आदिवासी कार्यकर्ता किस्कू की गिरफ्तारी फर्जी, पुलिस का बयान मनगढ़ंत
किस्कू की गिरफ्तारी पर अंतरिम फैक्ट फ़ाइंडिंग रिपोर्ट
द कोरस टीमआज लगभग दो दर्जन बुद्धिजीवियों ने गिरफ्तमार आदिवासी कार्यकर्ता भगवान दास किस्कू के गांव चतरो (गिरिडीह) जाकर फैक्ट फ़ाइंडिंग (तथ्यान्वेषण) कर अंतरिम रिपोर्ट सार्वजनिक किया है। रिपोर्ट में प्रथम दृष्टया कहा गया है कि किस्कू की गिरफ्तारी फर्जी है तथा पुलिस का बयान मनगढ़ंत हैं, इस दल में सामाजिक कार्यकर्ता, विस्थापन विरोधी नेता, श्रमिक नेता, आदिवासी नेता, अधिवक्ता तथा प्रोफेसर समेत कई नामी शख्सियत शामिल हैं।

फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट से पहले पत्रकार रूपेश कुमार सिंह ने अपने वॉल में लिखा था कि भगवान दास किस्कू के भाई लालचंद किस्कू ने फोन किया और बताया कि भगवान को पुलिस ने 20 फरवरी की रात को ओरमांझी (रांची) से गिरफ्तार किया है।
लालचंद किस्कू ने बताया कि -‘वे रामटहल चौधरी कॉलेज, ओरमांझी (रांची) के बीए फ़स्र्ट सेमेस्टर के छात्र हैं और वहीं पर बगल के लॉज में रहते हैं। भैया 20 फरवरी को विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन की बैठक में भाग लेने रांची गये थे।
बैठक खत्म होने के बाद वे शाम में मेरे पास आ गये। रात के लगभग डेढ़ बजे सिविल ड्रेस में कुछ लोगों ने दरवाज़ा खटखटाया, दरवाजा खोलने के बाद खुद को पुलिस बताते हुए भैया (भगवान दास किस्कू), मुझे व मेरे रूम पार्टनर कान्हू मुर्मू को पकड़ लिया और गाड़ी में बैठाकर वहां से गिरिडीह लेकर आए और यहां किसी अज्ञात जगह पर हाजत में बंद कर दिया।
लालचंद कहते हैं कि 21 फरवरी को हम दोनों को भैया से अलग कर मधुबन स्थित सीआरपीएफ कैम्प (कल्याण निकेतन) लेते आया। 23 फरवरी तक हम दोनों को यहीं रखा गया। कल यानी 24 फरवरी को हम दोनों को मधुबन थाना ले जाया गया और वहां पर ग्रामीणों के आने पर हम दोनों को छोड़ा गया।
4 दिन बाद पुलिस व सीआरपीएफ की अवैध हिरासत में रहने के बाद कल जैसे ही अखबार देखा, तो पता चला कि पुलिस कह रही है कि भैया को 23 फरवरी को खुखरा के पास से गिरफ्तार किया गया है, जो बिल्कुल ही झूठ है।
26 फरवरी 2022, मधुबन गिरीडीह तथ्यान्वेषण जांच कहता है कि पुलिस का पहला बयान ही झूठा है। पुलिस-मीडिया के अनुसार आदिवासी कार्यकर्ता भगवान दास किस्कू 22 तारीख को जंगल से पकड़े गये थे और उन पर छह मुकदमें दर्ज किये गए हैं। इन 6 मुकदमों की पुष्टि तो कोर्ट में होगी लेकिन, पुलिस का पहला बयान ही झूठा है।
भगवान के छोटे भाई लालचंद किस्कू के अनुसार 20 तारीख को उनके ओरमांझी, रांची स्थित किराये के मकान में रात के डेढ़ बजे करीब सात लोग जबरदस्ती घुसकर, मारपीट करके व पिस्तोल दिखाकर लालचंद, भगवान और लालचंद के सहपाठी कान्हो मुर्मू को जबरदस्ती गाड़ी में बैठाकर अगवा कर लिये।
उन लोगों ने कोई पहचान पत्र नहीं दिखाया और कहा कि वो पुलिस से हैं। पुलिस ने ना ही एरेस्ट वारंट दिखाया और विरोध करने पर बेल्ट से मारा और पिस्तौल दिखाकर गाड़ी में बिठा लिया। लालचंद के अनुसार उन लोगों को सुबह तक गिरीडीह के किसी अज्ञात जगह पर ले आया गया।
