मलेरिया से मौत

उत्तम कुमार

 

विश्व मलेरिया दिवस पर एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। मलेरिया के खिलाफ डब्ल्यूएचओ के 2016-2030 के कार्यक्रमों में से एक लक्ष्य कम से कम 10 देशों से इस बीमारी को खत्म करना है। जेनेवा स्थित डब्ल्यूएचओ ने एक बयान में कहा था कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए किसी देश को वर्ष 2020 से पहले कम से कम एक साल तक इसका कोई भी मामला नहीं मिलना चाहिए।

बयान में कहा गया है कि डब्ल्यूएचओ का आकलन है कि अफ्रीकी क्षेत्र के छह देशों सहित 21 देश इस लक्ष्य को हासिल करने की स्थिति में हैं। अफ्रीकी देशों पर इस बीमारी का बोझ सबसे अधिक है।डब्ल्यूएचओ के वैश्विक मलेरिया कार्यक्रम के निदेशक प्रेडो अलोंसो ने कहा, हमारी रिपोर्ट उन देशों को दर्शाती है जो मलेरिया उन्मूलन के रास्ते पर सही ढंग से बढ़ रहे हैं।

रिपोर्ट में पेश डब्ल्यूएचओ के विश्लेषण के अनुसार ये 21 देश हैं-अल्जीरिया, बेलीज, भूटान, बोत्सवाना, काबो वर्डे, चीन, कोमोरोस, कोस्टारिका, इक्वाडोर, अल-सल्वाडोर, ईरान, मलेशिया, मैक्सिको, नेपाल, पराग्वे, कोरिया गणराज्य, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका , सूरीनाम, स्वाजीलैंड और पूर्वी तिमोर ।

अलोंसो ने कहा है कि डब्ल्यूएचओ ने खासकर अफ्रीका में मलेरिया फैलने की बहुत तेज दर को देखते हुए इसके लिए तत्काल अधिक निवेश की आवश्यकता पर जोर दिया है। साथ ही इन देशों की सराहना की है। उन्होंने कहा कि जीवन बचाना हर हाल में हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में वर्ष 2000 से ही मलेरिया से मरने वालों की संख्या में 60 फीसदी की कमी आई है। इसमें कहा गया है कि इसके दूसरे स्तर, उन्मूलन तक पहुंचना आसान नहीं होगा।

दुनिया की करीब आधी आबादी 3.2 अरब लोगों पर मलेरिया का खतरा बरकरार है। केवल पिछले साल ही 95 देशों से मलेरिया के 21.4 करोड़ नए मामले सामने आए। रिपोर्ट में कहा गया है कि बीमारी से चार लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई।अलोंसो ने कहा कि दुनिया को इस बीमारी से मुक्त करने के लिए हर हाल में दृढ़ राजनीतिक एवं वित्तीय प्रतिबद्धता के साथ नई प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करना होगा।

मलेरिया से मौत पर हम क्यों चौकन्ने हुए। जांच से लेकर इलाज की तमाम आधुनिक सुविधा होने के बाद भी कोई इस बीमारी से मर जाए तो हमारे कान खड़े हो जाने चाहिए। भारत में जाने कब से मलेरिया से मुक्ति के प्रयास चल रहे हैं। बाकायदा विभाग है और कर्मचारी तैनात हैं और बजट भी है। अकेले दिल्ली में तीनों निगमों में चार हज़ार कर्मचारी इसके लिए तैनात किये गए हैं। इनका काम मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया से मुक्ति दिलाना है। कुल मिलाकर 78 करोड़ का सालाना बजट है।

देश के तमाम निगमों के संसाधन को जोड़ लें तो पता चलेगा कि मच्छरों के पीछे कितने लोग लगे हैं। मच्छरों से मुक्ति का अभियान सरकार भी समय समय पर चलाती है जिन पर हम समय समय पर ध्यान नहीं देते हैं। खुद भी मच्छर पैदा करने के हालात पैदा करते हैं और बाज़ार से क्रीम और क्वायल खरीद कर समझते हैं कि मच्छर हमारा क्या बिगाड़ लेगा।

सोचिये ये मच्छर जब भारत सरकार से नहीं डरा तो आपके क्वायल से डरेगा। इनके कारण देश भर में तमाम तरह की बीमारियां फैल रही हैं। श्रीलंका ने मलेरिया से मुक्ति  हासिल की हैं। हम कहां तक सफल हुए हैं। भारत को मलेरिया मुक्त होने में 2030 तक का वक्त लग जाएगा. डेंगू और चिकनगुनिया से मुक्ति कब मिलेगी पता नहीं।

पहले श्रीलंका पूरी दुनिया में मलेरिया से सबसे अधिक प्रभावित माना जाता था। पिछले साढ़े तीन साल में श्रीलंका में एक भी मलेरिया का मरीज़ नहीं हुआ है। श्रीलंका ने 1911 में एंटी मलेरिया कैंपेन शुरू किया था, उस दौरान हर साल मलेरिया के 15 लाख मामले दर्ज हुआ करते थे।

श्रीलंका ने 1963 तक मलेरिया को करीब करीब खत्म ही कर दिया था जब सिर्फ 17 केस रिपोर्ट हुए। तब श्रीलंका ने इसका बजट कहीं और खपा दिया और मच्छर फिर से लौटने लगे। फिर से पचास साल लग गए मलेरिया मुक्त होने में। श्रीलंका में भारत से चार गुना ज़्यादा बारिश होती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन  के मुताबिक नब्बे के दशक में श्रीलंका ने मलेरिया से निपटने की रणनीति बदली। इसमें मच्छर के अलावा मलेरिया के पैरासाइट यानी परजीवी को भी निशाना बनाया गया। आम ज़ुबान में हम समझे कि हम मच्छरों को भगाने के लिए फोगिंग करने लगते हैं। लेकिन पैरासाइट को निशाना बनाने का मतलब है मच्छर के भीतर जो मलेरिया के तत्व हैं उन्हें खत्म करना। श्रीलंका ने मलेरिया से निपटने के लिए इंटरनेट का इस्तमाल किया।

