सुधा भारद्वाज का जमानत ब्राह्मणवादी सरकार को एक तगड़ा झटका 

द कोरस टीम

 

भीमा कोरेगाँव मामले में विगत 3 वर्ष से ज्यादा समय से जेल में कैद अधिवक्ता, मानव अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को बॉम्बे उच्च न्यायलय ने जमानत दे दिया है। हम छत्तीसगढ़ के विभिन्न संगठन बॉम्बे उच्च न्यायलय के इस निर्णय का स्वागत करते हैं। छत्तीसगढ़ के उन तमाम मेनतकश लोगों के लिए यह बड़ी राहत की खबर है जो उनके गैर कानूनी गिरफ़्तारी के खिलाफ उनके रिहाई के लिए शुरुआत से आंदोलनरत थे।

यहां यह बताना जरूरी हो जाता है कि सुधा भारद्वाज को यह जमानत इसलिए मिली क्योंकि निर्धारित समय में उनका चालान अधिकृत न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया गया था। साथ ही उसी मामले में 8 और साथियों की जमानत अर्जी खारिज किए जाने पर गंभीर निराशा व्यक्त करते हैं।

यह स्पष्ट है कि भीमा कोरेगाव मामले में साजिश के तहत देश के अलग अलग जगहों पर काम कर रहे 16 मानव अधिकार कार्यकर्ताओं, अधिवक्ता, सांस्कृतिक कर्मी को गिरफ्तार किया गया है, जिसके विरोध में हम तमाम संगठन शुरुआत से ही अपना स्पष्ट विरोध दर्ज करते रहे हैं।

सुधा भारद्वाज का यह जमानत केंद्र की कॉर्पोरेटपरस्त, ब्राह्मणवादी फासिस्ट सरकार के लिए एक तगड़ा झटका था जिसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आर्डर आने के दूसरे दिन ही बॉम्बे उच्च न्यायालय के इस निर्णय को ठीक दूसरे दिन ही एनआईए द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चैलेन्ज कर दिया गया और पुरजोर कोशिश किया जा रहा है कि किसी भी हालत में सुधा भरद्वाज को जेल से बहार आने से रोका जाये।

विगत कुछ समय में यह स्पष्ट हो ही गया है कि एनआईए एक स्वतंत्र जांच एजेंसी न होकर भाजपा के एजेंसी के रूप में कार्य कर रही एनआईए हर उन नागरिको पर यूएपीए लगा रही है, घरों में रेड कर रही है जो भाजपा का किसी भी लोकतान्त्रिक तरीकों से विरोध कर रही है। इस गंभीर स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय से यह पूर्ण आशा रखते है कि वह सुधा को बिना किसी देरी के तत्काल रिहाई का आश्वासन देगी जो वर्तमान दमन के दौर पर न्याय का एक करार तमाचा होगा।

उपरोक्त भीमा कोरेगाव मामले के अलावा दमनकारी कानून यूएपीए (विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम) का जनता के लोकतान्त्रिक आवाज़ को दबाने के लिए जिस तरह वर्तमान सरकारें उपयोग कर यही है वह भयावह है। 8 मार्च अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन आदिवासी पर्यावरण कार्यकर्ता हिड़मे मरकाम की गिरफ़्तारी, जो विगत कई वर्षों से जल, जंगल, ज़मीन को बचने की लड़ाई लड़ रही थी और प्रमुख भूमिका निभा रही थी एक ठोस उदहारण है। उपरोक्त भीमा कोरेगाव मामले में ही स्टैन स्वामी की सांस्थानिक हत्या कर दी गयी।

इसके साथ ही दलितों, अल्पसंख्यक समुदाय, आदिवासियों के खिलाफ व्यापक तौर पर इस कनून का उपयोग किया जा रहा है। इस कानून पर कई ऐसे तथ्य प्रस्तुत किये जा चुके जो इसके रद्द करने के मांग को और भी मजबूत करते हैं। हम सभी संगठन इस कानून को रद्द करने के मांग को भी पुरजोर समर्थन देते हैं।

हम उम्मीद करते हैं की जल्द ही सुधा भरद्वाज जेल की चारदीवारियों से बाहर हमारे बीच होंगी साथ ही अन्य साथियों की भी शीघ्र रिहाई के लिए निरंतर संघर्ष जारी रखा जायेगा। उन तमाम साथियों के साथ जो लोकतान्त्रिक मूल्यों को बचाने की लड़ाई में इस दममकारी रवैये का शिकार बने हैं उनके संघर्ष के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करते हैं तथा यूएपीए जैसे कानूनों के खिलाफ आगामी लड़ाइयों को तेज करने का आह्वान करते हैं।


छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा मजदूर कार्यकर्ता समिति, नगरी निकाय जनवादी सफाई कामगार यूनियन, महिला मुक्ति मोर्चा, प्रगतिशील सीमेंट श्रमिक संघ, लोकतांत्रिक इस्पात एवं इंजीनियरिंग मजदूर यूनियन, जन आधारित पॉवर प्लांट मजदूर यूनियन, जन स्वास्थ्य कर्मचारी यूनियन


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