मजदूर संगठन से हाईकोर्ट ने प्रतिबंध हटाया

झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट

विशद कुमार

 

बता दें कि रांची उच्च न्यायालय ने 11 फरवरी, 2022 को अपने एक फैसले में ट्रेड यूनियन मजदूर संगठन समिति पर लगे प्रतिबंध को वापस लेने का आदेश जारी किया है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश चन्द्रशेखर ने अपने आदेश में कहा है कि कोई भी सबूत ऐसा पेश नहीं किया गया, जिसके हिसाब से मजदूर संगठन समिति को भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का अग्र संगठन माना जाए।

अदालत ने कहा है कि मजदूर संगठन समिति के खिलाफ न ही कभी कोई ऐसी शिकायत दर्ज हुई थी, जिससे ये पता चले कि मजदूर संगठन समिति किसी भी प्रकार की चरमपंथी गतिविधि या अराजकता में शामिल हो। न्यायालय ने साथ-साथ ये नाराजगी भी जताई के सरकार ने इस मामले में पूरी तरह से गैर-जिम्मेदाराना रवैया अख्तियार किया।

सरकार द्वारा दायर किये गए काउंटर एफिडेविट के छब्बीसवें पैराग्राफ में कहा गया कि 2008 में क्रान्तिकारी किसान कमेटी, नारी मुक्ति संघ और झारखण्ड ग्रुप अवाम, क्रान्तिकारी सांस्कृतिक मंच पर प्रतिबन्ध लगाया गया था, उसी के बाद इन संगठनों के लोगों ने नए संगठन बनाये, जो नक्सलियों के अग्र-संगठनों के तौर पर काम करते थे, उन्हीं में मजदूर संगठन समिति का भी सब से अहम भूमिका रही। सत्ताइसवें पैराग्राफ में कहा कि ये संगठन सिर्फ ट्रेड यूनियन के नाम पर था।

लेकिन ट्रेड यूनियन के काम की जगह नक्सल संगठनों की अगुवाई करता था और तीसवें पैराग्राफ में कहा कि मजदूर संगठन समिति की ओर से पीटिशन डालने वाले लोग नक्सलबाड़ी किसान आंदोलन की पचासवीं वर्षगाँठ मना रहे थे, साथ ही साथ मोतीलाल बास्के के पुलिस एनकाउंटर का विरोध भी किया था। ये लोग नक्सलियों से साथ सम्बंधित हैं। इसके नेता दामोदर तुरी को 2012 में नक्सल मामले में तमिलनाडु से गिरफ्तार किया गया था। यह संगठन नक्सल समर्थक वरवर राव से भी प्रत्यक्ष रूप से संपर्क में था।

उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये आदेश में कहा गया है कि उपरोक्त स्टेटमेंट्स के सिवा कुछ भी सबूत के तौर पर पेश नहीं किया गया, जिससे ये साबित हो सके कि मजदूर संगठन समिति भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से सम्बंधित है। 

बताते चलें कि झारखंड की भाजपानीत रघुवर सरकार द्वारा विगत 22 दिसम्बर, 2017 को 1989 में ही तत्कालीन बिहार में पंजीकृत ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति’ को बिना किसी नोटिस दिये भाकपा (माओवादी) का अग्र संगठन बताते हुए प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी गई थी। झारखंड सरकार के इस अप्रत्याशित अलोकतांत्रिक व गैर-संवैधानिक घोषणा के पीछे मजदूर संगठन समिति के नेतृत्व में व्यापक पैमाने पर चल रहे जनांदोलन ही एकमात्र कारण के रूप में नजर आया।

कहना ना होगा कि ‘मजदूर संगठन समिति’ सरकार की बक्र—दृष्टि का शिकार उसी वक्त ही हो गयी थी जब 9 जून 2017 को गिरिडीह के मधुबन थाना अंतर्गत पारसनाथ पहाड़ पर सीआरपीएफ कोबरा के जवानों द्वारा फर्जी मुठभेड़ में दुर्दांत माओवादी बताकर डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की हत्या कर दी गई थी।

चूंकि मोतीलाल बास्के एक डोली मजदूर था और मजदूर संगठन समिति का सदस्य भी था, इसलिए इस फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ मसंस ने पहल लेकर वहां ‘दमन विरोधी मोर्चा’ का गठन कर एक व्यापक जनांदोलन खड़ा किया था, जिसमें कई महत्वपूर्ण राजनीतिक दल व सामाजिक संगठन शामिल हुए थे।

