आज जरूरत है एक और कांशीराम की
चन्द्रभूषण सिंह यादवकांशीराम साहब का नाम आते ही इस स्वतंत्र भारत के इतिहास में आजादी के बाद सबसे बड़े वैचारिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक परिवर्तन के ऐसे वाहक का अमर चित्र मन-मस्तिष्क में उभर पड़ता है जो अकल्पनीय व अद्वितीय सा लगता है और वर्तमान परिदृष्य में यह महसूस होता है कि आज एक बार फिर ऐसे महामानव के प्रादुर्भाव की जरूरत है क्योंकि कोई भी सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तन बिना जोखिम उठाये व भयग्रस्त रहते हुये नहीं किया जा सकता है।

जिसकी सोच स्पष्ट हो, जो आर-पार की भाषा बोलने वाला हो,जो गांव की झुग्गी में रहने की सलाहियत रखता हो,जो सायकिल से चल सकता हो, जो हाथ मे खड़िया (चाक) ले गांव की गन्दी बस्तियों में क्लास लगाकर मनुवाद की परतें उघाड़ सकता हो, जो सामाजिक बनावट की समझ रखता हो, जो मनुवादी जाल में फंसने वाला न हो, जो बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय की थीम को ठीक से समझता हो और उस पर कायम रहने वाला हो।
जो एक बार फिर बहुजन जमातों को इकट्ठा कर उनमें सत्ता की भूख जगा सकता हो,जो भूखे रहकर या बासी खाकर भी अपनी आने वाली पीढ़ियों को बिरियानी खाने लायक बनाने की इच्छा शक्ति रखता हो, आज एक ऐसे ही दूसरे "कांशीराम साहब" की पुनः जरूरत आ पड़ी है।
कांशीराम साहब का नाम आते ही इस स्वतंत्र भारत के इतिहास में आजादी के बाद सबसे बड़े वैचारिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक परिवर्तन के ऐसे वाहक का अमर चित्र मन-मस्तिष्क में उभर पड़ता है जो अकल्पनीय व अद्वितीय सा लगता है और वर्तमान परिदृष्य में यह महसूस होता है कि एलआज एक बार फिर ऐसे महामानव के प्रादुर्भाव की जरूरत है क्योंकि कोई भी सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तन बिना जोखिम उठाये व भयग्रस्त रहते हुये नहीं किया जा सकता है।
आज अपनी कमियों से बिखरे हुए उस बहुजन समाज को मनुवाद के विरुद्ध पुनः उठ खड़े करने की जरूरत है जिसे कांशीराम साहब ने अपने अनथक प्रयत्नों से 1974 से लगातार प्रयास करते हुये संगठित किया था और उन्हें मनुवाद के विरुद्ध श्यामपट्ट पर चाक (खड़िया) ले पढ़ाते हुये बुद्धवाद, अम्बेडकरवाद, समतावाद की तरफ लाया था।
आज कांशीराम साहब की जन्म जयंती है जिस अवसर पर मैं महसूस करता हूँ कि हमे एक और कांशीराम साहब की आज की बिगड़ी हुई परिस्थितियों में आवश्यकता है जो उनके वैचारिकी को एक बार फिर गांव स्तर पर प्रचारित-प्रसारित कर हम भले ही उन्हें शरीर रुप में न ला सकें पर गांव-गांव विचार रुप में ला सकते हैं। आज जरूरत कांशीरामवाद को पुनर्जीवित करने की है जिसमें इक्विलिटी भी है, अम्बेडकरिज्म भी है, बुद्धिज्म भी है और सोशलिज्म भी है।
कांशीराम साहब की जयंती पर नमन/श्रद्धांजलि के साथ यही कहते हुये कि यदि हम अपनी भूलों से सीख लेते हुए कांशीराम साहब को अपना लिए तो भविष्य बहुजनो का होगा अन्यथा साफ्ट हिंदुत्व का पहरूवा बन हम अपनी पीढ़ियों पर मनुवाद थोपने मे कामयाब रहेंगे।
लेखक यादव शक्ति के प्रधान संपादक हैं।
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