हसदेव अरण्य में कोयला खनन के लिए पेड़ काटे, ग्रामीणों के विरोध के बाद कार्रवाई रोकी गई
प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ हसदेव और सिलगेर में आंदोलन जारी
द कोरस टीमछत्तीसगढ़ के बस्तर और उत्तर के सरगुजा जिले में हसदेव अरण्य और अन्य संघर्षों में जल, जंगल और जमीन को बचाने की लड़ाई में एकरूपता के साथ विभिन्नता भी है। दक्षिण के संघर्षों में लड़ाई जहां साफ साफ नजर आती है वहीं उत्तर के संघर्ष काफी धुंधले नजर आते हैं। इस साल मार्च में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नेतृत्व वाली भूपेश बघेल सरकार ने सरगुजा जिÞले में परसा ईस्ट कांते बेसन दूसरे चरण के कोयला खनन के लिए वन भूमि के गैर-वानिकी उपयोग के लिए अंतिम मंजूरी दी थी. बताया जा रहा है कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन से 1,73,000 हेक्टेयर वन नष्ट हो जाएंगे और मानव-हाथी संघर्ष शुरू हो जाएगा. इसे बचाने के लिये पेरिस, लंदन, यूरोप, ब्राजील, यूएस तथा कनाडा जैसे देशों में भी प्रदर्शन किये गये हैं.

30 मई 2022 को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के अम्बेडकर चौक में हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई और कोयला खनन को बढ़ावा देने के खिलाफ लोगों ने प्रदर्शन किया. बिलासपुर में आज एक बड़ा प्रदर्शन हसदेव अरण्य को बचाने किया गया।
छत्तीसगढ़ के जैव-विविधता संपन्न हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदानों को मंजूरी के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों के बीच राज्य के वन विभाग ने सोमवार को परसा ईस्ट कांते बेसन (पीईकेबी) कोयला खदान में खनन के दूसरे चरण में 500 से 600 की संख्या में पुलिस की मौजुदगी में पेड़ों को काटना शुरू कर दिया.
हालांकि, इस कदम के विरोध में बड़ी संख्या में ग्रामीणों द्वारा प्रदर्शन करने के बाद इसे रोक दिया गया. अधिकारियों ने कहा कि कार्रवाई रोके जाने से पहले 50-60 पेड़ काटे गए थे, जबकि ग्रामीणों का दावा है कि करीब 232 पेड़ काटे गए.
इस साल मार्च में राज्य की कांग्रेस नेतृत्व वाली भूपेश बघेल सरकार ने सरगुजा जिले में पीईकेबी दूसरे चरण के कोयला खनन के लिए वन भूमि के गैर-वानिकी उपयोग के लिए अंतिम मंजूरी दी थी.
द वायर ने लिखा है कि सरगुजा जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विवेक शुक्ला ने बताया कि वन विभाग ने सोमवार सुबह घाटबर्रा गांव से लगे पेंड्रामार जंगल में पेड़ों की कटाई शुरू कर दी थी. इस दौरान बड़ी संख्या में ग्रामीण वहां पहुंच गए और कटाई का विरोध करने लगे.
शुक्ला ने बताया कि ग्रामीणों के विरोध को देखते हुए क्षेत्र में पेड़ों की कटाई रोक दी गई और ग्रामीणों को शांत किया गया.
घाटबर्रा ग्राम पंचायत के सरपंच जयनंदन पोर्ते ने दावा किया है कि पीईकेबी के दूसरे चरण के खनन की अनुमति फर्जी ग्राम सभा की सहमति के आधार पर दी गई है.
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, पीईकेबी के दूसरे चरण के लिए ग्राम सभा 2019 में आयोजित की गई थी, जिसकी आधिकारिक जानकारी उस समय घाटबर्रा के ग्रामीणों को नहीं दी गई थी. दरअसल, उस ग्राम सभा के हाजिरी रजिस्टर में गांव के तीन निवासियों के हस्ताक्षर हैं, जिनकी 2019 से पहले मौत हो गई थी. वह ग्राम सभा पूरी तरह से फर्जी थी, लेकिन दुर्भाग्य से इसके आधार पर खनन के लिए मंजूरी दे दी गई थी. हमने इसकी जांच की मांग की है.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (सीबीए) के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में कैम्ब्रिज में कहा था कि उन्हें हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन को मंजूरी देने के फैसले से समस्या है, लेकिन इसके बावजूद आश्चर्यजनक रूप से पेड़ों की कटाई शुरू हो गई.