भगवान के साथ मारपीट जारी रही और बाकी दोनों छात्रों को भगवान से अलग कर दिया गया। दोनों छात्रों को अवैध तरीके से तीन दिन तक सीआरपीएफ कैंप कल्याण निकेतन में रखा गया।
अंतत: 23 फरवरी रात को पुलिस के जारी बयान में सिर्फ भगवान का जिक्र किया गया और 24 तारीख को सुबह आखिरकार बाकी दोनों छात्रों को रिहा किया गया। भगवान को फर्जी मुकदमा लगाते हुए जेल भेज दिया गया है, यह सूचना उनके परिवारों को अब तक अखबारों के जरिए ही मिला है। भगवान के परिजनों को अभी तक कोई अधिकारिक सूचना अब तक नहीं है।
भगवान के परिजनों और ग्रामवासियों से मिलने आज चतरो गांव पहुंचे तथ्यान्वेषण दल ने बताया कि उन्हें गांव वालों में काफी आक्रोश देखने को मिला। भगवान दास किस्कू गांव के सबसे शिक्षित होने के अलावा ग्रामवासियों को प्राथमिक उपचार भी उपलब्ध करवाते थे। सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय भगवान - धर्म गढ़ रक्षा समिति, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन व झारखंड जन संघर्ष मोर्चा के संयोजक मंडली में शामिल है।
रिपोर्ट में बताया गया कि भगवान दास किस्कू 2017 में मोतीलाल बास्के की सीआरपीएफ द्वारा हत्या के विरोध में आंदोलन, साल 2019-20 में पर्वतपुरा सीआरपीएफ कैंप के विरोध में आंदोलन, दिसंबर 2020 में स्थानीय विधायक सुदीप कुमार सोनू के साथ हेमंत सोरेन को आदिवासी अधिकारों से जुड़े जल, जंगल, जमीन एवं अस्मिता के विषय पर ज्ञापन देनेवाली टीम में सक्रिय थे।
बुद्धिजीवियों ने अपने अंतरिम रिपोर्ट में बताया कि बार-बार जल, जंगल, जमीन के सवालों पर आवाज उठानेवाले आदिवासी कार्यकर्ताओं पर राजकीय दमन कहीं इस बात की तरफ तो इशारा नहीं कर रहा है कि कॉरपोरेट- पूंजीवादी मॉडल को लागू करवाने में हेमंत सरकार भी पिछले भाजपा सरकार रघुवर दास की भांति तत्पर है। ऐसा होने पर जन आंदोलन तीव्र होगा।
रिपोर्ट में प्रमुखता के साथ दर्शाया गया है कि मानवाधिकार के मामले में झारखंड की स्थिति बद से बदतर होते जा रही है। भगवान पर 6 फर्जी मुकदमें डालने का मतलब है कि साक्ष्य के अभाव में भी उसे लंबे समय के लिए विचाराधीन कैदी बनाके रखना। रिपोर्ट से जाहिर है कि हजारों बेकसूर आदिवासी आज भी झारखंड के जेलों में कैद है।
पुलिस द्वारा बिना वारंट की गिरफ्तारी और अवैध हिरासत में मारपीट व विभिन्न किस्म का टॉर्चर झारखंड में आम बात हो गई है। हम झारखंड सरकार से मांग करते हैं कि भगवान किस्कू को अविलंब बिना शर्त के रिहा किया जाए और दोषी पुलिसकर्मियों को डीके बसु नियम को उल्लंघन करने वाले को दंड दिया जाए।
तथ्यान्वेषण दल में जेकेएमयू से अजीत राय, द्वारिका राय, त्रिवेणी रवानी, थानू राम महतो, पवन यादव, बिनोद मारीक, राजेंद्र दास, आदिवासी मूलवासी विकास मंच से अर्जुन मुर्म, बालदेव मुर्मू, झारखंड जन संघर्ष मोर्चा से बच्चा सिंह, दामोदर तुरी, रिषित, अंजनी शिशु, लोमेश, अनिल किस्कू, अधिवक्ता शिवाजी सिंह, स्वतंत्र पत्रकार रूपेश सिंह, अधिवक्ता दीपनारायण, सेवानिवृत्त शिक्षक ब्रजेश्वर प्रसाद तथा गोड्डा महाविद्यालय की प्रोफेसर रजनी मुर्मू व अमित शामिल थे।
Add Comment