ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक जुबैर के खिलाफ एफआईआर
द कोरस टीमजुबैर की गिरफ्तारी पर पत्रकार, कलाकार समेत सभी विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी जुबैर की गिरफ्तारी की निंदा की है और उनकी रिहाई की मांग की है. गिल्ड ने एक बयान में कहा, "2018 के एक ट्वीट के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा 27 जून को फैक्ट चेकिंग साइट ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी की निंदा करता है. ईजीआई की मांग है कि दिल्ली पुलिस मोहम्मद जुबैर को तुरंत रिहा करे."

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. उन्होंने अपने एक ट्विटर पोस्ट में यति नरसिंहानंद सरस्वती, महंत बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप को 'हेट मांगर' यानी घृणा फैलाने वाला कहा था.
राष्ट्रीय हिंदू शेर सेना के सदस्य भगवान शरण की शिकायत पर ज़ुबैर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 295 ए (विद्वेषपूर्ण कार्य जो किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आशय से किया गया) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 67 (अश्लील सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशित करना) के तहत बुधवार को खैराबाद पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया.
पत्रकार ने 26 मई को ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर टाइम्स नाउ की एक बहस की आलोचना करते हुए ट्वीट किया था. उन्होंने कहा था, "हमें एक समुदाय और धर्म के खिलाफ बोलने के लिए धर्म संसद के आयोजक यति नरसिंहानंद सरस्वती या महंत बजरंग मुनि या आनंद स्वरूप जैसे नफरत फैलाने की जरूरत क्यों है, जब हमारे पास पहले से ही ऐसे एंकर्स मौजूद हैं जो यह काम न्यूज़ स्टूडियो से कहीं बेहतर तरीके से कर सकते हैं."
एंकर नविका कुमार द्वारा संचालित इस बहस में भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने भी भाग लिया था. ज़ुबैर द्वारा इस टीवी डिबेट का वीडियो शेयर करने पर नूपुर शर्मा ने उन पर आरोप लगाया था कि "एक तथाकथित फैक्ट चेकर है जिसने कल रात, मेरी एक बहस के एक कंटे-छंटे और सम्पादित वीडियो को डालकर माहौल खराब करना शुरू कर दिया है. तब से मुझे मौत और बलात्कार की धमकियां मिल रही हैं. यदि मुझे या मेरे परिवार के सदस्यों को कोई नुकसान पहुंचे तो इसके लिए मोहम्मद जुबैर जिम्मेदार हैं." टाइम्स नाउ ने इस बहस का वीडियो अपने यूट्यूब चैनल से हटा लिया है.
भाजपा प्रवक्ता के खिलाफ इस बहस के दौरान पैगंबर मोहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के लिए अब तक तीन एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं. उनके खिलाफ महाराष्ट्र के पुणे में इसी मामले में आज ताजा एफआईआर दर्ज हुई, इससे पहले मुंबई व हैदराबाद में भी केस दायर किया जा चुका है.
गौरतलब है कि यति नरसिंहानंद, बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप, जिनका जिक्र ज़ुबैर ने अपने ट्वीट में किया है, यह तीनों वही हैं जिनके खिलाफ पिछले साल दिसंबर में हरिद्वार में आयोजित 'धर्म संसद' में नफरत फैलाने वाले भाषणों के सिलसिले में मामला दर्ज किया गया था.
वहीं बजरंग मुनि ने 2 अप्रैल को, उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में, हिंदू नव वर्ष के अवसर पर पुलिस की मौजूदगी में समुदाय विशेष की महिलाओं के खिलाफ सामूहिक यौन हिंसा की धमकी दी थी. पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. फिलहाल वे जमानत पर बाहर हैं.
डिजिपब न्यूज़ इंडिया फाउंडेशन ने मोहम्मद ज़ुबैर पर हुई इस एफआईआर की कड़ी निंदा की है और पत्रकारों पर इस तरह की कार्रवाइयों को लोकतंत्र पर हमला बताया है. डिजीपब के अनुसार उनकी पत्रकारिता की वजह से ज़ुबैर पर अलग-अलग मामलों में दर्ज की गई यह पांचवीं एफआईआर है.
