जेल से निर्दोष आदिवासियों को रिहा किया जाये

द कोरस टीम

 

सुरूज लाल अपने मामलों के बारे में बताते हुवे कहते हैं कि -‘मैं आदिवासी सुरुज लाल  नेताम  वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 धारा 9, 39 (ख) 51, 52 के तहत मुझे आरोपी बनाया गया। परसगांव थाना पुलिस ने मुझे पकड़ा तथा केंद्रीय जेल जगदलपुर में 3 महीना बंद रखा। अब बेल में बाहर आ गया हूं।

मेरे साथ इस मामले में चार लोग अमित नेताम, नाथू राम मरकाम, हेमलाल नाग भी थे।’ मेरे और मेरे साथियों के अलावा जेल में बंद आदिवासियों में से अधिकांश खेत में काम करने या फिर जंगल में फल -फूल,  लकड़ी के लिए जाने पर वहां से उठाकर थाना लाकर झूठे मामलों में जेल में बंद कर दिया जाता है।

ये सभी आदिवासी कैदी जेल में पिछले 3 से 5 साल तक बिना सबूत के जेल में बंद हैं। जेल में इस तरह बंद होने से इनकी घर की परिस्थिति क्या रहता होगा सहसा अंदाजा लगाया जा सकता है। बेकसूर आदिवासियों के रिहाई के लिये हमारी सरकार ने अब तक कोई कदम तक नहीं उठाया है। 

वे कहते हैं कि निर्दोष लोगों को जेल में बंद करना गलत है तथा कानूनी दृष्टि से भी जेल में डालना असंवैधानिक है। केंद्रीय जेल जगदलपुर में बैरकों में बंद कैदी वहां पर राइटर नंबरदार सहित कई तरह के काम करते हैं। बंदियों की गणना में जोड़ी में बैठाकर गिनती करने के लिए नंबरदार राइटर हर रोज बहुत गाली - गलौज करते हैं। 
सुरूज लाल ने बताया कि राइटर नंबरदार भी मारपीट करते हैं।

बैरक के अंदर मारपीट होने पर राइटर नंबरदार पुलिसवाला (बाबा) के साथ हेड साहब के पास 10 नंबर चक्कर में पेश करते हैं। जिस पर हेड साहब दोनों पक्षों के बात को सुनता है जिसका गलती होता है उसको 10 चप्पल मारते हैं और बैरक में भेज देते हैं। रात दिन बैरक के अंदर में कैदी ड्यूटी करते हैं और बाहर में जेल पुलिस वाले (बाबा) ड्यूटी करते हैं।

सुरूज लाल ने अपनी आपबीती में बताया कि केंद्रीय जेल जगदलपुर में पुलिस के द्वारा 5 रुपये का तंबाकू को वहां पर 500 रुपये में दिया जाता है जिसमें 3 पैकेट होते हैं और वहीं पुलिस वाले  तलाशी करते हैं और तलाशी में मिलने पर उस आदमी को मारते हैं। बिहार से अशोक पासवान बैरक नंबर 3 से चेंज होकर चक्कर नंबर  10  के सामने ले गए वहां से चक्कर से नया जेल नंबर एक में भेज दिया गया।

हुआ यह कि  कैदियों के द्वारा हवालातियों के नाम पुकारा जा रहा था, तब अशोक पासवान नहीं सुन पाया इस पर कैदियों द्वारा पुन: नाम पुकारा गया, इस तरह सुनने पर उसे गाली गलौज दे रहे थे और अशोक पासवान भी बात करने में तेज था इस दौरान उनको घसीट घसीट के मारा गया और नया जेल भेज दिया गया।

बस्तर के जेलों में आधा से ज्यादा लोग निर्दोष लोग हैं। कई ऐसे आदिवासी बंदी है जिन्हें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत बयान करवा कर जेल में ठूंस दिया गया है। मैंने कई नक्सली केस में फंसे आदिवासी लोगों से पूछा तो उन्होंने बताया कि -‘हम खेत में काम कर रहे थे तब पुलिस वाले पकड़ कर ले आये और कई अन्यों को घर से उठाकर ले आये हैं’ और उन निर्दोष आदिवासियों को 3 सालों से या पांच 6 सालों तक जेल में रखे हुवे हैं।

यहां बंद गरीब आदिवासी ना वकील नियुक्त कर पाते हैं और ना ही उनके घर वाले कुछ पैसा खर्चा कर सकते हैं ऐसे लोगों को जेल में डाल दिया गया है। अपने तकलीफों में वे बता रहे थे ना पुलिस के पास उनके खिलाफ सबूत के तौर पर कुछ भी नहीं मिला है फिर भी उन्हें नक्सली के आरोप में केस बना कर जेल में बंद कर दिया गया है।
ऐसे कैदी कहते हैं कि -‘हमारे परिवार का क्या स्थिति है क्या नहीं हमें बहुत बाद में जाकर पता चलता है।

यह भी सूचना मिलती है कि हमारे परिवार में किसी की मौत भी हो गया तो भी हम हमारे परिवार के लोगों को मरने से कंधा भी नहीं दे पाए।’ शासन प्रशासने को मेरा एक सुझाव है कि ऐसे निर्दोष लोगों के लिए राज्य सरकार जांच कमेटी रख कर निर्दोष लोगों को रिहा करें।

इसके साथ हम कानून व्यवस्था के रखवालों और सरकार से यही मांग करते हैं कि बैरक में 150 से 160 लोगों को एक जगह में रखते हैं जो किसी भी बंदी के मानवाधिकार का हनन है। सोने के लिए वहां बहुत दिक्कत होती है गाय बैल की तरह जानवरों से भी बदतर सोने की व्यवस्था है। इससे कई संक्रामक बीमारियों के फैलने की संभावना बढ़ जाती है।


(जेल से रिहाई के बाद सुरज लाल नेताम के साथ दक्षिण कोसल/द कोरस के लिये मधुसूदन नाग की महत्वपूर्ण बातचीत)


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