बौद्ध कल्याण समिति चुनाव की सरगर्मियां तेज, कुछ खुश तो कुछ नाखुश

सुशान्त कुमार


संस्कारधानी में आम्बेडकर अनुयायियों (शुद्रो) की संख्या लगभग 30 हजार से भी ज्यादा है। लेकिन विडंबना देखिये कि यह संगठन सिविल लाईन से सुदूर गांव की ओर अब तक नहीं गया है। मजे की बात है कि एक लंबे समय से शहर से गांव को जोडऩे के लिये बुधिष्ट एक सूत्र में नहीं बंध पाये हैं। आबादी के हिसाब से राजनांदगांव में विधान सभा अथवा लोक सभा के जातीय समीकरण को बनाने और बिगाडऩे में इस समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।

आंकड़े बताते हैं कि राजनीतिक पार्टियों में इनका प्रतिनिधित्व ना के बराबर है। और जो हैं वे मलाई खाने में जुटे हुवे हैं। कई अध्यक्षों का कार्यकाल कांग्रेस और भाजपा के पिछलग्गू बन कर अपने आप को समाज में स्थापित करने में रही है।

बौद्धों की इस बड़ी सामाजिक संगठन की संख्या जो पहले 3490 सदस्यों की थी अब घटकर 2770 रह गई है। यह आंकड़ा हमें निश्चित रूप से चौंकाता है। परन्तु मुख्यधारा के राजनीति में ना सही 'बौद्ध कल्याण समिति' जैसे इस बड़ी सामाजिक संगठन का अपना सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक महत्व तो है जो मुख्यधारा के राजनीति को प्रभावित करती है।

और इस संगठन के कई नामी नेतृत्वकर्ताओं को मुख्यधारा के राजनीतिक में रसूख प्राप्त थे। इस त्रिवर्षीय चुनाव में इस समय वीरेन्द्र उके, विजय रंगारी, महेन्द्र नागदेवे तथा क्रांति फुले चुनाव मैदान में हैं। 6 मार्च को शाम 5 बजे के बाद निर्णय भी आ जाएंगे। इस बार कोई महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं हैं।

समिति का बायलॉज, वार्षिक शुल्क, सदस्यता और चुनाव की प्रक्रियाओं को लेकर विवादों का बाजार हर वक्त गर्म रहा है। सामाजिक जानकारों का कहना है कि वीरेन्द्र उके और बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता और बौद्ध कल्याण समिति के सचिव क्रांति फुले के बीच कांटे का मुकाबला है।

वीरेन्द्र उके ने इमानदारी से वर्षों से किसान आंदोलन सहित आम्बेडकरी आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई है। वहीं क्रांति फुले के कार्यों को सभी बहुजन समाज पार्टी के कार्यकलाप में देखते ही आ रहे हैं। देखना बाकी है कि जीत की मंजिल तक कौन जाता है युवा नेतृत्व वीरेन्द्र उके या फिर पुराने कार्यकाल की पुनरावृत्ति के रूप में क्रांति फुले?

राजनांदगांव में आम्बेडकर जयंती आयोजन में गैर राजकीय व्यक्तित्व चाहे वह नंदूलाल चोटिया हो, चाहे डॉ. खरे हो, नागपुर के मजदूर नेता नगरारे हो, भन्ते भदन्त आनन्द कौशल्यायन हो, डॉ. काम्बले हो या फिर शरद कोठारी हो इन जैसे विद्वान लोग इस समिति के वक्ता रहे हैं।

कहा जाता है कि बौद्धों से ही राजनांदगांव के दूसरे समाज ने संस्कार और धर्मों के लोगों ने जुलूस निकालना सीखा, बौद्ध समाज इनका प्रेरणा स्त्रोत है। इस समाज के लोगों ने अपना सामाजिक विभाजन खत्म कर अपनी एकता स्थापित करने में वर्तमान में विभाजित समाज एकजुटता की गठरी में आज तक नहीं कस पाया है।

चुनाव की सरगर्मियों में देखा कि कुटनीतज्ञ कोशिश होती रही है कि बौद्ध कल्याण समिति को विभाजित होने से रोकने के लिए कई धड़े एक साथ खड़े होकर मानों अपने भविष्य की रणनीति धरातल पर उतारने तैयार खड़े हैं जैसा कोई लोक सभा या विधान सभा चुनाव हो। लेकिन वास्तविकता उनकी कुछ और है?