डिजीपब ने राज्य सरकार से इस मामले को तुरंत वापस लेने का आग्रह किया और कहा कि राज्य के संस्थागत तंत्र के दुरुपयोग पर प्रहरी की भूमिका निभाने वाले पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किए जा रहे ऐसे कड़े कानूनों का, एक कानूनी हथियार के रूप में इस्तेमाल बंद किया जाना चाहिए.
जर्मनी के विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत खुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बताता है. इसलिए अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों को वहां जगह दिए जाने की उम्मीद की जा सकती है.
विदेश मंत्रालय के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘हम निश्चित रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पूरी दुनिया में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध हैं. यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है और यह भारत पर भी लागू होता है. स्वतंत्र रिपोर्टिंग किसी भी समाज के लिए फायदेमंद है और प्रतिबंध चिंता का कारण हैं.’
उन्होंने आगे कहा कि पत्रकारों को उनके कहने और लिखने के लिए सताया और कैद नहीं किया जाना चाहिए. हम इस मामले को लेकर अवगत हैं और नई दिल्ली में हमारा दूतावास इसपर कड़ी नजर बनाए हुए है.
विदेश मंत्रालय ने यह भी बताया कि वे इस मामले पर यूरोपियन यूनियन के भागीदार के साथ भी संपर्क में है. ईयू ने भारत से मानव अधिकार पर चर्चा की है. ईयू की भारत से चर्चाओं का मुख्य केंद्र अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता है.
बता दें कि भारत में पत्रकारों की संस्था एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी जुबैर की गिरफ्तारी का कड़ी निंदा की है.
उधर, सुप्रीम कोर्ट मोहम्मद जुबैर की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करने के लिए सहमत हो गया है. जुबैर ने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें उन्होंने एक ट्वीट के लिए दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया था. जुबैर पर इस ट्वीट के जरिए कथित रूप से हिंदू संतों के खिलाफ ‘घृणा फैलाने’ का आरोप लगाया है.
मोहम्मद ज़ुबैर को हिंदू संतों के खिलाफ कथित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणी करने और धार्मिक भावना भड़काने के मामले में सोमवार को सीतापुर की एक अदालत में पेश किया गया था.
दिल्ली पुलिस ने सीतापुर के एक न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में मोहम्मद जुबैर को पेश किया था जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. दिल्ली पुलिस बाद में जुबैर को वापस दिल्ली ले गई.
जानकारी के लिए बता दें कि मोहम्मद ज़ुबैर को 27 जून को दिल्ली पुलिस ने धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया था. उन पर धर्म, जाति, जन्म स्थान, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप है.
इसके पहले एक जून को हिंदू संत-महात्माओं को कथित तौर पर नफरत फैलाने वाला बताने पर मोहम्मद जुबैर के खिलाफ सीतापुर के खैराबाद थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी.
ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने कहा कि जुबैर को 2020 से जुड़े एक अलग मामले में पूछताछ के लिए दिल्ली बुलाया गया था, जिसमें अदालत ने उन्हें गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की थी. लेकिन उन्हें इस नए मामले में बिना किसी अनिवार्य नोटिस के गिरफ्तार कर लिया गया. सिन्हा का कहना है कि बार-बार अनुरोध के बावजूद उन्हें एफआईआर की कोई कॉपी नहीं दी जा रही है.
गिरफ्तारी पर उठते सवाल
जुबैर की गिरफ्तारी पर पत्रकार, कलाकार समेत सभी विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी जुबैर की गिरफ्तारी की निंदा की है और उनकी रिहाई की मांग की है. गिल्ड ने एक बयान में कहा, "2018 के एक ट्वीट के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा 27 जून को फैक्ट चेकिंग साइट ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी की निंदा करता है. ईजीआई की मांग है कि दिल्ली पुलिस मोहम्मद जुबैर को तुरंत रिहा करे."