हर तरह के बुखार के मरीज़ का मलेरिया के लिए भी टेस्ट किया गया और हर केस स्वास्थय मंत्रालय के एंटी मलेरिया मुहिम को नोटिफाई किया गया। इसका एक राष्ट्रीय डेटा तैयार किया गया। मलेरिया ग्रसित मुल्कों में यात्रा करने वालों की पहचान की गई।

उन पर निगरानी रखी गई। शांति मिशन पर दूसरे मुल्कों पर गए सेना के लोगों का भी टेस्ट किया गया। मलेरिया की दवाइयां सिर्फ एंटी मलेरिया कैंपेन के पास ही मौजूद थी, इसके कारण मजबूरन प्राइवेट हेल्थ सेंटर को भी बताना पड़ा कि उनके यहां मलेरिया का मरीज़ है। एंटी मलेरिया कैंपेन ने 24 घंटे की एक हॉटलाइन चलाई। बीमारी को फैलने से बचाने के लिए मरीज़ों का अलग से ईलाज किया।

पूरी दुनिया में 320 करोड़ लोग मलेरिया के खतरे के बीच रहते हैं। पूरी दुनिया में मुक्ति अभियान चल रहे हैं। 2015 में मलेरिया से दुनिया भर में 4 लाख लोगों की मौत हुई है। 21 करोड़ मलेरिया के मामले सामने आए हैं।

संयुक्त अरब अमीरात, मोरक्को, मालदीव, आर्मिनिया, तुर्कमेनिस्तान जैसे कई देश हैं जिन्होंने पिछले सात आठ सालों में मलेरिया से मुक्ति पाई है. WHO का टारगेट है कि 2030 तक 35 देशों को मलेरिया फ्री करने का। जिसमें भारत और इंडोनेशिया भी शामिल हैं। WHO का कहना है कि अगले 15 साल तक फंडिग को तिगुना करना पड़ेगा अगर ये टारगेट पूरा करना चाहते हैं।

भारत सरकार ने भी इस साल फरवरी में 2030 तक मलेरिया से मुक्ति का लक्ष्य लिया है। भारत में मलेरिया उन्मूलन से संबंधित तमाम आंकड़ों का गहराई से अध्ययन कर बताया है कि 2014 में मलेरिया नियंत्रण के बजट का 90 फीसदी हिस्सा प्रशासनिक कार्यों में ही खर्च हो गया।

दवा, मच्छरदानी और छिड़काव के लिए 10 प्रतिशत ही बजट बचा। जबकि इस बीमारी से भारत की अर्थव्यवस्था को हर साल करीब 13000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। आदिवासी इलाकों में मलेरिया का भयानक आतंक है।

किसी को पुख्ता तौर पर पता नहीं है कि मलेरिया से हर साल कितनी मौतें होती हैं। 2015 में मलेरिया से मरने वालों का सरकारी आंकड़ा 300 है जबकि ब्रिटेन का प्रतिष्ठित हेल्थ जर्नल लांसेट का अनुमान है कि भारत में हर साल 50,000 लोग मलेरिया से मर जाते हैं।

 मलेरिया से होने वाली हर मौत की रिपोर्टिंग होती ही हो इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है। पीड़ित अस्पताल पहुंचने से पहले ही बुखार से मर जाते हैं। दवा युक्त मच्छरदानी बांटने का लक्ष्य था कि 25 करोड़ लोगों में बांटेंगे लेकिन एक प्रतिशत लोगों में भी नहीं बंटा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुमान लगाया है कि 2013 में 19 करोड़ 80 लाख से भी ज़्यादा लोगों को मलेरिया हुआ और इस बीमारी ने 5 लाख 84 हज़ार लोगों की जान ले ली। इनमें से 80 प्रतिशत बच्चे थे, जिनकी उम्र 5 साल से कम थी। दुनिया-भर में करीब 100 से भी ज़्यादा देशों में यह बीमारी फैली हुई है और वहाँ तकरीबन 320 करोड़ लोगों को मलेरिया होने का खतरा है।

स्थानिय समाचार-पत्रों के मुताबिक बस्तर में पिछले चार महीने में ही इस बीमारी से 2906 लोग पीड़ित हो चुके हैं। जिसमें बच्चों से लेकर वृद्ध तक शामिल हैं। पिछले साल भी समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण करीब आधा दर्जन लोगों की मौत इस बीमारी के चलते हुई थी।

हमारे देश के लिए ये एक गंभीर विषय है कि हर साल मलेरिया की चपेट में हजारो लोगों की जान चली जाती है। WHO के रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 हज़ार लोगों की मौत मलेरिया की वजह से होती है। पत्रिका लांसेट में छपे एक लेख में दावा किया गया है कि हर साल भारत में दो लाख से अधिक लोगों की मौत मलेरिया से होती है।

हालांकि ये संख्या WHO के अनुमान से 13 गुना ज्यादा है लेकिन लांसेट का कहना है कि WHO के पास क्लीनिक और अस्पतालों में होने वाली मौतों की संख्या के आंकड़े उपलब्ध हैं जबकि बड़ी संख्या में मलेरिया से लोगों की मौतें घरों पर होती हैं।


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