इस घटना में सबसे शर्मनाक बात यह रही कि इस फर्जी मुठभेड़ में की गई हत्या का जश्न मनाने के लिए झारखंड के तत्कालीन डीजीपी डीके पांडेय ने गिरिडीह एसपी को एक लाख रूपये नगद दिये और 15 लाख बाद में देने की घोषणा की।

डीजीपी पांडेय की इस खुशी पर ग्रहण तब लग गया जब ‘दमन विरोधी मोर्चा’ ने इस हत्या का पूरजोर विरोध ही नहीं किया बल्कि सरकार और प्रशासन की मजदूर, दलित—पीड़ित, आदिवासी विरोधी नीयत और उनकी नीति का पर्दाफाश कर दिया। मोतीलाल बास्के की हत्या के विरोघ में पूरे राज्य में जोरदार आंदोलन शुरू हो गया जिसमें मजदूर संगठन समिति की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

‘दमन विरोधी मोर्चा’ द्वारा लगातार जनांदोलनों के बाद 13 सितंबर को एक विशाल जनसभा क्षेत्र के पीरटांड़ सिद्धु—कांहु हाई स्कूल के प्रांगण में की गई जिसमें राज्य के सभी दलों के आला नेताओं ने शिरकत की।

दमन विरोधी मोर्चा द्वारा आयोजित जनसभा में झामुमो के मांडु विधायक जय प्रकाश भाई पटेल, महेशपुर विधायक स्टीफन मरांडी, राजमहल सांसद विजय हांसदा, पूर्व मंत्री मथुरा महतो, तब का जेवीएम के केंद्रीय सचिव सुरेश साव, महासचिव रोमेश राही, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी व उनके भाई नुनुलाल मरांडी, मासस के निरसा विधायक अरूप चटर्जी, आजसू के रविलाल किस्कू, भाकपा माले के पूरन महतो, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के दामोदर तुरी मजदूर संगठन समिति के बच्चा सिंह एवं मरांग बुरू सांवता सुसार बैसी सहित क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों के लोगों ने भाग लिया।

लगभग 10 हजार की भीड़ को संबोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने स्पष्ट कहा था कि पुलिस की गोली का शिकार मृतक मोतीलाल बास्के के नक्सली होने का कोई भी प्रमाण नहीं है, जबकि उसका डोली मजदूर होने का पुख्ता प्रमाण है।

पुन: 9 अक्टूबर को मोतीलाल बास्के के परिवार वाले को इंसाफ दिलाने एवं मुआवजा की मांग को लेकर राजभवन के सामने अनिश्चितकालीन धरना कार्यक्रम शुरू हुआ मगर प्रशासन ने धरना कार्यक्रम का आदेश नहीं दिया गया है का बहाना बनाकर कार्यक्रम स्थल पर से आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया और शाम को छोड़ दिया था।

साफ था कि उनका मकसद कार्यक्रम को बाधित करना था। मगर दमन विरोधी मोर्चा भी अपनी बात राज्यपाल तक पहुंचाकर ही दम लिया था। 4 दिसंबर को मोर्चा में शामिल सभी दलों ने राजभवन पर एक दिवसीय धरना दिया जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी एवं हेमंत सोरेन भी शामिल हुए थे और रघुवर सरकार की जमकर खिंचाई की थी।

कहना ना होगा कि लगातार जारी उक्त आंदोलनों में मजदूर संगठन समिति की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रही। जो शासन—प्रशासन को काफी नागवार गुजरा, वहीं राज्य के तत्कालीन डीजीपी डीके पांडेय की किरकिरी होने लगी, क्षेत्र में पुलिस व सीआरपीएफ के मनमाने रवैए पर ब्रेक लग गया।

दूसरी तरफ मजदूर संगठन समिति के नेतृत्व में मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी एवं उचित सुविधा दिलाने के लिए मधुबन में स्थित जैन कोठियों में कार्यरत मजदूरों व डीवीसी चंद्रपुरा एवं बोकारो थर्मल में भी व्यापक आंदोलन चल रहा था।

मालूम हो कि 22 दिसंबर को मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध की घोषणा से तीन दिन पहले यानी 19 दिसंबर 2017 को डीके पांडेय ने रांची में प्रेस को बताया था कि ''मजदूर संगठन समिति'' राज्य की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा है, क्योंकि ये गांव के छोटे-मोटे विवादों का निपटारा कर तथा जन सामान्य के हित में दवा-कंबल आदि बंटवा कर लोगों की सहानुभूति बटोर रहा है।