गिल्ड ने जी-7 में भारत द्वारा उस प्रतिबद्धता का भी जिक्र किया जिसमें भारत ने 2022 रेजिलिएंट डेमोक्रेसीज स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर किए. भारत रेजिलिएंट डेमोक्रेसीज के तहत नागरिक समाज के अभिनेताओं की स्वतंत्रता, स्वतंत्रता और विविधता की रक्षा और ऑनलाइन व ऑफलाइन अभिव्यक्ति और राय की स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हुआ है.
भड़काऊ बयान के मामले में नूपुर शर्मा समेत 9 लोगों पर दिल्ली पुलिस की एफआईआर
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, लेफ्ट ने गिरफ्तारी की निंदा की है. कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, "बीजेपी की नफरत, कट्टरता और उनके झूठ को उजागर करने वाला हर शख्स उनके लिए खतरा है. सच की आवाज उठाने वाले एक शख्स को गिरफ्तार करने पर हजार और खड़े हो जाएंगे. अत्याचार पर हमेशा सत्य की जीत होती है."
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश ने यादव ने सरकार पर तंज करते हुए ट्वीट किया, "अच्छे नहीं लगते हैं उन झूठ के सौदागरों को सच की पड़ताल करने वाले… जिन्होंने अपनी आस्तीन में हैं पाले, नफरत का जहर उगलने वाले."
वहीं एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी जुबैर की गिरफ्तारी की निंदा की है. उन्होंने कहा कि जुबैर को बिना किसी नोटिस के अज्ञात एफआईआर पर गिरफ्तार किया गया है.
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने दिल्ली पुलिस पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया "साहिब को खुश करने के लिए वो घुटनों के बल बैठ गए. जुबैर को एक मनगढ़ंत केस में गिरफ्तार किया गया, जबकि मिसेज फ्रिंज शर्मा सुरक्षा के साये में जिंदगी का आनंद उठा रही हैं."
केरल के विधायक एमके मुनीर ने लिखा ट्वीट किया, "क्या विडंबना है कि नफरत फैलाने वाला, भड़काऊ भाषण देने वाला खुला घूम रहा है, जबकि इसका खुलासा करने वाले पत्रकार को हिरासत में लिया गया है."
वरिष्ठ वकील उज्ज्वल निकम ने समाचार चैनल एनडीटीवी से कहा कि जिस गुनाह में मुकदमा दर्ज होता है उसमें सात साल सजा का प्रावधान है तो उस अभियुक्त को नोटिस देना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि ऐसे कई मामलों में जिसमें सजा का प्रावधान सात साल से कम है तो निचली अदालत और हाईकोर्ट ने उन लोगों को तुरंत बेल पर छोड़ दिया है.
सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ दर्ज एफआईआर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्यों रद्द की
वहीं संविधान विशेषज्ञ फैजान मुस्तफा का कहना है कि आधुनिक लोकतंत्र में ईशनिंदा नाम का अपराध नहीं होना चाहिए, लेकिन भड़काऊ बयान अपराध होना चाहिए. मुस्तफा कहते हैं, "पूरा खेल परसेप्शन का है. परसेप्शन लोगों का यह हो जाए कि कुछ लोगों को इसी अपराध में सजा नहीं दी जा रही है और गिरफ्तारी नहीं हो रही है और कुछ को गिरफ्तार किया जा रहा है, तो ऐसे में कानून का समान संरक्षण, कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत कमजोर होते हैं और लोगों की नजरों में कानून का सम्मान कम होता है."
जुबैर ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक हैं और वे प्रतीक सिन्हा के साथ मिलकर इसे 2017 से चला रहे हैं. ऑल्ट न्यूज ऐसी फेक न्यूज की पड़ताल करता है जो सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं और उनको लेकर अलग-अलग तरह के दावे किए जाते हैं.
जुबैर ने ही बीजेपी की प्रवक्ता रही नूपुर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी का क्लिप ट्विटर पर साझा किया था. जिसके बाद नूपुर ने जुबैर पर "माहौल खराब" करने का आरोप लगाया था. नूपुर का आरोप था कि क्लिप शेयर किए जाने के बाद उनको और उनके परिवार को जान से मारने की धमकी मिल रही थी.
Add Comment