हर चुनाव की तरह इस बार भी बौद्धों ने कयास लगाया है कि एक दूसरे को विश्वास में लेकर तथा लोकतांत्रिक तरीके से समिति का निर्वाचन सम्पन्न कर यह समाज आगे बढ़ सकेगा और तमाम विवादों का निपटारा भी अध्यक्ष पद के चुनाव के साथ समाप्त हो जाएंगे।

अगर ऐसा होता है तो समाज अपनी पटरी पर लौट आएगी तथा समाज में बाबा साहब व बुद्ध के विचारों का बड़े पैमाने पर फैलाव होगा तथा समाज बाबा साहब के स्वप्रों को साकार करने में कामयाब होगा। समाज ने तात्कालिन अध्यक्ष धीरज घोड़ेसवार, स्व. पीएल मेश्राम, पवन मेश्राम, देवजी रामटेके, कार्यकारी अध्यक्ष सेवक मेश्राम तथा तात्कालीन अध्यक्ष शैलेन्द्र मेश्राम का कार्यकाल देखा है।

लोकतंत्र में मतभेद का होना संभव है लेकिन एक समाज एक विचारधारा एक महापुरूष और एक संगठन के बैनर पर कार्य करने वालों को आपस में मनभेद, द्वेषभाव नहीं रखना चाहिए। और कोशिश हो मानवतावादी विभिन्न विचारों और लोगों को हम एकमेव कैसे कर सकें?

इस चुनाव के बाद आशा करनी चाहिए कि बुद्ध-आम्बेडकर के अनुयायी अपने मतभेद भूलाकर एक कदम आगे आसन्न चुनाव में अपनी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने प्रमुखता के साथ आगे आएंगे और अपनी राजनीतिक सामाजिक आर्थिक तथा सांस्कृतिक उत्थान के लिए जातीय, धर्म तथा ब्राह्मणवर्णीय शोषण से समाज को मुक्त कर पाएंगे। सिर्फ नुराकुश्ती नहीं बल्कि धरातल में विहारों को कम से कम पाठशाला और सांस्कृतिक भवन को किसी पार्टी विशेष की राजनीति से मुक्त आम्बेडकरी गलियारा में बदल सकेंगे।

यह आशा भी तमाम आम्बेडकरी अनुयायी महसूस करते हैं कि समिति का निर्माण तथा उसमें आवश्यकता अनुसार पदों और जिम्मेदारियों का निर्माण करके योग्य लोगोंं को जिम्मेदारी मिलेगा। यह भी कि बौद्ध कल्याण समिति के बायलाज के अनुसार संगठन निर्माण 1984 से लेकर आज तक जो कार्य नहीं हुए वे सारे कार्य अब प्रमुखता से होंगे।

बायलाज में मुख्य रूप से अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ों की भागीदारी और सदस्यता के नये आयाम जुड़ेंगे। केन्द्रीय ईकाई का चुनाव, वार्डों और शाखा समितियों का चुनाव कर अब की बार विद्वान, प्रबुद्ध एवं कुशल नेतृत्व का धनी व्यक्ति राजनांदगांव के बौद्ध कल्याण समिति का नेतृत्व हाथ में लेगा। 

इस चुनावी समर में चर्चाओं में सुना है कि निर्विरोध अध्यक्ष का चुनाव किया जाये। लेकिन आने वाले कई सालों तक ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता है। खैर हर तीन साल में चुनाव हो लेकिन कोशिश हो कि योग्य व्यक्ति चुनाव में खड़े हो सके और योग्य अध्यक्ष और कार्यकारी चुन कर आवें।

इस तरह यह समाज संस्कारधानी राजनांदगांव के साथ पूरे प्रदेश में अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पुन: वापस प्राप्त करेगी तथा यह समाज पुन: अन्य समाजों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनेगा।

इस तरह व्यक्ति या गुट की व्यवहार से ऊपर उठकर नई पहलकदमी से एक बार दोबारा नए सिरे से अन्य समाज के लोगों की नजरों में फिर से इस समाज का सम्मान बढ़ेगा।

चुनाव के निर्णय के बाद यह भी कि बौद्ध अनुयायी आशा कर रहे हैं कि इस समाज का हर खासो और आम बिल्डिंग में रहने वाले और झोपडिय़ों में रहने वाले नौकरी करने वाले और मजदूरी करने वाले तथा व्यवसायिक और उपभोक्ता वर्ग में खुशी की लहर दौड़ पड़ेगी। विवादित गुट अब एकीकृत गुटों में बदल कर सम्मान पाएगा।

देश में बढ़ रहे हिन्दू फासीवाद की पहचान कर संविधान और उसमें निहीत अधिकारों की रक्षा के लिये ब्लू प्रिंट बनाया जाएगा। अंतत: सभी मानव जाति के कल्याण और मुक्ति के लिए काम करेंगे।

...इस भावना के साथ कि दुनिया में जीत हमारी होगी दोबारा भारत स्वर्ण तथा प्रबुद्ध युग में बदलेगा।


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