धर्म एक अफ़ीम है और यहां लगभग पूरा देश अफीमची हो गया

आरपी विशाल

 

कुछ दिन पहले आसाम में एक व्यक्ति को पुलिस द्वारा गोली मारी गई और पत्रकार मृतक की छाती पर कूद कूदकर गुस्सा जाहिर कर रहा था। इस घटना में मारने वाला व्यक्ति हिन्दू था और मरने वाला मुस्लिम। पत्रकार बड़ा गुस्से में था और उसको समर्थन करने वाले घटना को उचित ठहरा रहे थे। सबके अपने अपने तर्क, वितर्क, कुतर्क थे पर सब अपनी नज़र में सही थे।

फिर कुछ दिन पहले कश्मीर में कुछ लोगों को चुन चुनकर मारा गया। इस घटना में मरने वाले हिन्दू और सिख थे जबकि मारने वाले मुस्लिम। मारने वाले बड़े गुस्से में थे और उसके बाद मृतकों के परिजनों में भी बड़ा गुस्सा था। समर्थन करने वाले घटना को उचित ठहरा रहे थे। सबके अपने अपने तर्क, वितर्क, कुतर्क थे पर सब अपनी नज़र में सही थे।

सिंघु बॉर्डर पर एक व्यक्ति को सर्फ इसकिए मार दिया क्योंकि उसने कोई धार्मिक ग्रन्थ छू लिये थे। हो सकता है कि गलती भी रही हो कोई उसकी लेकिन हत्या करने वाली निहंग सिखों की भीड़ कितनी सही थी? यहाँ भी समर्थन करने वाले घटना को उचित ठहरा रहे थे। सबके अपने अपने तर्क, वितर्क, कुतर्क थे पर सब अपनी नज़र में सही थे।

आपने नोट किया कि सिस्टम में हिन्दू भी मरा, मुस्लिम भी मरा, सिख भी मरा, दलित भी मरा, आदिवासी भी मरा लेकिन मारने वालों के पास हजारों वजह है जबकि सत्य यह है कि मारने वालों के पास धर्म के अलावा कोई अन्य वजह नहीं है। धर्म एक अफ़ीम है और यहां लगभग पूरा देश अफीमची हो गया। जब तक धर्मों का रिफॉर्म नहीं होता तबतक नागरिकों में मानवीयता नहीं बढ़ेगी और यह रिफॉर्म पोलिटिकल विल पॉवर के बिना असम्भव है।

हो सकता है आप काफी हदतक सही हो लेकिन आपको हत्या का अधिकार नहीं है। तमाम धार्मिक ग्रन्थ इंसानों द्वारा लिखे गए हैं, जिसमें तमाम खामियां मौजूद है। इसे स्वीकार करो और नहीं स्वीकार कर सकते तो यह साबित होता है धर्म ही सीखाते हैं आपस में बैर करना वरना तो सब इंसान है, मगर धर्म सबको हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, दलित, आदिवासी,आदि, इत्यादि मानने को विवश करता है। 


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