शुक्ला ने कहा, पिछले महीने वन विभाग ने परसा कोयला खदान परियोजना के लिए भी ऐसी ही कार्रवाई शुरू की थी, और वह भी ग्रामीणों द्वारा विफल कर दी गई थी. राज्य सरकार आदिवासियों के कल्याण की अनदेखी कर रही है.
उन्होंने दावा किया कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन से 1,73,000 हेक्टेयर वन नष्ट हो जाएंगे और मानव-हाथी संघर्ष शुरू हो जाएगा.
परसा और पीईकेबी दोनों कोयला ब्लॉक सरगुजा संभाग में हसदेव अरण्य क्षेत्र का हिस्सा हैं. परसा कोयला ब्लॉक राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित किया गया है, जबकि अडाणी एंटरप्राइजेज को माइन डेवलेपर और आॅपरेटर की जिम्मेदारी प्रदान की गई है.
द वायर ने लिखा है कि अधिकारियों के अनुसार, पीईकेबी ब्लॉक में 762 हेक्टेयर भूमि में खनन का पहला चरण, जिसे 2007 में आरवीयूएनएल को आवंटित किया गया था, 2013 में शुरू किया गया था और पूरा हो गया है. परसा ब्लॉक 2015 में आवंटित किया गया था.
पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र में जैव विविधता के विनाश को लेकर चिंता चिंता जताई जा रही है. जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया है, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद और भारतीय वन्यजीव संस्थान के दो अध्ययनों ने ह्यइस क्षेत्र में जैव विविधता के महत्व को रेखांकित किया है कि खनन निस्संदेह इसे प्रभावित करेगा.
भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद का कहना था कि क्षेत्र के प्रस्तावित 23 कोयला ब्लॉकों में से 14 को मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए.
उन्होंने मानव-हाथी संघर्ष पर भी बात की और कहा था कि छत्तीसगढ़ में अन्य राज्यों के मुकाबले हाथियों की संख्या कम है.
ग्रामीणों ने यह भी कहा है कि इस परियोजना से उनकी भूमि तक पहुंच और उनकी आजीविका प्रभावित होगी और इस मुद्दे पर लंबे समय से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. अक्टूबर 2021 में अवैध भूमि अधिग्रहण के विरोध में आदिवासी समुदायों के लगभग 350 लोगों द्वारा रायपुर तक 300 किलोमीटर पदयात्रा की गई थी.
हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.
हसदेव अरण्य जंगल को 2010 में कोयला मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर 2010 में पूरी तरह से नो गो एरिया घोषित किया था.
हालांकि, इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी, जिसमें बाद 2013 में खनन शुरू हो गया था.
केंद्र सरकार ने 21 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के परसा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दूसरे चरण की मंजूरी दी थी. परसा आदिवासियों के आंदोलन के बावजूद क्षेत्र में आवंटित छह कोयला ब्लॉकों में से एक है.
खनन गतिविधि, विस्थापन और वनों की कटाई के खिलाफ एक दशक से अधिक समय से चले प्रतिरोध के बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने बीते छह अप्रैल को हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधि को अंतिम मंजूरी दे दी थी.
यह अंतिम मंजूरी सूरजपुर और सरगुजा जिलों के तहत परसा ओपनकास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए भूमि के गैर वन उपयोग के लिए दी गई थी.
'फ्रेंड्स ऑफ हसदेव अरण्य' द्वारा 25 मई को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में की. हसदेव में कोयला खनन का विरोध कर रहे स्थानीय समुदायों के प्रति एकजुटता दिखाते हुए किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्ला ने कहा कि हो सकता है कि यह लड़ाई आने वाले कई दशकों तक चलें, लेकिन हम इस लड़ाई को हार नहीं सकते, क्योंकि जल, जंगल और भूमि सीमित हैं, उनका दोबारा जन्म नहीं होगा.
हम हमारे प्राकृतिक और संवैधानिक अधिकारों, पर्यावरण और अंतत: मानवता की रक्षा की लड़ाई लड़ रहे हैं और इन सबकी कॉपोर्रेट विकास के लिए बलि नहीं चढ़ाई जा सकती.