9 जून 2017 को मधुबन थाना क्षेत्र के ढोलकट्टा गांव में पुलिस व नक्सली मुठभेड़ में मारे गये मोतीलाल बास्के के परिवार वालों को पुलिस पर मुकदमा करने के लिए उकसाया है और मोतीलाल बास्के की हत्या को फर्जी मुठभेड़ बताकर व्यापक आंदोलन कर रहा है।

इसलिए इन तमाम तथ्यों का हवाला देते हुए मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव राज्य पुलिस मुख्यालय ने गृह कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव को भेजा है।’’

ऐसे में मसंस पर प्रतिबंध का मामला साफ हो गया था कि मसंस द्वारा मजदूरों, मजलूमों, शोषित—पीड़ित—आदिवासियों के पक्ष में खड़ा होना राज्य की रघुवर सरकार एवं उसके चहेते डीके पांडेय को नागवार गुजरा और एक साजिश के तहत 28 साल पुराना इस मजदूर संगठन को प्रतिबंधित किया गया।

बताना जरूरी होगा कि पिछले 28 साल के दरम्यान एकीकृत बिहार और अलग झारखंड राज्य की सरकारों को ऐसा क्यों नहीं लगा था कि मसंस माओवादियों का अग्रसंगठन है। जवाब साफ था कि पिछले 28 वर्षों से मसंस पूरी तरह लोकतांत्रिक तरीके से मजदूरों, मजलूमों, शोषित—पीड़ित—आदिवासियों के सवालों को उठाता रहा था और संगठन द्वारा कभी भी कोई भी अलोकतांत्रिक कदम नहीं उठाया गया था।

रघुवर सरकार की मजदूर विरोधी नीयत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मजदूर संगठन समिति पर 22 दिसंबर को लगाए गए प्रतिबंध के बाद जैन धर्म स्थल गिरिडीह के पारसनाथ पर्वत स्थित मधुबन से संबंधित ''श्री सम्मेद शिखरजी तीर्थ क्षेत्र संबंधित विशेष सूचना'' के नाम से एक पोस्ट जैन धर्मावलंबियों के बीच वायरल होने लगा था, जिसमें साफ लिखा गया था।

श्री सम्मेद शिखरजी तीर्थ क्षेत्र पर तथाकथित मजदूर संगठनों द्वारा 22 दिसंबर को हड़ताल प्रारंभ की गई थी 'तीर्थराज श्री शिखर जी जैन समन्वय समिति' ने 'आल इंडिया जैन माइनॉरिटी फेडरेशन' के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललित जी गांधी के नेतृत्व में भारत सरकार से हस्तक्षेप करवा कर झारखंड के मुख्यमंत्री श्री रघुवर जी दास के साथ विशेष बैठक सम्पन्न हुई।

इस बैठक के माध्यम से माननीय मुख्यमत्री ने अत्यन्त कठोर निर्णय लेते हुए जैन समाज को बहुत विशेष सहयोग किया एवं सम्मेद शिखर जी तीर्थ की हड़ताल समाप्त हो गयी। इतना ही नहीं वर्षों से तीर्थराज उपर कार्यरत सभी जैन सम्प्रदाय के धार्मिक संगठन जिस समस्या का सामना कर रहे थे, वह 'मजदूर संगठन समिति' को समूचे झारखंड राज्य में प्रतिबंधित करने का अत्यंत बड़ा निर्णय उसी दिन लिया गया।

तीर्थराज श्री शिखरजी के लिए यह एक ऐतिहासिक निर्णय रहा जिसकेे लिए समूचा जैन समाज केंद्रीय अल्पसंख्यक राज्यमंत्री डॉ वीरेंद्र कुमार एंव झारखंड की कर्तव्य कठोर मुख्यमंत्री रघुवर दास के आभारी रहेगा।''

जो भी अदालत के इस फैसले से मजदूरों एक बार पुन: खुशी का संचार हुया है। बता दें कि मजदूर संगठन समिति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जीतेन्द्र शंकर सिंह ने अपना पक्ष रखा। इस जीत पर मजदूरों ने अधिवक्ता जीतेन्द्र शंकर सिंह का भी आभार व्यक्त किया है।


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