मैं प्रथम बार रायपुर आया हूं
रायपुर 12 दिसम्बर 1945 को पहुंचे
सुशान्त कुमार14 अप्रैल 2008 को छत्तीसगढ़ अखबार में इस लेख के छपने के बाद यह अक्टूबर 2014 को चर्चित पत्रिका 'दक्षिण कोसल' में भी छपी। उसके बाद और जानकारी इकट्ठी हुई। इसमें कन्हैयालाल खोब्रागढ़े ने बंशीलाल के सुपुत्र रवि बौद्ध का हवाला देते हुए बताया कि बाबासाहेब के मराठी वांग्मय (मराठी भाषा) में - डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर लेखन आणि भाषणे, खंड - 18 (भाग - 2) (1937 - 1945), पाठ- 230, पृष्ठ -583-584 में ‘कम्युनिस्टांपासून सावध रहा’ वाले चेप्टर में दर्ज है कि वे रायपुर 12 दिसम्बर 1945 को पहुंचे। बताया जाता है कि बाबा साहब को रायपुर लाने वाले बंशीलाल जी रामटेके, गुरुमुक्तावन दास मुम्बई में बाबा साहेब से मिले और उन्हें छत्तीसगढ़ (उस समय का सीपी बरार) आने का आग्रह किया। काफी व्यस्त रहने के बावजूद बाबा साहब ने छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर में आना स्वीकार किया। अपने आगमन के लिए 12 दिसंबर 1945 का दिन तय किया। इस समाचार को सुनकर छत्तीसगढ़ में हर्ष की लहर दौड़ पड़ी।

मैंने नकुल ढीढी के पोता विरेन्द्र ढीढी, डॉ. आरके सुखदेवे, वीएस चिवुरकर, तामस्कर टंडन, रिती देशलहरे, अर्जुन सिंह ठाकुर, सुनील बांद्रे, जीपी कुरीदम, आरसी पाटिल, संगीता पाटिल, सरकार, जांबुरकर, प्रभुत्व पाटिल, दाऊराम रत्नाकर, वीआर डडसेना, नरेन्द्र बंसोड़, रवि बौद्ध, कन्हैयालाल खोब्रागढ़े आदि लोगों से संपर्क स्थापित कर आंबेडकर के छत्तीसगढ़ प्रवास पर तथ्य इकट्ठा किया। जिसमें नकुल ढीढी के पोता विरेन्द्र ढीढी ने बताया कि सन् 1944 - 45 के आसपास गुरू मुक्तावन दास के ऊपर लगे एक केस के सिलसिले में आम्बेडकर रायपुर आए थे। उनके प्रकरण पर मुकदमा लडऩा चाहते थे। लेकिन बाद में किसी कारणवश वे केस नहीं लड़ पाए और फिर मुक्तावन को सजा हो जाती है।
एक पुस्तक ‘सतनाम दर्शन’ जिसे टीआर खूंटे ने लिखा है, उसमें उल्लेख है कि 1916 में नकुल ढीढी ने आम्बेडकर से संपर्क कर सलाह-मशविरा कर घासीदास जयंती कार्यक्रम आयोजित किया था। इसके बाद रायपुर सेन्ट्रल जेल के चिकित्सक डॉ. आरके सुखदेवे ने अपने पिता जेआर सुखदेवे। जो राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक थे। उनके द्वारा लिखित एक पर्चा ‘बाबा साहब का रायपुर शुभागमन’ के हवाले से बताया कि 1923 से ही छत्तीसगढ़ में आम्बेडकर पर चर्चा प्रारंभ हो गई थी।
अछूतोद्धार व उनके जागरण के लिए झींका के दाऊ चोवाराम महिश्वर, राजनांदगांव के बंशीलाल रामटेके, माहूद के मिलिन्द रंगारी, टटेंगा के दाऊ तानू साव, दाऊ हेमराज वासनिक, धमतरी के ’योति साव वैदे, कांकेर के जयराम, अंतागढ़ के गोमती साव ने अंबेडकर के मागदर्शन मेें छत्तीसगढ़ में कार्य प्रारंभ कर दिया था। छोटी-बड़ी सभाओं का आयोजन कर आंबेडकर के संदेश को लोगों तक पहुंचाया जाता था। आम्बेडकर के सत्याग्रह आंदोलनों में सतनामी समाज, महासमुंद के नकुल ढीढी व टिकरी के किसुनदास महंत ने अपना हाथ बंटाया था।
