कारपोरेट कैसे भारतीय कृषि में घुसकर खुली लूट मचाएगा?

गिरीश मालवीय

 

हिमाचल एक ठंडा प्रदेश माना जाता है लेकिन इस वक्त सेब ख़रीद में अडानी एग्री की खुली लूट से गर्म हो रहा है अडानी विश्व के तीसरे नंबर के अमीर अवश्य हो गए हैं, लेकिन उनकी नीयत वही पुराने भारतीय साहूकार जैसी है जो काश्तकारों का खून चूसा करते थे।

पिछले कई सालों से अडानी एग्रो फ्रेश सेब ख़रीद के दाम घटाता जा रहा है, इस साल भी अडानी ने पिछले साल की तुलना में 2 रुपए प्रति किलो कम रेट खोला है।

बीते 22 दिन में कंपनी 11 रुपये तक सेब खरीद के दाम घटा चुकी है

ऐसी ही गड़बड़ी हर साल अडानी एग्री करती है इसलिए इस बार राज्य की BJP सरकार ने कहा था कि इस साल सेब के रेट तय करने के लिए नौणी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर की अध्यक्षता में कमेटी बनेगी। मगर ऐसा नहीं हुआ और अडानी एग्रो फ्रेश ने अपने रेट खोल दिए।

दरअसल अडानी एग्रो फ्रेश सरकार के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए अपनी तरफ से रेट तय करती है जबकि हिमाचल प्रदेश में अपने खरीद केंद्र स्थापित करने के लिए सरकार ने उसे करोड़ों की सब्सिडी दी थीं।

संयुक्त किसान मंच (एसकेएम) के बैनर तले सेब उत्पादकों ने 25 अगस्त गुरुवार को शिमला जिले के रोहड़ू, रेवाली और सैंज में अडानी समूह के तीनों खरीद केंद्रों का घेराव किया।

एसकेएम के सदस्यों ने सरकार से अडानी समूह जैसी बड़ी कंपनियों के साथ हुए समझौता ज्ञापन (एमओयू) की एक प्रति पेश करने को कहा था, जिन्हें हिमाचल प्रदेश में अपने खरीद केंद्र स्थापित करने के लिए करोड़ों की सब्सिडी दी...।

किसान जानना चाहते थे कि इन बड़ी कंपनियों को किन नियम व शर्तों के तहत राज्य में खरीद केंद्र बनाने के लिए सब्सिडी वाली जमीन और अन्य सुविधाएं आवंटित की गई थीं?

आंदोलन रत किसानों ने कहा कि अगर सब्सिडी देने के पीछे का विचार सेब उत्पादकों की भलाई है, तो राज्य और कंपनियां दोनों ही ऐसा करने में विफल रही हैं।

दस साल पहले अदानी ने हिमाचल में गोदाम बनाकर सेब खरीद से शुरू की हिमालयन सोसाइटी फॉर हॉर्टिकल्चर एंड एग्रीकल्चर डेवलपमेंट, के अध्यक्ष डिंपल पंजता बताते हैं कि साल 2011 में अडानी ने 65 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से ए-ग्रेड गुणवत्ता वाले सेब खरीदे थे. इस तरह एक दशक बाद उन्होंने मूल्यों में महज सात रुपये की बढ़ोतरी की है।

हालांकि अडानी राज्य के कुल सेब उत्पादन का करीब तीन-चार फीसदी ही खरीद करता है, लेकिन चूंकि यह बहुत बड़ी कंपनी है, इसलिए अन्य खरीददार भी अडानी ग्रुप द्वारा घोषित मूल्य के आस-पास ही खरीद करते हैं इसलिए अडानी द्वारा घोषित मूल्य ही पूरे बाजार के लिए बेंचमार्क बन जाता है और अडानी द्वारा घोषित खरीद मूल्य ही किसानों की नियति बन जाती है।

जो लोग यह मानते है कि कारपोरेट सेक्टर जब कृषि क्षेत्र में प्रवेश करेगा तो किसानों को ज्यादा कीमत मिलेगी वो अब अपने दिमाग का इलाज करवा ले।


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