अमेरिका के नाट्य ओपेरा और समारोहों के निर्देशक पीटर सेलर्स का संदेश
पीटर सेलर्सआज जब दुनियां चौबीसों घंटे, हर पल सूचनाओं की ड्रिप के सहारे लटकी हुई है, मैं आप सभी सृजनशील लोगों को समय, काल की सीमाओं से परे महा काव्यात्मक वृतांत, कालातीत समय, कालातीत परिवर्तन, कालातीत ज्ञान, कालातीत प्रतिबिंब और कालातीत अंतर्दृष्टि की ओर ले जाने की इजाज़त चाहता हूँ। हम मानव इतिहास के उस महाकाव्यात्मक युग के साक्षी हैं जिसमे दिन प्रतिदिन सामाजिक और मानवीय संबंधों में ऐसे अकल्पनीय परिवर्तन हो रहे हैं जिन्हें शब्दों में बांधना हमारी क्षमताओं के बाहर होता जा रहा है।

प्यारे दोस्तो,
आज जब दुनियां चौबीसों घंटे, हर पल सूचनाओं की ड्रिप के सहारे लटकी हुई है, मैं आप सभी सृजनशील लोगों को समय,काल की सीमाओं से परे महा काव्यात्मक वृतांत, कालातीत समय, कालातीत परिवर्तन, कालातीत ज्ञान, कालातीत प्रतिबिंब और कालातीत अंतर्दृष्टि की ओर ले जाने की इजाज़त चाहता हूँ।
हम मानव इतिहास के उस महाकाव्यात्मक युग के साक्षी हैं जिसमे दिन प्रतिदिन सामाजिक और मानवीय संबंधों में ऐसे अकल्पनीय परिवर्तन हो रहे हैं जिन्हें शब्दों में बांधना हमारी क्षमताओं के बाहर होता जा रहा है।
हम सिर्फ चौबीसों घंटे सूचना और समाचारों के संजाल में ही नहीं फंसे हैं बल्कि हम सूचनाओं के विस्फोट की नोक पर खड़े हैं।
समाचार पत्र, समूचा मीडिया हमारे अनुभवों की अभिव्यक्ति के लिए सर्वथा अनुपयुक्त है।
आज के गहरे विचलन, टूटन के अनुभवों को अभिव्यक्त करने वाली भाषा, नाटकीय तत्व और छवियां गुम सी हो गई हैं और आज समय और जीवन को रिपोर्ताज की जगह अनुभूतिपरक बनाने की चुनौती हम सभी के सामने है। रंगमंच अनुभूतिपरक कला है।
विशाल सूचना अभियानों, गढ़े गए अनुभवों और भयावह भविष्यवाणियों और लगातार दोहराई जाने वाली संख्याओं से अभिभूत, एकध्रुवीय इस दुनिया में हम लगातार अकेले होते जा रहे व्यक्ति की मर्यादा और उसके अनुभव, मित्रता की गरिमा या कहें एक विस्तृत और अजनबी आकाश में छोटे प्रकाश पुंज की उपस्थिति को बचाने में असमर्थ साबित हो रहे हैं।
दो साल के कोविड काल ने लोगों की संवेदना को सीमित और क्षीण किया है, जीवन को संकुचित किया है, रिश्तों के तार तोड़े हैं और हमें सभ्यता के संकट की विचित्र ज़मीन पर पटक दिया है।
सभ्यता के संकट के समाधान के कौन से बीज बोए जाएं और उनकी अधिकाधिक खेती की जाय और कैसे झाड़ झंखाड़ के रूप में उगे खतरों को पूरी तरह उखाड़ फेंका जाय? यह बड़ा सवाल है।
बड़ी तादाद में लोग सभ्यता से निष्कासन के मुहाने पर खड़े हैं।
विवेकहीन हिंसा अप्रत्याशित रूप से लगातार बढ़ रही है।
बहुत सारी स्थापित प्रणालियां क्रूरता की पर्याय बन गई हैं।
स्मृति को बचाने का क्या तरीका हो? क्या याद रखें,क्या भूलें? वे कौन से अनुष्ठान और संस्कार हैं जो हमारी कल्पना शीलता को बढ़ाते हैं? जो हमे फिर से सोचने और उन कदमों के पूर्वाभ्यास की अनुमति देते हैं जो हमने पहले नही उठाये।
रंगमंच में महाकाव्यात्मक दृष्टि, सोद्देश्यता और सहयोग जैसे संस्कारों के पुनर्जीवन और पुनराविष्कार की जरूरत है।
हमे मंचों को अधिक से अधिक साझा करने और साझेपन को विकसित करने की जरूरत है। हमें ऐसे मंच चाहिए जहां बात को गहराई से सुना और समझा जा सके।
रंगमंच मानव सभ्यता का ऐसा सृजनशील स्थल है जहां इंसान, देवताओं, पेड़ पौधों में समन्वय और बराबरी है जहाँ वर्षा के बूंदों की आवाज, आंसुओं को महसूस करते हुए रचनात्मकता परिपक्व होती है। बराबरी और गहराई से सोचने, समझने का यह स्थल एक रहस्यमय सौंदर्य से आलोकित होता रहता है, जहां खतरे, समभाव, विवेक, क्रियात्मकता और धैर्य एक साथ हमजोली होते हैं।
पुष्प आभूषण सूत्र में बुद्ध ने मानव जीवन में धैर्य के दस सूत्र बताए हैं जिनमें एक सबसे प्रभावशाली सूत्र है -"दुनियां को मरीचिका की तरह देखने समझने का धैर्य"।
रंगमंच ने जीवन को मरीचिका की ही तरह प्रस्तुत करने का प्रयास किया है जिसमे काले और सफेद को साफ साफ पहचाना जा सके और भ्रम व भ्रांति का निवारण किया जा सके।
यथार्थ को जानने और समझने के तयशुदा दृष्टिकोण की सीमाएं हैं जिसमें वैकल्पिक यथार्थ, नई संभावनाओं, नए दृष्टिकोणों, अव्यक्त संबंधों और कालातीत संदर्भो की आवाजाही बंद हो जाती है।
यह दिल और दिमाग और संवेदना को कल्पनाशीलता, इतिहास बोध, भविष्यदृष्टि से सुसज्जित करने का समय है। यह सामूहिकता से ही संभव है। रंगमंच सामूहिकता का निमंत्रण पत्र है।
आपकी सृजनशीलता को सलाम।
पीटर सेलर्स
अनुवाद- राकेश राष्ट्रीय महासचिव इप्टा
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