उस समय आम्बेडकर द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘जनता’ छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में पहुंचता था। जब वे श्रम मंत्री बने तब गुरू मुक्तावनदास, दाऊ चोवाराम, बंशीलाल रामटेके के अथक प्रयास से आम्बेडकर ने रायपुर आने का निमंत्रण स्वीकार किया। राजनांदगांव में उनके मार्गदर्शन में समता सैनिक दल का गठन हुआ था। 14 दिसंबर 1945 को राजनांदगांव रेलवे स्टेशन व रायपुर का स्प्रे मैदान सभा स्थल उनके आगमन के उपलक्ष्य में सज-धज कर तैयार हो गया था। लोग दूर-दराज से पैदल चलकर व बैलगाडिय़ों में बैठकर उनके कार्यक्रम सुनने व उन्हें साक्षात देखने हजारों की संख्या में उमड़ पड़े थे।
राजनांदगांव पहुंचने पर छत्तीसगढ़ की धरती में उनका पहला स्वागत किया गया। उनके साथ गुरू मुक्तावनदास व बंशीलाल रामटेके थे। रायपुर पहुंचने पर दाऊ चोवाराम के नेतृत्व में उनका भव्य स्वागत किया गया। लोगों ने 'बाबा साहब' के नारे लगाने लगे। पूरा शहर दुल्हन की तरह सजा हुआ था। आम्बेडकर अपने साथ विशाल समूह के साथ माधव राव सप्रे हाईस्कूल (जो पहले लारी स्कूल के नाम से जाना जाता था) के प्रांगण में पहुंचे। उस समय रायपुर में ध्वनि प्रसारण यंत्र नहीं था। यंत्र नागपुर से मंगाए गए थे। सभा स्थल में लोगों के पांव रखने की जगह नहीं थी।
आम्बेडकर धीरे-धीरे मंच पर चढ़े। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि ‘मैं प्रथम बार रायपुर आया हूं। उन्होंने आगे कहा कि 'आप शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो।’ उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, उसी तरह मानव समानता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। हमें राजनीतिक अधिकार प्राप्त करने के लिए आपसी भेदभाव भूलाना पड़ेगा। बिना राजनीतिक अधिकार के हमारा जीना अस्तित्वहीन रहेगा। जैसा कि आप देखते रहे हैं। हजारों वर्षो से गुलामों से भी बदतर जीवन हमारे पूर्वज जीते आए हैं। आप एक पार्टी के तले आओ।
उन्होंने अपने मत को प्रखर ढंग से रखते हुए कहा कि बहुत सारे लोगों को दास की स्थिति से बाहर लाना चाहता हूं। आप लोगों के हाथ में शासन की बागडोर रखना चाहता हूं। आजादी में राष्ट्रीय संघर्ष में स्वतंत्रता की ज्यादा आवश्यकता दलितों की है। मैं अपने करोड़ों अछूत कहे जाने वाले लोगों के सर्वांगीण उत्कर्ष के लिए अपने जीवन के अंतिम सांस तक लड़ता रहूंगा। अपना अधिकार लेकर रहूंगा। अब समय आ गया है निकट भविष्य में हमें पूर्ण रूप से स्वतंत्रता मिलेगी।
देश स्वतंत्र होने वाला है। मुसलमान देश के विभाजन में लगे हैं। मैं भारत के टुकड़े नहीं चाहता, मैं प़ृथक स्थान नहीं चाहता, सारे भारतवासी एक रहें। भारत में 6 करोड़ दलित (सन् 1945) में हैं, उनके विषय में राष्ट्रीय नेताओं को सोचना है। अपने अधिकार और आजादी के लिए एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद हमारी जिम्मेदारी अधिक बढ़ जाएगी। इसका सदा ध्यान रखना पड़ेगा। कोई पीछे न रहे, सबको साथ लेकर चलना है।
गुरू मुक्तावन दास निर्दोष बरी हुवे
एक पुस्तक हाथ लगी है। जिसका शीर्षक ‘छत्तीसगढ़ राज्य और सतनामी समाज, लेखक-केआर मार्कंडेय, प्रकाशक-तामस्कर टंडन है।’ इस पुस्तक के अनुसार सतनामी समाज के प्रमुख व्यक्ति मूलचंद धृतलहरे ग्राम-थनौद वाले ने अपने एक स्मरण में बताया था कि महंत किसुन दास जी 1950 में सीपी एंड बरार राज्य में ऑल इंडिया शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के उपाध्यक्ष बनाए गए थे।
