आज भी बोकारो के विस्थापित आंदोलन को है मजबूर
इलिका प्रियझारखंड के बोकारो जिला में साल 1965 में स्थापित हुआ था बोकारो स्टील प्लांट, देश का एक बडा स्टील प्लांट। तीसरी पंचवर्षीय योजना के तहत, औद्योगिक विेकास के लिए, प्लांट तो बन गया विस्तारित भी हो गया, विश्वभर में प्रसिद्ध भी हो गया, मगर वहां के विस्थापित अभी भी वहीं रह गये, गरीबी-बेरोजगारी का दंश झेलते हुए। पहले तो इनके पास जमीन भी थी, अब जमीन भी प्लांट के पास है, पीढ़ियां बदल गई पर हालात नहीं बदले, अपनी खेतीहर जमीन बोकारो इस्पात संयंत्र को देते समय जो विकास का सपना ग्रामीणों ने देखा था, सीमटकर रह गया।

आज 60 वर्षाें के बाद भी बोकारो के विस्थापित युवा अपने रोजगार को लेकर बीएसएल के खिलाफ आंदोलन पर मजबूर है, करें भी तो क्या आवाज सुनी ही नहीं जाती।
यहां बाहर के लोगों को रोजगार दी जाती है, पर वहां के लोगों को नहीं, वहां के युवा कहते हैं-‘‘हमने अपनी जमीन दे दी, सबकुछ दे दिया, अब अगर रोजगार नहीं मिलेगा, तो हम क्या करेंगे, कहां जाएंगे, अपनी जमीन से विस्थापित हुए है, अब रोजगार के लिए राज्य से भी विस्थापित होना पड़ेगा?’’
विस्थापित अप्रेंटिस संघ का आंदोलन
इसी विषय को लेकर पीछले कुछ दिनों से विस्थापित बेरोजगार युवाओं ने विस्थापित अप्रेंटिस संघ के बैनर तले आंदोलन शुरू किया है, आंदोलन पर बैठे हुए पांच से छः दिन हो चुके हैं पर बीएसएल प्रबंधक इनसे वार्ता की जरूरत नहीं समझी। विस्थापित अप्रेंटिस संघ के ही सदस्य है, अरविंद कुमार साव जिन्होंने अपने साथियों के साथ बैठकर हमसे इस विषय पर वृहत बातचीत की। वे बताते हैं कि 20 अक्टूबर से हमलोग अनिश्चितकालीन धरना पर बैठे हैं, लेकिन अभी तक बोकारो प्रबंधन वार्ता की पहल तक नहीं की है।’’
ग्रामीणों की विनाश के साथ प्लांट का विकास
बाहर से दिखने वाला यह शानदार प्लांट वहां के विस्थापितों के दर्द की कहानी रचता है। आंदोलित युवाओं से यह पूछने पर कि बीएसएल प्लांट ने प्लांट लगाते समय जो वायदे किये थे क्या उसे पूरा किया है? वे कहते हैं कि जब भी कोई सरकारी उपक्रम लगता है, उसका एक सामाजिक दायित्व होता है, सामाजिक दायित्व का निर्वहन वह सीएसआर के फंड से करती है, सीएसआर के रेडियस परिसीमा में 20 किलोमीटर परिसीमा के अंदर जो भी गांव आता हैं, उसका विकास करना है, विकास का मतलब है -शिक्षा, बिजली, स्वच्छ पानी, हाॅस्पिटल की मूल सुविधाओं के साथ अन्य नागरिक सुविधाएं भी, लेकिन बीएसएल द्वारा यह विकास नहीं के बराबर किया गया है। विस्थापित गांव की स्थिति जैसी थी, वैसी ही है, न पानी है, न बिजली है, न सड़क, न हॅास्पिटल। स्कूल की बात करें, तो एक भी स्कूल विस्थापित गांव में नहीं खोला गया है। ’’
एक तरफ बीएसएल देश के नामी प्लांटों में से एक हैं, तो वहीं वहां के विस्थापित की यह स्थिति, औद्योगिक विकास द्वारा मानवता के विनाश की तस्वीर पेश करती है। ऐसे विकास को क्या विकास कहा जा सकता है, जो लोगों को विस्थापित कर बेरोजगारी, गरीबी की ओर धकेल देती हो?
