गरीबी से ऊपर उठने के लिए जाल लेकर उड़ जाने का हौसला भर दिखता है

सुशान्त कुमार

इसमें कोई दो मत नहीं कि यह लोकार्पण समारोह अगासदिया, वामपंथी, आंबेडकरी और कांग्रेस के विचारों का कार्यक्रम था। लेकिन बैनर कांग्रेस और अगासदिया का लगा हुआ था। "दक्षिण कोसल/ द कोरस" के संपादक की हैसियत से जोशी जी और परदेशीराम वर्मा जी ने मुझे मंच पर सम्मान से बैठाया। आपको आपत्ति हो सकती है लेकिन पत्रकार और संपादक के रूप में इन कार्यक्रमों में जाने का फैसला लिया है। इस पर हम बाद में विचार विमर्श कर सकते हैं।

बहरहाल पूरा कार्यक्रम पहले आंबेडकरी और अब कांग्रेस के विचारों के कार्यकर्ता "शोभा राम बघेल" पर केंद्रित थी। शोभा जी के जीवन यात्रा पर उनके विधायक पुत्र भुनेश्वर बघेल ने एक पुस्तिका का लोकार्पण किया है। पुस्तक का नाम "जाल लेकर उड़ जाने का हौसला" है। शोभाराम बघेल-भुनेश्वर बघेल की तुलना आप प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल-नंद कुमार बघेल से कर सकते हैं।

नंद कुमार बघेल आम्बेडकरी विचारों के माने जाते हैं और भूपेश कांग्रेसी लेकिन दोनों पिताओं में एक समानता है वे दोनों आंबेडकरी विचारों से लैस दिखते हैं लेकिन कांग्रेस के साथ साफ खड़े नजर आते हैं। लेकिन भूपेश बघेल ने उनके पिता के पुस्तक का उपयोग राजनैतिक लाभ लेते हुए अपने पिता को पुलिस हिरासत में जाते दिखाया है।

दोनों ही पिताओं के हौसलों पर किताब लिखा जा सकता है। नंद कुमार बघेल ने अपने पुत्र को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक लेकर गए तो शोभाराम बघेल अपने पुत्र को विधायक बनाया है। दोनों ही पिताओं की खासियत यह है कि ये अपने विचारों के साथ कांग्रेस का खुला समर्थन करते हैं। और दिखता भी है कि अपने पुराने विचारों की इतिहास बताते - बताते कांग्रेस में चले आए हैं।

नंद कुमार बघेल ने "ब्राह्मण कुमार रावण को मत मारो" लिखा है तो शोभाराम बघेल ने अपनी इस "बॉयोपिक" को लिख डाली है। कुछ लोग कह सकते हैं कि डॉक्टर आम्बेडकर ने भी ऐसा ही किया था। लेकिन आंबेडकर कांग्रेस का समर्थन करते कभी नजर नहीं आए। उन्होंने कानून मंत्री का पद त्याग दिया था और कहा था कि - "कांग्रेस एक जलता हुआ घर है।" और भारतीय संविधान को उनकी महत्तत्वपूर्ण कृति कह सकते हैं।

हमारे लिए यह कठिन हो जाता है कि आखिरकार हम अपने विचारों के लोगों को कैसे पहचाने? यहां दोनों ही पिता पुत्रों को पहचानना आसान है लेकिन कठिनाई तब होती है जब आदमी अपने आप को लाल झंडे, तिरंगे झंडे और नीले झंडे का बताते हुए चुनाव में टिकट कांग्रेस भाजपा से मांगता है। और जब टिकट नहीं मिलता है या टिकट न लेकर अपने आप को बचा कर निर्दलीय चुनाव लड़ता है या फिर पावर के पार्टी के हाथों बिक जाता है वह ज्यादा तकलीफदेवा होता है।

कन्हैया कुमार का विश्लेषण कुछ ऐसा ही है। इस तरह हम इन झंडों को ऊंचा उठाए व्यक्तियों को पहचानने में भूल कर जाते हैं। कई बार जाति के आधार पर भी लोगों के विचारधारा को समझना भी कठिन होता है। भंगी जाति का व्यक्ति आरएसएस का सिपाही हो सकता है। जिसके सैकड़ों उदाहरण देखे जा सकते हैं।

अब मैं इस पुस्तक में आता हूं। कुल 184 पेज का पुस्तक जिसका नाम "जाल लेकर उड़ जाने का हौसला" है। वैभव प्रकाशन ने इसे प्रकाशित किया है। पुस्तक का मूल्य 400 रुपये रखा गया है। पुस्तक में शोभाराम बघेल के जीवन संघर्ष का उल्लेख है। उन्होंने आंबेडकर, काशीराम का जिक्र किया है।

विशेषकर किसानों के संबंध में उनका सुझाव पुस्तक में है। उनका साक्षात्कार और उनको केंद्र में रख कर उनकी पुत्री सुरेखा ने कलम चलाया है। आपको बता दूं सुरेखा दिवंगत सामाजिक कार्यकर्ता रामकृष्ण जांगड़े की पत्नी है। इस बायोपिक का संपादन डॉक्टर परदेशीराम वर्मा ने किया है।

मुझे कुल जमा इस पुस्तक में उनका हौसला गरीबी से ऊपर उठने के लिए जाल लेकर उड़ जाने का हौसला भर दिखता है लेकिन मेरी समझ में शोभाराम बघेल विचारों के स्तर पर कांग्रेस की जाल में फंसते साफ दिखते हैं। खैर जाल में फंसे व्यक्तियों पर निर्भर करता है कि वे अपनी हौसला अफजाई किस समझ और विचारों के साथ जाल खोलने में करते हैं। खैर इसे हमें व्यक्ति के विवेक पर छोड़ देना चाहिए।


Add Comment

Enter your full name
We'll never share your number with anyone else.
We'll never share your email with anyone else.
Write your comment

Your Comment