आजादी का अमृत महोत्सव

भुवाल सिंह ठाकुर

 

स्वाधीनता की इच्छा मनुष्य की स्वाभाविक जीवनी शक्ति है। प्रत्येक समाज और राष्ट्र की अस्मिता स्वाधीनता बोध पर टिकी होती है।15 अगस्त 1947 का दिन ब्रिटिश पराधीनता की अंधियारी से निकलकर मुक्त भारत  की उत्सवी बेला थी।भारत के मान और भाल को पहचान दिलाने वाला दिन। निराला ने सरस्वती मां की वंदना करते हुए इसी स्वाधीनता की अमृत मन्त्र का वरदान देशवासियों के लिए मांगा था-

'प्रिय स्वत्रन्त्र रव

अमृत मन्त्र नव।

भारत में भर दे।

वर दे वीणावादिनी वर दे।'

अब प्रश्न उठता है स्वाधीनता दिवस हमारे समय से संवाद की भूमिका कैसे रचती है।स्वाधीनता व्यापक सरोकार का नाम है।अज्ञानता की जगह ज्ञान!अविवेक की जगह विवेक!बंधन की जगह  मुक्ति! असमानता की जगह समानता!अन्याय के स्थान पर न्याय। खण्ड की जगह अखण्ड भाव! अंधविश्वास की जगह विज्ञान। रूढ़ि की जगह प्रगतिशील मूल्य! संकीर्णता की जगह विस्तार। मैं के स्थान पर  'हम भाव'। भ्रम की जगह सुस्पष्टता। ये सब स्वाधीन महाभाव हर युग में संचरणशील रहेगा।

स्वाधीनता को हमारे भारत में अमृत कहा गया है। अमृत अर्थात् अमर। मनुष्य की नश्वर जीवन में गति का प्रतीक। जिसे स्वामी विवेकानंद ने 'गति जीवन का चिह्न है और रुकना मृत्यु' कहा है। आज समाज और देश में जहां कहीं मन,वचन और कर्म से हम रुके हुए हैं। वहां स्वाधीनता रूपी अमृत मन्त्र का सिंचन जरूरी है। जलप्रपात, बादल,पक्षी,नदियाँ गतिशील होने के कारण सुंदर है। प्रकृति स्वाधीनता की जीवंत पाठशाला है।हम जितने प्रकृति के करीब हैं उतने ही स्वाधीन विचारों से समृद्ध हैं।

स्वाधीनता आंदोलन का सारांश  'भारत का  संविधान' है। जो हमें 'हम' की महान भावना से जोड़ता है। इसकी अगली कड़ी सूचना का अधिकार जैसे कानून है जो जनता के जागरूकता को कानून का रूप देती है। जनता की सर्वोच्चता को स्थापित करने वाला हमारे देश का संविधान लोकतंत्र का  साकार रूप है। लोक की व्यापक भागीदारी से सम्पन्न राष्ट्रीय आंदोलन किसान, मजदूर, स्त्री, युवा वर्ग, बच्चों की भागीदारी से अखिल भारतीय बनता है। लोककल्याणकारी राज्य की संकल्पना इन सबके सपनों को यथार्थ में परिणित कर सजीव बनेगी। स्वाधीनता के अर्थ को शब्दों से निकालकर कर्म से संलग्न करेगी। सबका मार्ग प्रशस्त करेगी। अकारण नहीं स्वाधीनता की अमृत परम्परा को शब्द देते हुए चन्द्रगुप्त नाटक में प्रसाद ने लिखा है-

"हिमाद्रि तुंग श्रृंग से

प्रबुद्ध शुद्ध भारती —

स्वयं प्रभा समुज्ज्वला

स्वतंत्रता पुकारती —

 

अमर्त्य वीरपुत्र हो, दृढ प्रतिज्ञ सोच लो,

प्रशस्त पुण्य पंथ है — बढे चलो,बढे चलो!"

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 'नियति से वादा' नाम से आजादी की पूर्व संध्या पर ऐतिहासिक भाषण दिया था जो आज भी 2022 में स्वाधीनता के संदर्भ में हमारा मार्गदर्शक हो सकता है-

"कई सालों पहले, हमने नियति के साथ एक वादा किया था, और अब समय आ गया है कि हम अपना वादा निभायें, पूरी तरह न सही पर बहुत हद तक तो निभायें। आधी रात के समय, जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जाग जाएगा। ऐसा क्षण आता है, मगर इतिहास में विरले ही आता है, जब हम पुराने से बाहर निकल नए युग में कदम रखते हैं, जब एक युग समाप्त हो जाता है, जब एक देश की लम्बे समय से दबी हुई आत्मा मुक्त होती है। यह संयोग ही है कि इस पवित्र अवसर पर हम भारत और उसके लोगों की सेवा करने के लिए तथा सबसे बढ़कर मानवता की सेवा करने के लिए समर्पित होने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं।...

आज हम दुर्भाग्य के एक युग को समाप्त कर रहे हैं और भारत पुनः स्वयं को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो केवल एक क़दम है, नए अवसरों के खुलने का। इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना। इसका अर्थ है निर्धनता, अज्ञानता, और अवसर की असमानता मिटाना। हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा है कि हर आँख से आंसू मिटे।"


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