न्यायालय से उम्मीद
क्या नियोजन को लेकर कोर्ट में कोई अपील नहीं की गई, इस बात का जवाब देते हुए वे बताते हैं कि यहां के ग्रामीण सीधे-साधे है, कानूनी प्रक्रियाएं नहीं मालूम, वास्तव में जो बीएसएल ही कहती है वर्तमान में विस्थापितों की आबादी 33000 है, जिसमें से 16000 को नियोजन दिया गया है तो 17000 अब भी बाकी है। मगर कोर्ट में मामले को इस प्रकार दिया गया कि 2008 में कोर्ट ने एक जजमेंट दिया कि अब विस्थापितों को सीधा नियोजन नहीं दिया जा सकता। तो यहां कोर्ट में मामले को सही-सही इनपुट नहीं करने के कारण फैसला हमारे विरोध में हैं, इसे लेकर हमलोग भी कोर्ट जाएंगे। ’’
क्यों हो रहा है आंदोलन?
जब आंदोलित युवाओं से यह पूछा गया कि बीएसएल की किन नीतियों के खिलाफ आपलोग आंदोलित हैं, तो अरविंद कुमार साव बताते हैं कि बीएसएल की नीति एक तरह से अंग्रेजी नीति की तरह है जो विस्थापितों का शोषण करती आई है, संयंत्र के लगे साठ साल से अधिक हो गया, अभी भी विस्थापितों को पूर्ण रूप से नियोजन, मुआवजा, पुर्नावास, शिक्षा व अन्य सुविधाएं नहीं मिली है, इस कारण बीएसएल प्रबंधक के विरोध में जनता हमेशा आंदोलन करती आई है। हमलोगों को अप्रेंटिसशिप फस्र्ट बैच का करवाए हुए भी 1 साल हो चुका है, पर अप्रेंटिसशिप का इग्जाम अभी तक नहीं हुआ है। मतलब बीएसएल कहती है कि आप प्रोसेस में आईएगा, तो आपका नियोजन होगा। अप्रेंटिसशिप पास किजिएगा, हम वैकेंसी निकालेंगे, आप अप्लाई किजिएगा, आपका सलेक्शन होगा, मगर जिन्हें अप्रेंटिस करवाया जा रहा है, समय निकलने के कारण उन्हें मौका भी नहीं मिल पाएगा, उनकी आयु भी खत्म हो जाएगी।
नियोजन की उम्रसीमा निश्चित है जो समय के साथ निकल रही है
बीएसएल में नियोजन की उम्रसीमा निश्चित है 28 साल, विस्थापितों के लिए इसमें नियोजन को लेकर एक पेंचीदा नियम बनाया गया, जिसे पूरा होते-होते उम्र भी निकल जा रही है। जिसकारण 7000 अप्लाई करने वालों में 1500 का सलेक्शन ही हो पाया और अरविंद कुमार साव कहते है कि अगर अभी सर्वे किया जाए उम्र का तो 1500 में भी 1000 लोगों की उम्रसीमा समाप्त हो गयी होगी। क्योंकि इस लिस्ट में उन्हें ही शामिल किया गया है, जो परिवार में सबसे बड़े थे, एक परिवार से एक सदस्य। इसके अलावा और भी कई नियम है, जिसमें छंटनी हो रही है।’’ इस तरह एक पेचींदा व्यवस्था के अंदर विस्थापित नियोजन से खुद को वंचित देख रहे है नियोजन और पुर्नवास तो इन्हें नहीं मिल रहा, पर इस संयंत्र से पैदा होने वाले, हानिकारक गैस, डस्ट, कूड़ा-कचरा, ऐश के कारण होने वाले प्रदूषण को इन्हें ही झेलना पड़ रहा है।
आखिर क्यों दूसरे जगह के लोगों को दी जा रही है नौकरी?
