देश की प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख पर गूगल ने बनाया डूडल

द कोरस टीम

 

शेख, जिन्हें गूगल के अनुसार भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका माना जाता है, जब फूले दम्पत्ती को उनकी जाति, परिवार और सामुदायिक सदस्यों ने उन्हें उनके इस काम में साथ नहीं दिया। आस-पास के सभी लोगों द्वारा त्याग दिया गया, तब इस जोड़ी ने आश्रय की तलाश में रहने और समाज के उत्पीडऩ के खिलाफ अपने शैक्षिक सपने को पूरा करने के लिए अपनी खोज के दौरान, वे एक मुस्लिम आदमी उस्मान शेख के घर आए।

जो पुणे के गंज पेठ में रह रहे थे (तब पुना के नाम से जाना जाता था)। उस्मान शेख ने फुले के जोड़ी को अपने घर में रहने की पेशकश की और परिसर में एक स्कूल चलाने पर सहमति व्यक्त की। 1848 में उस्मान शेख और उसकी बहन फातिमा शेख के घर में एक स्कूल खोला गया था।

शेख का घर उस स्थान के रूप में कार्य करता था जहां यह स्वदेशी पुस्तकालय भारत में लड़कियों के लिए पहले स्कूल के रूप में जन्म लिया था। जहां, सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख ने हासिए पर दलित और मुस्लिम समुदाय के महिलाओं और बच्चों को पढ़ाया करते थे। यह वह वर्ग था जिन्हें वर्ग, धर्म या लिंग के आधार पर शिक्षा से वंचित किया जा चुका था।

फ़ातिमा शेख़ और सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं और उत्पीड़ित जातियों के लोगों को शिक्षा देना शुरू किया, स्थानीय सवर्ण लोगों द्वारा उन्हें धमकी दी गई। उनके परिवारों को भी निशाना बनाया गया था और उन्हें अपनी सभी गतिविधियों को रोकने या अपने घर छोडऩे कहा गया था।

शेख ने ज्योतिबा फुले द्वारा स्थापित सत्यशोधक समाज (सत्यशोधक समाज) आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। गूगल के अनुसार वह घर-घर जाकर अपने समुदाय के दलितों को स्वदेशी पुस्तकालय में पढऩा लिखना सीखने और भारतीय जाति व्यवस्था की कठोरता से बचने के लिए आमंत्रित किया। गूगल ने शेख को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित करता है जो प्रमुख जाति के सदस्यों के बड़े प्रतिरोध और अपमान का सामना करने के बावजूद कायम रहा।

यह कोई आश्चर्य नहीं था कि पूना की ऊँची जाति से लगभग सभी लोग फ़ातिमा और सावित्रीबाई फुले के खिलाफ थे और सामाजिक अपमान के कारण उन्हें रोकने की भी कोशिश थी। यह फातिमा शेख थी जिन्होंने हर संभव तरीके से दृढ़ता से समर्थन किया और सावित्रीबाई के समर्थन का समर्थन किया।

फातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ उसी स्कूल में पढऩा शुरू किया। सावित्रीबाई, फातिमा और सागुनाबाई के साथ थे सागुना जो बाद में शिक्षा आंदोलन में एक और नेत्री बन गई थी। फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख भी ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले के आंदोलन से प्रेरित थे। उस अवधि के अभिलेखागारों के अनुसार उस्मान शेख अपनी बहन फातिमा को समाज में शिक्षा का प्रसार करने के लिए प्रोत्साहित किया।

जब फातिमा और सावित्रीबाई ने ज्योतिबा द्वारा स्थापित स्कूलों में जाना शुरू कर दिया, तो पुणे के ब्राह्मणवादी सवर्ण उन्हें परेशान करते थे और उनकी निन्दा करते थे। वे पत्थर फैंकते थे और कभी-कभी गाय का गोबर उन पर फैंक दिया करते इससे बचने के लिये सावित्री बाई और शेख अपने झोले में अलग से एक और साड़ी रखती थी। 

शेख की ऐतिहासिक कहानी की अनदेखी पर गूगल ने कहा है कि भारत सरकार ने अन्य अग्रणी भारतीय शिक्षकों के साथ-साथ उर्दू पाठ्यपुस्तक में उसकी प्रोफ़ाइल को साल 2014 में प्रदर्शित कर उसकी उपलब्धि को उजागर करने के प्रयास शुरू किये हैं। 


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