नारायणपुर कलेक्टरेट के बाहर ग्रामीणों पर बर्बर लाठीचार्ज
आदिवासियों को अपने संसाधनों को सुरक्षित रखने का पूर्ण अधिकार
द कोरस टीमनारायणपुर में आंन्दोलकारी ग्रामीण आदिवासियों पर कार्पोरेटी पुलिस राज द्वारा किए गए लाठीचार्ज की घोर निंदा करते हुए कहा है कि पांचवी अनुसूचि के अंतर्गत क्षेत्रों में आदिवासियों को अपने संसाधनों को सुरक्षित रखने का भारतीय विधान के तहत पूर्ण अधिकार है। रावघाट में खनन के विरुद्ध उनकी विधिसम्मत माँगों को नज़रंदाज़ कर उन पर क्रूरता से लाठियाँ बरसाना लोकतांत्रिक प्रणाली का मज़ाक उड़ाना है।

रावघाट खदानों के विरोध में रावघाट परियोजना के असरग्रस्थ गांवों के ग्रामीण दिनांक 26 मार्च से खोड़गाँव मार्ग को रोक, नाकाबंदी कर धरना पर बैठे हैं। पर अभी तक कोई भी सरकारी अधिकारी उनसे मिलने नहीं गया है, और न ही उन की शिकायतों पर किसी का कोई बयान आया है।
ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम सभा की सहमति के बगैर रावघाट पहाड़ पर कोई खनन नहीं हो सकता है, जो कि वन अधिकार मान्यता कानून 2006 और पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्र में विस्तार) 1996 के अनुकूल है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने चुनाव पूर्व अपने घोषणा पत्र में पेसा और वनाधिकार मान्यता कानून के क्रियान्वयन का वादा किया था, लेकिन आज जब समुदाय इन कानूनों के पालन की बात कर रहे है तो कार्पोरेट के दवाब में सरकार आदिवासियों का दमन कर रही है l
दिनांक 1 अप्रैल को संपूर्ण रावघाट खदान प्रभावित क्षेत्र से आये ग्रामीणों ने ग्राम बिंजली से शांतिपूर्वक रैली निकालकर कलेक्टर को ज्ञापन देने का निर्णय लिया। पर कलेक्टरेट पहुँच कर उन्होंने पाया कि भारी संख्या में वहाँ पुलिस मौजूद थी, जिन्होंने उन्हें अन्दर नहीं जाने दिया, न ही कलेक्टर बाहर आकर ज्ञापन लेने को तैयार थे।
दो घंटो तक चिलचिलाती धूप में खड़े होने के बाद जब आन्दोलनकारियों ने बैरिकेड को पार कर अन्दर जाने की कोशिश की, तब उनपर लाठी चार्ज हुआ। इस बर्बर्तापूर्वक वार से, जो काफी समय तक चलता रहा, से कई लोगों को चोटें आईं है। यह सब होने के पश्चात ही कलेक्टर महोदय आन्दोलकारियों के बीच पधारे और उनसे ज्ञापन स्वीकार किया।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (CBA) ने विरोध प्रदर्शन करने के मौलिक अधिकार पर ज़ोर रखते हुए दोहराता है कि आंदोलनकारियों के शांतिपूर्ण रैली और प्रदर्शन पर इस प्रकार के हिंसक रवैये को अपनाकर सरकार लोकतंत्र का गला घोंट रही है। आदोलनकारियों को रोकने और पीटने के बदले उनसे शीघ्र ज्ञापन स्वीकार करने की आवश्यकता थी।
ओड़िसा के नियमगिरी पर्वत पर वेदांता की खदान और अन्य मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार स्पष्ट किया है कि वन स्वीकृति देने से पहले पूरे प्रभावित क्षेत्र में व्यक्तिगत एवं सामुदायिक वन अधिकार सुनिश्चित करने चाहियें, और सभी प्रभावित गाँवों की ग्राम सभाओं से सहमति लेना अनिवार्य है।
रावघाट परियोजना के संदर्भ में यह दोनों शर्तें ही पूरी नहीं हुई है। इस परियोजना के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में मामला लंबित है, और इस संदर्भ में ग्रामीणों के माँगे सही और सम्मानजनक हैं।
छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के संयोजक मंडल सुदेश टीकम, बेला भटिया, विजय भाई, नंदकुमार कश्यप, रमाकांत बंजारे, शालिनी गैरा, आलोक शुक्ला ने सरकार से माँग किया है कि-
1. ग्रामीणों की शिकायतों का अतिशीघ्र निराकरण करे।
2. वन अधिकार मान्यता कानून (2006) और पेसा अधिनियम 1996 का पूर्ण रूप से पालन करें
3. आज की बर्बर हिंसा के लिये ज़िम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करें।
4. किसी भी खनन परियोजना को अनुमति देने से पूर्व प्रभावित ग्रामसभाओं से मुक्त -संसूचित -अग्रिम - दबावमुक्त- सहमती लेना सुनिश्चित करें।
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