तुम्हारी वायरल होती पोस्ट से तुम्हें जाना
देवयानी भारद्वाजनहाने जाते समय यही विकल्प होता था कि बच्चे को भी बाथरूम में साथ ही ले जाऊं। उसे नहला कर बाल्टी में बिठा देती और जब मैं खुद नहाने लगती तो बच्चा लपक कर छाती से दूध पीना चाहता और मैं उसे एक हाथ से बिठाए रख फटाफट शरीर पर पानी गिरा कपड़े पहनती। उसे नहाने और दूध पीने के बाद गहरी नींद आती और तब मुझे दोपहर की शिफ्ट में दफ्तर जाना होता।

प्रिय गीता
मैं जानती हूं बच्चों के साथ एकाकी जीवन जीते हुए जब अपने परिवारों में बहुत आत्मीय लोगों को भी बताते हैं कि घर बाहर सब एक साथ संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है, तब अक्सर पुरुष कहते हैं सब खुद ही करना होता है। उस वक्त वे भूल जाते हैं कि घरों में उनके बच्चों की परवरिश में पत्नियां रात-दिन खट रही थीं जब वे बाहर सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहे थे।
वे आसानी से एक कामकाजी अकेली स्त्री को अपने बराबर के तराजू में रख अपनी सफलता पर इठला सकते हैं। हम औरतें एकाकी नहीं भी हों तो अक्सर मातृत्व के अपने श्रम में हम अकेली ही होती हैं। हमारी नींदें सिर्फ बच्चे के जन्म के बाद कच्ची नहीं पड़तीं, वह जब गर्भ में आता है तब से छोटी होने लग जाती हैं। फिर भी हमें शिकायत मातृत्व से नहीं, विज्ञान ने हमें विकल्प दिया है कि हम इनकार ही कर दें मां बनने से लेकिन हम मां बनती हैं तो यह हमने चुना है।
बहुत औरतों को चुनने का विकल्प नहीं होता लेकिन जो औरत कमोड पर बैठी अपनी तस्वीर लगा कर अपनी बात कह सकती है वह चुनना जानती है और उसे किसी की सहानुभूति नहीं चाहिए। मेरा मानना है कि वह सफलता पर इठलाते और उसे रोज नसीहत देने के बहाने तलाशते लोगों को यह बताना चाहती होगी कि यह जो तुम्हारे पास झौव्वा भर एकांत है न, मेरे पास चुटकी भर नहीं फिर भी खड़ी हूं तुम्हारे मुक़ाबिल, फिर भी डरे हुए तुम ही हो। और वे सारे डरे हुए लोग नुकीले हथियार ले निकल आए तुम्हें चुप करने।
मुझे याद आता है कि जब मेरा बेटा छोटा था तब मैं जिस घर में रहती थी उसका दरवाजा खुला नहीं छोड़ सकती थी।
चार माह के बच्चे को छोड़ दफ्तर जाना शुरू किया तो चार-पांच घंटे में उसे दूध पिलाने के लिए छाती एंठने लगती और दूध कपड़ों में छलक न आए इसलिए दफ्तर के वॉशरूम में जाकर कुछ दूध बहा कर आना पड़ता। लेकिन यह ऐसी पीड़ाएं हैं जिन्हें समझा कर आप इस समाज में मेटरनिटी लीव बढ़ाने की मांग नहीं कर सकते, सिर्फ हंसी का पात्र बन सकते हैं, गाली खा सकते हैं या इस सोशल मीडिया पर लोग नहाने की तस्वीरें मांग सकते हैं, बलात्कार की मंशा जता सकते हैं। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि हम इन सारी अंतरंग कहानियों को कहें और इस पर आने वाली प्रतिक्रियाओं का सामना करने का जोखिम भी उठाएं।
औरतों को अपमानित करने की इस हिंसक मानसिकता में हर उम्र की औरतें भी शामिल हैं। उनकी भी अपनी मजबूरियां होंगी, किसी को बेटे, पति या मर्दों से वेलिडेशन की दरकार होगी, कुछ बेटियों या बहुओं पर नियंत्रण की अपनी आकांक्षा से ग्रसित। वर्ना कौन औरत न होगी इस समाज में जो इस तकलीफ़ के साथ रिलेट न कर पाती होगी। वे जिन्हें किसी भी कारण (आर्थिक या सामाजिक) ठीक इस परिस्थिति का सामना न भी करना पड़ा हो, न्यूनतम कल्पना यह समझा सकती है कि महानगर में छोटे बच्चों के साथ स्त्रियों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा।
वे सारे लोग जो तुम्हें अपमानित करने में धरती-आसमान एक किए हैं, उन्हें तुम्हारी वे चिंतातुर आंखें नहीं दिखतीं जिनमें तुम्हारे पास अपने सर्वाधिक निजी समय की भी निजता हासिल नहीं। उन्हें नहीं दिखता कि कितनी आसानी से जाने कितने अपनों ने कहा होगा कि सब खुद ही करना होता है। यह जो समझाने के लिए की गई पुकार थी कि जानो तो सही एकल मां होने का मतलब क्या होता है, उसने उन्हें गिद्धों की तरह तुम्हें नोच खाने का मौका दे दिया। मुझे इन सब लोगों पर गुस्सा नहीं आता, दया आती है। बीमार लोगों पर गुस्सा नहीं, दया ही की जा सकती है।
लेकिन दोस्त एक बात कहना चाहती हूं, यह जो इतनी टॉक्सिक एनर्जी है न, इससे खुद को बचा कर रखना। हमारा साहस बंदरों से लड़ने में खर्च करने के लिए नहीं है। एक तरफ हमारे सामने हमारा अपना जीवन, हमारा मानसिक सुकून, हमारी पेशेवर ग्रोथ के सवाल हैं और दूसरी ओर वह मासूम जीवन जिसने अभी इस दुनिया में आंखें खोली हैं।
यह जैसी भी दुनिया है इसमें हमारे अपने मन में प्यार उमगता रहे और बच्चे प्यार के साथ इस दुनिया का सामना करना सीख सकें इसलिए इस लड़ाई में खुद को उतना ही खपाना, जितना तुम्हें ताकत दे, तुम्हें समृद्ध करें। हम हर कदम बहुत सारे चुनाव करती हैं। मैं इस पोस्ट और तस्वीर को लगाने के तुम्हारे साहस को सलाम करती हूं। बहुत सारे लोग ऐसे मौके पर सिर्फ मुंह से विष्ठा करते हैं, उनके जवाब देने में तुम्हारी ऊर्जा खर्च होते देखती हूं तो मन में यह ख्याल आया कि तुमसे यह कहूं, "हाथी जब जंगल में चलता है तो पेड़ों पर कूदते बंदरों की परवाह नहीं करता।"
बहुत सारा प्यार और खूब शुभकामनाएं...
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