ख़ालिद सैफी से जेल में मिलने का सफर

नरगिस सैफी

 

मैं सुबह 8 बजे के करीब मंडोली जेल पहुंच गई। मुलाकात के लिए लंबी लाइन लगी हुई थी। उस लाइन में लगे लोगों को देख कर लग रहा था कि आधा मुस्लमान दवातो में मशरूफ हैं और आधा जेल के अंदर, और बाकी उन के बचे हुए घर वाले कोर्ट और जेल की लाइनों में लगे हैं।

जेले मुसलमानों से भरी पड़ी हैं और मैं देखती हूँ किसी की बूढ़ी मां लाइन में लगी है, किसी का बूढ़ा बाप वहा खड़ा पुलिस की गाली खा रहा है।

खैर मैं खालिद के लिए 2 जोड़ी कपड़े ले कर गई थी। अंदर पहुंचते ही पता चला कि मैं 1 जोड़ी ही ले जा सकती हूँ।

वहां बाहर जो ऑफिसर बैठी थी बेइंतहाई बततमीज थी, मैंने उससे रिक्वेस्ट की मैं ये कपड़े कहां रखूंगी तो बोली बाहर कहीं भी फेंक दे पर जायेंगे 1 ही।

मैंने उससे ज्यादा बहस नहीं करी अकेले होने की वजह से कपड़ों को बाहर आकर एक साइड में किसी पेड़ के नीचे रख दिया और अल्लाह से कहा कि तेरे सुपुर्द।

मैं दुबारा लाइन में लगी और वो स्टेप पार किया फिर नेक्स्ट लेवल पर पर पहुंची उसके बाद वहां चेकिंग हुई वहां मेरा बुरखा उतारा गया, उसके बाद मुझे मेरे बाल खोलने के लिए कहा गया।

ये प्रोसेस 2 जगह 2 बार हुआ।

उन लेडिस पुलिस के हाथ लगाने और चेकिंग करने से घिन आ रही थी, और उनका रवैया ऐसा था मानो जैसे उन सब के दिमाग में ये हो कि जेल में बन्द सारे मुसलमान गुनहगार हैं। और इनकी फैमिली की कोई इज्जत नहीं है ।

जेल मिलने जाना भी अपने आप में एक टॉर्चर है। 3 बार खालिद के 1 जोड़ी कपड़े की चेकिंग हुई।

खालीद की जेल तक पहुंचते पहुंचते थक गई थी, क्योंकि मुझे 2 घंटे बस इन सब को पार करने में लगे।।

खालीद की जेल के बाहर एक ऑफिसर को एक स्लिप दी जिससे वो खालिद को बुलाते मिलने के लिए, वहां मैं 1/2 घंटा बैठी रही, गर्मी अपने पूरे शबाब पर थी और गरम हवाओं के थपेड़ों से हलक सुख चुका था इंतज़ार करते हुए एक अजीब सी घबराहट थी कि काफी दिन बाद मैं खालिद से मिलने जेल आई थी,अक्सर खालिद मुझे मना करते है जेल आने के लिए, पर इस बार मेरा दिल नहीं माना और मैं चली आई।

तकरीबन 1/2 घंटे बाद खालिद की आवाज लगी और जल्दी से उठ कर उनसे मिलने गई। वो मुझे देख कर बहुत खुश हुए।

उनकी आंखों में चमक थी। हमने फोन उठाया और बाते करनी शुरू की।

बातों से ज्यादा हम बस एक दूसरे को देख रहे थे। हमारे बीच में शीशा और सलाखे थी फिर भी मैं खालिद के हाथों को छूने की कोशिश कर रही थी। उन की आंखों में मेरे लिए आंसू थे।

वो मेरे लिए परेशान थे कि मैं गर्मी में रोज़े की हालत में बच्चों को सोता हुआ छोड़ कर आई हूं।

वो मुझेसे सॉरी बोल रहे थे कि मेरी वजह से तुझे इतना परेशान होना पड़ रहा है।

मैं वहां बस उनको सुनने गई थी, वो अपने दिल की बाते सुना रहे थे। जिस तकलीफ से खालिद और हमारे सभी साथी गुजर रहे है वो शायद आप और मैं महसूस भी नहीं कर सकते।

