सच्चर कमेटी एक अनसुलझा पहलू

द कोरस टीम

 

भारतीय परिवेश में जब भी शिक्षा, हक, अधिकार, विशेष अध्यादेश पारित करने की बात लोकसभा, राज्यसभा में रखी जाती हैं उससे बहुजन आरक्षण विरोधी, मुस्लिम हित में बताकर अनेक राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेकते हैं। आजादी के पिछले 75 सालों से देश में राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक स्तर पर केवल एक विशेष वर्ग का ही कब्जा रहा है जो कि अपने आप को सत्ता के पीछे अपने सुरक्षित रखता है।

अपने हक अधिकारों के लिए पिछले 75 सालों से अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग निरंतर अपने प्रतिनिधियों एवं सरकार द्वारा नियुक्त समितियों के माध्यम से अधिकारों की मांग करता आ रहा है।

उसी में से आज एक कमेटी सच्चर कमेटी के बारे में बता रहे हैं। देश के मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन की हालत को जानने के लिए कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने पूर्व जस्टिस राजेंद्र सच्चर के नेतृत्व में 9 मार्च 2005 को मानवाधिकारों के जाने-माने समर्थक जस्टिस राजिंदर सच्चर के नेतृत्व में कमेटी का गठन किया गया।

इस कमेटी में न्यायमूर्ति सच्चर के अलावा शिक्षाविद्‌ और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति सैयद हामिद, सामाजिक कार्यकर्ता ज़फर महमूद,अर्थशास्त्री एवं नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के सांख्यिकीविद डॉ. अबुसलेह शरीफ इस कमेटी के सदस्य सचिव के रूप में नियुक्ति की गई।

मुसलमानों के पिछड़ेपन ने 1980 के दशक के अंतिम वर्षों में ही एक राजनीतिक मुद्दे का रूप लेना शुरू कर दिया था और बी.पी मंडल आयोग ने गैर हिंदू समुदायों के बीच अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) की पहचान के लिए एक तरीका विकसित किया था।

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा गठित संविधान के कार्यचालन की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग (एनसीआरडब्ल्यूसी, 2000) ने अपनी पहली रिपोर्ट में मुसलमानों के पिछड़ेपन को नीतिगत महत्व का विषय माना गया जिसमें दलील दी गई कि धार्मिक अल्पसंख्यकों की पिछड़ी जातियों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा आरंभ किए गए 15सूत्री कार्यक्रम को अभी भी अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के पीछे छूटने के मामलों में एक बुनियादी नीति के रूप में लिया जाता है।

30 नवंबर 2006 को लोकसभा में 403 पेजों की सच्चर कमेटी की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई जिसमें देश के मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक हालात पर किसी सरकारी कमेटी द्वारा तैयार रिपोर्ट संसद में पेश की गई थी। मुस्लिम समुदाय के समक्ष आने वाली समस्याओं और उनके प्रति समाज के भेदभावपूर्ण रवैये के साथ-साथ इस स्थिति से उभरने हेतु आवश्यक कुछ समाधान इस कमेटी के द्वारा प्रस्तावित किए गए थे।

स्कूल, कॉलेज,आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र, सस्ते राशन की दुकान, सड़क और पेयजल सुविधा जैसे संकेतकों के आंकड़ों का आकलन कहता था कि कि एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों के आबादी वाले गांवों और आवासीय इलाकों में मुस्लिम समुदाय को अनुसूचित जाति और जनजाति के पिछड़ा बताया गया था।उस वक्त देश की प्रशासनिक सेवा में मुसलमानों की भागेदारी 3 फीसदी आईएएस और 4 फीसदी आईपीएस, भारतीय पुलिस बल में मुसलमानों की भागेदारी 7.63, रेलवे में केवल 4.5 प्रतिशत मुसलमान कर्मचारी दावेदारी का आंकड़ा दिया गया था।

अन्य वर्गों की तुलना में मुसलमानों की साक्षरता की दर भी राष्‍ट्रीय औसत बाकी समुदाय से कम थी इसका सीधा प्रभाव राजनीतिक, शैक्षणिक एवं अन्य प्रकार के अधिकारों पर सीधा दिखाई पड़ता था।

अल्पसंख्यकों के कल्याण एवं विकास के लिए 15 सूची कार्यक्रम, सर्व शिक्षा अभियान, मुस्लिम बालिकाओं के लिए सुविधाएं इत्यादि प्रस्तावित की गई थी। तत्कालीन केंद्र सरकार ने पिछड़ा वर्ग कोटे में से 4.5 प्रतिशत आरक्षण अल्पसंख्यकों को देने का निर्णय किया जिससे पहले आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट ने फिर सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।

सच्चर कमिटि की प्रमुख सिफारिश 

रोजगार में मुसलमानों का हिस्सा बढ़ाना, मदरसों को हायर सेकंडरी स्कूल बोर्ड से जोड़ने की व्यवस्था बनाना। 14 वर्ष तक के बच्‍चों को निःशुल्क और उच्‍च गुणवत्‍ता वाली शि‍क्षा मुहैय्या कराना, मुस्‍लि‍म बहुल क्षेत्रों में सरकारी स्‍कूल खोलना, स्कॉलरशीप देना, मदरसों का आधुनि‍कीकरण करना आदि।

प्राथमि‍कता वाले क्षेत्रों के मुसलमानों को ऋण सुवि‍धा उपलब्‍ध कराना और प्रोत्‍साहित करना देना, मुस्‍लि‍म बहुल क्षेत्रों में और बैंक शाखाएं खोलना, महि‍लाओं के लि‍ए सूक्ष्‍म वि‍त्‍त को प्रोत्साहन देना।