इस सवाल के जवाब मंेे अरविंद साव सीधे कहते हैं कि बीएसएल में कई घोटाले हुए हैं, जिसमें एक घोटाला था-नियुक्ति घोटाला। बीएसएल का बड़े मंत्रियों से संबंध है और नियोजन भी उसी अनुसार होता है। हमलोगों का पीछले दिनों जो स्कील टेस्ट होने वाला था, उसमें लगभग अभ्यर्थी राजस्थान और उड़ीसा के थे, जबकि वैकेंसी पूरे देशभर में निकली थी, बाकि स्टेट के युवा आखिर क्यों नहीं थे? साफ है बाहरी लोगों को नियोजन देने का मतलब सांठ-गांठ कर मोटी रकम कमाना है।’’
आंदोलन की मांगें
आंदोलकारी कहते हैं कि अगर हमारी मांगे नाजायज है, तो बीएसएल प्रबंधन सामने आकर बात करें, पर वे चुप हैं। जो मांगे हैं वे हैं-
1.प्लांट ट्रेनिंग कर चुके विस्थापित अप्रेंटिस को बीएसएल में अविलम्ब सीधे बहाल किया जाए।
2. सभी विस्थापित अप्रेंटिस का प्लांट ट्रेनिंग के बाद बीएसएल में नियोजन सुनिश्चित किया जाए।
3. सभी बहालियों में विस्थापितों की उम्रसीमा 45 साल किया जाए,
4. तीसरी सूची तथा अन्य विस्थापितों का ट्रेनिंग अविलम्ब प्रारंभ किया जाए,
5. तीसरी सूची के प्रशिक्षुओं से जो एफिडेविट मांगा जा रहा है वह असंवैधानिक है, उसे तुरंत रद्द किया जाए।
क्या है तीसरी सूची के एफिडेविट में?
अरविंद कुमार साव बताते है तीसरी सूची के एफिडेविट में यह अंकित है कि आप अप्रेंटिस करने के दौरान किसी तरह की रैली, धरना-प्रदर्शन नहीं कर सकते साथ ही अप्रेटिंस खत्म होने के बाद बीएसएल से नियोजन मांगने का भी हक आपको नहीं है।’’
आंदोलन स्थल पर कई प्लास्टिक सीट बिछे थे, जिसपर रात-दिन आंदोलनकारी रहते हैं, सड़क के किनारे ही खाना बनाने की व्यवस्था की गई है, जिसे आंदोलनकारी युवक चला रहे हैं। आंदोलन में उठाने वाली कठिनाईयों का जिक्र करतेे हुए अरविंद साव कहते हैं कि जहां ठंड से बचने के लिए लोग घरों में रजाई ओढ़ रहे हैं, हम इसी सड़क पर खुले आसमान के नीचे यह सब झेल रहे हैं, इसके साथ ही घर के कामकाज, पढ़ाई, कम्प्टीशन इग्जाम की तैयारी भी कई युवा नहीं कर पा रहे है और जब तक हमारी मांगे मानी नहीं जाती, हमें यह सब झेलना हैं।’’
इन परेशानियों का सामना करते हुए विस्थापित युवा धरने पर बैठे हैं, सवाल भविष्य का है, रोजगार का है अपना घर-जमीन खो देने के बाद बेगाना बनाए जाने का है,, अपने ही जन्मस्थल पर अपने ही हक की लड़ाई का है, क्या यह वाजिफ नहीं है कि जो प्लांट लोगों से उनकी जमीनें लेती हो, उन्हें उनके बेहतर जिंदगी की व्यवस्था करनी चाहिए, उन्हें बदहाली में डाल कर कोई विकास विकास के पैमाने को पूरा नहीं कर सकता है, विनाश वाले ऐसे विकास से हमें बचने की जरूरत है, इसके खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है, यह तो बोकारो स्टील प्लांट और वर्षों से उसके शोषण को झेलती विस्थापित जनता की कहानी थी, पर ऐसी कहानी पूरे देश में घट रही है, उद्योग विकास के राह पर है और ग्रामीण बेदहाली के हालात में।
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