आलोक शुक्ला छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन), अपूवार्नंद (प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय), कांची कोहली (पर्यावरण शोधकर्ता), कविता श्रीवास्तव (पीयूसीएल), डॉ जितेंद्र मीणा (सभी जनजातीय समूहों का एक समूह, दिल्ली) और राजेंद्र रवि (एनएपीएम) ने भी प्रेस सम्मेलन को संबोधित किया. इन सभी लोगों ने निम्न मांगों पर बल दिया है :
1. हसदेव अरण्य क्षेत्र में सभी कोयला खनन परियोजनाओं को तत्काल रद्द करना.
2. कोल बियरिंग एरिया एक्ट, 1957 के तहत ग्राम सभाओं से पूर्व सहमति लिए बिना की गई सभी भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही तुरंत वापस लेना.
3. परसा कोयला ब्लॉक के ईसी/एफसी को रद्द करना; फर्जी ग्राम सभा सहमति के लिए कंपनी और अधिकारियों के खिलाफ तत्काल प्राथमिकी और कार्रवाई.
4. भूमि अधिग्रहण और 5वीं अनुसूची के क्षेत्रों में किसी भी खनन या अन्य परियोजनाओं के आबंटन से पहले ग्राम सभाओं से मुफ्त पूर्व सूचित सहमति का कार्यान्वयन.
5. घाटबर्रा गांव के सामुदायिक वन अधिकार की बहाली, जिसे
अवैध रूप से रद्द कर दिया गया है; हसदेव अरण्य में सभी
सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों और व्यक्तिगत वन अधिकार पत्रकों की मान्यता.
6. पेसा अधिनियम, 1996 के सभी प्रावधानों का क्रियान्वयन.
प्रदेश में जल, जंगल, जमीन, खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ हसदेव और सिलगेर में जारी आंदोलन को केंद्र में रखकर छत्तीसगढ़ किसान सभा ने भी 5 जून को पूरे प्रदेश में आदिवासियों के साथ एकजुटता व्यक्त करने का फैसला किया है.
हसदेव अरण्य क्षेत्र में लाखों पेड़ों की कटाई एवं आदिवासियों की विस्थापन रोकने अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा एवं आदिवासी भारत महासभा के प्रतिनिधियों ने अनुविभागीय अधिकारी मैनपुर को राज्यपाल छत्तीसगढ़ शासन के नाम ज्ञापन सौंपते हुए कहा है कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला उत्खनन के लिए लाखों पेड़ों की कटाई एवं आदिवासियों की विस्थापन रोकने तथा पर्यावरण की रक्षा के लिए क्षेत्र की जनता पिछले दस सालों से आन्दोलनरत है.
लेकिन राज्य सरकार द्वारा जनता की जमीन आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र की गंभीर समस्या को ध्यान न देकर केवल कॉरपोरेट हीतों को ही महत्व दिया जा रहा है .
साल 2015 में आयोजित क्षेत्र की जनता के धरना - प्रदर्शन में शामिल होकर उनकी मांगों का समर्थन तात्कालीन कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने मदनपुर में किया था तब भूपेश बघेल जी स्वयं मौजूद थे.
अब जब कांग्रेस पार्टी स्वयं राज्य की सत्ता में है तब आन्दोलनकारियों की मांगों को नजरअन्दाज कर कोयला उत्खनन के लिए कॉरपोरेटों के साथ खड़े नजर आ रहे हैं.
राज्यपाल से अनुरोध किया है कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में रहवासियों की जल, जंगल, जमीन, आजीविका व पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करते हुए परसाकोल माइंस में पेड़ों की कटाई, आदिवासियों की विस्थापन तथा कोयला उत्खनन पर रोक लगाया जाए।
ज्ञापन देने वालों में आदिवासी भारत महासभा के संयोजक सौरा यादव, अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के सचिव तेजराम विद्रोही, पदमलाल नेताम, युवराज नेताम, परमेश्वर मरकाम, गोपीराम यादव, खेमसिंह, कल्याण सिंह, रामलाल, हेमलाल, हुमन सिंह, डोमार कपिल, डोमार सिंह सांडे, लय सिंह नेताम, चैनसिंह सांडे आदि उपस्थित रहे।
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