देख लेना हमारे बच्चे नालंदा लेब से सैटेलाइट छोड़ेंगे
सुशान्त कुमारकिसी के संबंध में बिना जान पहचान के कुछ लिखना खतरों से खाली नहीं होता। ‘अभियान’ द्वारा अलविदा की खबर सुनकर एक कहावत याद आ गई कि सभी व्यक्ति को एक दिन इस दुनिया को छोड़ कर जाना होता है और प्रत्येक व्यक्ति के मौत का अलग-अलग महत्व भी होता है। किसी के मौत का वजन चींटियों के पंख से हल्की होती है तो किसी के मौत का वजन हिमालय के पहाड़ से भी ऊंचा।

आज मैं जिस शख्सियत के बारे में लिख रहा हूं, उनसे मेरी कोई व्यक्तिगत जान-पहचान नहीं है। ना ही वह मेरा कोई रिश्तेदार ही है। और तो और उनसे मेरा कोई खून का संबंध भी नहीं रहा है। लेकिन ऐसा क्यों लग रहा है कि मेरा कोई अपना मेरे कलेजे का टुकड़ा, मुझे, मेरे समक्ष और मेरे वृहद मिशन को आधे रास्ते में ही छोड़ कर चला गया। सोशल मीडिया में अनूप कुमार के वॉल से इस दुखद समाचार को पढऩे के बाद कि आठ तारीख को शाम सात बजे बहुमुखी प्रतिभा के धनी ‘अभियान हुमने’ की हृदयगति रूक जाने से देहांत हो गया। चौका दिया...!
अभियान अक्सर अपने साथियों से कहा करते थे और उनमें गजब का आत्मविश्वास भी था कि, ‘देख लेना नालंदा से हमारे बच्चे सैटेलाइट छोड़ेंगे।’ सैटेलाइट के तेजी से भी तेज दौडऩेवाले दिमाग के मालिक इस युवा वैज्ञानिक की समझ हम उनके इस कहे गए वाक्य से समझ सकते हैं कि उनकी ज्ञान और समाज के प्रति उनका समर्पण कितना महान था।
बताया जा रहा है कि वह नालंदा अकादमी के रीढ़ थे। दस तारीख को उनके पैतृक निवास अंबाझड़ी घाट नागपुर, महाराष्ट्र में उन्हें शिक्षा जगत ने अंतिम विदाई दी।
अभियान के फेसबुक वॉल में लिखा है कि उन्होंने वीजेटीआई विश्वविद्यालय, मुम्बई, विस्कोसीन-मॉडिसन विश्वविद्यालय तथा पुणे विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की थी तथा श्रृष्टि इन्सटीट्यूट ऑफ आर्ट, डिजाइन एंड टेक्नोलॉजी के शोधक थे। प्रशांत गेडाम याद करते हुवे लिखते हैं कि अभियान एक सच्चा आम्बेडकरी युवा था जो अमेरिका से शिक्षा हासिल कर भारत के एक छोटे से जगह महाराष्ट्र के ‘वर्धा’ में निर्धन बच्चों को मुफ्त में कम्प्यूटर और वैज्ञानिक शिक्षा देने पहुंचा था। और आज अचानक चल बसा। अभियान अपने साथियों के कंधों पर इस शैक्षणिक अभियान को पूरा करने की जिम्मेदारी सौंप गया है। सिद्धार्थ मोकले लिखते हैं कि बहुत उम्मीद थी अभियान भाई आप से...।
नालंदा अकादमी के मुखिया अनूप कुमार लिखते हैं मैंने अपना दोस्त, भाई और नालंदा के मुख्य स्तम्भ को खो दिया है। मेरे मित्र डॉ. विजय उके कहते हैं कि कई दिनों से ऐसा लग रहा है कि मातम पसरा हुआ है और दिल बोझिल हुए जा रहा है। हमने एक बुद्धिमान व्यक्ति को खो दिया है। उनके अंतिम यात्रा में उनका हमेशा उपयोग किया जाने वाला शब्द हमारे दिमाग में घुमड़ रहा है कि ‘कल्पना से सीखी नहीं जा सकती।’
बिल्कुल कल्पानाओं से कुछ भी नहीं सिखा जा सकता है। लेकिन उन्होंने जिस दुनिया का सपना देखा था कि निर्धन, हाशिए में खड़े, दलित, आदिवासी, पिछड़े, डीटी-एनटी, बच्चों को शिक्षा के द्वारा ही प्रगति के पथ में आगे ले जाया जा सकता है, वह कल्पनाओं को वास्तविकता के धरातल में उतारने तथा अमलीजामा पहनाने का ठोस कार्य ही है।
जिस पर वह तन, मन और धन से जुट गया था। शिक्षा और पुस्तकों के प्रति रूचि और ज्ञान के अनंत सागर में गोता लगानेवाले अभियान के चले जाने से शिक्षा जगत जिस तरह दुखी है वास्तव में उनका योगदान महत्वपूर्ण है।
एक इंजीनियर, एक शोधार्थी और एक शिक्षाशास्त्री का चले जाना समाज के लिए नुकसानदायक तो है नुकसानदायक इसलिए भी कि डा. भीमराव आम्बेडकर के विचाारों से लैस व्यक्ति जब अमेरिका जैसे जगहों से बड़े - बड़े अकादमी में नौकरी कर पैसे कमाने के जद्दोजहद से युक्त व्यवसायिक कॅरियर को तिलांजलि देकर लोगों के सेवाओं के लिए समर्पित हो तो उस कार्य का अपना एक सामाजिक सरोकार तो होता ही है।
इतिहास उन्हें याद करता है जो अपने ज्ञान और कार्यों से इस सड़े गले दलित, आदिवासी, पिछड़े, डीटी-एनटी समाज को नई दिशा और नई मुकाम पर ले जाने का माद्दा ऐसे कॅरियर के चुनाव से करता है।
ऐसे समय पर जब सभी अपने घर, परिवार, बच्चे, धन, दौलत, राज्य, निजी सम्पत्ति के संचय में लगे हो अभियान का कार्य इन सबके बीच एक लम्बी रेखा तो खींचती ही है कि वाकई आम्बेडकरी किसे कहते हैं? सिर्फ जय भीम बोलना ही आम्बेडकरी है तो मैं हैरान हूं। अभियान के चले जाने के क्षति को पूरा तो नहीं किया जा सकता लेकिन दिन के उजाले में उनके देखे गए सपने को पूरा करने में हर्ज ही क्या है?
दिल में एक भारी बोझ लिए तुम्हे अलविदा कहना मुश्किल है अभियान। मन बार - बार मालूम नहीं क्यों रोने को हो रहा है। और हां सुबक सुबक के रोने को। काश तुमसे मिल पाता तो तुम्हारे द्वारा हासिल किए गए ज्ञान के खजाने और छोटे-छोटे बच्चों के भविष्य को लेकर तुम्हारी चिंता से रूबरू हो पाता। अलविदा नहीं तुम जिंदा रहोगे मेरे जैसे असंख्य लोगों के द्वारा देखे गए हर उम्मीद और संघर्षों में जिसकी राह बुद्ध, आंबेडकर, ज्योति फुले, सावित्री बाई फुले, साहुजी महाराज, बिरसामुंडा, आयोथिदास, नारायण गुरू ने हमें दिखाया था।
12 फरवरी 2019 को फेसबुक में प्रकाशित।
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