सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और उनकी जानदार कविताएं

द कोरस टीम

 

वह बाल साहित्य पर ध्यान देना चाहते थे और बाल पत्रिका ‘पराग’ के संपादक भी थे। वह तीसरा सप्तक के प्रमुख कवियों में से एक हैं। जब उन्होंने दिनमान का कार्यभार संभाला तब समकालीन पत्रकारिता के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को समझा और सामाजिक चेतना जगाने में अपना अनुकरणीय योगदान दिया।

सर्वेश्वर मानते थे कि जिस देश के पास समृद्ध बाल साहित्य नहीं है, उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं रह सकता। सर्वेश्वर की यह अग्रगामी सोच उन्हें एक बाल पत्रिका के सम्पादक के नाते प्रतिष्ठित और सम्मानित करती है। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने ‘बकरी’ नामक नाटक की रचना 1974 में की।

इसमें दो अंक तथा प्रत्येक अंक में 3 दृश्य हैं। इसमें भारतीय राजनेताओं के मुखौटों (गांधीवाद) का पर्दाफाश किया गया है। नाटक से पहले भूमिका दृश्य है। नाटक के प्रत्येक दृश्य के बाद नट गायन है। तथा अंतिम दृश्य में नट नटी के साथ साथ सबका गायन है। इसके प्रमुख पात्र हैं - दुर्जन, सत्यवीर, कर्मवीर, सिपाही, युवक, विपती, काका, चाचा, चाची, काकी, राम, भिशती। 

इस नाटक की प्रथम प्रस्तुति जन नाट्य मंच द्वारा 13 जुलाई 1974 को त्रिवेणी कला संगम, नई दिल्ली में की गयी थी। अब तक इसका ब्रजभाषा, कुमायनी, गुजराती, कनन्ड़, उडिया, छत्तीसगढ़ी जैसी बोलियों में मंचन हुआ है। भारत सरकार ने आपातकाल के समय इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस पर मॉरिसस में भी प्रतिबंध लगा था।

सर्वेश्वरदयाल की धारदार कविताएं 

देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता 

यदि तुम्हारे घर के
एक कमरे में आग लगी हो
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में सो सकते हो?
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में
लाशें सड़ रहीं हों
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?
यदि हाँ
तो मुझे तुम से
कुछ नहीं कहना है।

देश कागज पर बना
नक्शा नहीं होता
कि एक हिस्से के फट जाने पर
बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें
और नदियां, पर्वत, शहर, गांव
वैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखें
अनमने रहें।
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे तुम्हारे साथ
नहीं रहना है।

इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा
कुछ भी नहीं है
न ईश्वर
न ज्ञान
न चुनाव
कागज पर लिखी कोई भी इबारत
फाड़ी जा सकती है
और जमीन की सात परतों के भीतर
गाड़ी जा सकती है।

जो विवेक
खड़ा हो लाशों को टेक
वह अंधा है
जो शासन
चल रहा हो बंदूक की नली से
हत्यारों का धंधा है
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे
अब एक क्षण भी
तुम्हें नहीं सहना है।

याद रखो
एक बच्चे की हत्या
एक औरत की मौत
एक आदमी का
गोलियों से चिथड़ा तन
किसी शासन का ही नहीं
सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन।

ऐसा खून बहकर
धरती में जज्ब नहीं होता
आकाश में फहराते झंडों को
काला करता है।
जिस धरती पर
फौजी बूटों के निशान हों
और उन पर
लाशें गिर रही हों
वह धरती
यदि तुम्हारे खून में
आग बन कर नहीं दौड़ती
तो समझ लो
तुम बंजर हो गये हो-
तुम्हें यहां सांस लेने तक का नहीं है अधिकार
तुम्हारे लिए नहीं रहा अब यह संसार।

आखिरी बात
बिल्कुल साफ
किसी हत्यारे को
कभी मत करो माफ
चाहे हो वह तुम्हारा यार
धर्म का ठेकेदार,
चाहे लोकतंत्र का
स्वनामधन्य पहरेदार।


कोई मेरे साथ चले 

मैंने कब कहा
कोई मेरे साथ चले
चाहा जरुर!

अक्सर दरख्तों के लिये
जूते सिलवा लाया
और उनके पास खडा रहा
वे अपनी हरीयाली
अपने फूल फूल पर इतराते
अपनी चिडियों में उलझे रहे

मैं आगे बढ गया
अपने पैरों को
उनकी तरह
जडों में नहीं बदल पाया

यह जानते हुए भी
कि आगे बढना
निरंतर कुछ खोते जाना
और अकेले होते जाना है
मैं यहाँ तक आ गया हूँ
जहाँ दरख्तों की लंबी छायाएं
मुझे घेरे हुए हैं......

किसी साथ के
या डूबते सूरज के कारण
मुझे नहीं मालूम
मुझे
और आगे जाना है
कोई मेरे साथ चले
मैंने कब कहा
चाहा जरुर!


लड़ाई जारी है 

जारी है-जारी है
अभी लड़ाई जारी है।

यह जो छापा तिलक लगाए और जनेऊंधारी है
यह जो जात पांत पूजक है यह जो भ्रष्टाचारी है
यह जो भूपति कहलाता है जिसकी साहूकारी है
उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है।
 
यह जो तिलक मांगता है, लडके की धौंस जमाता है
कम दहेज पाकर लडक़ी का जीवन नरक बनाता है
पैसे के बल पर यह जो अनमोल ब्याह रचाता है
यह जो अन्यायी है सब कुछ ताकत से हथियाता है
उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है।
 
यह जो काला धन फैला है, यह जो चोरबाजारी हैं
सत्ता पाँव चूमती जिसके यह जो सरमाएदारी है
यह जो यम-सा नेता है, मतदाता की लाचारी है
उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है।
 
जारी है-जारी है
अभी लड़ाई जारी है।


पोस्टमार्टम की रिपोर्ट 

गोली खाकर
एक के मुँह से निकला -
‘राम’।

दूसरे के मुंह से निकला-
‘माओ’।

लेकिन तीसरे के मुंह से निकला-
‘आलू’।


पोस्टमार्टम की रिपोर्ट है
कि पहले दो के पेट
भरे हुए थे।


नए साल की शुभकामनाएं! 

नए साल की शुभकामनाएं!
खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पांव को
कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को
नए साल की शुभकामनाएं!

जांते के गीतों को बैलों की चाल को
करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को
नए साल की शुभकामनाएँ!

इस पकती रोटी को बच्चों के शोर को
चौंके की गुनगुन को चूल्हे की भोर को
नए साल की शुभकामनाएं!

वीराने जंगल को तारों को रात को
ठंडी दो बंदूकों में घर की बात को
नए साल की शुभकामनाएं!

इस चलती आंधी में हर बिखरे बाल को
सिगरेट की लाशों पर फूलों से खय़ाल को
नए साल की शुभकामनाएं!

कोट के गुलाब और जूड़े के फूल को
हर नन्ही याद को हर छोटी भूल को
नए साल की शुभकामनाएं!

उनको जिनने चुन-चुनकर ग्रीटिंग कार्ड लिखे
उनको जो अपने गमले में चुपचाप दिखे
नए साल की शुभकामनाएं!


Add Comment

Enter your full name
We'll never share your number with anyone else.
We'll never share your email with anyone else.
Write your comment

Your Comment