पर्यावरण विशेषज्ञों की चिंता का विषय बना हाथियों का बेहोश होकर गिर जाना!

मनीष कुमार

 

आपको याद होगा पिछले 12 नवम्बर को सूरजपुर जिले के दूरस्थ अंचल बिहारपुर में 7 हाथी बेहोश होकर जंगल में गिर गए थे, वन विभाग और पशु चिकत्सकों की टीम के प्रयास के बाद 32 हाथियों का दल सुरक्षित जंगलों में लौट गया। पर अचानक हुयी इस घटना ने देश भर के पशुप्रेमियों और वन्य जीव संगठन के लिए सवाल खड़ा कर दिया की क्या जंगली हाथी भी इस तरह बेहोश होकर गिर सकते हैं? सवाल कई हैं पर ज़वाब फ़िलहाल नहीं क्योंकि रिपोर्ट आना बाकी है।

इस तरह हाथियों के बेहोश होने की घटना किसी भी विशेषज्ञ को अचंभित कर रहा है, सूरजपुर जिले के डीएफओ के मुताबिक़ घटना दिनांक को हाथियों ने जिन जगहों पर पानी पिया, फसलों, अनाजों को खाया है, वन विभाग ने सभी सेम्पल कलेक्ट कर फिलहाल जाँच के लिए भेज दिया है पर इन सबसे अलग और महत्वपूर्ण बात यह है की छत्तीसगढ़ में ये घटना कई आशंकाओं को जन्म देती है।

हाल ही में भारत सरकार के सर्वोच्च संस्थान की चेतावनी भी देश के बाहर तक चर्चा का विषय बना हुआ है की यदि हसदेव अरण्य में नई कोयला खदान खोली गयी तो मानव-हाथी द्वंद इतना भयानक होगा कि राज्य सरकार  किसी भी सूरत में नहीं संभाल पायेगा। यहां के वन्यजीवों के कारण  इस क्षेत्र को नो-गो एरिया घोषित करने की बात कही है।

दरअसल ये संयोग कहें या प्लानिंग की जिस समय  छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य को लेकर आयी भारत की दो - दो महत्वपूर्ण संस्थाओं भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्ल्यूआाईआई) और भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) की संयुक्त और अलग - अलग दो रिपोर्ट्स जो यह बता रहे है की छत्तीसगढ़ में यदि हसदेव अरण्य में जो कोयला खदानें प्रस्तावित हैं वो राजस्थान राज्य विद्युत निगम को आबंटित हैं जिन्हें संचालित करने का जिम्मा अडानी कंपनी को है।

वाकई यदि यह हुआ यानी कोल माइंस शुरू हुए तो हाथी मानव द्व्न्द को कोई नहीं रोक सकता/ये रिपोर्ट्स भविष्य के लिए भयावह है। एक बात आप अच्छे से समझ लीजिये जब तक सरगुजा के जंगल बचे है तब तक आप हाथियों के बारे में सुन सकते हैं उन्हें देख सकते है वरना वो दिन दूर नहीं जब आप हाथियों को आप अपने बच्चों को सिर्फ यूटूयब पर ही दिखा पाएंगे।  

आज यदि अडानी के लिए कोई सबसे बड़ा रोड़ा है तो सिर्फ हमारे विशालकाय वन्यप्राणी - हाथी। यदि हाथी ही नहीं रहेंगे तो भला बेशकीमती जंगलों और नदियों को कौन सी सरकारें बचाने का वादा करती है, किसी के घोषणा पत्र में आपने पढ़ा तो हो तो याद कर हमें बताइयेगा। 

दरअसल ये आशंका बेवजह नहीं, अडानी को माइंस चलाने में अब तक यदि कोई सबसे बड़ा बाधा बन रहा है तो हाथी और अडानी समूह जिस तरह के कानूनी मगर गैर कानूनी तरीके का उपयोग करते हुए  प्रशासन के साथ - साथ  मिडिया को मैनेज कर कोल माइंस संचालित करने की प्लानिंग कर रहा है ठीक उसी समय भारत की दो प्रमुख संस्थाओं की ये रिपोर्ट माइन्स खुलने के बाद होने वाले भयवाह स्थिति को रिपोर्ट्स के माध्यम से सरकार को चेतावनी दे रही है।

ठीक इसी वक़्त हाथियों के बेहोश होने की घटना बिलकुल भी समान्य नहीं है, क्या आपको नहींही लगता की ये घटना हाथियों के मारने की सुनियोजित योजना थी। हमने बिहारपुर के उस इलाके में जाकर ग्राउंड रिपोर्ट बनायीं है जहाँ हाथी बेहोश हुए, ये मध्यप्रदेश से लगा हुआ कोरिया का गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्र है। जहाँ हमने लोगों से बात की आखिर ऐसी घटना कैसे हो सकती है तो लोगों के जवाब भी कई तरह के मिले पर अंततः हर व्यक्ति ने ये माना की हाथियों के बेहोश होने की घटना सामान्य नहीं थी बल्कि ये जहरीला पदार्थ खाकर ही जमीन पर गिरे थे जो किसी सोची समझी साज़िश का हिस्सा था।

हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड, छत्तीसगढ़ के 3 जिलों सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा में फैला बहुमूल्य जैव विविधता वाला वन क्षेत्र है। जिसमें परसा, परसा ईस्ट, केते, बासन, तारा सेंट्रल और  केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक आते हैं। वर्तमान में सिर्फ परसा ईस्ट केते बासन में माइनिंग चालू है। 

277 पेज की रिपोर्ट में भारतीय वन्य जीव संस्थान ने सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि देश के 1 प्रतिशत हाथी छत्तीसगढ़ में हैं, जबकि हाथी मानव द्वंद में 15 प्रतिशत जनहानि छत्तीसगढ़ में होती है। रिपोर्ट में उल्लेखित किया गया है कि किसी एक स्थान पर कोल माइनिंग चालू की जाती है तो उससे हाथी वहां से हटने को मजबूर हो जाते हैं और दूसरे स्थान पर पहुंचने लगते हैं, जिससे नए स्थान पर हाथी - मानव द्वंद बढ़ने लगता है।


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