छत गरम, दिवारे गरम, फर्श गरम, खिड़की से आती हुई हवा गर्म, कूलर नहीं पंखे मानो बोल रहे हैं कि अब हम साथ नहीं दे सकते। चादर गीली कर के लेटना पड़ता है।

इस हालत में जब खालिद की तबियत बिल्कुल भी ठीक नहीं, उनको सही खाना नहीं मिल रहा, सही इलाज नहीं मिल रहा उस हालत में भी एक रोजा नही छोड़ रहे, अपनी इबादत में और तरावीह और तहाजुद में कोई कमी नहीं आने दे रहे हैं।

जिस मौसम में आप सारी सहूलियत होने के बावजूद मस्जिद तक नहीं जा रहे उस हालत में भी खालिद का ईमान मजबूती के साथ खड़ा है खालिद को और मुझे ये पता है कि हमें इस हालत में कुछ नहीं मिल रहा पर हमें अल्लाह मिल रहा है और जब वो मिल जाए तो किसी की जरूरत नहीं होती।

शायद अल्लाह को भी मंजूर था कि हम और बाते करे पता ही नहीं चला कि कब 1/2 घंटा गुजर गया। और मेरे पीछे से आवाज आई कि आपका टाइम खतम हो गया है, मैंने उस ऑफिसर से कहा 2 मिनट रुकिए तो उसने कहा मैडम 15 मिनट का टाइम होता है और आप को तो फिर काफी देर हो गई है मैं समझ गई और मुस्कुरा कर उसको थैंक यू बोला।

उसकी 2 दूसरी आवाज सुनते ही दिल को धक्का लगा क्योंकि मुझे खालिद को फिर से उस जहन्नुम में छोड़ कर आना था। जहा इंसान को इंसान नहीं समझा जाता।

फोन रखते हुए उनकी मेरी आंखों में आसूं थे, मानो वो कह रहे हैं मुझे साथ ले चल और मैं भी बोल रही हूँ कि मैं थक गई हूं अकेली भागते भागते अब बहोत हो चुका मेरे साथ चलो।

ये सब अभी मुमकिन नहीं था, हमने अल्लाह हाफिज कर के फोन काटा और एक दूसरे को देख कर चले गए।

बाहर आते हुए और उनसे बिछड़ते हुए आंसू रूक ही नहीं रहे थे।

बाहर आते आते एक जगह ऐसा लगा कि अंधेरा छा गया है पैर कांपने लगे, वहां एक पुलिस वाला बोला क्या हुआ चक्कर आ गया था शायद आपको फिर उसने मुझे बैठने को बोला पानी ऑफर किया पर रोजा था तो मना कर दिया।

कुछ मिनट आराम मिलने के बाद उस भाई को शुक्रिया बोला और मैं बाहर आ गई।

7.30 बजे सुबह से शुरू हुआ सफर बाहर आने तक 11.30 बजे सुबह तक चला।

फिर ऑटो कर के अपने घर 12 बजे तक पहुंची। घर आते ही बच्चों ने गले लगाया और अब्बू के बारे में पूछने लगे, अपने बच्चों के लिए खालिद गिफ्ट के तौर पर लेटर्स लिखे थे तो मैंने वो बच्चों को दे दिए तीनों लेटर्स लेकर बहुत खुश हुए।

आप सभी को खालिद ने सलाम भेजा है, अपनी दुआओं में खालिद और सभी को याद रखे।

अल्लाह हमें और आप को हिम्मत के साथ एकजुट हो कर तानाशाही, फासीवाद से लड़ने की ताकत दे।

मोमिनो के लिए तो दुनिया वैसे भी कैद खाना है, तुम हमें कैद करो हम यूसुफ बन कर जेल को नूर की रोशनी से मुन्नवर करेगें।

न डरे थे, न डरेंगे इंशाअल्लाह

नाइंसाफी की इस लड़ाई को हिम्मत के साथ जारी रखेंगे।

मैं तुम्हे पाने की हर आखिरी कोशिश करूंगी,

मैं तुम्हे किस्मत के हवाले नही छोड़ सकती।

मैं आप की कमजोरी नहीं हूं, मैं आप की हिम्मत बन कर आप के साथ हर हाल में खड़ी हूं।

Nargis Khalid Saifi के वाल से।


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