वक्‍फ संपत्‍ति‍यों आदि का बेहतर उपयोग करके मुस्लिम समुदाय को सशक्त एवं आत्मनिर्भर बनाना।

वि‍शेष क्षेत्र वि‍कास की पहलें- गांवों/शहरों/बस्‍ति‍यों में मुसलमानों सहि‍त सभी गरीबों को मूलभूत सुवि‍धाएं, बेहतर सरकारी स्‍कूल, स्‍वास्‍थ्‍य सुवि‍धाएं मुहैय्या कराना।

चुनाव क्षेत्र के परिसीमन प्रक्रिया में इस बात का ध्यान रखना कि अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों को अनुसूचित जाति के लिए आरक्ष‍ित न किया जाए।

मदरसों की डिग्री को डिफेंस, सिविल और बैंकिंग एग्जाम के लिए मान्य करने के लिए कदम उठाना।

समान अवसर आयोग, नेशनल डेटा बैंक और असेसमेंट और मॉनि‍टरी अथॉरि‍टी का गठन करना।

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने मुस्लिम भारतीय असमानता के मुद्दे को नेशनल मीडिया के सामने रखा गया। समिति ने आवास जैसे मामलों सहित भेदभाव की शिकायतों को दूर करने के लिए एक कानूनी तंत्र प्रदान करने के लिए एक समान अवसर आयोग की स्थापना की सिफारिश की।

सच्चर कमेटी के निष्कर्षों के जवाब में, वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास और वित्त निगम (एनएमडीएफसी) के बजट में वृद्धि का प्रस्ताव दिया, जिसमें नए कर्तव्यों और विस्तारित आउटरीच का हवाला दिया गया था कि संस्था समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए आगे बढ़ेगी।

सच्चर समिति ने जनसंख्या की जनसांख्यिकीय प्रोफ़ाइल, बुनियादी ढांचे की उपलब्धता और शैक्षिक उपलब्धियों को समझने के लिए 2001 की जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल किया। इसने रोजगार, शिक्षा, उपभोग पैटर्न और गरीबी के स्तर से संबंधित मुद्दों का विश्लेषण करने के लिए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएसओ 55वें और 61वें दौर) के आंकड़ों का भी इस्तेमाल किया।

डेटा बैंकिंग जैसे विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किया गया था भारतीय रिजर्व बैंक, कृषि के लिए नेशनल बैंक और ग्रामीण विकास , भारत के छोटे उद्योग विकास बैंक, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास और वित्त निगम, और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद जैसे सरकारी आयोगों और संगठनों से भी पुष्टिकारक आंकड़ों से प्राप्त किया गया था।

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर मनमोहन सरकार गौर कर ही रही थी कि 2007 में रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट आ गई। इस आयोग ने कुछ कदम आगे बढ़ कर ऐसी सिफारिशें कर दीं जिसने सरकार को सांसत में डाल दिया। आयोग की सिफारिश थी कि केंद्र और राज्य सरकार की नौकरियों में अल्पसंख्यकों को 15 फीसदी आरक्षण दिया जाए।

नवंबर 2013 में गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि राजिंदर सच्चर समिति "असंवैधानिक" रखने की बात कही गई। सच्चर कमेटी को केवल मुसलमानों की मदद करने की मांग करने वाली कमेटी करार देकर इसने अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों की "अनदेखी" करते हुए मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का सर्वेक्षण करने के लिए 2005 में जिस तरह से पीएमओ ने सच्चर समिति की स्थापना की, उसकी कड़ी आलोचना की है।

एडवोकेट विष्णु शंकर की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि इस तरह यह स्पष्ट है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री ने मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति जानने के लिए स्वम अपनी ओर से ही निर्देश जारी किया,जबकि आर्टिकल 14 और 15 में कहा गया है कि किसी धार्मिक समुदाय के साथ अलग से व्यवहार नही किया जा सकता।

जमीयत उलेमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि आज मुसलमानों के प्रति समाज में विश्वास खत्म होता जा रहा है। सामाजिक तौर पर आज मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि अलग-थलग पड़ गए हैं, हमें मुस्लिम बच्‍चों व युवाओं की तालीम पर ध्यान देना चाहिए।

जमाते इस्‍लामी हिंद के प्रधान महासचिव डॉ. सलीम इंजीनियर ने कहा कि सच्चर कमेटी की सिफारिश से पहले भी कई सिफारिशें की गई मगर यह अलग और अनूठी रिपोर्ट है, वास्तविक है, जमीनी स्तर पर काम किया गया है क्या कारण है कि ऐसी चर्चित रिपोर्ट के बावजूद अल्पसंख्यकों की वास्तविक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आ रहा है?

न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर नागरिक अधिकारों के पक्ष में सतत सक्रिय भूमिका निभाते थे,सच्चर समिति की रिपोर्ट आ जाने के बाद उनके व्यस्त रूटीन में मुस्लिम समुदाय से जुड़े संगठनों और लोगों से मिलने का सिलसिला भी जुड़ गया जो उनकी मृत्युपर्यन्त चलता रहा।

न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर का मानना था कि मुस्लिम समाज के अलगाव को कम करने का सर्वाधिक कारगर उपाय है कि शिक्षा, प्रशासन, व्यापार और राजनीति में उनका समुचित प्रतिनिधित्व देश की विकास हेतु लगाया जाना चाहिए। वर्तमान हालातों को देखते हुए मोदी सरकार को सच्चर कमेटी एवं रंगनाथ मिश्रा आयोग को लागू कर देना चाहिए।


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