भूमियों का क्रय प्रत्यक्ष और सीधे तौर पर किया गया है जबकि जनजातियों के भूमियों के मामले में बेनामी क्रेता अथवा मार्फत मुख्तियारनामा से फर्जी पंजीयन और अन्तरण हुआ है जिस कारण भू-स्वामी आदिवासियों को शासन के व्यवस्थापन, मुआवजा और पुनर्वास नीति के लाभों से वंचित रखने का साजिश भी साफ तौर पर दिखाई देता है।

यह क्षेत्र पांचवी अनुसूचित क्षेत्र के अन्तर्गत आता है, कॉरपोरेट  घरानों और गैर आदिवासी तथा प्रभावशाली सबल गुण्डा तत्वों के द्वारा आदिवासी भूमियों के जोर जबरदस्ती तथा बल पूर्वक अवैध कब्जा कर उन्हें बेदखल कर देने के संबंध में ग्राम सभाओं और जनता के विरोध तथा शिकायतों की एक लम्बी फेहरिस्त है जिस पर कानून के शासन की कार्यवाही अब तक शून्य है। 
 


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