जाने माने गोंडवाना पत्रिकाओं के मुदीरे आला प्रदीप सुभेदार नहीं रहें
सुशान्त कुमारऊर्दू में सम्पादक को मुदीर कहते हैं। और प्रधान सम्पादक को मुदीरे आला कहते हैं। सम्पादक अर्थ है निष्पादन, कार्यान्वयन, पूरा करना, उपार्जन करना, प्राप्त करना, स्वच्छ करना, साफ करना आदि इन सभी अर्थों में पद को सम करने की बात स्पष्ट हो रही है। सम्पादक के साथ उप, सहायक, कार्यकारी, प्रबंध या प्रधान जैसे शब्दों के जुड़ने के साथ सम्पादक शब्द का रूतबा भी बढ़ता जाता है। ऐसे ही रूतबा के मालिक थे साहेब प्रदीप सुभेदार।

आप सोच रहे होंगे कि सम्पादक के महत्व को इतने विस्तार से बताने कि जरूरत क्यों है। यह इसलिए भी जरूरत है कि कुछ लोगों ने इस कार्य को धन उपार्जन का हथियार बना लिया है। और वास्तविक सम्पादकों को कैद कर लिया है।
मैं बात करने जा रहा हूं प्रदीप सुभेदार की। जी हां, गोंडवाना स्वदेश तथा गोंडवाना दर्शन के अंडर कवर सम्पादक प्रदीप सुभेदार नहीं रहे।
वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। कल रात करीब शाम के 7 बजे सेवाग्राम हॉस्पिटल में देहांत हो गया। वे वर्धा में निवास करते थे। आम्बेडकरी और आदिवासी मामलों के मर्मज्ञ का असमय जाना दु:खद है। वे लंबे समय तक पहले गोंडवाना दर्शन और उसके बाद गोंडवाना स्वदेश जैसे पत्रिकाओं में सम्पादक का कार्य कर रहे थे।
कुछ लोगों को बताना चाहता हूं कि वास्तव में सम्पादक होता क्या है। लोग कहते हैं कि पैसों की सबको जरूरत होती है लेकिन आपको बता दूं कुछ सम्पादकों के पास काम के बलबूते पैसें चल कर आते हैं, ऐसे ही सम्पादक में से एक थे प्रदीप सुभेदार।
मैं यहां उन्हें अंडर कवर सम्पादक कह रहा हूं, क्योंकि वे काफी लंबे समय तक दोनों ही पत्रिकाओं के लिये अप्रत्यक्ष रूप से सम्पादक के तौर पर काम किया है। गोंडवाना दर्शन बंद होने से पूर्व और गोंडवाना स्वदेश शुरू होने के बाद के वे अकेले मेहनती सम्पादक रहे हैं। उसे ऊंचाई देने में उनकी महती भूमिका है।
अब आप कहेंगे वह कैसे तो अर्थात वह व्यक्ति जो किसी पत्र पत्रिका की सामग्री का चयन करें, विषयवार उसे व्यवस्थित रूप दे, उसकी भाषा से लेकर साज सज्जा तक हर काम का संयोजन वियोजन जिसके जिम्मे हो और इसके बाद उसे वह प्रकाशन योग्य बनाए वही सम्पादक हैं और इसका पर्याय थे प्रदीप सुभेदार।
गोंडवाना पत्रिकाओं में सम्पादक का पद महत्वपूर्ण होता है। सम्पादक वह है जो मुद्रित सामग्री के प्रकाशन से जुड़े सभी पक्षों को गुणवत्ता के लिए उत्तरदायी होता है।
और सुभेदार जी इस कर्तव्य को हर समय पूरा किया है। सम्पादक शब्द बना है सम्पाद: से जिसका रिश्ता भी इसी पद से है सम + पद्न के योग से बने इस शब्द में किसी कार्य के उचित ढंग से करने अर्थात निष्पादन का भाव है जो इसी मूल का शब्द है।
सम्पादन अर्थात एडिटिंग के संदर्भ में देखें तो लिखी हुई इबारतों को सुधारना ही सम्पादन है अर्थात पदों को समान करना, उन्हें सही करना। संस्कृत में सम्पादनम् का अर्थ ही सही करना, साफ करना, तैयार करना, पूरा करना है। अब उनके बिना यह पत्रिका मृत समान हो गये हैं।
इतने बड़े शख्सियत जब भी मिलना होता था तो गर्मजोशी और विनम्रता से मिलते थे। उत्तम और दक्षिण कोसल नाम सुनकर ना जाने उनका मन बल्लियों उछल्लने लगता था। वे कहते थे कि दक्षिण कोसल में सामग्रियों का चुनाव ऊंचे दर्जे का होता है और सामग्री के साथ तस्वीर का चुनाव भी।
कहते थे कवर पेज जैसे पत्रिका को चार चांद लगा देते हैं। वे मेरी तारीफ में कुछ भी हीला हवाला नहीं करते थे। राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय विषयों के साथ आंबेडकरी और आदिवासी आंदोलन का विकास और आदिवासियों की राजसत्ता के लिये अखबार की जरूरत पर उनकी गहरी समझ थी।
विभिन्न जिम्मेदारियों के साथ उन्होंने अपने होशों हवाशों में दक्षिण कोसल के सलाहकार सम्पादक की भूमिका को बखूबी निभाया था। तारीफ के साथ चीजों की आलोचना कर मार्गदर्शन करने का कार्य वे मेरे व्यक्तिव्य के निखार में करते रहे हैं।
बहुत कम मुलाकातें हुई लेकिन जो भी हुई बहुत ही सार्थक मुलाकातें हुई। जिन सम्पादकों और पत्रकारों के साथ मैंने काम किया है उनमें से आज एक तारा टूट कर धरती में गिर गया है।
Add Comment