इस संगठन को आम्बेडकर ने गठित किया था। यह संगठन दलितों का महासंघ था। उन्हीं दिनों छत्तीसगढ़ में आम्बेडकर के विचार प्रमुखता के साथ फैल रहे थे। किसुन दास गेंड्रे के मित्र केजूराम खापर्डे के जरिए आपने बाबू हरिदास आवड़े ने आम्बेडकर से संपर्क किया था।
आम्बेडकर ने समाज के धर्मगुरू मुक्तावन दास के मुकदमें की पैरवी की थी। जिसमें मुक्तावन दास की रिहाई सुनिश्चित हुई। इसके बाद वे आम्बेडकर के अनुयायी हो गए थे। जिसमें उद्धृत है कि आम्बेडकर सन् 1946 में छत्तीसगढ़ आए। गुरू गोसाई मुक्तावन दास ने उनका स्वागत किया। महंत किसुनदास अपना यज्ञोपवित उतार फेंक आम्बेडकर के दलित आंदोलन के समर्थक हो गए।
ये तथ्य किसुन दास गेंड्रे के जीवन परिचय में लिखा हुआ है। इस जीवनी में गुरू मुक्तावन दास की रिहाई प्रमाणिक लगती है जो और एक दूसरे घटना से स्पष्ट होगा। वहीं आम्बेडकर की छत्तीसगढ़ प्रवास के संबंध में तिथियों को लेकर शंका उत्पन्न करता है। क्योंकि पुस्तक में तिथि व स्थान का वर्णन नहीं है।
नकुल ढीढी की जीवनी के अनुसार ढीढी ने 1951 में शेड्यूल कास्ट फेडरेशन छत्तीसगढ़ ईकाई का गठन किया। आम्बेडकर के सानिध्य में रहे। वे रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के संस्थापक सदस्य थे। राम बहादुर एन शिवराज, दादा साहब गायकवाड़, विदर्भवादी आम्बेडकरी नेता कर्मवीर हरिदास आवड़े, बैरिस्टर बीडी खोब्रागड़े, बीसी काम्बले, देवीदास वासनिक, हरिशचंद रामटेके के साथ उन्होंने कार्य किया। जिसमें 'भीम पत्रिका' जालंधर के प्रख्यात संपादक एवं समता सैनिक दल के अखिल भारतीय अध्यक्ष एलआर बाली, बौद्ध भिक्षु डॉ. आनंद कौशलयायन से संबंध रखते थे। बाद में आम्बेडकरवादी हो गए एवं बौद्ध धर्म ग्रहण किया।
बाबू हरिदास आवड़े की जीवनी से
वे आम्बेडकरवादी थे। समता सैनिक दल के सदस्य थे। सतनामी समाज के धर्मगुरू मुक्तावन दास को अपने सियासी जीवन में किसी हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनाया जाना तय था। तब उन्होंने आम्बेडकर से संपर्क कर इस मामले में पैरवी करने के लिए निवेदन किया। जिसे उन्होंने तत्काल स्वीकृति प्रदान की। अंतत: उस मुकदमें में गुरू गोसाई मुक्तावन दास निर्दोष बरी हुए।
बाबासाहेब के मराठी वांग्मय भाग - 18
14 अप्रैल 2008 को छत्तीसगढ़ अखबार में इस लेख के छपने के बाद यह अक्टूबर 2014 को चर्चित पत्रिका 'दक्षिण कोसल' में भी छपी। उसके बाद और जानकारी इकट्ठी हुई । इसमें कन्हैयालाल खोब्रागढ़े ने बंशीलाल के सुपुत्र रवि बौद्ध का हवाला देते हुए बताया कि बाबासाहेब के मराठी वांग्मय (मराठी भाषा) में - डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर लेखन आणि भाषणे, खंड - 18 (भाग - 2) (1937 - 1945), पाठ- 230, पृष्ठ -583-584 में ‘कम्युनिस्टांपासून सावध रहा’ वाले चेप्टर में दर्ज है कि वे रायपुर 12 दिसम्बर 1945 को पहुंचे।
बताया जाता है कि बाबा साहब को रायपुर लाने वाले बंशीलाल रामटेके, गुरुमुक्तावन दास मुम्बई में बाबा साहेब से मिले और उन्हें छत्तीसगढ़ (उस समय का सीपी बरार) आने का आग्रह किया। काफी व्यस्त रहने के बावजूद बाबा साहब ने छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर में आना स्वीकार किया। अपने आगमन के लिए 12 दिसंबर 1945 का दिन तय किया। इस समाचार को सुनकर छत्तीसगढ़ में हर्ष की लहर दौड़ पड़ी।
बाबा साहब के सफल कार्यक्रम हेतु छत्तीसगढ़ के जिन प्रबुद्ध जनों ने तन-मन-धन से योगदान दिया उनमें दाऊ चोवाराम महेश्वरी (झिका, बालोद), बाबू बंसीलाल रामटेके भीलन रंगारी (राजनांदगांव) दाऊ तानु राम रामटेके (माहुद), दाऊ हेमराय वासनिक (टटेंगाभरदा) ज्योति राव वैद्य (धमतरी) जयराम (कांकेर) दाऊ चिंतामन साव खापर्डे (झिरिया धमतरी), दाऊ गोमती साव खापर्डे (अंतागढ़), नकुल ढीढी (आरंग), किशुन दास महंत (टिकरी अर्जुन्दा) लोगों का नाम इतिहास में जुड़ जाता है।
बताया जाता है कि येवला नामक स्थान पर 1935 में धर्मान्तरण की घोषणा बाबा साहेब ने की थी। उसके तुरंत बाद 8 जुलाई 1936 को राजनांदगांव मोतीपुर के गौठान में धर्मान्तरण घोषणा का सर्वप्रथम समर्थन करके विराट सभा लिया गया था। इसकी सूचना बाबा साहेब को मुम्बई भेजी गई थी। इस घटना से बाबा साहेब बेहद प्रभावित हुए यही कारण था कि बाबा साहेब ने छत्तीसगढ़ आगमन के लिए व्यस्तता के बीच समय निकाला।
आम्बेडकर के साथ ट्रेन में कौन लोग आए?
बाबू बंसीलाल रामटेके और मुक्तावन दास बाबा साहब के साथ में ट्रेन से आए। राजनांदगांव स्टेशन में बाबा साहब का गर्मजोशी से स्वागत किया गया। रायपुर पहुंचने पर स्टेशन में डॉक्टर बाबा साहब की अगवाई दाऊ चोवाराम महेश्वरी एवं अन्य नेताओं ने की। कार्यक्रम का आयोजन वर्तमान माधव राव सप्रे हायर सेकेंडरी स्कूल जो कि पूर्व में 'लॉरी स्कूल' के नाम से जाना जाता था के विशाल मैदान में हजारों की संख्या में कार्यक्रम संपन्न हुआ।
छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से बाबा साहब के अनुयाई उन्हें सुनने और देखने के लिए उमड़ पड़े थे और उनके चाहने वालों ने अपने घरों को दियों से जगमगा दिया था। जैसे ही बाबा साहब का उद्बोधन शुरू हुवा उपस्थित जन समुदाय ने करतल ध्वनियों से उनका जय जयकार - जय जयकार करते हुए अभिवादन किया।
मैं प्रथम बार रायपुर आया हूं
जानकार कहते हैं कि उन्होंने सभा में कहा कि 'मैं प्रथम बार रायपुर आया हूं।' आप शिक्षित बनो संगठित रहो और संघर्ष करो। चरण स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है उसी तरह मानव समानता भी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। हमें राजनीतिक अधिकार प्राप्त करने के लिए आपसी भेदभाव मनमुटाव बुलाना पड़ेगा बिना राजनीतिक अधिकार के हमारा जीना अस्तित्वहीन रहेगा। बहुत से लोगों को दासता से बाहर लाना चाहता हूं आप लोगों के हाथों में शासन की बागडोर रखना चाहता हूं। आजादी के संघर्ष में स्वतंत्रता की ’यादा जरूरत अस्पृश्यों, मजदूर, किसानों को आदिवासियों और पिछड़ों को है।
मैं अपने करोड़ों अछूतों के सर्वांगीण उत्कर्ष के लिए जीवन के अंतिम सांस तक लड़ता रहूंगा और अधिकार लेकर रहूंगा। मैं भारत के टुकड़े नहीं चाहता सारे भारतवासी एक रहें। मुसलमान नेता भारत के विभाजन में लगे हुए हैं। मैं प्रथम स्थान नहीं चाहता मैं अपने आजादी और अधिकार के लिए 1 इंच भी पीछे नहीं हटूंगा।
कार्यक्रम की समाप्ति के बाद बाबा साहब आम्बेडकर वापस नागपुर चले गए क्योंकि वहां शाम को चिटनिस पार्क में उनकी विराट सभा का आयोजन किया गया था।
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